Rajesh Joshi
Chand Ki Vartani
- Author Name:
Rajesh Joshi
-
Book Type:

- Description: राजेश जोशी का यह कविता-संग्रह हिन्दी कविता का एक नया शिखर है। तीन दशकों से भी अधिक की काव्य-साधना एवं जीवन के लगभग साठ वसन्तों की हरीतिमा से दीप्त यह संग्रह अनेक स्वरों का विलक्षण पुंज है। राजेश ने न केवल अपने को बदला है, बल्कि अपने को बदलते हुए समस्त समकालीन काव्य में सर्वथा नए घूर्ण उत्पन्न कर दिए हैं। वे सारे गुण और स्वाद जिनके लिए राजेश जोशी जाने और माने जाते हैं, यहाँ अपनी पूर्णता एवं सौष्ठव के साथ उपस्थित हैं, साथ ही बहुत कुछ ऐसा भी है जो नितान्त अप्रत्याशित पर आह्लादकारी है और वह है जीवन को उसकी जटिलता में जाकर देखने का उपक्रम, सभी तहों-परतों को उलट-पुलट अनुभव के नामिक तक उत्खनन का धैर्य—‘दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम’। और इसके लिए राजेश तदनुरूप भाषा की खोज भी करते हैं, बनी-बनाई भाषिक आदतों को छोड़ते हुए वह अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाते हैं—‘ताप से भरे शब्दों’ को ढूँढ़ते दूर बीहड़ में जाते हैं और ‘आँसुओं के लिए’ भी ढूँढ़ लाते हैं वैसे ही ‘पारदर्शी शब्द’। राजेश की कविता हमारे समय का ऐसा संघनित दस्तावेज़ है कि केवल उसके आधार पर हम समकालीन भारत का एक दृश्य-लेख बना सकते हैं। इतने तात्कालिक ब्योरे हैं यहाँ, इतने प्रसंग, पात्र और राजनीतिक-सामाजिक उद्वेलन। साथ ही उनकी कविता जीवन के उन तन्तुओं की खोज करती है जहाँ उन उद्वेलनों का कम्प सबसे तीव्र है, और उन लोगों का यशोगान करती है जो निरन्तर संघर्ष करते हुए जीवन को बदलने का ताब रखते हैं। उनकी कविता साहस के साथ सत्ता के सभी पायदानों पर वार करती है, एक विराट सत्ता जो अर्थव्यवस्था से लेकर हमारी रसोई तक व्याप्त है। नागार्जुन और धूमिल के बाद सत्ता के तिलिस्म को उघाड़नेवाले सर्वाधिक सशक्त कवि राजेशी जोशी हैं। आख्यान, कथोपकथन, लोक-कथाओं के स्वप्न-वृत्तान्त, जातीय मिथक, अतियथार्थ के खम, सपाटबयानी, शब्दों के खेल और कल्पना-क्रीड़ा, फंतासी सब कुछ मिलकर एक नया रसायन बनाते हैं जो अन्यत्र दुलर्भ है। राजेश की कविता अब भाषा के नए उपकरणों एवं आयुधों का व्यवहार करती है तथा कविता को वहाँ ले जाती है जहाँ भाषा ‘अर्थ से अधिक अभिप्रायों में निवास करती है’। यह ठोस जगत् की, ठोस जीवन की कविता है उर्फ़ चाँद की वर्तनी नीले नभ पर। — अरुण कमल
Chand Ki Vartani
Rajesh Joshi
Main Hawa Pani Parinda Kuchh Nahin
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description:
यह एक कवि का गल्प है, सो ज़ाहिर है इसमें कल्पना की उड़ान भी है, और ज़मीन का खुरदरापन भी। ये कहानियाँ जिनके बारे में ख़ुद लेखक का कहना है कि बहुत अनुशासित ढंग से नहीं लिखी गईं, अपने आयतन में मध्यवर्गीय जीवन की कठोर सीमाओं को रेखांकित करते हुए उन फ़ंतासियों तक जाती हैं जिनमें एक बड़े जीवन-बोध की संभावनाएँ खुलती हैं।
संग्रह की पहली कहानी ‘मैं हवा पानी परिंदा कुछ नहीं’, जिसका नायक अपने पक्षी-प्रेम के चलते सहसा एक चिडि़या में बदल जाता है, फ़ंतासी के फ्रेम में समय तथा सत्ता-संरचना के कई कँटीले पहलुओं को रेखांकित करती है। इसी तरह ‘साँप’ भी जिसमें मध्यवर्गीय आकांक्षाओं और उनके सभ्यतागत विस्तार को एक साँप के रूपक में उसकी तमाम भयावहताओं के साथ साकार कर दिया गया है।
मँझोले शहरों का साँवला-सा माहौल इन कहानियों में अपने तमाम शेड्स के साथ मौजूद है जिसे राजेश जी की चुटीली कहन ने और जीवन्त कर दिया है। ‘सोमवार’ कहानी के विवरण इस लिहाज़ से विशेष तौर पर पढ़ने लायक़ है और इसमें चित्रित किया गया जीवन भी जो अपने देश और काल की छवियों को एक सजीव कोलाज में ढाल देता है।
कविता के पंखों पर उड़ता हुआ गद्य इन सभी कहानियों की उपलब्धि है। इन कहानियों को पढ़ते हुए हम सिर्फ़ कथा-सूत्र के साथ नहीं चलते, उसकी बिम्ब-योजना हमें अनुभव के एक समानान्तर लोक में भी प्रक्षेपित करती जाती है; जिससे एक वृहत्तर यथार्थ हमारी पहुँच में होता है।
Main Hawa Pani Parinda Kuchh Nahin
Rajesh Joshi
Ab Tak Sab
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

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यह सुखद है कि राजेश जोशी के लगभग सभी नाटक, लिखने के साथ ही मंचित हुए और मंचीय प्रदर्शनों की सफलता के बाद प्रकाशित हुए। निश्चित रूप से इनकी रचना प्रदर्शन की अपेक्षाओं के अनुरूप हुई है इसलिए इनका पहना प्रभाव तो मंचीयता का ही पड़ता है। नाटक पढ़ते समय पाठक, दर्शक की भूमिका में चला जाता है और भले ही वह सिर्फ पाठ से गुजरता हो, प्रस्तुति का अन्तर्भूत प्रभाव उसे बाँधे रहता है। नाटक की आलोचना की भाषा में कहें तो यह विशेषता ‘चाक्षुषता के साथ-साथ दृश्यात्मकता’ की है। राजेश जोशी के लगभग सभी नाटकों में 'भाषा की पूरी शक्ति, उसकी पूरी अर्थवत्ता काव्यात्मकता' तक पहुँचने में है जिसे विख्यात नाट्य चिन्तक नेमिचन्द्र जैन एक सफल नाट्यालेख का सबसे बड़ा गुण या उसकी बड़ी चुनौती स्वीकार करते हैं। कहना न होगा कि नेमि जी नाटक को मूलतः काव्य का एक प्रकार ही मानते थे और एक नाट्यालेख में वे ‘सार्थक और महत्वपूर्ण अनुभूति की सूक्ष्म, संवेदनशील और गहन अभिव्यक्ति' का होना आवश्यक मानते थे।
इस दृष्टि से देखें तो राजेश जोशी के अधिकांश नाटक नाट्यालेख की अनिवार्य अर्हताएँ पूरी करते हैं और सम्बद्ध विषय की सूक्ष्मतम अनुभूति तथा संवेदनशील और गहन अभिव्यक्ति संभव करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में उनका जोर ‘संवाद’ और ‘दृश्यात्मकता’ को उभारने में रहा है जो पाठ को तो अर्थगर्भी बनाते ही हैं, मंचन को उसके पूरे वितान में खुलने का अवसर देते हैं।
—ज्योतिष जोशी
Ab Tak Sab
Rajesh Joshi
Ek Kavi Ki Note Book
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description:
कला या लिखने की सारी तरकीबें कलाकार या रचनाकार की सृजनात्मक क्षमताओं
और कौशल से ही हमेशा पैदा नहीं होतीं, कई रचनाकार ऐसे होते हैं जो हमेशा लिखने से बचने की
कोशिश करते रहते हैं। रचना जब भी उनकी खोपड़ी पर सवार हो जाती है या लिखने की बाध्यता
उनके सामने आ खड़ी होती है, वे इससे बचने के लिए बहाने खोजने लगते हैं। यह एक त्रासदायक
स्थिति है। इसमें बचने और लिखने का एक विकट द्वन्द्व चलता रहता है। गद्य लिखना मेहनत का
काम है। व्यवस्थित गद्य लिखना तो और भी ज़्यादा। उसके लिए जैसा व्यवस्थित अध्ययन और
जमकर बैठने की तैयारी एक लेखक की होनी चाहिए, वह मेरी कभी नहीं रही। मैं हमेशा ही एक बैक
बेंचर छात्र रहा हर जगह, जो क्लासरूम में बैठने के बजाय कैंटीन में बैठकर गप्पों में अपना समय
बिताना पसन्द करता रहा। इसलिए जो भी और जब भी लिखा टुकड़ों-टुकड़ों में लिखा। उन्हें डायरियाँ
भी कहना मुनासिब नहीं। डायरियों में एक व्यवस्था होती है। सुविधा के लिए ज़्यादा से ज़्यादा इन्हें
नोट्स कहा जा सकता है। कुछ भी पढ़ते या सोचते हुए छोटी-छोटी पर्चियों पर या कॉपी के सफ़ों पर
बनी, वह भी उसे छोटे-छोटे नोट्स की शक्ल में ही लिखा। इस किताब में कवियों या कविता पर
केन्द्रित जो टिप्पणियाँ हैं या कविता की किताबों पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ, सब कुल मिलाकर
नोट्स ही हैं। यह एक ऐसी तरकीब है जिसे निबन्ध न लिख पाने की अपनी अक्षमता के चलते मैंने
अपनी काहिली और सुविधा के लिए ईजाद किया। इसलिए इसे आलोचना या समीक्षा जैसा काम तो
क़तई नहीं कहा जा सकता।
नोट्स में एक बेतरतीबी है। एक अव्यवस्था है। मुझे लगता है कि रचना के भीतर अर्जित की गई
स्वतंत्रता के अधिक क़रीब पहुँचने में यह कोशिश ज़्यादा कारगर है। हिन्दी कविता के लिए मुझे
अक्सर एक रूपक गढ़ने की इच्छा होती है कि इसकी काया मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन, केदारनाथ
अग्रवाल और त्रिलोचन के पाँच तत्त्वों से बनी है और इसके प्राणतत्त्व निराला हैं। हर रूपक की तरह
लेकिन यह रूपक भी अपर्याप्त है पर इससे हिन्दी कविता के नाक-नक्श कुछ हद तक तो पहचाने ही
जा सकते हैं। आठवें दशक की कविता को सामने रखकर अपने से पहले की कविता को टटोलने की
कोशिश में नोट्स का यह पुलिन्दा तैयार हो गया है।
यह एक कवि की नोटबुक है। इसलिए इसमें व्यवस्था कम, बहक ज़्यादा है।
Ek Kavi Ki Note Book
Rajesh Joshi
Dhoop Ghari
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

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कविता जादू है। जो जैसा है उसे तुरत-फुरत पलक झपकते बदल डालने का जादू है कविता। राजेश जोशी ने यह बात अपने पहले कविता-संग्रह में कही थी। इसी कविता के जादू को समझने के लिए उन्होंने कहा कि एक कबूतर ख़ाली टोकरी से निकलेगा और फिर लम्बी-लम्बी उड़ान भरेगा। यह उड़ान ही कविता के जादू की परिणति है। इसी समझ के कारण राजेश जोशी की कविताओं में यथार्थ और फ़ैंटेसी का अन्तर्गठन सम्भव हुआ। अपने समय के विरुद्ध तात्कालिक प्रतिक्रिया व्यक्त करते वक़्त वे कभी भी अच्छे जीवन का सपना देखना नहीं भूलते।
विश्व-हिंसा और दिन-रात फैलते प्रदूषण के ख़िलाफ़ राजेश जोशी ने बहुत समर्थ कविताएँ लिखी हैं। इसका एक कारण तो यह है कि भोपाल की त्रासदी उन्होंने बहुत निकट से देखी और झेली है। दूसरा यह कि उनके अन्तरंग संवेदनों की दुनिया को इससे ज़बर्दस्त आघात पहुँचा है। उन्होंने मनुष्य की महानतम उपलब्धियों की क्षणभंगुरता और आत्मघाती दर्प की भयावह सच्चाई को पहचान लिया।
अपने परिवेश के प्रति अगाध प्रेम और सम्बद्धता शायद ही इधर प्रकाशित दूसरे कवियों की कविताओं में मिले। ख़ास बात यह है कि राजेश जोशी अपने अनुभव को कविता में सिरजते वक़्त शोकगीत की लयात्मकता नहीं छोड़ते। लय उनकी कविताओं में अत्यन्त सहज भाव से आती है, जैसे कोई कुशल सरोदवादक धीमी गति में आलाप द्वारा भोपाल राग का विस्तार कर रहा हो। इस दृष्टि से राजेश जोशी के शिल्प को एक सांगीतिक संरचना कहा जा सकता है। वे स्थानीयता के रंग में डूबकर भी कविता के सार्वजनिक प्रयोजनों को रेखांकित करते हैं।
राजेश जोशी की कविताओं में कहीं भी पराजित होकर दूर खड़े रहने का भाव नहीं है। वे अपने परिवेश और लोगों से गहरे जुड़े हैं और उन्हीं से अपनी कविताओं के लिए ऊर्जा और आस्वाद ग्रहण करते हैं।
वे फैंटेसी का इस्तेमाल भयावह पटकथा के रूप में नहीं करते। वे तो इसे अपने मन की सहज, सरल भावाकुलता में गूँथकर यथार्थ के बरअक्स तीखे विपर्यय के रूप में रखते हैं, ताकि यथार्थ का चेहरा अधिक नुकीला और वास्तविक दिखाई दे।
—ऋतुराज की एक टिप्पणी से कुछ पंक्तियाँ।
Dhoop Ghari
Rajesh Joshi
Samkaleenta Aur Sahitya
- Author Name:
Rajesh Joshi
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- Description:
जब मैं बैंक में काम करता था, एक भिखारी था जो थोड़े अन्तराल से बैंक आता और रोकड़िया के काउंटर पर जाकर बहुत सारी चिल्लर अपनी थैली से उलट देता, फिर अपनी अंटी से, कभी अपनी आस्तीन से तुड़े-मुड़े नोट निकालकर एक छोटी-सी ढेरी लगा देता। कहता, इसे जमा कर लीजिए। उसके आने से मज़ा आता, आश्चर्य भी होता और एक क़िस्म की खीज भी होती—उन नोटों और गन्दी-सी चिल्लर को गिनने में। उस रोकड़िया जैसी ही स्थिति मेरी भी होती है जब समय-समय पर लिखी गई, छोटी-बड़ी टिप्पणियों को जमा कर उनकी किताब बनाने लगता हूँ। इस पूरी प्रक्रिया में लेकिन भिखारी भी मैं ही हूँ और रोकड़िया भी। सारी चिल्लर और नोट गिन लिए जाते तब पता लगता कि राशि कम नहीं हैं—कुल जमा काफ़ी अच्छा-ख़ासा है। ऐसा आश्चर्य कभी-कभी मुझे भी होता है। पृष्ठ गिनने लगता हूँ तो लगता है कि बहुत कुछ जमा हो गया है। सब कुछ चोखा नहीं है, कुछ खोटे सिक्के और फटे हुए नोट भी हैं।
इस दूसरी नोटबुक में इतना ही फ़र्क़ है कि इसमें गद्य की कुछ किताबों पर गाहे-बगाहे लिखी गई टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। पहली नोटबुक के फ़्लैप पर मैंने कहा था कि लिखने के सारे कौशल सिर्फ़ रचनाकार की क्षमताओं से ही पैदा नहीं होते हैं, कई बार वह अक्षमताओं से भी जन्म लेते हैं। ये नोट्स और टिप्पणियाँ मेरी क्षमताओं के बनिस्बत मेरी अक्षमताओं से ज़्यादा पैदा हुई हैं।
मुझे लगता था कि बाज़ार हिन्दी की कविता का कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि न तो इस क्षेत्र में अधिक पैसा है, न ही कीर्ति के कोई बहुत बड़े अवसर ही हैं। पर मैं ग़लत था। बाज़ार एक प्रवृत्ति है। इसका ताल्लुक़ अवसर, पैसे या कीर्ति से नहीं है। हिन्दी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य जिस तरह के घमासान और निरर्थक विवादों से भरा नज़र आ रहा है, वह बाज़ार के ही प्रभाव का परिणाम है। विगत तीन दशकों की कविता का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। ‘आलोचना’ से यह उम्मीद तब तक निरर्थक ही होगी जब तक कि कवि स्वयं इस दृश्य के मूल्यांकन की कोशिश नहीं करेंगे। यही हालत गद्य की भी है, विशेष रूप से कहानी और उपन्यास की। उसमें हल्ला अधिक है, सार्थक विमर्श और साफ़ बोलनेवाली आलोचना कम। आलोचना का एक बड़ा हिस्सा या तो उजड्डता और अहंकार से भरा है या ‘अहो रूपम् अहो ध्वनि’ के शोर से। एक कवि और कथाकार ही इसमें हस्तक्षेप कर सकता है। उसी की ज़रूरत है।
—राजेश जोशी
Samkaleenta Aur Sahitya
Rajesh Joshi
Nepathy Mein Hansi
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description: ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है । हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं । घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है । दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में .शायद इसके कुछ संकेत मिलें । शायद इसीलिए इन कविताओं में 'मूड्स' की बहुत भिन्नताएं हैं । निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है । और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं । ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है ।
Nepathy Mein Hansi
Rajesh Joshi
Zid
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description: आग, पहिया और नाव की ही तरह भाषा भी मनुष्य का एक अद्वितीय अविष्कार है ! इस अर्थ में और भी अद्विरिय कि यह उसकी देह और आत्मा से जुडी है ! भाषा के प्रति हाम्र व्यवहार वस्तुतः जनतंत्र और पूरी मनुष्यता के प्रति हमारे व्यवहार को ही प्रकट करता है ! हम एक ऐसे समय से रूबरू हैं जब वर्चस्वशाली शक्तियों की भाषा में उददंडता और आक्रामकता अपने चरम पर पहुँच रही है ! बाज़ार की भाषा ने हमारे आपसी व्यवहार की भाषा को कुचल दिया है ! विज्ञापन की भाषा ने कविता से बिम्बों की भाषा को छिनकर फूहड़ और अश्लीलता की हदों तक पहुंचा दिया है ! इस समय के अंतर्विरोधों और विडम्बनाओं को व्यक्त करने और प्रतिरोध के नए उपकरण तलाश करने की बेचैनी हमारी पूरी कविता की मुख्य चिंता है ! उसमें कई बार निराशा भी हाथ लगती है और उदासी भी लेकिन साधारण जन के पास जो सबसे बड़ी ताकत है और जिसे कोई बड़ी से बड़ी वर्चस्वशाली शक्ति और बड़ी से बड़ी असफलता भी उससे छीन नहीं सकती, वह है उसकी जिद ! मेरी इन कविताओं में यह शब्द कई बार दिखाई देगा ! शायद यह जिद ही है जो इस बाजारू समय में भी कवि को धुंध और विभ्रमों के बीच लगातार अपनी जमीन से विस्थापित किए जा रहे मनुष्य की निरंतर चलती लड़ाई के पक्ष में रचने की ताकत दे रही है ! सबसे कमजोर रोशनी भी सघन अँधेरे का दंभ तोड़ देती है ! इसी उम्मीद से ये कविताएँ यहाँ है !
Zid
Rajesh Joshi
Kavita Ka Shahar : Ek Kavi Ki Notebook
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description:
कविता का नगर चाहे बहुत भिन्न हो, उसमें कल्पना का तत्त्व बहुत अधिक या कम हो, लेकिन बाहर स्थित नगर से उसकी शक्ल थोड़ी-बहुत तो मिलती है। पर हर बार मेरी शक्ल को वास्तविक नगर की शक्ल से मिला-जुलाकर देखने की क़वायद फ़िज़ूल है। कई बार कवियों को भी यह भ्रम हो जाता है कि वे अपनी कविता में वास्तविक शहर के यथार्थ को समेट रहे हैं। उन्हें लगता है कि वो कविता में शब्दों से वो ही शहर बना सकते हैं जो वास्तविक शहर है। लेकिन दोनों के निर्माण में लगनेवाली सामग्री ही भिन्न है। जब भी वास्तविक शहर शब्दों में रूपान्तरित होता है, उसका चेहरा-मोहरा वही नहीं रहता जो उसका वास्तविक चेहरा है। यह शहर का पुनर्रचित चेहरा है। यह कविता का नगर है।
लेकिन मुझे बसाना या बनाना भी कोई आसान काम नहीं है। मेरे भवनों, सड़कों, गलियों, नदियों और सरोवरों को बनाने के लिए एक कवि को भी जाने कितने शब्द, कितने वाक्य, बिम्ब, प्रतीक, छन्द, लय, मिथक-कथाओं और कल्पनाओं की ज़रूरत होती है। कवि का श्रम किसी वास्तुशिल्पी या नगरशिल्पी से किसी बात में कम नहीं होता।
मेरा इतिहास उतना ही पुराना है जितना मनुष्य द्वारा किए गए नगरीकरण का। इसे मेरा दम्भ न समझा जाए तो कई बार तो मुझे लगता है कि मनुष्य द्वारा बसाए गए शहर से भी पहले मैं अस्तित्व में आया होऊँगा। एक शहर में जैसे हमेशा ही कुछ न कुछ जुड़ता रहता है, कुछ टूटता रहता है, इसी तरह मुझमें भी कुछ न कुछ बदलता रहता है। प्राचीन कविता का नगर और आज की कविता का नगर एक-सा तो नहीं है। आधुनिक शहरों की तरह मुझमें भी भीड़ है, शोर है और तेज़ गतियाँ हैं, परिचित और अपरिचित चेहरे हैं। आख़िरकार मैं भी एक नगर हूँ और भीड़ और शोर से मैं भी कैसे बच सकता हूँ।
तो आइए, मैं आपको वास्तविक नगर की भीड़ और शोर से निकालकर कविता के नगर की भीड़ और शोर के बीच लिए चलता हूँ।
Kavita Ka Shahar : Ek Kavi Ki Notebook
Rajesh Joshi
Brahm Raksash Ka Nai
- Author Name:
Rajesh Joshi
-
Book Type:

- Description: ‘ब्रह्मराक्षस का नाई’ पाँच दृश्यों वाला राजेश जोशी का एक बाल नाटक है। यह नाटक कुछ रोचक बाल अनुभवों को पठनीय और दृश्य-श्रव्य माध्यम के अनुकूल बनाता है। इस नाटक के संवाद कौतूहल जगाने वाले हैं। कह सकते हैं कि ‘ब्रह्मराक्षस का नाई’ बाल नाटक में एक आधुनिक विषयवस्तु को दिखाते हुए कल्पनाओं की उड़ान भरी गई है। इसमें एक गायक दल भी है जो पात्रों के संवादों को अपनी विलक्षणता के साथ यादगार बनाता है।
Brahm Raksash Ka Nai
Rajesh Joshi
Do Panktiyon Ke Beech
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description:
राजेश जोशी भाषा को लिरिकल बनाते हुए उस संगीत तक ले जाते हैं, जहाँ से अर्थों की उड़ान शुरू होती है। वह थियेटर की सभी तकनीकें, प्रश्नाधारित संवाद, लय और गीतात्मकता का सीधा इस्तेमाल करते हैं, किन्तु कविता की मूल प्रतिज्ञा, सूक्ष्मता और संवेदनीयता से नहीं डिगते।
राजेश की कविता की ताक़त रेटारिक का अर्थ ही बदल देती है। वह देखते-देखते भाषा को वस्तु और वस्तु को उसकी अन्तर्वस्तु में बदल देती है।
भोपाल राजेश की कविताओं में एक आर्गेनिक संरचना की तरह गुँथा है। वह उनकी बोली, बानी, मिज़ाज, मौसम सभी कुछ में व्याप्त है। शायद इसी को लक्ष्य कर ऋतुराज ने लिखा था, वह अपने अनुभव को सिरजते वक़्त शोकगीत की लयात्मकता नहीं छोड़ते। लय उनकी कविताओं में सहज भाव से आती है, जैसे कोई कुशल सरोदवादक आलाप में भोपाल राग का विस्तार कर रहा हो!
राजेश की राजनीतिक चेतना किताबी नहीं है। उनके मंतव्य स्पष्ट हैं। निष्कर्षों को लेकर दुविधा नहीं है। राजेश की राजनीतिक सम्मान की कविताएँ रेटारिक या स्थूल होने की जगह बारीकी और नफ़ासत का नमूना पेश करती हैं।
मार्क्सवाद के संस्पर्श से जिन कवियों ने अपनी समझ और संवेदना को गहरा किया है, राजेश जोशी को उनमें अलग से चिह्नित किया जा सकता है।
समय, स्थान और गतियों के अछूते सन्दर्भों से भरी है राजेश की कविता। यहाँ काल का बोध गहरा और आत्मीय है। अपने मनुष्य होने के अहसास और उसे बचाए रखने की जद्दोजहद हैं राजेश की कविताएँ।
(नरेश सक्सेना की एक टिप्पणी से कुछ पंक्तियाँ।)
Do Panktiyon Ke Beech
Rajesh Joshi
Kissa Kotah
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Book Type:

- Description:
बेहद भागदौड़ की ज़िन्दगी में जीवन का पिछला हिस्सा धूसर होता जाता है, जबकि हम उसे याद रखना चाहते हैं—एक विकलता का चित्र। रंग, स्वाद, हरकतें और नाजुक सम्बन्ध की चाहत—बस, एक कशिश है। भागती ज़िन्दगी में कशिश! स्मृतियों के बारीक रग-रेशों के उभर आने की उम्मीद। तब यह किताब ‘क़िस्सा कोताह’ ऊष्मा के साथ नज़दीक रखे जाने के लिए बनी है। ज़रूरी और सटीक।
यह हमारे क़िस्सों का असमाप्त जीवन है। जैसे जीवन को चुपचाप सुनना है। एक के भीतर तीन-चार आदमियों को देखना है। यह राजेश जोशी के बचपन, कॉलेज या साहित्यिक व्यक्तित्व के बनने का दस्तावेज़ ही नहीं है, बल्कि बीहड़ इतिहास में चले गए लोगों, इमारतों और प्रसंगों को वापस ले आने की सृजनात्मकता है। मध्य प्रदेश के भोपाल और उससे पहले नरसिंहगढ़ रियासत की साँसें हैं। संयुक्त परिवार की दुर्लभ छबियाँ। नाना, फुआ, भाइयों और पिता के लोकाचार, जो कि हम सबके अपने से हैं। अपने ही हैं। दोस्तों की आत्मीयता, सरके दिमाग़ों का अध्ययन, राजनीति के अध्याय बन गए कुछ नाम, हमें अपने शहरों में खोजने का विरल अनुभव देते हैं। यह भटकन है। प्यास। बेगमकाल से इमरजेंसीसीकाल तक का, इतिहास में लुप्त हो गए लोगों के विविध व्यवहारों का अलबम है। फ़िल्म जैसा साउंड ट्रेक है। भुट्टे, आम, सीताफल और मलाई दोने का मीठापन है।
सुविख्यात कवि राजेश जोशी का यह अनूठा गद्य अपनी निज लय के साथ उस उपवन में प्रवेश करता है जिसे हम उपन्यास कहते हैं। यहाँ हम अपनी स्मृतियों, अपने लोगों, सड़कों, भवनों और सम्बन्धों को रोपने के लिए उर्वर भूमि पाते हैं।
—शशांक
Kissa Kotah
Rajesh Joshi
Ullanghan
- Author Name:
Rajesh Joshi
-
Book Type:

- Description:
उल्लंघन संग्रह में कवि हुक्म-उदूली की अपनी प्राकृतिक इच्छा से आरम्भ करते हुए मौजूदा दौर की उन विवशताओं से अपनी असहमति और विरोध जताता है, जिन्हें सत्ता हमारी दिनचर्या का स्वाभाविक हिस्सा बनाने पर आमादा है।
एक ऐसे समय में ‘जिसमें न स्मृतियाँ बची हैं/न स्वप्न और जहाँ लोकतंत्र एक प्रहसन में बदल रहा है/एक विदूषक किसी तानाशाह की मिमिक्री कर रहा है’—ये कविताएँ हमें निर्प्रश्न अनुकरणीयता के मायाजाल से निकलने का रास्ता भी देती हैं, और तर्क भी।
कवि देख पा रहा है कि ‘सिकुड़ते हुए इस जनतंत्र में सिर्फ़ सन्देह बचा है’, ताक़त के शिखरों पर बैठे लोग नागरिकों को शक की निगाह से देखते हैं, तरह-तरह के हुक्मों से अपने को मापते हैं; कहते हैं कि साबित करो, तुम जहाँ हो वहाँ होने के लिए कितने वैध हो, और तब कविता जवाब देती है–‘ओ हुक्मरानो/मैं स्वर्ग को भूलकर ही आया हूँ इस धरती पर/तुम अगर मुझे नागरिक मानने से इनकार करते हो/तो मैं भी इनकार करता हूँ /इनकार करता हूँ तुम्हें सरकार मानने से!’
लगातार गहरे होते राजनीतिक-सामाजिक घटाटोप के विरुद्ध पिछले चार-पाँच सालों में जो स्वर मुखर रहते आए हैं, राजेश जोशी उनमें सबसे आगे की पाँत में रहे हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ इसी दौर में लिखी गई हैं। कुछ कविताएँ महामारी के जारी दौर को भी सम्बोधित हैं जिसने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के सरकारी उद्यम पर जैसे एक औपचारिक मुहर ही लगा दी–‘सारी सड़कों पर पसरा है सन्नाटा/बन्द हैं सारे घरों के दरवाज़े/एक भयानक पागलपन पल रहा है दरवाज़ों के पीछे/दीवार फोड़कर निकल आएगा जो/किसी भी समय बाहर/और फैल जाएगा सारी सड़कों पर!’
Ullanghan
Rajesh Joshi
Pratinidhi kavitayen : Rajesh Joshi
- Author Name:
Rajesh Joshi
-
Book Type:

- Description:
राजेश जोशी की कविताओं को पढ़ना एक पीढ़ी और उसके समय से दस-पन्द्रह साल पीछे की कविता और उससे जुड़ी बहसों के बारे में सोचना, और इतने ही साल आगे की कविता और उसकी मुश्किलों की ओर ताकना है।
कविता की एक संश्लेषी परम्परा रही है, जिसके भीतर राजेश जोशी की सक्रियता देखी जा सकती है। इसी बात ने उन्हें ख़ास पहचान दी और समकालीन कविता को भी। केदारनाथ सिंह का यह कथन बिलकुल दुरुस्त है कि ‘राजेश जोशी आज की कविता के उन थोड़े से महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों में हैं, जिनसे समकालीन कविता की पहचान बनी है।’
राजेश जोशी की ‘समझ’ से समकालीन कविता और उसकी नई पीढ़ी अभिन्न है।
कविता की एक संश्लेषी परम्परा, जो पीछे ही नहीं आगे भी जाती है। इसमें प्रतिरोध और प्रतिबद्धता है तो पर्याप्त लोच भी है।
Pratinidhi kavitayen : Rajesh Joshi
Rajesh Joshi
Bantu Batoley Ki Karamati Kursi
- Author Name:
Rajesh Joshi +1
- Rating:
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- Description: बन्तू के घर एक कुर्सी है। वह कहानियाँ सुनाती है इसलिए करामाती तो है ही। पर एक कुर्सी को कहानियाँ सुनाने की ज़रूरत क्यों पड़ीॽ ये कहानियाँ उसे किसी से मिली हैं या कुर्सी ने खुद बुनी हैंॽ प्रसिध्द कवि राजेश जोशी का यह उपन्यास पाठकों को करामात की तह तक ले जाता है। रहस्य जानने की इस यात्रा के रास्ते दिलचस्प और अनूठे हैं।
Bantu Batoley Ki Karamati Kursi
Rajesh Joshi
Kuch Aata Na Jata
- Author Name:
Rajesh Joshi +1
- Rating:
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- Description: कौवा कितना काला है? जैसे कि रोशनी उल्टी हो गई हो, मशहूर कवि राजेश जोशी जवाब देते हैं। उनके जैसा स्थापित कवि अवलोकन की बारीकियों को व्यक्त करने के लिए नई भाषा का निर्माण कर सकता है। यह एक अनोखा संग्रह है, जो बच्चों को बहुत पसंद आएगा। वे पूरे दिन आपके साथ या अकेले इन्हें गाना चाहेंगे। युवा चित्रकार शिवम चौधरी के चित्र ताज़ा हैं। वे दिखाते हैं कि चित्रण में रंगों की अपनी आवाज़ होती है, आप ध्यान से सुनना चाहेंगे।
Kuch Aata Na Jata
Rajesh Joshi
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