Sangh Aur Sarkar

Sangh Aur Sarkar

Authors(s):

Santosh Kumar

Language:

Hindi

Pages:

392

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

1016 mins

Buy For ₹425

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

2014 और 2019 के चुनाव नतीजे संघ को सुकून दे रहे थे, क्योंकि तीन पीढ़ी खपाने के बाद उसकी वैचारिक उड़ान को पंख लग गए थे। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए संघ को 1998- 2004 में अपनी ही सरकार से टकराव मोल लेना पड़ा था। आर्थिक और राजनैतिक मसलों पर वाजपेयी सरकार के समय लड़ाई सार्वजनिक थी। असमंजस के माहौल में हुए 2004 के आम चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई; अगले एक दशक तक पार्टी में जबरदस्त कोहराम मचा। तमाम झंझावातों के बाद 2009 में आडवाणी पी.एम. इन वेटिंग बने। लेकिन कलह ऐसी थी, मानो 15वीं नहीं 16वीं लोकसभा की लड़ाई हो रही हो। इसी बीच संघ में पीढ़ी परिवर्तन हुआ और मोहन भागवत सरसंघचालक बने, फिर विचार-परिवार में भी पीढ़ी परिवर्तन का खाका बना। भाजपा में दूसरी पीढ़ी में जद्दोजहद के बाद विचारधारा के प्रहरी के तौर पर नरेंद्र मोदी उभरे । संघ की सलाह पर पार्टी मोदी युग में प्रवेश कर गई। उसके बाद विचार-परिवार ने समन्वय का ऐसा खाका खींचा कि अटल सरकार की कड़वाहट सदा के लिए अतीत के पन्‍नों में समा गई। संवाद और समन्वय विचार-परिवार का मंत्र बना, तो मोदी ने भी संवाद का मैकेनिज्म बना समन्वय को गति दी। नतीजा हुआ कि अनुकूल सरकार का लाभ उठा, संघ और भाजपा दोनों ने अपना सामाजिक आधार बढ़ाया। यह पुस्तक संघ, सरकार और समन्वय की उन सभी कहानियों की बारीकियों को परत-दर-परत सामने रखती है। 2014 से संघ-भाजपा के बीच समन्वय एक मिसाल है, जिसने दोनों का न सिर्फ आधार बढ़ाया, बल्कि 2014 से भी बड़ी जीत की जमीन तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

More Books from Prabhat Prakashan