Sarvagunakar Shrimant Shankardev

Sarvagunakar Shrimant Shankardev

Language:

Hindi

Pages:

184

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

368 mins

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Book Description

भारतभूमि संतों, महात्माओं एवं सिद्ध पुरुषों की लीलाभूमि रही है। उन्होंने दिव्य ईश्वरीय चेतना का साक्षात्कार कर सृष्टि के कल्याण के निमित्त सदाचरण एवं मानवीय आदर्शों का उपदेश दिया। भारतीय संस्कृति का निर्माण ऐसे ही दिव्य पुरुषों के उच्चादर्शों एवं आप्त वचनों का फल है। ऐसे आध्यात्मिक सिद्धपुरुषों का उद्भव प्रत्येक देशकाल में होता रहा है। भारतभूमि के असम प्रांत में 15वीं सदी में जनमे श्रीमंत शंकरदेव ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपनी सुकीर्ति से पूरे पूर्वोत्तर के सांस्कृतिक परिदृश्य में अपने एक शरणिया नामधर्म के द्वारा अभूतपूर्व आलोडऩ एवं जनजागरण पैदा किया। घोर निराशाजनक परिदृश्य में असम में श्रीमंत शंकरदेव का आविर्भाव हुआ। पूरा देश उस समय भक्ति आंदोलन की उदार एवं पावन रसधारा से आप्लावित हो रहा था। संपूर्ण भारतवर्ष एक सांस्कृतिक प्राणवत्ता की धड़कन से स्पंदित था। श्रीमंत शंकरदेव ने अपनी सुदीर्घ साधना, विराट प्रतिभा एवं प्रगाढ़ जनसंपर्क से युगीन संकट की प्रकृति एवं दिशा को समझ लिया। समाधान सूत्र के रूप में उन्होंने वैष्णववाद की परंपरागत अवधारणाओं में नवीन तत्त्वों एवं मान्यताओं का अभिनिवेश किया। श्रीमंत शंकरदेव मात्र एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, वरन एक श्रेष्ठ कवि, साहित्यकार, चित्रकार, नाटय व्यक्तित्व, उद्यमकर्ता, संगठक और सच्चे अर्थों में एक जननायक थे।

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