Swadesh
Publisher:
Prabhat Prakashan
Language:
Hindi
Pages:
184
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
368 mins
Book Description
यह पुस्तक एक उपन्यास है, जो यथार्थ के पंख लगाकर काल्पनिकता के धरातल पर एक सशक्त भारत की आधारशिला रखता है। 16 भागों में विभाजित इस उपन्यास में एक ऐसे सेवानिवृत्त प्राध्यापक की जिद में लिपटी जीवंतता को समेटा गया है, जो बौद्धिक प्रतिभा पलायन (brain drain) के बहाव को रोकना अपना राष्ट्रधर्म मानते हैं। वैश्विक पटल पर भारतमाता के सम्मान की जीवंत गाथा को अमरत्व प्रदान करने के लिए नवयुवकों को स्वदेश में रहने के लिए एक वातावरण की संरचना करने का नवाचार करते हैं। वह शैक्षणिक संस्थाओं, नवयुवकों व भारतीय परिवारों की चिर-परिचित मान्यताओं को अपने लक्ष्य के अनुरूप ढालने की चुनौती का सामना करते हैं। जनसामान्य की मानसिकता को परिवर्तित करने के लिए संघर्ष करते हैं। उनका मानना है, भौतिक सुख-सुविधाओं की चाह में स्वदेश छोड़ परदेश की ओर आकर्षित होते नवयुवक विदेशी राज्यों का माथा ऊँचा करते हैं। वे वहाँ पर उस हुनर का इस्तेमाल करते हैं, जिसे भारतमाता ने अपने आँगन के संस्कारों से पोषित किया है, अपनी खाद-पानी से सिंचित किया है। प्राध्यापक अपना शेष जीवन स्वदेश आंदोलन को समर्पित कर देते हैं ताकि भारतमाता के माथे से पिछड़े राष्ट्र के चिह्न को मिटा सकें और बुढ़ापे से जूझते बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम में न रहना पड़े; उन्हें परदेश में रहनेवाली अपनी संतान का मुँह देखे बिना तड़प-तड़पकर न मरना पड़े। अपनों से अपनों का अपनत्व बना रहे। इसके लिए प्रोफेसर एक मिशन छेड़ते हैं ‘स्वदेश’।