Sukhant Ke Kshan
Author:
Brig. P.S. BhatnagarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
जिस पत्नी ने पति को यह महसूस करा दिया कि वही एक कामयाब पत्नी है, तो उसका पति उसकी सलाह के बिना कोई भी काम करना पसंद नहीं करेगा, तो फिर राजदारी
कैसी ? दांपत्य जीवन को खुश बनाए रखने के लिए पति-पत्नी दोनों का प्रयत्नशील रहना आवश्यक है। दांपत्य जीवन तभी सुखमय और शांतिपूर्ण रह सकता है, जब दोनों इसमें अपना भरपूर सहयोग दें।
किसी समस्या पर चुप्पी लगाना, उस समस्या को अनदेखा करना है। जो पत्नी अपने पति की वास्तव में अच्छी मित्र होती है, वह उसे समझती है और परेशानी के समय उसकी हर तरह से मदद करती है। वह अपने पति का खयाल रखती है।
मित्रता यानी सम्मान देना। एक-दूसरे के विचारों, स्वप्नों और प्रतिष्ठा के प्रति सम्मान दिखाना। आप अपने पति से अत्यधिक प्रेम कर सकती हैं, फिर भी आप उसके अच्छे मित्र के रूप में असफल हो जाती हैं, क्योंकि प्रेम ही सबकुछ नहीं है। प्रेम के साथ-साथ बैवाहिक जीवन में मित्रता का भी अपना महत्त्व होता है।
—ड्सी पुस्तक से
वैवाहिक जीवन में आत्मीयता, अपनत्व, पारस्परिकता, समर्पण, प्रेम, सहनशीलता अत्यंत आवश्यक हैं। यह पुस्तक इनको विकसित करने के व्यावहारिक सूत्र बताकर आपकी आपसदारी और खुशी-आनंद का पथ प्रशस्त करेगी।
ISBN: 9789355213105
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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व्रत दो प्रकार के होते हैं, ‘काम्य’ और ‘नित्य’। काम्य उन्हें कहते हैं जो किसी विशेष कामना को लेकर किये जाते हैं और नित्य वे हैं, जिनमें किसी कामना का समावेश नहीं होता, वरन् जो भक्ति और प्रेम के कारण आध्यात्मिक प्रेरणा से किये जाते हैं। निष्काम अथवा नि:स्वार्थ व्रत का ही स्थान ऊँचा होता है।
व्रत का सामान्य अर्थ आज ‘उपवास’ हो गया है। उपवास शब्द का अर्थ है दुर्गुणों एवं दोषों से बचकर आत्मा अथवा गुणों के साथ वास अर्थात् निवास। इन व्रतों अथवा पर्वों में हमारे देश के भिन्न-भिन्न मतावलम्बी लोगों के लिए अपनी-अपनी कुल-परम्परागत मान्यता के अनुसार चलने की पूरी सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं। एक धर्म अथवा सम्प्रदाय के देवता का अन्य धर्म अथवा सम्प्रदाय में बड़ी उदारता एवं सहानुभूति के साथ चित्रण किया गया है। सनातन हिन्दू धर्म में तो इस व्यापक दृष्टिकोण का पदे-पदे परिचय मिलता है। भगवान् विष्णु के चौबीसों अवतारों में जैन धर्म के आदि प्रवर्तक भगवान् ऋषभदेव तथा बुद्ध धर्म के प्रतिष्ठापक भगवान् गौतम बुद्ध का भी गिनाया गया है और इनकी जयन्तियों तथा पुण्यकथाओं को सुनने-सुनाने का बड़ा माहात्म्य वर्णित है।
सनातनी हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों होली, दीवाली, विजयादशमी, वसन्तपंचमी, नागपंचमी आदि त्योहार तो बौद्ध, जैन आदि मतों में भी सनातन धर्म के समान ही समादृत और महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ अन्य त्योहार तो ऐसे भी हैं जो सनातन धर्म में किसी अन्य कारण से महत्त्व रखते हैं और बौद्ध तथा जैन धर्म में किसी अन्य कारण से। किन्तु हिन्दुओं के सभी मतानुयायियों में उनकी विशेषता अखण्डित है। कार्तिकी पूर्णिमा, मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी, अक्षय तृतीया, अनन्त चतुर्दशी आदि व्रतों अथवा पर्वों का सनातन हिन्दू धर्म तथा बौद्ध एवं जैन धर्मों में समान महत्त्व है, किन्तु कारण भिन्न-भिन्न दिये गये हैं।
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