The Two Plans
Author:
Deendayal UpadhyayPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
Distinguished by originality, lucidity and analytical faculty, this book presents a critical study of the Two (First & Second Five Year) Plans. Its penetrating analysis and sound approach shed a great deal of light on conception, inception, execution, promises and performance of the Plans. Not only that, it gives a timely warning to the airy idealists, selfcomplacent people in power and outside, theoretical statisticians and totalitarian thinkers that it would be desirable to reconsider our whole attitude towards planning, and if we cannot take to correct policies, the future of the whole nation may be jeopardised.
Planning is a dynamic process and is based on the traditional values and fundamental postulates of a country�s life and culture. The persons responsible for planning in India seem to have been either ignorant or deliberately preferred to ignore this important consideration.
The book by eminent nationalist thinker Pandit Deendayal Upadhyay raises critical questions and vital issues concerning our socioeconomic ills and evils and their patent and popular remedies imported and imbibed either from the Communist or the Capitalist countries.
ISBN: 9789351860730
Pages: 280
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत से लेकर सम्पूर्ण विश्व के शक्तिहीन, दबे-कुचले, सामाजिक रूप से पिछड़े और सताए हुए लोग और उनके समूह जब आपस में मिलकर शक्ति सम्पन्न होने का संकल्प लें, तो इसे बड़े बदलाव के भावी संकेत के रूप में लिया जाना चाहिए। इतिहास बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है। जो इसकी अगुआई करते हैं, उन्हें इतिहास अपने सिर माथे बैठाता है, क्योंकि अगर वे आगे नहीं बढ़ते तो यात्रा अपने अन्तिम चरण पर पहुँचती ही नहीं। दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण की यात्रा शुरू हो चुकी है। इस यात्रा का ध्येय है शक्तिहीन, दबे-कुचले, और सामाजिक रूप से भेदभाव के शिकार दलितों और अल्पसंख्यकों को शक्ति सम्पन्न करना व उनके सामाजिक आधार को मज़बूत करते हुए उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार करना।
पुस्तक का महत्त्वपूर्ण अंश है डॉ. मनमोहन सिंह का कथन। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शक्तिहीनों को शक्ति सम्पन्न बनाने तथा दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के प्रयास को अपना पूरा समर्थन देने की घोषणा की। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने साफ़ कहा कि अब सहूलियत देने से काम नहीं चलेगा, वंचितों को शिरकत भी देनी होगी।
बाबा साहेब अम्बेडकर ने ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण की लड़ाई को वैज्ञानिक विचार का आधार दिया तथा उसे हथियार बनाया। उसी कड़ी में यह एक प्रयास है ताकि आज दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के लिए लड़नेवाले लोग न केवल अपना वैचारिक आधार मज़बूत कर सकें, बल्कि उसे हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर
सकें।यह पुस्तक उन सबके लिए उपयोगी है जो ग़रीबों और वंचितों की लड़ाई में या तो शामिल होना चाहते हैं या उन्हें सहयोग देना चाहते हैं। राजनीति और समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक भारत के परिवर्तन की इस लड़ाई को समझने का आधार है।
Bihar Ek Etihasik Adhyayan
- Author Name:
Om Prakash Prasad
- Book Type:

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Description:
बिहार में ऐतिहासिक गतिविधियों की शुरुआत उत्तरवैदिक काल से होती है। इस इलाक़े में ई.पू. छठी शताब्दी के दौरान विकास की गति तेज़ हो गई। प्रारम्भ में इसे मगध के नाम से जाना गया। राजगृह और गया का इलाक़ा प्रारम्भ में तथा मौर्यकाल के दौरान गंगा नदी के उत्तर और दक्षिण का इलाक़ा ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया। पाटलिपुत्र विश्व के प्रमुख नगरों में से एक हो गया। शुंग और कुषाण राजवंश के बाद सम्पूर्ण आधुनिक बिहार के इलाक़े पर किसी एक राजवंश का प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रहा।
पूर्व मध्यकाल में आधुनिक बंगाल और उत्तर प्रदेश के शासकों ने बिहार को खंडित कर दिया। यह सिलसिला बाद के सैकड़ों वर्षों तक चलता रहा। मराठों का आधिपत्य भी इसके कुछ हिस्से पर स्थापित रहा।
शेरशाह और अकबर के ज़माने में बिहार का पुनः एक राजनीतिक नक़्शा तैयार हुआ।
अंग्रेज़ीकाल में बिहार का अस्तित्व बंगाल के उपनिवेश के समान 1912 ई. और उसके बाद तक बना रहा।
मौर्यकाल के बाद बिहार की आर्थिक स्थिति अफ़ग़ानों और मुग़लशासकों के काल में बेहतर हुई। बिहार के कई छोटे-छोटे क़स्बे आर्थिक बेहतरी और उद्योग के केन्द्र रहे। अंग्रेज़ीकाल में चीनी मिलें बिहार के क़रीब 30 स्थानों में स्थापित हुईं। बिहार में नदियों की भूमिका काफ़ी अनुकूल रही। तिरहुत की ज़मीन भारतवर्ष में सर्वाधिक उपजाऊ थी। भारतवर्ष में सबसे ज़्यादा पेय जल-सुविधा आज भी यहीं है।
Bhartiya Musalmano Ki Samaj Sanrachna Aur Mansikta
- Author Name:
Fakhruddin Bennur
- Book Type:

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Description:
भारतीय मुसलमानों की समाज संरचना और मानसिकता पर सम्भवतः हिन्दी में भारतीय समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुति करनेवाली यह पहली पुस्तक है।
इस विषय पर अब तक लिखी गई पुस्तकें ओरिएंटलिस्ट उपनिवेशवादी इतिहास शास्त्र के अथवा हिन्दुत्व के प्रभावान्तर्गत ही रही हैं। 'विश्व के सभी मुसलमान एक हैं—इस भ्रमपूर्ण मोनोलिथ की प्रस्तुति करनेवाली रही हैं।' उस प्रस्तुति का प्रतिवाद करनेवाली यह पुस्तक है। इसमें भारत के मानववंशशास्त्र और (एन्थ्रोपोलोजी) इतिहास के आधार पर पिछले एक हजार वर्षों से यहाँ के मुसलमानों की जिस सामाजिक संरचना का गठन हुआ है, उस पर विचार किया गया है।
16वीं तथा 17वीं सदी में हिन्दू-मुस्लिमों की संस्कृति में सामाजिक समन्वय के जो प्रयत्न हुए हैं उसको भी यहाँ समझाया गया है। 1857 के बाद की राजनीति, स्वतंत्रता के बाद का बदलता परिवेश, 1990 के बाद बदलती गई राजनीति और इस सबका जो प्रभाव मुस्लिम मानसिकता पर होता गया; उन सबकी समीक्षा यह पुस्तक करती है।
अमेरिका की साम्राज्यवादी राजनीति, पाकिस्तान की ओर झुकी हुई उनकी नीति, हिन्दुत्व की राजनीति इसके प्रभावों का विवेचन इस पुस्तक में है।
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