Achchhi English Likhna Seekhen
Author:
A.K. GandhiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 340
₹
425
Unavailable
आज अंग्रेजी जिस प्रकार हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण हो चली है, इसे सही प्रकार से लिखना-सीखना लगभग प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक हो गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने अपने जीवन के प्रायौगिक अनुभवों का उपयोग करते हुए इस पुस्तक को लिखा है। इसमें दी गई तकनीक छात्रों पर प्रयोग में बहुत सफल पाई गई है, इसीलिए इस पुस्तक की रचना का निर्णय लिया गया।
यह पुस्तक न केवल लेखन की कला के विभिन्न पक्षों से संबंधित है, वरन् यह अनेक ऐसे बिंदुओं व प्रश्नों का निराकरण भी करती है, जो लिखते समय किसी के भी मस्तिष्क में उठते हैं। प्रत्येक बिंदु का वर्णन करते समय उपयुक्त उदाहरणों का समावेश किया गया है, ताकि पाठकगण उसे भली-भाँति समझ पाएँ तथा व्यवहार में ला पाएँ।
इस पुस्तक को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए पुस्तक में 44 लघु तथा 32 दीर्घ निबंधों के अतिरिक्त कुछ प्रार्थना-पत्र, पत्र आदि को संकलित किया गया है, ताकि पाठक, विशेषकर छात्र, विभिन्न प्रकार की विधाओं से परिचित हो सकें तथा अन्यान्य प्रयोजनों के लिए वे अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकें।
अंग्रेजी भाषा के सम्यक् ज्ञान को बढ़ाने के साथ अच्छी English लिखने का गहन अभ्यास करानेवाली अत्यंत उपयोगी पुस्तक।
ISBN: 9789384344894
Pages: 240
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पहुँचाने में समर्थ है। इससे पहले उन्होंने अपनी पत्रिका बिंदु और उस दौर की अनेक पत्रिकाओं के लिए साहित्य शास्त्र तथा साहित्य के अन्य प्रासंगिक विषयों पर लिखे प्रसिद्ध अंग्रेजी निबंधों का अनुवाद भी किया। इस खंड में नंद बाबू द्वारा अनुवादित दो सम्पूर्ण कृतियाँ भी पढ़ी जा सकती हैं। ए. अप्पादुराई की एक अत्यन्त विचारोत्तेजक और महत्त्वपूर्ण किताब को उन्होंने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के लिए चुना। लगभग सवा दो सौ पृष्ठों की इस किताब का नाम था ‘भारतीय राजनीतिक चिन्तन’ जिसका अनुवाद नंद बाबू ने रघुवर दयाल के साथ मिलकर किया। 1990 में आई इस पुस्तक की गम्भीर सामग्री को जिस सहज और प्रभावी हिन्दी में नंद बाबू ने अनुवादित किया वह उनकी अद्भुत भाषिक क्षमता का उदाहरण है। दूसरी पुस्तक ‘दहेज पीड़ित महिलाएँ : एक अध्ययन’ लेखिका रंजना कुमारी की है जो भारत में महिला आन्दोलन में अग्रणी रही हैं। मुजफ्फरपुर, बिहार से 1991 में छपी इस छोटी-सी किताब में उस दौर की दहेज समस्या का गम्भीरता से अध्ययन किया गया था। ये दोनों पुस्तकें हिन्दी अनुवाद के बाद और चर्चित हो गईं। अपने जीवन के उत्तरार्ध में भी वे अनुवाद करते रहे। 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