Zid
Author:
Rajesh JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
आग, पहिया और नाव की ही तरह भाषा भी मनुष्य का एक अद्वितीय अविष्कार है ! इस अर्थ में और भी अद्विरिय कि यह उसकी देह और आत्मा से जुडी है ! भाषा के प्रति हाम्र व्यवहार वस्तुतः जनतंत्र और पूरी मनुष्यता के प्रति हमारे व्यवहार को ही प्रकट करता है ! हम एक ऐसे समय से रूबरू हैं जब वर्चस्वशाली शक्तियों की भाषा में उददंडता और आक्रामकता अपने चरम पर पहुँच रही है ! बाज़ार की भाषा ने हमारे आपसी व्यवहार की भाषा को कुचल दिया है ! विज्ञापन की भाषा ने कविता से बिम्बों की भाषा को छिनकर फूहड़ और अश्लीलता की हदों तक पहुंचा दिया है ! इस समय के अंतर्विरोधों और विडम्बनाओं को व्यक्त करने और प्रतिरोध के नए उपकरण तलाश करने की बेचैनी हमारी पूरी कविता की मुख्य चिंता है ! उसमें कई बार निराशा भी हाथ लगती है और उदासी भी लेकिन साधारण जन के पास जो सबसे बड़ी ताकत है और जिसे कोई बड़ी से बड़ी वर्चस्वशाली शक्ति और बड़ी से बड़ी असफलता भी उससे छीन नहीं सकती, वह है उसकी जिद ! मेरी इन कविताओं में यह शब्द कई बार दिखाई देगा ! शायद यह जिद ही है जो इस बाजारू समय में भी कवि को धुंध और विभ्रमों के बीच लगातार अपनी जमीन से विस्थापित किए जा रहे मनुष्य की निरंतर चलती लड़ाई के पक्ष में रचने की ताकत दे रही है ! सबसे कमजोर रोशनी भी सघन अँधेरे का दंभ तोड़ देती है ! इसी उम्मीद से ये कविताएँ यहाँ है !
ISBN: 9788126728602
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पार्वती की कविताओं की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के प्रकृति के सान्निध्य में बनते-बढ़ते जीवन की सहज छवियों, बिम्बों, लोक के विश्वासों और मान्यताओं को कविता का हिस्सा बना देती हैं।
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समाज की हर करवट, उसकी तमाम क्रूरताओं और विडम्बनाओं को पहचानने वाली चन्द्रकान्त देवताले की यह प्रतिबद्ध कविताएँ दरअसल भारतीय इनसान और भारतीय राष्ट्र के प्रति बहुत गहरे, यदि स्वयं विक्षिप्त नहीं तो विक्षिप्त कर देनेवाले प्रेम से विस्फोटित कविताएँ हैं। दरअसल कबीर से लेकर आज के युवतम उल्लेख्य हिन्दी कवि–कवयित्रियों की सर्जना के केन्द्र में यह समाज और यह देश ही रहा है। यह देश को खोकर प्राप्त की गई नकली आधुनिक या उत्तर–आधुनिक कविता नहीं है, एक सार्थक देश को पाने की कोशिश की तकलीफ़देह सच्ची कविता है। चन्द्रकान्त देवताले जैसे सर्जक अपनी कविताओं के ज़रिए वही काम करते नज़र आते हैं जो 1857–1947 के बीच और उसके बाद भी सारे असली वतनपरस्तों ने किया है।
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डॉ. नगेन्द्र दिनकर को द्वन्द्व का कवि मानते हैं। और सचमुच अपने द्वन्द्व की साधना में दिनकर जितने बड़े क्रान्ति के कवि दिखते हैं, उतने ही प्रेम, सौन्दर्य और करुणा के भी। यह विशेषता छायावादोत्तर युग में उनके अलावा अन्यत्र दुर्लभ है। ‘द्वन्द्वगीत’ में इन सबका सम्मिलित रूप देखने को मिलता है।
इस पुस्तक में दिनकर ने द्वन्द्वात्मकता की ज़मीन पर जो पद-सृजन किया है, वह उनकी अभिधा और व्यंजना-अभिव्यक्ति में एक अलग ही लोक की रचना करता है। संग्रह के कई पदों से पता चलता है कि वे शोषित जन की पीड़ा के वाचक नहीं, उसे संघर्ष और सरोकारों के रंग में रँगनेवाले चितेरे हैं। कहते हैं—‘चाहे जो भी फ़सल उगा ले/तू जलधार बहाता चल।’ जो क्रूर व्यवस्था के शिकार हैं, उन्हें वे झुकते, टूटते नहीं देख सकते। उनकी नज़र में वही असली निर्माणकर्ता हैं, जिनको कुचलकर कोई तंत्र क़ायम नहीं रह सकता। इसलिए हुंकार भरते हैं कि ‘उठने दे हुंकार हृदय से/जैसे वह उठना चाहे/किसका, कहाँ वक्ष फटता है/तू इसकी परवाह न कर।’
दिनकर संवेदना और विचारों के घनत्व में सृजन को जीनेवाले रचयिता हैं। उन्हें मालूम है कि आज जो मूक हैं, एक दिन समझेंगे कि व्याध के जाल में तड़प-तड़पकर रहने को जीवन नहीं कहते। तभी तो यह उम्मीद रचते हैं—‘उषा हँसती आएगी/युग-युग कली हँसेगी, युग-युग/कोयल गीत सुनाएगी/घुल-मिल चन्द्र-किरण में/बरसेगी भू पर आनन्द-सुधा।’
इस संग्रह में प्रेम-सम्बन्धित भी कई पद हैं जिनमें शृंगार, मिलन और वियोग का भावनात्मक और कलात्मक अंकन हुआ है। उनमें अलंकारों का विलक्षण प्रयोग देखने को मिलता है—'दो अधरों के बीच खड़ी थी/भय की एक तिमिर-रेखा/आज ओस के दिव्य कणों में/धुल उसको मिटते देखा।/जाग, प्रिये! निशि गई, चूमती/पलक उतरकर प्रात-विभा/जाग, लिखें चुम्बन से हम/जीवन का प्रथम मधुर लेखा।’
कहें तो यह एक ऐसा संग्रह है, जिसके पद पढ़े भी जा सकते हैं, गाए भी जा सकते हैं। हिन्दी काव्य-साहित्य में एक उच्च कोटि की पुस्तक है ‘द्वन्द्वगीत’।
Kashmakash
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Shruti Kushwaha
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Shoonya Ki Jheel Mein Prem
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- Description: ‘शून्य की झील में प्रेम’ में लौकिक प्रेम को अलौकिक प्रेम में परिवर्तित होते हुए देखना सुखद अनुभूति है। प्रेम जिसकी महिमा आदिकाल से आराध्य देवताओं से लेकर साधारण मनुष्य तक व्याप्त है जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया और जब तक जीवित रहा।-ख़ुदेजा ख़ान मयंक मुरारी का नवीनतम कविता-संग्रह ‘शून्य की झील में प्रेम’ विश्व के प्रेम साहित्य को नए अरमानों से सुसज्जित करने का सुपर्ण सुयत्न है जिसके महत्त्व पर ख़ुदेजा ख़ान और स्वयं कवि ने यथेष्ट प्रकाश डाला है। कुछ आरम्भिक उद्धरण इसे पूर्णता प्रदान करते हैं। इसमें मेरे जैसे पाठक के लिए कुछ भी जोड़ पाना असम्भव है। यह प्रेम का मधु है जो मौन की अपेक्षा करता है। मयंक जी सिद्धहस्त एकान्त निस्पृह साधक हैं जिनका कवि-कर्म किसी तारीफ का मोहताज नहीं। उन्होंने इन टुकड़ों में अपना हृदय-रस उड़ेल दिया है जो समस्त भारतीय मानस को रसाप्लावित करेगा। शून्य की झील इश्क और अध्यात्म के सामासिक ऐश्वर्य को इंगित करने वाला प्रतीक बन मयंक मुरारी की काव्य-साधना का महत्तम राग बन जाती है। इसी के साथ वे न केवल हिन्दी बल्कि सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के उन सारस्वत कवियों के शिरोमणि बनने की ओर अग्रसर हैं जो इश्क़ के रूहानी और डिवाइन तत्वों का प्रतिनिधित्व करने की सामर्थ्य रखते हैं। प्रत्येक टुकड़े की शिरोरेखा की भाँति प्रदत्त गद्य मुखड़े पूरी पुस्तक को नई रश्मियों से आलोकित करते हैं। यह पुस्तक सहृदय पाठकों का हृदय हार बने, यही कामना है। अस्तु। अरुण कमल
Kabir Granthawali : Parimarjit Paath
- Author Name:
Kabir
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Description:
कबीर-पंथियों में जो स्थान ‘बीजक’ का है, अकादमिक हलक़ों में वही स्थान श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित ‘कबीर-ग्रंथावली’ का है। तमाम विवादों और असहमतियों के बावजूद आज भी कबीर के प्रामाणिक पाठ के लिए अध्येता ‘ग्रंथावली’ का ही सहारा लेते हैं।
ऐसे में अगर यह पता चले कि ‘ग्रंथावली’ में संकलित कबीर भले ही अन्य संग्रहों के मुक़ाबले ज़्यादा पूरे हों, लेकिन जो पाठ यहाँ प्रकाशित है, उसमें अनेक ऐसी भूलें हैं, जो अर्थ का अनर्थ ही नहीं कर रहीं, बल्कि कवि के मंतव्य को ही उलट दे रही हैं, तो क्या हो...
आश्चर्य नहीं कि लगभग एक सदी से अनेक संस्करणों में व्यवहृत ‘ग्रंथावली’ के इस पक्ष पर प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल की निगाह रुकी और उन्होंने अपने विशद अध्ययन और कबीर के प्रति अपने असाधारण प्रेम के चलते इसके परिमार्जन का बीड़ा उठाया।
यह संस्करण उसी परिमार्जित एवं शुद्धतम पाठ की प्रस्तुति है जिसका आरम्भ उनकी एक सुदीर्घ भूमिका से होता है। इस भूमिका में प्रो. अग्रवाल ने पाठ-परिमार्जन की इस पूरी श्रम-साध्य प्रक्रिया पर तो प्रकाश डाला ही है, कबीर पर अपने अब तक के अध्ययन से प्राप्त अद्यतन धारणाओं को भी सूत्र रूप में दे दिया है।
पाठकों को ज्ञात ही है कि ‘अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ (2009) में उन्होंने कबीर के बहाने उस मध्यकाल में भारत की आधुनिकता की पहचान की थी, जो औपनिवेशिक आधुनिकता से पहले ही भारत के लोकवृत्त में प्रकट हो चुकी थी।
‘कबीर-ग्रंथावली’ की इस प्रस्तुति में वे न सिर्फ़ कबीर की वाणी को शुद्धतम रूप में हमें दे रहे हैं, बल्कि कबीर-अध्ययन के इतिहास की गुत्थियों को सुलझाते हुए उन्हें ठीक से पढ़ने-जानने की समझ भी हमें प्रदान कर रहे हैं।
Footprints
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You Me and Love
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Kashish Lewis
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- Description: You Me and Love is a collection of poems that will take you on a journey to explore the definition of love in all forms. From falling in love with someone to healing after a heartbreak and embracing oneself, we hope these poems will make you believe in love despite the dark side.
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