Ration Card Ka Dukh
Author:
Jugnu ShardeyPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Unavailable
"एक युग से आँसुओं, नारों, माँगों और फोटू कमेटी की बरसात हो रही थी। कल गरमी के बावजूद संसद् के एयरकंडीशन से कलेजे में ठंडक लिये वैसे ही मुसकराई देश की संसदीय महिलाएँ, जैसे कभी मुसकराती थीं टूथपेस्ट बेचनेवाली महिलाएँ। आखिर पेश हो गया राज्यसभा में संविधान संशोधन 108वाँ विधेयक। इसमें संसद् और विधानसभा में आबादी के 50 प्रतिशत को 33 प्रतिशत रिजर्वेशन मिल सकेगा।
चाणक्य कहते हैं, कहते हैं या नहीं पता नहीं, क्योंकि स्तंभकार ने चाणक्य का अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा है, लेकिन छोटी बात को बड़ी बनाने के लिए बड़े लोगों का नाम लेना चाहिए। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि कुछ भी लिखने के पहले सोचसमझ लेना चाहिए। सोचसमझ के लेखन का मतलब होता है कि लिखने के पहले सोचा ही न जाए। जन्म बीत जाए सोचतेसोचते। लेखन तो बस साप्ताहिक मुद्रास्फीति लेखन है कि बस प्रतिशत बढ़ाते या घटाते जाना लिखना भर होता है। फिर भी इस स्तंभकार ने बाकायदा खोजबीन की। ब्रेकिंगन्यूज के बकवासी खतरों और टीवीयाना बहसों की सिरदर्द के बावजूद खबरिया चैनलों को देख गया। रंगीन विज्ञापनों से भरे अगरमगरलेकिनपरंतु वाले प्रिंट मीडिया को पढ़कर चश्मे का नंबर बढ़ गया। इंटरनेटीय सर्च इंजनों को झाँक गया, जहाँ एक विषय पर लाखों भड़ासी जानकारियाँ होती हैं। तब जाकर समझ में आया कि शोधअनुसंधान के लिए विषय का होना जरूरी होता है। अब तक सारी खोजबीन बिना विषय के हो रही थी। विषय भी तय कर लिया गया—देश और गांधीजी के तीन बंदर का व्यावहारिक संबंध।"
ISBN: 9789382901693
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कोहबर की शर्त उपन्यास के विख्यात लेखक का यह उपन्यास पारिवारिक जीवन की पृष्ठभूमि से निकलकर मानवीय सम्बन्धों के एक बड़े विस्तार में जाता है जिसमें जंगलों, पहाड़ों में कार्यरत मज़दूरों, ठेकेदारों और सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ दफ़्तरी जीवन का एक बहुत नज़दीक से देखा हुआ विवरण भी आता है।
श्रीकान्त बाबू एक मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं जहाँ रिश्तों का एक व्यापक संजाल है, जीवन, स्नेह और ऊष्मा से लबालब। लेखक श्रीकान्त का भाव एक अनाथ लड़की जया पर भी आता है, और वे उसे गोद लेकर पालते-पोसते हैं। अन्त में एक भिन्न भूमिका में जगतसेवा में जाते हैं।
Daya Ki Devi
- Author Name:
Rajendra Ratnesh
- Book Type:

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अरावली की पर्वत श्रेणियों में विराजित जोगणिया माता मेवाड़ का सुरम्य तीर्थस्थान है। वहाँ पशुबलि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही थी। मैंने स्वयं वहाँ बबूलों और खेजड़ों के वृक्षों की डालियों पर बलि दिए पशुओं की मुंडियाँ लटकी देखी हैं। ये पशु अपने-अपने मालिक परिवारों की मनौतियों, बोलमाओं और मान्यताओं के कारण वधित होते थे। आसपास के पेड़ों पर लटके इन पशु मुंडों को देखते हुए मन्दिर तक जाना और दर्शन करना हर किसी के बस की बात नहीं थी।
माँ यशकुँवरजी का यह वाक्य ‘माँ जणै के हणै’ जब पहली बार वहाँ आकाश में गूँजा तब पूरे जोगणिया माता तीर्थ और आसपास के मेवाड़ क्षेत्र की धरती धन्य-धन्य कर उठी। आकाश के नक्षत्रों और मूक पशुओं की शब्दहीन क्रन्दनपूर्ण आवाज़ों ने हज़ारों मीलों तक की धरती को एक सर्वथा नया अहिंसक कम्पन दिया। लोग आपस में एक-दूसरे से पूछते थे, ‘माँ जणै के हणै?’ माँ जन्म देती है कि जीवन का हरण करती है? यह एक अभियानी या आन्दोलनी नारा नहीं था। सचमुच यह एक जीवनदायी जीवन-रक्षक विचार था। बेशक यशकुँवरजी का विरोध हुआ। विरोध भी जमकर हुआ। पर अन्तत: वे लोग भी अपने खाँडे, गँड़ासे, त्रिशूल और तलवारें तथा कुल्हाड़े जैसे कठोर शस्त्र फेंककर नारियलों, माखन, मिश्री तथा भोग नैवेद्यों पर आ गए। माँ यशकुँवरजी ने पशुबलि के लिए सर्वत्र सिहरन के साथ जाने जानेवाले एक महातीर्थ को परम पवित्र अहिंसा का अनुपम तीर्थ बना दिया।
अपने साधुजीवन के एक-दो नहीं, पूरे 70-80 वर्षों का यह पुण्य फल जैन समाज में आचार्य-पद के समकक्ष प्रवर्तिनी पद-प्राप्त यशकुँवर माता ने अपने गुरु समाज और सकल जैन-अजैन समाज पर निछावर कर दिया। इस कृति में ये सारे वर्णन भाई रत्नेश जी ने विस्तार से किए हैं। मालवा और मेवाड़ के उन सभी जनपदीय ग्रामों, नगरों और शहरों के नामों सहित लेखक ने युग प्रवर्तिनी माँ के चौमासाओं पर अपनी सिद्ध लेखनी चलाई है।
यह पुस्तक जानकी बैरागी की कथा नहीं है। यह पुस्तक अहिंसा और जीवदया का अलौकिक गौमुख है।
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