The Untold Story Of Kakori
Author:
Smita DhruvPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
Do you remember “Kakori train loot” by Ten heroes ?
It happened on 9th August, 1925. A real life drama by India’s martyrs around which this fiction is written.
India’s Non Co-operation Movement against the British Government was started with a promise to free India within a year. When it was withdrawn abruptly in 1922, thousands of young freedom fighters were disillusioned.
This deceit saw birth of a large number of revolutionaries fighting with all their might single-handedly against the ruling British in India. On this day, a team of ten young boys looted treasury of the Indian Railways near Kakori Railway Station, next to Lucknow.
An event in the Golden history of India’s freedom fights and is a fictional story woven around it.
This book brings alive those shining moments of gallantry by young, brave martyrs, who till today remain unknown to us. A nail biting portrayal of mental agony, dilemma and _ survival issues from the lives of heroes of our country and their families is a tribute to the Kakori boys
ISBN: 9789355212542
Pages: 320
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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तुलसीदास हिन्दी कवियों के शिरोमणि हैं, लेकिन हिन्दी की नई पीढ़ी में उनके प्रति एक उपेक्षा का भाव देखा जाता है। इसका कारण उनका वर्णाश्रम-धर्म में विश्वास करना है। किसी भी कवि को चित्रण की जगह उसके विश्वासों के आधार पर परखना ग़लत है। संसार में अनेक ऐसे बड़े रचनाकार हुए हैं, जिनके विश्वासों से हम सहमत नहीं होते, लेकिन जो हमारे ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। नई पीढ़ी कबीर की तरफ़ अधिक झुकी हुई है, जबकि उनका लक्ष्य लोक न होकर परलोक था, वे योगमार्गी थे और वर्ण-व्यवस्था तथा बाह्याचार का विरोध उनका उपलक्ष्य-मात्र था। उनकी महानता में भी किसी को सन्देह नहीं है, लेकिन तुलसीदास की महानता का उससे कोई विरोध नहीं। डॉ. नामवर सिंह के शब्द लेकर कहें, तो साहित्य की गली प्रेम की गली-जैसी सँकरी नहीं है कि उसमें एक से अधिक की समाई न हो।
डॉ. नवल हिन्दी के सुपरिचित आलोचक हैं। अब तक वे आधुनिक कविता पर लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने पहली बार मध्ययुग के एक कवि को विषय बनाया है। स्वभावतः ऐसा उन्होंने अपनी अन्तःप्रेरणा से किया है, जिससे उनकी पुस्तक में एक रसज्ञ पाठक से मुलाक़ात होती है, शुष्क विश्लेषण करनेवाले शास्त्रज्ञ आलोचक से नहीं। इसमें सिर्फ़ तीन लेख हैं, जिनसे तुलसीदास की कविता का सम्पूर्ण चित्र आँखों के सामने आ जाता है। वह चित्र जितना ही भास्वर है, उतना ही सरस भी। इसके बल पर तुलसीदास का कवि-चित्र भी विशाल से विशालतर होता जाता है।
Lok Sahitya Evam Sanskriti
- Author Name:
Prof. Radheyshyam Singh +1
- Book Type:

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Description:
लोक-साहित्य एवं लोक-संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन एवं उन्नयन के प्रयास के अनुक्रम में ‘लोक साहित्य एवं संस्कृति’ पुस्तक के सृजन की योजना बनी है। इस आशा के साथ कि उच्च शिक्षा में अध्ययनरत छात्रों, शोधार्थियों एवं अकादमिक जगत् से जुड़े हुए विद्वत समाज के मनोविज्ञान में लोक साहित्य और संस्कृति के प्रति एक बौद्धिक व आत्मिक रिश्ते का अंकुरण प्रस्फुटित होगा। भारत की सामासिक संस्कृति, अक्षय सामाजिक-सांस्कृतिक लोक परम्परा, लोकाचार, लोक व्यवहार, लोक विश्वास और लोक मान्यताओं से बनी हुई इस सभ्यता के भीतर दाखिल हो कर हम लोकजीवन व लोक-संस्कृति के सापेक्ष जीवन मूल्यों व ‘जीवन जीने की कला’ के रहस्य सूत्र की तलाश कर सकेंगे। लोक साहित्य व संस्कृति में हमारी सांस्कृतिक विरासतों की गहरी जड़ें व गौरव के भाव सन्निहित हैं।
वैश्वीकरण और बाजारवाद के इस दौर में जब हमारे मूल्य, संस्कृति, परम्परा और सरोकार तेजी से धराशायी हो रहे हैं, जब छद्म विकास, अपरिमित मुनाफा और दिखावे का मुखौटा लगाकर हमारी अस्मिता को विनष्ट करने का षड्यंत्र रचा जा रहा हो, जब हमारा जीवन बाजार के हाथों नियंत्रित और संचालित होने लगे, जब हमारी संवेदनाएँ छीजने लगे, जब एकल परिवार हमारी प्राथमिकता में अपनी जगह बनाने लगे, तब ऐसे समय में हमें लोक साहित्य और संस्कृति से वैचारिक ऊष्मा व प्रेरणा की असंख्य रोशनी मिलती है। यह रोशनी समय के तमाम धुंध और अन्धेरे को छांटने में सक्षम और कारगर है।
लोक साहित्य में लोक अन्तर्मन की अनुगूँज ध्वनित हैं। इस गूँज में सामूहिकता है। भावनात्मक एकता है। जीवन का राग और सौन्दर्य है। अधिकार, अस्तित्व, अस्मिता, अध्यात्म और जीजिविषा का प्रश्न है। वंचितों और पीड़ितों के जरूरी सवाल हैं। स्त्री स्वायत्तता और अधिकार के प्रश्न केन्द्र में हैं। इसमें निश्छल हँसी भी है और करुण चीत्कार भी है। इसमें सृजन और संहार दोनों का रंग समाहित है। लोक साहित्य की सभी विधाओं में जीवन के सारे अनिवार्य तत्वों का समावेश है। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से लोक साहित्य का अध्ययन अपेक्षित है। अतएव राष्ट्र निर्माण, सामाजिक भागीदारी व मानवीय विकास में लोक साहित्य की भूमिका अद्वितीय है। इसमें रंच मात्र भी संशय नहीं है।
Kabeer Mimansa
- Author Name:
Ramchandra Tiwari
- Book Type:

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Description:
इस संस्करण में कबीर से सम्बन्धित निबन्ध—कबीर-वाणी की लिखित एवं मौखिक परम्परा तथा कबीर का व्यक्तित्व, ‘कबीर-वाणी के अध्ययन की परम्परा’, ‘प्रगतिवादी कबीर', ‘कबीर का आदर्श मानव और मानवतावाद’, ‘कबीर को कबीर ही रहने दें’, ‘कबीर : अन्तर्विरोधों के बावजूद’ शामिल किया गया है। यह कबीर से सम्बन्धित सभी पक्षों का समग्र मूल्यांकन करनेवाली कृति है।
प्रस्तुत कृति में कबीर के जीवन-वृत्त और कृतियों के प्रामाणिक परिचय के साथ ही उनके युग-विधायक बहुआयामी व्यक्तित्व को व्यंजित करने वाली सभी संघटक तत्त्वों का गम्भीर, सन्तुलित, सारग्राही, स्पष्ट एवं आग्रहयुक्त अध्ययन किया गया है। यह प्रयास उस महिमामय व्यक्तित्व के प्रति एक विनम्र प्रणति है।
आशा है, विद्वज्जनों के बीच यह कृति इसी रूप में स्वीकार्य होगी तथा पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।
Scoleris Ki Chhaon Mein
- Author Name:
Purushottam Agarwal
- Book Type:

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पुरुषोत्त्म अग्रवाल इस समय हिन्दी में सोचने-लिखने वाले और विचार को तार्किक स्पष्टता के साथ आगे बढ़ानेवाले चिन्तकों में अग्रणी हैं। देश की राजनीति से लेकर समाज, संस्कृति और साहित्य की दशा-दिशा पर पिछले दशकों में उन्होंने लगातार हस्तक्षेपकारी लेखन किया है।
‘स्कोलेरिस की छाँव में’ पुस्तक में उनका 2005 से 2007 तक का लेखन संकलित है जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पाठकों के सामने आया और विचार-विमर्श का विषय बना। देश में मानवाधिकारों का हालात का प्रश्न हो या पूरी मानवता के लिए भविष्य की वैकल्पिक व्यवस्था का, उपनिवेश और आधुनिकता का सवाल हो या इधर बढ़ रहे बात-बात पर आहत होकर हत्या पर उतारू हो जानेवाले क़िस्म-क़िस्म के समूहों का, यहाँ भी पुरुषोत्तम जी इन तमाम मुद़्दों पर मुखर हैं।
पुस्तक के दो खंड हैं। पहले में उनके अमेरिका यात्रा और वहाँ हुए व्याख्यानादि के दौरान उपजे विचारों और प्रतिक्रियाओं का संकलन है, और दूसरे में समकाल को खँगालती अन्य टिप्पणियाँ और आलेख हैं।
शैतानों और विद्वानों का पेड़ कहे जानेवाले एल्स्टोनिया स्कोलेरिस के बहाने, जो लेखक को इंडिया इंटरनेशनल लाइब्रेरी के सामने खड़ा मिला, उन्होंने ललित चिन्तन का एक अद्भुत नमूना रचा है, जो इस किताब का शीर्षक भी बना।
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