Gyanmarg Karmayogi Swami Vivekananda
Publisher:
Prabhat Prakashan
Language:
Hindi
Pages:
232
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
464 mins
Book Description
"ज्ञानमार्ग कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद स्वामी विवेकानंद महान् स्वप्नद्रष्टा थे। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत का जो आधार विवेकानंद ने दिया, एक बौद्धिक आधार शायद ही ढ़ूँढ़ा जा सके। स्वामीजी की दृष्टि में स्पष्ट हो चुका था कि भारत के अध्यात्म से पश्चिम की आत्मा को पुष्ट करना होगा और पश्चिम की वैज्ञानिक समृद्धि से भारत के तन का पोषण करना होगा। दोनों एक-दूसरे की प्रतिपूर्ति करेंगे, पूरक बनेंगे, तब मानवता का कल्याण होगा और इसके लिए स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाना होगा। पवित्रता को नरेंद्रनाथ आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला मानते हैं। उनके लिए यह विधा दूषण का प्रतिरोध न होकर सर्व स्वस्ति से प्रगाढ़ प्रेम है। यह स्वस्ति कामना अपने व्यापकतम अर्थ में है, जो एक आध्यात्मिक शक्ति के रूप में सभी प्रकार के जीवन को अपने आगोश में लेती है। परमहंस ने द्वैत-अद्वैत के प्रतीयमान विरोधाभास में एकता स्थापित की। इस बराबरी (धार्मिक बराबरी) का वैचारिक आधार भी एकमात्र अद्वैत ही प्रदान कर सकता है, क्योंकि इसमें किसी अन्य को अपने से अभिन्न ही माना जाता है और इसी आधार पर नैतिक आचरण का निर्माण होता है। स्वामीजी को युवकों से बड़ी आशाएँ हैं। लेखक ने आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्वी संन्यासी का जीवन-वृत्त उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। "