Kunwarvarti Kaise Bahe
Author:
Dr. Rakesh KabeerPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए पता चलता है कि कवि राकेश का रचना-संसार अत्यंत समृद्ध एवं विस्तृत है। सामाजिक यथार्थों और विसंगतियों को समेटने और भेदने में उनकी काव्यदृष्टि सक्षम है। विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के विभिन्न उपादानों और नदियों के विनाश से कवि का मन तकलीफ से भर उठता है। प्रकृति की लोकतांत्रिक मोहकता बेशक सबको आकर्षित करती है, परंतु हमारी उपेक्षा से उसमें निरंतर हृस हो रहा है। ‘कुँवरवर्ती’, ‘वापसी’ और ‘शहरी मेढक’ जैसी कविताओं में यही चिंता साफ दिखती है। संग्रह की कविताओं में जो सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि है, वह समकालीन घटनाओं की सख्ती से छानबीन करती है। संविधान और लोकतंत्र में गहरा विश्वास, सामाजिक न्याय का प्रबल समर्थन, जातीय भेदभाव के विरोध के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के सवालों से भी बड़ी संजीदगी से इस संग्रह की कविताएँ मुठभेड़ करती हैं। किसानों की रोजमर्रा की समस्याएँ, उनकी फसलों के वाजिब मूल्य, गरीबी और आत्महत्या के मुद्दों के बीच जीवन में हरियाली बोने की जिदवाली उम्मीद हमें आश्वस्त करती है कि अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। लोकतंत्र की संस्थाओं पर भरोसा एवं सभी के अधिकारों का सम्मान करके ही हमारा विविधतापूर्ण देश एक सशक्त राष्ट्र बन सकता है।
हमें अपने जीवन से अनेक तरह के अनुभव प्राप्त होते हैं। कवि मन ऐसे अनुभवों, और स्मृतियों को भी अपनी कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करता है।
ISBN: 9789390101603
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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