Martin Luther King
Author:
Dinkar KumarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
अमेरिका में सन् 1950 और 1960 के दशक में रंगभेद के खिलाफ मार्टिन लूथर किंग जूनियर की अगुवाई में अहिंसक प्रतिरोध अपनाते हुए जो नागरिक अधिकार आंदोलन चलाया गया, उसकी दास्तान युगों-युगों तक मानव जाति को प्रेरणा देती रहेगी। इस पुस्तक में मार्टिन लूथर किंग के जीवन के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। नई पीढ़ी के लिए किंग की जीवन-कथा से अवगत होना उपयोगी साबित होगा।
किंग ने अमेरिका के दक्षिणी और फिर उत्तरी हिस्सों में रंगभेद के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चलाते हुए इतिहास की दिशा को मोड़ देने में सफलता हासिल की थी। महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिरोध को अपना अस्त्र बनाकर उन्होंने रंगभेद और गरीबी की जंजीरों से अश्वेत जनता को मुक्ति दिलाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन के लिए किंग को अपने जीवन का बलिदान करना पड़ा। इसके बावजूद इन्होंने साबित कर दिखाया कि मानवता को बचाने के लिए हर तरह के संकट को हँसते-हँसते झेला जा सकता है और शासन तंत्र को चुनौती दी जा सकती है।
उन्होंने घृणा को प्रेम व भाईचारे से जीतने का प्रयास किया और रंगभेद के समर्थकों का हृदय-परिवर्तन करने पर लगातार जोर देते रहे। ऐसे महामानव की जीवनी सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए निश्चय ही उपयोगी एवं प्रेरक सिद्ध होगी।
ISBN: 9788189573669
Pages: 160
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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राजकपूर, नेहरू युग के प्रतिनिधि फ़िल्मकार माने जाते हैं, जैसे कि शास्त्री-युग के मनोज कुमार। इन्दिरा गांधी के युग के मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा।
आज़ाद भारत के साथ ही राजकपूर की सृजन-यात्रा भी शुरू होती है। उन्होंने 6 जुलाई, 1947 को ‘आग’ का मुहूर्त किया था और 6 जुलाई, 1948 को ‘आग’ प्रदर्शित हुई थी। भारत की आज़ादी जब उफक पर खड़ी थी और सहर होने को थी, तब राजकपूर ने अपनी पहली फ़िल्म बनाई थी। ‘आग’ आज़ादी की अलसभोर की फ़िल्म थी, जब ग़ुलामी का अँधेरा हटने को था और आज़ादी की पहली किरण आने को थी। ‘आग’ में भारत की व्याकुलता है, जो सदियों की ग़ुलामी तोड़कर अपने सपनों को साकार करना चाहता है। राजकपूर की आख़िर फ़िल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ 15 अगस्त, 1985 को प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म में राजकपूर ने उस कुचक्र को उजागर किया है, जो कहता है कि पैसे से सत्ता मिलती है और सत्ता से पैसा पैदा होता है। इस तरह राजकपूर ने अपनी पहली फ़िल्म ‘आग’ से लेकर अन्तिम फ़िल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक भारत के जनमानस के प्रतिनिधि फ़िल्मकार की भूमिका निभाई है।
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संवाद-संलाप—समाज से, अपने बीते हुए से, अपने आज से और अन्ततः अपने आप से—अपने के भी अपने से। उस अपने से जो दिन-रात समय की गर्दिश में तिल-तिल मिटता है, बनता है और इसी मिटने-बनने की प्रक्रिया में कहीं अपने समय और अपने समाज की धड़कनों को कुछ और क़रीब से सुन पाता है—यही गोचर-अगोचर सृष्टि का भीतर से सुनना—आलाप और अन्तरंग है। संवाद-संलाप में गुँथे होने के बावजूद विच्छिन्न चिन्तन से भरा यह स्वर-आलाप। स्वगत संवाद और एकालाप से लेकर संवाद-संलाप की व्याकुलता-भरी बहुवर्णी छवियाँ और भंगिमाएँ इसी आलाप की संस्कृति का आईना हैं। एक प्रकार से आलाप में आकार लेता राग का अन्तरंग...। इसी दुनिया में रहते हुए कब किसी और दुनिया(यह ‘और’ दुनिया दूसरी अथवा पराई नहीं बल्कि यह ‘और’ तो कहीं ज़्यादा अपनी है...अपने से भी ज़्यादा अपनी) में चला जाता हूँ; कोई है मुझ में जो मुझसे सवाल-दर-सवाल करता चला जाता है, कोई है मुझमें जो टूट-टूट कर अपने को फिर-फिर गढ़ता जाता है..., कोई है मुझमें जो रक्तस्नात-सा मेरी आँखों के सामने हर घड़ी मूर्तिवत् छाया रहता है...उसकी और उसमें समाई न जाने किस-किस की आर्त पुकार लगातार मेरा पीछा करती है—इसी आर्त पुकार से उपजे कुछ भाव-विचारों के अग्नि-स्फुलिंग चटक कर बिखर गए हैं—किसी टूटे हुए तारे की तरह। गोया टूटे हुए तारों का आलाप...टूटे हुए तारों की क्षणिक कौंध का यह बिखरा-बिखरा सिमटा हुआ-सा हुजूम...इस कौंध में जो जितना रोशन हो गया मेरे अघाए मन ने अधीत भाव से उसे प्रसादवत् ग्रहण कर लिया।
—इसी पुस्तक से
Madam Sir
- Author Name:
Manjari Jaruhar
- Book Type:

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जीवन में अचानक आ पहुँचे एक मोड़ ने जब माता-पिता द्वारा निर्धारित की गई गृहिणी की भूमिका को ख़ारिज कर दिया, तब असामान्य मुश्किलों को पार करते हुए मंजरी देश की प्रतिष्ठित पुलिस सेवा में आनेवाली बिहार की पहली महिला बनीं।
‘मैडम सर’ उनकी पहली किताब है जिसकी पृष्ठभूमि में भागलपुर में अभियुक्तों को अंधा बनाने, 1984 के सिख-विरोधी दंगे, बिहार में लालू प्रसाद का शासनकाल जैसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग हैं। वस्तुत: यह किताब एक महिला की नज़र से की गई भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की एक आंतरिक पड़ताल है।
यह किताब सुरक्षित वातावरण में पली एक लड़की के भारतीय पुलिस सेवा की सबसे अगली कतार तक पहुँचने का मर्मस्पर्शी विवरण है। यह एक ऐसी स्त्री द्वारा साहस, दृढ़ता और नेतृत्वकला का सबक़ है जिसने सहकर्मियों का अविश्वास और उपहास सहते हुए भी नए-नए रास्ते खोजे और सफलता पाई। यह कहानी आपको अपने सपने पूरे करने की प्रेरणा और असंभव ऊँचाइयाँ छूने की हिम्मत देगी।
Hum Ek Umra Se Wakif Hain
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Book Type:

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परसाई जैसा बड़ा रचनाकार जब ‘हम इक उम्र से वाक़िफ़ हैं’ होने की बात करता है तो उसका मतलब सिर्फ़ उतना ही नहीं होता, क्योंकि उसकी ‘उम्र’ एक युग का पर्याय बन चुकी होती है। इसलिए यह कृति परसाई जी के जीवनालेख के साथ-साथ एक लम्बे रचनात्मक दौर का भी अंकन है। परसाई जी ने इस पुस्तक में अपने जीवन की उन विभिन्न स्थितियों और घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें न केवल उनके रचनाकार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, बल्कि उनकी लेखनी को भी एक नई धार मिल सकी। उनका समूचा जीवन एक सक्रिय बुद्धिजीवी का जीवन रहा। वे सदा सिद्धान्त को कर्म से जोड़कर चले और अपनी रचनात्मकता पर काल्पनिक यथार्थवाद की छाया तक नहीं पड़ने दी। इसलिए आकस्मिक नहीं कि इस पुस्तक में हम उन्हें विभिन्न आन्दोलनरत संगठनों के कुशल संगठनकर्ता के रूप में भी देख पाते हैं। इसके अलावा यह कृति उनकी सहज व्यंग्यप्रधान शैली में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से भी परिचित कराती है, जो किसी भी तरह उनसे जुड़े। कहना न होगा कि परसाई जी का यह संस्मरणात्मक आत्मकथ्य उन तमाम पाठकों और रचनाकारों के लिए प्रेरणाप्रद है जो कि एक बुनियादी सामाजिक बदलाव में साहित्यकार की भी एक रचनात्मक भूमिका को स्वीकार करते हैं।
Ambedkar : Chitramaya Jeevani
- Author Name:
Rajendra Patoria
- Book Type:

- Description: भारतीय संविधान के पिता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की सचित्र जीवनी
Bahattar Meel
- Author Name:
Ashok Vatkar
- Book Type:

- Description: 72 मील उपन्यास में लेखक के बचपन की, सातारा से कोल्हापुर तक की तीन दिनों की यात्रा का वर्णन है। यह लेखक के बालमन पर अंकित होनेवाले जीवन के हृदयविदारक अनुभवों की दास्तान है जो इसे इस यात्रा के दौरान हुए। इन तीन में लेखक के मन पर अमिट चिह्न पड़ते हैं, उनका यह जीवंत चित्रण हमें स्तब्ध कर देता है। तीन दिनों के प्रवास में राधाक्का के साथ जो कुछ घटता है उसमें इस क्षणभंगुर जीवन की सच्चाई सामने आ जाती है। अपनी इस यात्रा में राधाक्का अपने छह बच्चों में से तीन की अकाल मृत्यु के दारुण दुख को चुपचाप सहन करती है। उसकी आशा की किरण राणू जब साँप के डस लेने से प्राण त्याग देता है तब तो राधाक्का का दुख पराकाष्ठा पर जा पहुँचता है। अपने भूखे-प्यासे बच्चों की खातिर मुट्ठी-भर सेव के लिए उसे अपनी अस्मत त्यागनी पड़ती है, उसका क्या वर्णन किया जाए? यह उपन्यास पाठकों को अन्दर तक झकझोर देता है। जो घटनाएँ घटित होती हैं, उनसे हम भी सन्न रह जाते हैं। राधाक्का के जीवन-संघर्ष और उसकी मार्मिक दास्तान को पाठक लम्बे समय तक नहीं भूल पाएँगे।
Hum Nahin Change Bura Na Koy
- Author Name:
Surendra Mohan Pathak
- Book Type:

- Description: लोकप्रिय साहित्य हिन्दी अकादमिक जगत के लिए मूल्यांकन की चीज़ कभी नहीं रहा, लेकिन हिन्दी के शिक्षित समाज का बड़ा तबका उसके ही असर में रहता आया है। हमें लोकप्रिय साहित्य का बाज़ार तो दिखता है, उसकी आन्तरिक दुनिया की बनावट नहीं दिखती। ऐसे में लोकप्रिय लेखन के एक बड़े नाम सुरेन्द्र मोहन पाठक अपनी आत्मकथा लिखकर बहस और मूल्यांकन की एक नई ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनका अपना जीवन है भी ऐसा जिसके बारे में दूसरों को दिलचस्पी हो। कान में सुनने की मशीन, आँखों पर मोटे लेंस का चश्मा लगाए, नौकरी करते हुए, तीन सौ से अधिक सफल उपन्यास लिखनेवाले पाठक जी अपने ही रचे किसी अमर किरदार जैसे आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। लेखन के तौर-तरीक़े और ख़ुद के लिए तय किया हुआ अनुशासन अचरजकारी। लाखों पाठकों की रुचि को समझना, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दबाव को धत्ता बताते हुए, उनके दिमाग़ पर क़ब्ज़ा जमाना—यह कोई मामूली बात नहीं है। इन सब बातों को समझने में एक औज़ार का काम कर सकती है यह आत्मकथा—'हम नहीं चंगे बुरा न कोय’। यह सुरेन्द्र मोहन पाठक के लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा है। यह उनके समय के पल्प फ़िक्शन इंडस्ट्री को जानने के लिए भी ज़रूरी किताब है।
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