Sanatan Buddha, Shashvat Yogi
Author:
Shashank MahalwalPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Unavailable
यह कहानी चेतना की रहस्यमयी विशेषताओं पर आधारित है। इस कहानी में लेखक ने चेतना की एक ऐसी विशेषता पर प्रकाश डाला है, जिसे साधारणत: आज तक चेतना की लीला में अनदेखा किया गया है और चेतना की उस विशेषता का नाम है जिज्ञासा । इस कहानी में लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जिज्ञासा ही वह शक्ति थी, जिसने क्रम- विकास को दिशा प्रदान की और जिज्ञासा ही वह शक्ति थी, जिसने सिद्धार्थ गौतम को समाधि को प्राप्त करने में भी सहायता प्रदान की ।
जिज्ञासा चेतना की एक ऐसी शक्ति है, जिसकी कार्यप्रणाली को अभी तक पूर्ण रूप से समझा नहीं गया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने जिज्ञासा की ऐसी ही रहस्यमयी विशेषताओं पर प्रकाश डाला है, जो जीवन का भी मार्गदर्शन करती हैं तथा अपनी भूमिका पदार्थ एवं ऊर्जा-जगतृ में भी निभाती हैं। ब्रह्मांड और जीवन में जिज्ञासा की भूमिका को समझाने के साथ- साथ लेखक ने इस कहानी में यह भी समझाने का प्रयास किया है कि योग और ध्यान वास्तविकता में जीवन को लीला में क्या भूमिका निभाते हैं तथा किस प्रकार मानव इनकी सहायता से बुद्ध के आयाम को प्राप्त कर सकता है।
ISBN: 9789355212863
Pages: 376
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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बहैसियत अदबी भाषा उर्दू की ताक़त जिन कुछ लेखकों को पढ़ते हुए एक ठोस आकार की शक्ल में नमूदार होती है, उनमें इस्मत चुग़ताई को चोटी के कुछ नामों में शुमार किया जा सकता है। जहाँ तक ज़बान को इस्तेमाल करने के हुनर का सवाल है, बेदी और मंटो में भी वह महारत दिखाई नहीं देती जो उनमें दिखती है। बेदी कहानी को मूर्तिकार की सी सजगता से गढ़ते थे और मंटो की कहानी अपने समय के कैनवस पर अपना आकार ख़ुद लेती थी। लेकिन इस्मत की कहानी भाषा और भाषा में बिंधी हुई सदियों की मानव-संवेदना की चाशनी से इस तरह उठती है जैसे किसी खौलती हुई कड़ाही में, भाप को चीरकर कोई मुजस्समा उठ रहा हो।
इससे यह नहीं समझ लिया जाना चाहिए कि इस्मत अपनी कहानी में कोई कलात्मक चमत्कार करती हैं, वह ज़िन्दगी से अपने सच्चे लगाव को कहानी का ज़रिया बनाती हैं और जिस शब्दावली का चयन उनकी ज़बान करती है, वह ख़ुद भी ज़िन्दगी से उनके इसी शदीद इश्क़ से तय होती है। सिर्फ़ कोई एक शब्द या कोई एक पद, और आपको अपनी आँखों के सामने पूरा एक दृश्य घटित होता दिखता है। ‘यह इतना बड़ा चीख़ता-चिंघाड़ता बम्बई’ —इस संग्रह की पहली ही कहानी में यह एक वाक्य आता है, और सच में बम्बई को किसी और तरह से चित्रित करने की ज़रूरत नहीं रह जाती। इसी बम्बई में सरला बेन हैं। ‘कभी किसी ने उन्हें हटकर रास्ता देने की ज़रूरत तक न महसूस की। लोग दनदनाते निकल जाते और वह आड़ी होकर दीवार से लग जातीं।’ एक कहानी का यह एक वाक्य क्या एक मानव जाति के एक प्रतिनिधि के बरसों का ख़ाका नहीं खींच देता।
यही हैं इस्मत चुग़ताई, जिन्हें यूँ ही लोग प्यार से आपा नहीं कहा करते थे। जिस मुहब्बत से वे अपने किरदारों और उनके दु:ख-सुख को पकड़ती थीं, वही उनके आपा बन जाने का सर्वमान्य आधार था। इस किताब में उनकी सत्रह एक से एक कहानियाँ शामिल हैं जिनमें प्रसिद्ध 'लिहाफ़' भी है। इसमें उन्होंने समलैंगिकता को उस वक़्त अपना विषय बनाया था जब समलैंगिकता के आज जवान हो चुके पैरोकार गर्भ में भी नहीं आए थे। और इतनी ख़ूबसूरती से इस विषय को पकड़ना तो शायद आज भी हमारे लिए मुमकिन नहीं है। उनकी सोच की ऊँचाई के बारे में जानने के लिए सिर्फ़ इसी को पढ़ लेना काफ़ी है।
PITA KE NAM
- Author Name:
Sushant Supriy
- Book Type:

- Description: Short Stories
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