Prabhat Khabar : Prayog Ki Kahani
Author:
Anuj Kumar SinhaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
इस पुस्तक के जरिए यह बताने का प्रयास किया गया है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। अगर टीमवर्क हो, वर्क कल्चर हो, विजन हो, बेहतर लीडरशिप हो और लोगों में काम करने का जज्बा हो तो मृतप्राय संस्था को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है, उसे एक बेहतरीन संस्था बनाया जा सकता है। ‘प्रभातखबर’अखबार की 30 वर्षों की यात्रा के संदर्भ में लिखी इस पुस्तक में इसी बात का उल्लेख है कि वे कौन से कारण हैं, जिनके बल पर एक समय बंद होता प्रभात खबर (स्थानीय/क्षेत्रीय अखबार) देश के शीर्ष हिंदी अखबारों में शामिल हो गया। पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि कैसे एक संस्था को खड़ा किया जा सकता है। इसके लिए प्रभात खबर में क्या-क्या प्रयोग किए गए। चाहे वह संपादकीय प्रयोग हो या गैर-संपादकीय प्रयोग। प्रभात खबर की यात्रा में साधन के अभाव में अनेक मौके आए, जब लगा कि अखबार आज बंद हो गया कल, लेकिन ये सभी आशंकाएँ गलत निकलीं। पूरी किताब में उदाहरणों के बल पर यह बताने का प्रयास किया गया है कि एक स्थानीय और क्षेत्रीय अखबार भी अपने कंटेंट और अनूठे प्रयोग केबल पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो सकता है।
ISBN: 9789351861683
Pages: 368
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: पितरस बुख़ारी का पूरा नाम पीर सैयद अहमद शाह बुख़ारी है। आपका ताल्लुक़ पाकिस्तान के पेशावर से हैं। शुरूआती तालीम पाकिस्तान ही में पायी और एम.ए. करने के बाद इंग्लिस्तान की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में डिग्री हासिल की। लाहौर में बतौर उस्ताद आपकी ख़िदमात रहीं और कई बरस तक ऑल इंडिया रेडियो में अलग-अलग ओहदों पर रहे। 1952 में यूनाइटेड नेशन्स में नुमाइन्दे चुने गए, जहाँ 1954 तक रहे। पितरस के लिखे मज़ामीन ज़माने भर में मशहूर हैं मगर इस किताब में मुन्तख़ब 11 मज़ामीन का एक अलग मक़ाम है। आपका लिखा हुआ मिज़ाह उर्दू अदब में बेशक़ीमती सरमाया है। यही वजह है कि आपके इन्तेक़ाल के अगले ही रोज़ न्यूयॉर्क टाईम्स (6 दिसम्बर 1958) ने अपने इदारिया में उनको याद करते हुए 'सिटिज़न सिटिज़न ऑफ वर्ल्ड' कहा। 2013 में पाकिस्तानी हुक़ूमत के ज़रिए आपको मुल्क का दूसरा सबसे बड़ा सिटिज़न अवॉर्ड 'हिलाल-ए-इम्तियाज़' भी दिया गया। शुऐब शाहिद का तआल्लुक़ बुनियादी तौर पर उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर से है। इस वक़्त आपकी शिनाख़्त मुल्क के एक मशहूर बुक कवर डिज़ाइनर के तौर पर होती है। दुनिया की कई मशहूर किताबों पर बतौर आर्टिस्ट काम करने के सबब आपकी अदबी दुनिया में एक ख़ास मक़बूलियत है। मुल्कगीर और बैनुलअक़्वामी सतह पर कई अवार्ड्स के साथ आपका नाम रहा है। आपके लिखे मज़ामीन, ख़ुतूत और बिलख़ुसूस उर्दू मिज़ाह से मुताल्लिक मज़ामीन हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बहुत से रिसालों में अक्सर शाया होते हैं और आप अवाम-ए-ख़ास-ओ-आम में अपने मुन्फ़रद अन्दाज़ के लिए काफ़ी मकबूल हैं। इन दिनों क्लासिकल उर्दू अदब को देवनागरी रस्मुल-ख़त में लाने का तारीख़ी काम अंजाम दे रहे हैं।
Janane ki Batein (Vol. 2)
- Author Name:
Deviprasad Chattopadhyay
- Book Type:

- Description: Janane ki Batein (Vol. 2)
Chunautiyon Ko Avasaron Mein Badalata Bharat
- Author Name:
Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
- Book Type:

- Description: नई शिक्षा नीति से विद्यार्थियों, अध्यापकों, शोधार्थियों व शैक्षिक नेतृत्व की सोच में व्यापक बदलाव होगा। समकालीन विषय, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजाइन थिंकिंग, होलिस्टिक हेल्थ, ऑर्गेनिक लिविंग, इनवायरनमेंटल एजुकेशन, ग्लोबल सिटिजनशिप एजुकेशन आदि शामिल करने से शिक्षा के स्तर में काफी बढ़ोतरी होगी। नई शिक्षा नीति में हमारा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि हमारी बालिकाएँ कहीं भी पीछे नहीं रहें। केवल भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ पर अल्पसंख्यकों के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ। जहाँ एक ओर हमने हमेशा विदेशी भूमि से लोगों का स्वागत किया है और उन्हें गले लगाया है, उनके मूल्यों और परंपराओं को समाहित करती हमारी संस्कृति अत्यंत विविधताओं को समेटे हुए एक खूबसूरत जीवंतता के दर्शन कराती है। आज पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है, क्योंकि विषम परिस्थितियों में भी अद्भुत जिजीविषा का परिचय देकर भारतीयों ने हर क्षेत्र—शिक्षा, उद्योग, विज्ञान, पर्यावरण, अनुसंधान में मुँह बाए खड़ी चुनौतियों को अवसर में बदलकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। प्रस्तुत पुस्तक भारतीय कर्मशीलता और कर्तव्यबोध का दिग्दर्शन कराती सकारात्मकता जाग्रत् करनेवाली कृति है।
Darvin Aani Jivsrushtiche Rahasya
- Author Name:
Nanda Khare +1
- Book Type:

- Description: उत्क्रांतीचा सिद्धान्त ही मानवी इतिहासातील सर्वांत महत्त्वपूर्ण संकल्पना आहे. जीवनाच्या जवळपास प्रत्येक क्षेत्रात मूलभूत परिवर्तन घडवून आणणारा हा सिद्धान्त डार्विनने मांडला, त्याला आता दीडशे वर्षे झाली आहेत. आजच्या गतिमान जगात ह्या सिद्धान्ताचं स्थान काय? आज तो कालबाह्य ठरला आहे का? त्याची पुनर्मांडणी करायला हवी का? माणसाच्या विकासात अधिक महत्त्वाचे काय, नैसर्गिक प्रकृती, की पालनपोषण? मार्क्सवाद आणि स्त्रीवाद या विसाव्या शतकातल्या महत्त्वाच्या विचारप्रणालींवर या सिद्धान्ताने काय प्रभाव पाडला? भारतीय विचारपरंपरेवर डार्विनचा काही परिणाम झाला का? जातिव्यवस्था आणि शेतीवरील अरिष्ट या भारताच्या दृष्टीनं कळीच्या मुद्यांबाबत हा सिद्धान्त काय सांगतो? रंगभेद आणि जातिभेद यांचं तो समर्थन करतो का? वैज्ञानिक शेती ही उत्क्रांतीविरोधी आणि पर्यायानं निसर्गविरोधी आहे का? गेल्या वीस-पंचवीस वर्षांत उदयाला आलेल्या मेंदूजैवविज्ञानाच्या अनेक अंगांना हा सिद्धान्त कसा काय लागू पडू शकतो ? अशा अनेक प्रश्नांची उत्तरं शोधणारा ग्रंथ. महाराष्ट्रातल्या नव्या पिढीतल्या बारा विद्वान आणि व्यासंगी लेखकांनी सिद्ध केलेला. - सुबोध जावडेकर Darvin Aani Jivsrushtiche Rahasya : Nanda Khare,Ravindra Rukmini Pandharinath डार्विन आणि जीवसृष्टीचे रहस्य : संपादक : रवीन्द्र रुक्मिणी पंढरीनाथ । नंदा खरे
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