Hasanpur Ke Ram
Author:
Dr. Parshuram GuptPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Historical-fiction0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
अंतर्वस्तु
यह उपन्यास एक ऐसे राजवंश से संबंधित है, जो सम्राट् पृथ्वीराज चौहान केवंशज रहे। पानीपत की पहली लड़ाई के दौरान परिस्थितिवश उन्हें इसलाम स्वीकार करना पड़ा, लेकिन सगोत्रियों तथा अपने पूर्वजों के संस्कारों पर उनकी आस्था यथावत् बनी रही; ठीक वैसे ही, जैसे इंडोनेशिया के निवासी पंथ बदलने के बाद भी अपने पूर्वजों की संस्कृति पर आज भी आस्था रखते हैं।
रामकथा लगभग संपूर्ण एशिया की आस्था का केंद्र रही है और आज भी इसमें इस पूरे क्षेत्र को एकता केसूत्र में पिरोने की अद्भुत क्षमता है। अयोध्या में भव्य राम-मंदिर के निर्माण ने इस आस्था को और अधिक बलवती किया है।
‘पंथ बदलने पर भी हम अपनी संस्कृति
से बँधे रहते हैं’ यह भाव इस ऐतिहासिक उपन्यासका प्राण-तत्त्व है।
यह ऐतिहासिक उपन्यास अपने तरीके से भारतीय संस्कृति की जिजीविषा की अनूठी कहानी एक अनूठे अंदाज में प्रस्तुत करता है। यह कहानी खंड-खंड से प्रचंड शक्ति बनने की कहानी है। यह अंधकार को चीरकर प्रकाश का नया सूरज उगाने की कहानी है। यह अनेक रोचक ऐतिहासिक तथ्यों का उद्घाटन भी करता है, जो भारतीय इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखने का कुतूहल पैदा करता है। यह अनेक उलझी हुई समस्याओं के समाधान के रास्ते भी सुझाता है।
ISBN: 9789393113009
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Rajwanti Mann
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- Description: ग़ुलामी के दौरान पंजाब पर अकल्पनीय अत्याचार के प्रतिवाद में रचित तथा ब्रिटिश शासन द्वारा प्रतिबन्धित और ज़ब्त रचनाएँ ‘जलियाँवाला बाग़ की कराहें’ पुस्तक जलियाँवाला बाग़ के नरसंहार की अतिशय वेदना और अंग्रेज़ी जुल्मों की व्यथा-कथा है जिसे हिन्दुस्तानियों ने अपनी आत्मा पर झेला, अपनी आँखों से देखा और साहित्यकारों ने अपनी क़लम से उकेरा। यह जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए लिखा गया साहित्य है जो एक सदी तक अन्वेषकों की नज़रों से लगभग छिपा रहा। इन रचनाकारों ने अंग्रेज़ी राज की प्रताड़नाएँ सहते हुए औपनिवेशिक काल की त्रासद स्थितियों को कलमबद्ध किया। रचनाएँ मौखिक यात्रा करती हुईं जन-चेतना के उद्देश्य तक पहुँचती रहीं। पुस्तक में कुल नौ अध्याय हैं जिनमें जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के बाद रचित वे नाटक, कविताएँ, दोहे, ठुमरी, लावणी, क़व्वाली, ग़ज़ल आदि सम्मिलित हैं जो अलग-अलग पुस्तिकाओं में प्रकाशित हुईं। लगभग सभी विधाओं में रचित यह साहित्य जलियाँवाला बाग़ की पृष्ठभूमि से लेकर हर छोटी-बड़ी घटना, अंग्रेज़ों की क्रूरता, जुल्म और यातनाओं, लोगों की बेबसी, लाचारी, सामाजिक दशा-दुर्दशा का निर्भीक और वास्तविक विवरण प्रस्तुत करता है तो दूसरी तरफ़ साहस से उठ खड़े होने का आह्वान भी करता है। इनमें नृशंस हत्याओं के साथ-साथ हरे-भरे पेड़-पौधों की उखड़ी-जली छालों, घास चरती हुईं गाय-भैंसों का चरते-चरते मारे जाना, तोते, कोयल और मैना आदि पक्षियों तक का भी गोलियों से डरकर मरने का मार्मिक चित्रण है। इन रचनाओं की सत्यता पर कोई सन्देह इसलिए नहीं किया जा सकता कि आधिकारिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में भी किसी न किसी रूप में इनका ज़िक्र है और इतिहास की पुस्तकों में भी इन्हें प्राय: उसी रूप में अभिव्यक्त किया गया है।
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