Vayam Rakshamah

Vayam Rakshamah

Language:

Hindi

Pages:

464

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

928 mins

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Book Description

मेरे हृदय और मस्तिष्क में भावों और विचारों की जो आधी शताब्दी की अर्जित प्रज्ञा- पूँजी थी, उस सबको मैंने 'वय॑ रक्षाम: ' में झोंक दिया है। अब मेरे पास कुछ नहीं है। लुटा-पिटा सा, ठगा सा श्रांत-क्लांत बैठा हूँ। चाहता हूँ--अब विश्राम मिले। चिर न सही, अचिर ही परंतु यह हवा में उड़ने का युग है। मेरे पिताश्री ने बैलगाड़ी में जीवन-यात्रा की थी, मेरा शैशव इक्का टाँगा-घोड़ों पर लुढ़कता तथा यौवन मोटर पर दौड़ता रहा। अब मोटर और वायुयान को अतिक्रांत कर आठ सहख मील प्रति घंटा की चालवाले रॉकेट पर पृथ्वी से पाँच सौ मील की ऊँचाई पर मेरा वार्धक्य उड़ा चला जा रहा है। विश्राम मिले तो कैसे ? इस युग का तो विश्राम से आचूड़ बैर है। बहुत घोड़ों को, गधों को, बैलों को बोझा ढोते-ढोते बोच राह मरते देखा हैं। इस साहित्यकार के ज्ञानयज्ञ की पूर्णाहुति भी किसी दिन कहीं ऐसे ही हो जाएगी। तभी उसे अपने तप का संपूर्ण पुण्य मिलेगा।

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