TREASURE TROVE OF INDIAN KNOWLEDGE
Author:
Shri Prashant PolePublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
It is well known that the powers that enslaved India tried to systematically erase our history, which revealed our past glory as they wanted to deprive our nation of enjoying pride in its achievements. Considering it our duty to emerge from the illusionary history written by them, this book highlights the glorious and grand achievements of our ancestors.
This collection of India’s achievements in the past by Prashant Pole is based on actual facts. Written lucidly this highly readable book is the Treasure Trove of Indian Knowledge.
ISBN: 9789390900534
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘वैदहि ओखद जाणै’ पुस्तक में मीरां को उसकी अपनी सांस्कृतिक पारिस्थितिकी से अलग, पश्चिमी विद्वत्ता के सांस्कृतिक मानकों पर समझने-परखने के प्रयासों की पड़ताल है। पश्चिमी विद्वत्ता से मीरां का सम्बन्ध उपनिवेशकाल से ही है। कर्नल जेम्स टॉड ने मीरां को ‘रहस्यवादी संत-भक्त और पवित्रात्मा कवयित्री’ की पहचान दी, जबकि जर्मन विद्वान् हरमन गोएत्ज़ ने ख़ास पश्चिमी नज़रिये से उसके जीवन की पुनर्रचना की। फ्रांसिस टैफ़्ट सहित कुछ पश्चिमी विद्वानों ने उसके जीवन को ‘किंवदंती’ में सीमित कर दिया, जबकि स्ट्रैटन हौली खींच-खाँचकर उसकी कविता के विरह को भारतीय समाज की कथित लैंगिक असमानता में ले गए। विनांद कैलवर्त, स्ट्रैटन हौली आदि ने मीरां को बहुत मनोयोग से पढ़ा-समझा, लेकिन उन्होंने उसकी कविता को पांडुलिपीय प्रमाणों के अभाव, भाव विषयक बहुवचन और भाषा सम्बन्धी वैविध्य के कारण कुछ हद तक अप्रामाणिक ठहरा दिया।
टॉड का कैनेनाइजेशन औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के विस्तार व स्थिरता और व्यापक नीति का हिस्सा था, जबकि हरमन गोएत्ज की मीरां के जीवन की पुनर्रचना पश्चिमी मनीषा के जीवन को देखने-समझने के विभक्त नज़रिये का नतीजा है। मीरां की पहचान और मूल्यांकन में प्रयुक्त अन्य कसौटियों—‘ऑथेंटिक’, एकरूपता, संगति आदि का भी दरअसल मीरां के जीवन और कविता की पहचान और मूल्यांकन में इस्तेमाल बहुत युक्तिसंगत नहीं है। पश्चिम का सांस्कृतिक बोध अलग प्रकार का है, क्योंकि इसका विकास चर्च के अनुशासन में हुआ है, जबकि भारतीय सांस्कृतिक बोध इस तरह के किसी अनुशासन से हमेशा बाहर, स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। भक्ति आन्दोलन तो भारतीय मनीषा की स्वातंत्र्य चेतना का विस्फोट है और स्वतंत्रता हमेशा बहुवचन में ही चरितार्थ होती है। मीरां की कविता भी इसीलिए श्रुत और स्मृत पर निर्भर ‘जीवित’ कविता है और इसका स्वर बहुवचन है।
इस पुस्तक में मीरां सम्बन्धी पश्चिमी विद्वत्ता की इन धारणाओं का प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान इसलिए ज़रूरी है कि आम भारतीय मीरां के सम्बन्ध में अपनी सदियों से चली आ रही धारणाओं के प्रति मन में किसी संशय को जगह देने से पहले विचार करें।
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