Yog Bhagaye Rog

Yog Bhagaye Rog

Language:

Hindi

Pages:

160

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

320 mins

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Book Description

"' जिसे मृत्यु छीन ले, वह सब ' पर ' है । जिसे मृत्यु भी न छीन पाये, वह ' स्व ' है । इस ' स्व ' में जो स्थित है, सिर्फ वही स्वस्थ है, बाकी सब अस्वस्थ हैं । '' अपने चारों ओर ' पर ' का जो आग्रह है, संग्रह है, उसे ही परिग्रह कहा गया है । परिग्रह कोई वस्तु नहीं है, जिसका त्याग कर देने से परिग्रह हो जायेगा । यदि ' पर ' का आग्रह छूट जाये, सिर्फ ' स्व ' ही रह जाये, शुद्ध-बुद्ध आत्मा में निवास हो जाये, तो यह मनुष्य उसी क्षण परम आत्मा यानी परमात्मा बन जायेगा । कितना कठिन है स्वस्थ होना और कितना सरल है अस्वस्थ बना रहना! अध्यात्म तो सिर्फ आत्मा को स्वस्थ बनाने की विधि बताता है । आज की उन्न्त कहलाने वाली शिक्षा ने आत्मा को बकवास कहा है । इसके अस्तित्व से भी इनकार किया है । उसके लिए शरीर ही सबकुछ है । वही मनुष्य का आदि भी है और अन्त भी है । अत: यह शिक्षा-प्रणाली शरीर के इर्द-ग‌िर्द ही घूमती रहती है । शरीर से बीमारियों को निकाल बाहर करने के नाम पर एक दिन शरीर को ही निकाल बाहर कर देती है । जिन्हें आत्मा के रहस्य को जानने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए उनके शरीर को अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन देने में यह पुस्तक पूर्ण समर्थ है; क्योंकि योग का यही नारा है । - इसी पुस्तक से ' योगासनों से चिकित्सा ' विषय पर लिखी गयी मौलिक और श्रेष्‍ठ कृति है ' योग भगाये रोग ' । इसमें विभिन्न आसनों को सरल भाषा तथा अति रोचक शैली में चित्रों के माध्यम से समझाया गया है । सभी पाठकों के लिए यह संग्रहणीय कृति है । "

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