Bhagat Singh Ki Pistaul Ki Khoj
Author:
Jupinderjit SinghPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
शहीद भगत सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हम सब जानते हैं कि उन्होंने 17 दिसंबर, 1928 को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स की हत्या अमेरिका में बने एक .32 कोल्ट पिस्टल से की थी। लेकिन हम यह नहीं जानते कि उसके बाद उस पिस्टल का क्या हुआ और कैसे यह स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई थी। हम यह भी नहीं जानते कि उस हुतात्मा ने फिर कभी किसी की हत्या क्यों नहीं की। वह पिस्टल 86 वर्षों तक इतिहास की परतों में और सरकारी दस्तावेजों के अनुसार तब तक गुम ही रही, जब तक कि इस पुस्तक के लेखक ने उस हथियार के सफर का पता नहीं लगा लिया और उसे लोगों के सामने लेकर नहीं आए। क्या थी उस पिस्टल की रहस्यमयी कहानी ? कैसे भगत सिंह शायद महात्मा गांधी से भी बड़े अहिंसा के पुजारी थे, यह जानने के लिए इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें ।
ISBN: 9789394534131
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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उम्मीद है कि ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ पाठकों के समक्ष ‘निर्वासन’ में अन्तर्निहित आयामों के विविध पक्षों को उद्घाटित कर उसकी श्रेष्ठता का साक्षात्कार कराने में सहायक होगी।
Hindi Ke Vikas Mein Apbhransh Ka Yog
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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प्रस्तुत पुस्तक का संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पाठकों के समक्ष नई साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत है जिसमें परवर्ती अपभ्रंश और आरम्भिक हिन्दी सम्बन्धी नवीन सामग्री, अपभ्रंश और हिन्दी वाक्य-विन्यास का तुलनात्मक विवेचन, अपभ्रंश के कुछ विशिष्ट तद्भव तथा देशी शब्द और उनके हिन्दी रूपों की सूची, अपभ्रंश के प्रायः सभी सूचित और ज्ञात ग्रन्थों की सूची, अपभ्रंश के मुख्य कवियों, काव्यों और काव्य-प्रवृत्तियों की विस्तृत समीक्षा, अपभ्रंश और हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक सम्बन्ध पर विशेष विचारों का समावेश किया गया है।
आशा है, पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों तथा पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।
Kahani Ki Rachana Prakriya
- Author Name:
Parmanand Srivastav
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत पुस्तक ‘कहानी की रचना-प्रक्रिया’ में पुरानी कहानी और नई कहानी की रचना-प्रक्रिया के सूक्ष्म भेदों को समझने का प्रयत्न किया गया है और पहली बार रचना की प्रक्रिया से सम्बन्धित समस्याओं को कहानी-साहित्य की समीक्षा के क्षेत्र में उठाया गया है।
कहानी-साहित्य की रचनात्मक प्रक्रिया के अध्ययन-क्रम के आरम्भ में क्रमश: रचना-प्रक्रिया की ‘आधारभूमि’ रचना-प्रक्रिया के मनोवैज्ञानिक आधार, रचना-प्रक्रिया के साहित्यिक आधार, कहानी के प्राचीन रूप, कहानी के नए रूप, रचनात्मक चेतना का कहानी नामक साहित्यिक विधा में उपयोग, शास्त्रीय समीक्षा द्वारा निर्धारित कहानी-कला के प्रमुख तत्त्वों के रचनात्मक उपयोग की सम्भावना तथा रचना-प्रक्रिया और आधुनिकता के प्रमुख स्तर, रचनाकार, रचना-प्रक्रिया और पाठक आदि विषयों पर विचार किया गया है और प्रतिपादित किया गया है कि रचना-प्रक्रिया कोई जड़ यंत्र नहीं है, बल्कि वह रचनाकार की मानसिक संवेदना, सामाजिक परिवेश तथा उसके कलात्मक अनुभवों से सम्बन्धित एक जागरूक प्रक्रिया है जिसमें रचनाकार न केवल रचनात्मक अनुभवों को सम्प्रेषित करता है, बल्कि अपने को पाता भी है, उपलब्ध भी करता है।
दूसरे, तीसरे और चौथे अध्यायों में पूर्व प्रेमचन्द, प्रेमचन्द युग के पूर्वार्द्ध की कहानी, उत्तर प्रेमचन्द-युग की हिन्दी कहानी की विशेषताओं और सीमाओं की व्याख्या की गई है।
पाँचवें अध्याय में हिन्दी कहानी के विविध युगों की रचना-प्रक्रिया की चेतना का अध्ययन प्रस्तुत करते हुए कथा की चेतना या साक्षात्कार के प्रति विभिन्न युगों के कृतिकारों के दृष्टिकोणों में व्याप्त मौलिक अन्तर की व्याख्या की गई है।
छठे और अन्तिम अध्याय में जहाँ आज की कहानी की नई दिशाओं की ओर संकेत किया गया है, वहीं उसके परिशिष्ट में रचना-प्रक्रिया की चेतना पर समूचे अध्ययन के आधार पर पुनर्विचार की आवश्यकता का अनुभव किया गया है।
पुस्तक में साठोत्तर कहानी और आज की कहानी पर कई निबन्ध इस दृष्टि से दिए गए हैं कि आज के पाठक को यह कृति कथा आलोचना के क्षेत्र में सार्थक प्रस्थान दिखे।
Nirmal Verma Aur Uttar Upniveshvad
- Author Name:
Sudhish Pachauri
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Description:
निर्मल इस उत्तर-औपनिवेशिक दौर की ऐसी आहत भारतीय आत्मा है जो अपने आत्म-विभाजन से मुक्ति के लिए पचास साल से छटपटा रही है। निर्मल की कथा यूरोपीय आधुनिकता में खोए भारतीय मनुष्य की मुक्ति की दुर्धर्षता की गाथा है। उनके निबन्ध आधुनिकता से एक सुदीर्घ और अटूट जिरह है, उनकी कथाएँ उस जिरह की दृष्टान्त या कहें कि पलटकर उनके निबन्ध उनके वृत्तान्तों के ‘पूरक’ विमर्श हैं। उनकी हिन्दू तितिक्षा से इस सबका बड़ा गहरा सम्बन्ध है। अपने लेखन में उन्होंने तर्क और अनुभव के बीच ही नहीं, भारतीय विमर्श के बीच भी एक सुसंगति पैदा करके यूरोपीय विभक्ति से निजात पाने का रास्ता भी सुझाया है। सरलीकृत प्रगतिशील आधुनिकता के वे सर्वाधिक कठिन प्रतिकार हैं, पश्चिम की आधुनिक योजनाओं के अचूक दुश्मन हैं और अपने स्वत्व की पहचान के लिए मँडराते एक भारतीय मन के आर्तनाद हैं।
वे भारत के नीत्शे हैं : जितने ख़तरनाक उतने ही मनोहर और अनिवार। नीत्शे को महामानव का इन्तजार था, निर्मल को हर महामानव पर सन्देह है : वे उत्तर-उपनिवेशी भारत के रूपक हैं : अपने लुप्त ‘स्वत्व’, विदीर्णित ‘स्मृति’ और विकृत ‘प्रकृत स्वप्न’ की रक्षा करते। वे अपूर्ण और विभक्त कर दिए गए मनुष्य में पूर्णता का अहसास भरने का कलात्मक उपाय हैं। वे ‘पश्चिम के भारत’ हैं और ‘भारत के पश्चिम’ हैं। एक ‘पूरब’ उन्हें पश्चिम को टोकने-रोकने और ललकारने की ताक़त देता है। एक ‘पश्चिम’ उनके पूरब को समस्याग्रस्त करता है। यह विकट उत्तर-उपनिवेशी विमर्श है जो चालू पश्चिमी विकासमूलक हिन्दी समीक्षा और विमर्श के लिए आफ़त करता है।
यूरोप के द्वारा दमित उनका हाशियाकृत हिन्दू-हाशिया एक नए उत्तर-औपनिवेशिक पाठ की माँग करता है। वे यूरोपीय आधुनिकता की जगह अपने क़िस्म की आधुनिकता की तलाश में एक नई सभ्यता-समीक्षा के सूत्र देते हैं। पश्चिम की समग्रता के बरक्स वे एक पूरब और उसमें भी भारत की पूर्वजता और भारतीयता को समग्र बनाना चाहते हैं। एडवर्ड सईद और तमाम उत्तर-उपनिवेशी विमर्शकार निर्मल में उत्तर-आधुनिकता के सीमान्त पर ज़िद भरे ‘स्थानीयतावादी अभिमान’ और ‘मूलवादी’ को ख़ूब पढ़ सकते हैं। यही उनकी समस्या नज़र आ सकती है।
Anuvad Anusrijan
- Author Name:
A. Arvindakshan
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प्रौद्योगिकी के प्रचुर विकास के साथ अनुवाद का एक नया आयाम सामने आ गया और वह है—मशीनी अनुवाद। कई संस्थाएँ देश-विदेश में इस नई प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दे रही हैं। मशीनी अनुवाद की पूरी प्रक्रिया तथा तत्सम्बन्धी समस्याओं का बहुत बड़ा क्षेत्र है जो आजकल अनुवाद के क्षेत्र में नूतन आविष्कारों के साथ सामने आ रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ मशीनी अनुवाद भी विकसित होता जा रहा है। मशीनी अनुवाद के विकास ने तथा उसकी अनन्त सम्भावनाओं ने अनुवाद-कार्य को प्रोफ़ेशनल स्वरूप प्रदान किया है। यही नहीं, अनुवाद के प्रोफ़ेशनल स्वरूप को देखते हुए ऐसा ही लगता है कि यह एक इंडस्ट्री के रूप में विकसित हो सकता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में इसकी सम्भावनाएँ अधिक हैं। यह ग्रन्थ अनुवाद को दो तरह से देख रहा है—अकादमिक तथा प्रोफ़ेशनल स्तर से। अनुवाद में ये दोनों मुख्य हैं। मेरा यही विचार है कि अनुवाद के विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं अध्यापकों के लिए यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।
—भूमिका से
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