Gita Ek Chikitskiya Drishtikon
Publisher:
Prabhat Prakashan
Language:
Hindi
Pages:
150
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
300 mins
Book Description
यूरोपियन उपनिवेशवादी गोरे लोगों के अलावा सबको उजड्ड समझते थे। उन्होंने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि ईश्वर ने उन्हें दुनिया को सभ्य बनाने का अधिकार सौंपा है। उन्होंने भारतीय ग्रंथों को कबीलाई धर्म के रूप में प्रचारित किया। इसलिए आरंभ में 'गीता' को भी एक धर्मग्रंथ बताया गया था, जबकि यह एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक ग्रंथ ही नहीं, मनोविज्ञान की अद्भुत पुस्तक है, जिसे अब तो सारे संसार में मान लिया गया है और पश्चिमी लोग इसी के आधार पर mindfullness yoga का व्यापार कर करोड़ों डॉलर कमा रहे हैं। मानव मन की चंचल वृत्ति (संशय, द्वंद्व) को साधने, काबू करने की विधियों को योग कहा जाता है। इसमें सबसे गुह्य शिक्षा यह कि मनुष्य अपने गुण, कर्म, स्वभाव के विपरीत आचरण करने पर दु:ख प्राप्त करता है, अत: उसे अपने गुण-कर्म-स्वभाव को पहचानकर अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। मनुष्य का व्यक्तित्व त्रिगुण—सत्त्व, रजस एवं तमस पर आधारित होता है, इन्हीं गुणों के अनुसार हम सात्त्विक, राजसी एवं तामसिक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। मानव जीवन के लिए आधार-ग्रंथ 'श्रीमद्भगवद्गीता' के मनोवैज्ञानिक एवं चिकित्सीय शास्त्र भी है, जो जीवन में बेहद उपयोगी एवं पठनीय है।