Itna To Yaad Hai Mujhe
Author:
Bobby SingPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
क्या आप हिंदी सिनेमा और हिंदी फिल्म संगीत से दीवानगी की हद तक प्रेम करते हैं? यदि हाँ, तो यह पुस्तक आपके लिए ही है। इस पुस्तक के 51 अध्याय तीन भागों में विभाजित किए गए हैं। पहले भाग में नब्बे के दशक से पहले की हिंदी फिल्मों के तथ्यों के बारे में विवरण दिया गया है अर्थात् भारत में केबल टीवी क्रांति से पहले। दूसरा भाग दोनों काल के मध्य की कड़ी/लिंक पर आधारित है और तीसरा नब्बे के दशक के बाद की फिल्मों और हमारे वर्तमान सिनेमा पर। पुस्तक के कुछ खास विषय हैं—
** चिरकालिक ‘गाइड’ और इसका अंग्रेजी संस्करण ** ‘डिस्को डांसर’ की अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बारे में कुछ अनकहे तथ्य ** 1989 में म्यूजिक एलबम ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ से लिपटा रहस्य ** उत्पल दत्त—जो सिर्फ एक कॉमेडियन नहीं थे ** ‘सिलसिला’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ को जोड़नेवाला तथ्य ** हिंदी फिल्म संगीत से पहेली-आधारित गीतों की गुम हो चुकी कला।
ISBN: 9789390900404
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पत्रकारिता के इतिहास में यह एक ज़बर्दस्त मोड़ है कि यह सिर्फ़ ‘पत्रकार’ का गढ़ नहीं रह गई है। पत्रकार और पत्रकारिता की परिभाषाएँ भी बदल रही हैं। नए संचार माध्यम तकनीकी रूप से बेहद समृद्ध हैं, लेकिन भिन्न आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों में इन तक लोगों की वास्तविक पहुँच, इनके उपयोग और असर की सीमाएँ हो सकती हैं। लेकिन निश्चित रूप से न्यू मीडिया की परिघटना क्षणिक आवेग या अस्थायी या किसी भौगोलिक क्षेत्र की सीमा में बँधी हुई नहीं है। एक ख़ास बात यह भी है कि इस सार्वभौम नेटवर्क के रूप, उपयोग के तरीक़ों में बदलाव भी सतत होता रहेगा।
नए माध्यमों का आना हमारे देश को किस तरह से प्रभावित कर रहा है? यह सिर्फ़ एक विकल्प है या फिर मुख्यधारा का सशक्त पत्रकारीय औज़ार? जन सूचना माध्यम के रूप में इसकी क्या सीमाएँ और शक्तियाँ हैं और इसके आगे बढ़ने के रास्ते में कौन-सी चुनौतियाँ इस समय देखी जा रही हैं? हमारे अपने देश की भाषाओं में इसके इस्तेमाल के लिए क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं और तकनीकी स्तर पर इसमें क्या रुकावटें हैं? ऐसे कई सवाल इस समय किसी भी मीडियाकर्मी या जिज्ञासु के सामने हैं। इन सवालों पर नए माध्यमों के कुछ सशक्त उपयोगकर्ताओं और विशेषज्ञों ने अपने पक्ष इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के रूप में रखे हैं।
—‘पुस्तक परिचय’ से
Bharat Mein Jansanchar Aur Prasaran Media
- Author Name:
Madhukar Lele
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भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरम्भ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नए युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलाना एक गम्भीर चुनौती थी। ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया। कालान्तर में टेलीविज़न भी उससे जुड़ गया। दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंज़िलें पार की हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ बड़ी चुनौती-भरी रही हैं। प्रसारण टेक्नोलॉजी में हाल के कुछ वर्षों में जो ज़बर्दस्त प्रगति हुई और उसके साथ ही जब भूमंडलीकरण का दौर चला तो लाज़िमी था कि तेज़ी के साथ फलते-फूलते वैश्विक मीडिया उद्योग को भी भारत में अवसर दिए जाते। यह नया दौर निश्चित ही अपने साथ नई और अधिक गम्भीर चुनौतियाँ लेकर आया है।
मधुकर लेले ने आकाशवाणी और दूरदर्शन सेवा में लम्बी पारी पूरी की है और दोनों प्रसारण माध्यमों के विकास, विस्तार और उससे जुड़े विमर्श को उन्होंने नज़दीक से देखा-जाना है। प्रस्तुत पुस्तक में भारत में प्रसारण मीडिया की इस चुनौती-भरी यात्रा के मुख्य पड़ावों पर उन्होंने विहंगम दृष्टि से प्रकाश डाला है।
Anchalik Samwaddata
- Author Name:
Suresh Pandit
- Book Type:

- Description: लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के बावजूद संचार के विकेन्द्रीकरण का मुद्दा अभी विमर्श का विषय नहीं बन सका है। इसके बिना लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सफलता भी आंशिक ही रहेगी। जब ज्ञान और सूचना को शक्ति माना जाता है तो भला केन्द्रीकृत सूचना-व्यवस्था से विकेन्द्रीकृत शासन-व्यवस्था की आशा कैसे की जा सकती है! जनता के क़रीब के शासकीय पायदानों अर्थात् पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर निकायों और गाँवों तथा क़स्बों के समाचारों की महत्ता अख़बारों में बढ़े, तो ही विकेन्द्रित सत्ता का सही आभास हो पाएगा। राजधानी और बड़े शहरों की चमक-दमक-भरे समाचारों को उनका सही स्थान दिखा देने की ज़रूरत है। यह तभी सम्भव है जब कुशल आंचलिक संवाददाता ग्रामीण समाज और नवीन विकेन्द्रीकृत व्यवस्था पर केन्द्रित अच्छे समाचारों को प्रकाशन के लिए भेज सकें जिनमें लोगों के दिल की धड़कन सुनाई पड़े। इसके सामने राज्य और केन्द्र की सत्ता तथा शहर की चमकीली छवि भी फीकी पड़ जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में आंचलिक संवाददाता की मदद के लिए तैयार की गई यह पुस्तक बहुत प्रासंगिक है। निश्चय ही यह पुस्तक कुशल आंचलिक संवाददाता तैयार करने और उनके निरन्तर विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेगी।
Vigyapan, Bazar Aur Hindi
- Author Name:
Kailash Nath Pandey
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Description:
विज्ञापनों का ख़ासा असर शुरुआती दौर में आहिस्ता-आहिस्ता किन्तु कालान्तर में धूम-धड़ाके के साथ भारतीय समाज में गहरे पसर चुका है। साफ़ शब्दों में, तमाम दर्जनों लांछनाओं के बावजूद आज हम विज्ञापनों के जिस मायावी संसार का सामना कर रहे हैं, उससे बचना हमारे लिए मुश्किल हो गया है। एक ओर अभिव्यक्ति के अधिकांश मंच-मचान और माध्यमों से इसका अटूट रिश्ता स्थापित हो चुका है तो दूसरी ओर यह सम्प्रेषण की मुकम्मल, पुख्ता और आकर्षक विधा और माध्यम तो बन ही गया है। अब यह व्यावसायिक शक्ति, विक्रय कला की प्रणाली, लोकसेवा, घोषणा, उपभोक्ता के लिए सूचना और सुझाव, व्यावसायिक ज़रिया और क्रय-शक्ति के संवर्धक के रूप में अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है।
विज्ञापनों के बिना, बिलाशक बाज़ार चल नहीं सकता। बाज़ार को यह सुसम्पन्न और लुभावना बनाता है, उसे सजाता और साधता है। बिना इसके मीडिया के सामने अस्तिव का संकट पैदा हो सकता है। इसने भाषा, संस्कृति के साथ जीवन की कई चीज़ों को बदल दिया है।
Patrakarita : Mission se Media tak
- Author Name:
Akhilesh Mishra
- Book Type:

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यह पुस्तक अपने पेशे के सहकर्मियों और पाठकों के साथ एक ऐसे व्यक्ति की बहस, नोक-झोंक है जो चीजों को उनके सही नाम से पुकारता है, धुँधलके में रहना और किसी को रखना पसंद नहीं करता। वह व्यक्ति थेµ अखिलेश मिश्र, जिनकी धर्म-संस्कृति विषयक पुस्तक ‘धर्म का मर्म’ पाठक पढ़ चुके हैं।
इस पुस्तक में अखिलेश जी के वे लेख संकलित हैं जिनमें उन्होंने पत्रकारिता के विविध आयामों, उसकी समस्याओं, संकटों, उसके विचलनों, उसकी ताकत और कमजोरियों की चर्चा की है। पुस्तक चार खंडों में है। पहले खंड में वे लेख हैं जिनमें पत्रकारिता सम्बन्धी विविध विषयों, समस्याओं का गहन विश्लेषण है। द्वितीय खंड में ‘वर्कर्स हेरल्ड’ में लिखे उनके वे संपादकीय हैं जिनका विषय पत्रकार अथवा पत्रकारिता है। इस खंड का पहला आलेख ‘स्वतंत्र भारत’ में लगभग सत्रह वर्ष तक अनवरत चले उनके पाक्षिक स्तम्भ ‘दिल्ली का रंगमंच’ से लिया गया है। इसमें श्री मिश्र ने लोकतान्त्रिाक मूल्यों में गहरी आस्था के लिए जाने जानेवाले नेहरू जैसे प्रधानमंत्राी की भी अखबारों की उस आजादी के प्रति नाराजगी को पकड़ा है जो सत्ता के लिए परेशानी पैदा कर दे।
खंड तीन में ‘वर्कर्स हेरल्ड’ में ही संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित वे लेख लिये गए हैं जिनमें पत्रकारिता के सरोकारों की चर्चा है। इस खंड में अन्य अनेक समस्याएँ उठाने के अतिरिक्त लेखक ‘श्रम नीति का दुरंगापन’ बेपर्दा करते हुए ‘पत्रकारों की सुरक्षा’ के सवाल से जुड़ी पेचीदगियों से दो-चार होता है। खंड चार में दो लेख शामिल हैं, जिनमें समाचार क्या है, कैसे लिखे जाते हैं, आदि व्यावहारिक पहलुओं पर उनके विचार हैं।
पत्रकारिता इस समय एक संकट के दौर में है। पुराने दबावों (मालिक और सत्ता) तथा अपनी कमजोरियों के अतिरिक्त भूमंडलीकरण के इस दौर में अब एक नया खतरा उसके सामने हैµअखबारी उद्योग में विदेशी पूँजी निवेश जिसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं। हमारा विश्वास है कि अखिलेश जी की यह पुस्तक न केवल धुँधलका छाँटकर परिदृश्य स्पष्ट करेगी बल्कि अपनी स्पष्ट दृष्टि से आगामी पत्रकारिता का मार्गदर्शन भी करेगी।
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