Samkaleenta Aur Sahitya
Author:
Rajesh JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
जब मैं बैंक में काम करता था, एक भिखारी था जो थोड़े अन्तराल से बैंक आता और रोकड़िया के काउंटर पर जाकर बहुत सारी चिल्लर अपनी थैली से उलट देता, फिर अपनी अंटी से, कभी अपनी आस्तीन से तुड़े-मुड़े नोट निकालकर एक छोटी-सी ढेरी लगा देता। कहता, इसे जमा कर लीजिए। उसके आने से मज़ा आता, आश्चर्य भी होता और एक क़िस्म की खीज भी होती—उन नोटों और गन्दी-सी चिल्लर को गिनने में। उस रोकड़िया जैसी ही स्थिति मेरी भी होती है जब समय-समय पर लिखी गई, छोटी-बड़ी टिप्पणियों को जमा कर उनकी किताब बनाने लगता हूँ। इस पूरी प्रक्रिया में लेकिन भिखारी भी मैं ही हूँ और रोकड़िया भी। सारी चिल्लर और नोट गिन लिए जाते तब पता लगता कि राशि कम नहीं हैं—कुल जमा काफ़ी अच्छा-ख़ासा है। ऐसा आश्चर्य कभी-कभी मुझे भी होता है। पृष्ठ गिनने लगता हूँ तो लगता है कि बहुत कुछ जमा हो गया है। सब कुछ चोखा नहीं है, कुछ खोटे सिक्के और फटे हुए नोट भी हैं।</p>
<p>इस दूसरी नोटबुक में इतना ही फ़र्क़ है कि इसमें गद्य की कुछ किताबों पर गाहे-बगाहे लिखी गई टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। पहली नोटबुक के फ़्लैप पर मैंने कहा था कि लिखने के सारे कौशल सिर्फ़ रचनाकार की क्षमताओं से ही पैदा नहीं होते हैं, कई बार वह अक्षमताओं से भी जन्म लेते हैं। ये नोट्स और टिप्पणियाँ मेरी क्षमताओं के बनिस्बत मेरी अक्षमताओं से ज़्यादा पैदा हुई हैं।</p>
<p>मुझे लगता था कि बाज़ार हिन्दी की कविता का कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि न तो इस क्षेत्र में अधिक पैसा है, न ही कीर्ति के कोई बहुत बड़े अवसर ही हैं। पर मैं ग़लत था। बाज़ार एक प्रवृत्ति है। इसका ताल्लुक़ अवसर, पैसे या कीर्ति से नहीं है। हिन्दी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य जिस तरह के घमासान और निरर्थक विवादों से भरा नज़र आ रहा है, वह बाज़ार के ही प्रभाव का परिणाम है। विगत तीन दशकों की कविता का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। ‘आलोचना’ से यह उम्मीद तब तक निरर्थक ही होगी जब तक कि कवि स्वयं इस दृश्य के मूल्यांकन की कोशिश नहीं करेंगे। यही हालत गद्य की भी है, विशेष रूप से कहानी और उपन्यास की। उसमें हल्ला अधिक है, सार्थक विमर्श और साफ़ बोलनेवाली आलोचना कम। आलोचना का एक बड़ा हिस्सा या तो उजड्डता और अहंकार से भरा है या ‘अहो रूपम् अहो ध्वनि’ के शोर से। एक कवि और कथाकार ही इसमें हस्तक्षेप कर सकता है। उसी की ज़रूरत है।</p>
<p>—राजेश जोशी
ISBN: 9788126718863
Pages: 308
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: साहित्य में ‘मंज़रनामा’ एक मुकम्मिल फ़ार्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इंटरप्रेटेशन हो जाता है। मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ार्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है। ‘लेकिन’...ठोस यक़ीन, पार्थिव सबूतों और तर्क के आधुनिक आत्मविश्वास पर प्रश्नचिह्न की तरह खड़ा एक ‘लेकिन’, जिसे गुलज़ार ने इतनी ख़ूबसूरती से तराशा है कि वैसी किसी बहस में पड़ने की इच्छा ही शेष नहीं रह जाती जो आत्मा और भूत-प्रेत को लेकर अक्सर होती रहती है। इस फ़िल्म और इसकी कथा की लोमहर्षक कलात्मकता हमें देर तक वापस अपनी वास्तविक और बदरंग दुनिया में नहीं आने देती जिसे अपने उद् दंड तर्कों से हम और बदरंग कर दिया करते हैं। यह पुस्तक इसी फ़िल्म का मंज़रनामा है...पठनीय भी दर्शनीय भी।
Taar Saptak : Siddhant Aur Kavita
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कविता के इतिहास में तार सप्तक का ऐतिहासिक महत्त्व है। काव्य-चेतना के दो युगों के सन्धि-बिन्दु पर मौजूद इस संकलन से गुज़रे बिना छायावाद, प्रगतिवाद और छायावादोत्तर कविताओं के बाद की हिन्दी कविता को नहीं समझा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक इसका कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं हो पाया। हिन्दी के सुपरिचित कवि और अध्येता बोधिसत्व का यह शोध-प्रबन्ध इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
पाँच विस्तृत अध्यायों में सुनियोजित इस पुस्तक में तार सप्तक के इतिहास, उसकी युगीन आवश्यकता, सम्पादन-प्रक्रिया और उससे जुड़े विवादों से आरम्भ करके हिन्दी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उसका चरणबद्ध विवेचन किया गया है। तार सप्तक में शामिल कवियों के काव्य-चिन्तन का विस्तृत अध्ययन-सर्वेक्षण और उनकी काव्यगत विशेषताओं पर शोधकर्ता ने अपनी कवियोचित अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करते हुए कई मूल्यवान निष्कर्ष प्राप्त किए हैं।
सप्तक के पहले और दूसरे संस्करणों में प्रकाशित कवि-वक्तव्यों में आए परिवर्तनों की तरफ़ भी लेखक की जिज्ञासा गई है, और उनके सूक्ष्म अध्ययन से उसने जानने की कोशिश की है कि कवियों के वक्तव्यों में आए ये बदलाव किस प्रवृत्ति के सूचक हैं—अन्विति के, अन्तर्विरोध के या विकास के।
कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी कविता के एक ऐतिहासिक मोड़ पर केन्द्रित यह गम्भीर अध्ययन न सिर्फ़ छात्रों, बल्कि कविता के इतिहास में रुचि रखनेवाले हर पाठक के लिए उपादेय सिद्ध होगा।
Nai Kahani Ki Bhumika
- Author Name:
Kamleshwar
- Book Type:

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Description:
'एक शानदार अतीत कुत्ते की मौत मर रहा है, उसी में से फूटता हुआ एक विलक्षण वर्तमान रू-ब-रू खड़ा है—अनाम, अरक्षित, आदिम अवस्था में। और आदिम अवस्था में खड़ा यह मनुष्य अपनी भाषा चाहता है, आस्था चाहता है, कविता और कला चाहता है, मूल्य और संस्कार चाहता है; अपनी मानसिक और भौतिक दुनिया चाहता है...।'
यह है नयी कहानी की भूमिका—इस कहानी को शास्त्र और शास्त्रियों द्वारा परिभाषित करने की जब-जब कोशिश हुई है, कहानी और कहानीकार ने विद्रोह किया है। इस कहानी को केवल जीवन के सन्दर्भों से ही समझा जा सकता है, युग के सम्पूर्ण बोध के साथ ही पाया जा सकता है।
नयी कहानी के प्रमुख प्रवक्ता तथा समान्तर कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर ने छठे दशक के कालखंड में जीवन के उलझे रेशों और उससे उभरनेवाली कहानी की जटिलताओं को गहरी और साफ़ निगाहों से विश्लेषित किया है। साहित्य का यह विश्लेषण बिना स्वस्थ सामाजिक दृष्टि के सम्भव नहीं है।
कमलेश्वर की यह पुस्तक इसलिए ऐतिहासिक महत्त्व की है कि यह समय और साहित्य को पारस्परिक समग्रता में समझने की दृष्टि देती है। 'नयी कहानी की भूमिका' अपने समय के साहित्य की अत्यन्त विशिष्ट दस्तावेज़ है; पाठकों, लेखकों और अध्येताओं के लिए अपरिहार्य पुस्तक है।
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