Vishweshwaraiah
Author:
Dinkar KumarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 204
₹
255
Unavailable
"मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया महान् भारतीय इंजीनियर, विद्वान्, शिक्षाविद्, राजनेता और मैसूर के दीवान रहे। विश्वेश्वरैया को दीर्घायु का स्वस्थ जीवन मिला। 15 सितंबर, 1860 को जनमे विश्वेश्वरैया को सन् 1955 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ मिला। उन्होंने ब्रिटिश राज के मातहत भी अनेक उच्च राजपदों पर कार्य किया और सदैव जनहित को सर्वोच्च रखा।
मैसूर के कृष्ण राज सागर बाँध का निर्माण उन्हीं की देखरेख में हुआ और हैदराबाद के बाढ़ सुरक्षा तंत्र के प्रमुख डिजाइनर वे ही रहे। इसके अलावा उन्होंने अनेक प्रमुख भवन, बाँध व सड़क निर्माण परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया। उनके उत्कृष्ट आभियांत्रिक कार्यों के लिए उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ दि इंडियन एंपायर’, ‘भारत रत्न’ जैसे दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित देशी-विदेशी पुरस्कारों और मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। उनकी जन्मतिथि 15 सितंबर को सम्मानस्वरूप ‘अभियंता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
छात्रों, युवाओं तथा सभी आयुवर्गों के पाठकों के लिए पठनीय एक महान् विभूति की उत्कृष्ट जीवनी।
"
ISBN: 9789380183961
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रख्यात कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु ने रिपोर्ताज़ के बारे में अपनी राय इन शब्दों में व्यक्त की है—‘‘गत महायुद्ध ने चिकित्साशास्त्र के चीर-फाड़ (शल्य-क्रिया) विभाग को पेनसिलिन दिया और साहित्य के कथा-विभाग को रिपोर्ताज़।’’ रेणु का यह कथन हिन्दी-साहित्य में रिपोर्ताज़ के आविर्भाव का काल-निर्धारण ही नहीं, उसकी सामाजिक भूमिका को भी रेखांकित करता है।
रेणु मानवीय भावनाओं के अप्रतिम चितेरे हैं, लेकिन उनका रचनाकार मन उन सामाजिक, राजनीतिक और प्राकृतिक त्रासदियों की अनदेखी नहीं करता, जो किसी भी भावना-लोक को प्रभावित करती हैं। एक योद्धा रचनाकार के नाते रेणु ने स्वयं ऐसी त्रासदियों का सामना किया था। यही कारण है कि उनके अनेक कथा-रिपोर्ताज़, जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को भी समृद्ध किया, विभिन्न त्रासद स्थितियों का अत्यन्त रचनात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
इतिहास पर अपने निशान छोड़ जानेवाली अनेक घटनाएँ, रचनाकार की विभिन्न भावस्थितियाँ, जीवन-स्थितियाँ और उसके लगाव-सरोकार इस विधा को निश्चय ही एक विशिष्ट ऊँचाई सौंपते हैं। ‘समय की शिला पर’ में रेणु के अब तक उपलब्ध सभी रिपोर्ताज़ संकलित हैं।
Komal Gandhar
- Author Name:
Vilayat Khan
- Book Type:

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Description:
उस्ताद विलायत ख़ाँ अप्रतिम सितार वादक थे। उनके बजाने-गाने की कई कथाएँ भी किंवदन्तियों की तरह प्रचलित हैं। वह ओज, सरसता, सूक्ष्मतम ध्वनि तरंगों और माधुर्य के धनी थे। जिन्होंने उनको सुना है—आमने-सामने बैठकर—वे तो उनके ‘बजाने की छवि’ को भी याद करते हैं, सिर्फ़ उनके सुरों को ही नहीं। यहाँ हम लेखक और संगीतविद् शंकरलाल भट्टाचार्य द्वारा मूल रूप से बांग्ला भाषा में उस्ताद विलायत ख़ाँ की आत्मकथा के तैयार किए गए वार्तालेख के साथ उन पर एकाग्र तीन आलेखों को सुपरिचित आलोचक और अनुवादक रामशंकर द्विवेदी के अनुवाद में प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले दो आलेख, क्रमश: दो संगीत-पारखियों नीलाक्ष दत्त और आशीष चट्टोपाध्याय के हैं, तीसरा बांग्ला के विख्यात कवि जय गोस्वामी का है। तीनों आलेख अपने-अपने ढंग से विलायत ख़ाँ के सितार के गुणों को तो उभारते ही हैं, उनके व्यक्तित्व की भी एक झलक प्रस्तुत करते हैं। नीलाक्ष दत्त के आलेख में तो स्वयं विलायत ख़ाँ के सितार की बनावट-बुनावट, और उसे बजाने की तकनीक की भी चर्चा है। इन आलेखों में उन कई सामान्य श्रोताओं की भी एक मर्मभरी उपस्थिति है, जो मानो उनके सितार के पीछे 'पागल' ही तो थे।
सामान्य श्रोताओं से लेकर गुणी संगीत पारखियों, समीक्षकों, लेखकों-कवियों-कलाकारों, बुद्धिजीवियों तक में संगीत के प्रति यह जो अनुराग रहा है, वह इस आत्मकथा को पढ़कर भी जाना जा सकता है। कहना न होगा कि ‘कोमल गांधार' पठनीय ही नहीं, बल्कि संग्रहणीय पुस्तक भी है।
“उस्ताद विलायत ख़ाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक विभूति थे। उनकी दो सौ अट्ठाइस पृष्ठों में फैली आत्मकथा के साथ-साथ इस पुस्तक में परिशिष्ट के रूप में नीलाभ दत्त, आशीष भट्टाचार्य और प्रसिद्ध बांग्ला कवि जय गोस्वामी द्वारा उन पर लिखे निबन्ध भी शामिल किए गए हैं। यह मूल्यवान उपक्रम प्रयत्नपूर्वक किया है संगीतविद् शंकरलाल भट्टाचार्य ने। हिन्दी में एक महान संगीतकार से सम्बन्धित ऐसी दुर्लभ सामग्री को लाने की ज़िम्मेदारी पूरी की है वरिष्ठ विद्वान, रसिक और अनुवादक डॉ. रामशंकर द्विवेदी ने। आत्मकथा, निबन्ध, लेखन और अनुवाद सभी सृजन और संगीत के गहरे और निश्छल प्रेमवश किए गए हैं। रज़ा पुस्तक माला 'कोमल गांधार' को बहुत प्रसन्नता और कृतज्ञता के साथ प्रस्तुत कर रही है।"
—अशोक वाजपेयी
Seven Summers: A Memoir
- Author Name:
Mulk Raj Anand
- Book Type:

- Description: Seven Summers, first drafted when Mulk Raj anand was a student at London University but not published till 1951, recreates teh events and feelings of the first seven years of the writer’s life, or what he called his ‘half unconcious and half conscious childhood’. first of the seven volumes of autobiographical fiction that Anand conceptualized but never completed, this book is full of memorable scenes and people observed through the eyes of a child. the most impressive of them all being the Coronation Durbar in Delhi to which our young hero is smuggled wrapped in a blanket so that the Sahibs might not object to the presence of ‘so discordant an element into so gorgeous a ceremony’. this edition of Seven Summers is a special reissue of the classic autobiography to commemorate Anand’s birth centenary.
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