Pratinidhi kavitayen : Rajesh Joshi
Author:
Rajesh JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
राजेश जोशी की कविताओं को पढ़ना एक पीढ़ी और उसके समय से दस-पन्द्रह साल पीछे की कविता और उससे जुड़ी बहसों के बारे में सोचना, और इतने ही साल आगे की कविता और उसकी मुश्किलों की ओर ताकना है।</p>
<p>कविता की एक संश्लेषी परम्परा रही है, जिसके भीतर राजेश जोशी की सक्रियता देखी जा सकती है। इसी बात ने उन्हें ख़ास पहचान दी और समकालीन कविता को भी। केदारनाथ सिंह का यह कथन बिलकुल दुरुस्त है कि ‘राजेश जोशी आज की कविता के उन थोड़े से महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों में हैं, जिनसे समकालीन कविता की पहचान बनी है।’</p>
<p>राजेश जोशी की ‘समझ’ से समकालीन कविता और उसकी नई पीढ़ी अभिन्न है।</p>
<p>कविता की एक संश्लेषी परम्परा, जो पीछे ही नहीं आगे भी जाती है। इसमें प्रतिरोध और प्रतिबद्धता है तो पर्याप्त लोच भी है।
ISBN: 9788126724123
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Siya-Piya Katha
- Author Name:
Ushakiran Khan
- Book Type:

-
Description:
सीता-कथा राम के पश्चाताप-विगलित विलाप पर पूर्णता पाती है। वही राम जिन्हें पाकर सीता ने अपने होने को सार्थक समझा, वही राम जिनके पीछे-पीछे वे चौदह वर्षों के लिए वन जाने को साथ हो लीं, और जिनके महान, लोकोपकारी उद्देश्य के लिए उन्होंने रावण की लंका में बन्दी-जीवन व्यतीत किया। वही राम सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद लोक-भय के चलते उन्हें पुनः वनगमन करा देते हैं। वही राम फिर उस स्वाभिमानिनी सीता के लिए विलाप करते हैं जो उनके राजवंश को दो वीर-पुत्र देकर हमेशा के लिए चली जाती है।
सीता की कथा मर्यादा कही जाने वाली नैतिक-सामाजिक संरचनाओं के पुरुष-केन्द्रित संस्थानीकरण की सीमाओं की कथा भी है। कितना सहज है पुरुषों की तमाम पौरुष-प्रतिष्ठापक गतिविधियों की सबसे तीखी नोक का स्त्री के मर्मस्थल में कार बिंध जाना। सिय पिय कथा की सीता कहती हैं :
गड़ता है काँटा/अनेकानेक हीन-भाव का/अधैर्य का/ संशय का/और अन्ततः अस्तित्व का राजा राम/आज मैं करती हूँ मुक्त/बिला रही हूँ माटी में
यह उस स्त्री का अन्तिम कथन है जो अपने प्रेम और समर्पण भाव की गहनता के कारण पुरुष के तथाकथित मर्यादा-तंत्र को प्रश्नांकित नहीं करती, बस उसके बीच से सिर तानकर निकल जाती है। यही पुरुष के बल-वैभव पर उसकी टिप्पणी है, यही उसका प्रतिरोध है। लेकिन राम का विलाप उसकी उपलब्धि नहीं, क्योंकि प्रतिशोध उसका ध्येय नहीं। सिय पिय कथा की सीता पश्चाताप-दग्ध राम को पुनः यह कहने आती हैं :
जब राजधर्म पसरेगा/बनकर अन्धकार/सीता का प्रेम प्रकट होगा/सीता ही होगी समाहार
यह खंडकाव्य इसी सीता की महिमा का गान करते हुए हमारे बाहुबली वर्तमान में स्त्री-तत्व की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
Sadran
- Author Name:
Bittu Sandhu
- Book Type:

- Description: सदरां दा सफ़र खारीयां रातां तों कसैले दिन, सुफनेयां दे निघ तों उडीक दी पीड़, ओसीयां भरीयां ‘तरकालां’ तों हिजर दी हूक निकियां-निकियां उम्मीदां, उडीकां ते गुआचीआं मुस्कुराहटां तों उस ‘किल’ तक दा है जो ऐसी ‘पीड़’ दे गया जिस तों कई जन्मां, रिश्तेयां ते रुतां दे बाद वी निजात नहीं मिली जापदी। बिट्टू दियां सदरां पता नहीं केहड़े जन्म तों केहड़ा पतझड़ ते केहड़ी बसन्त आपणी पोटली च बन लेआइयां हन। गल ख़ास एह है कि बिट्टू दी पहली किताब ‘सफ़ीना’ 2009 विच हिन्दुस्तानी दा लड़ फड़ डूंगे उफानी रुहानी समुंदरां च गोते लाउंदी सी। अज उनां समुंदरां ने साडे आले दुआले दी मिट्टी नू गल ला पंजाबी विच गुनीआं सदरां नू साडी झोली पाया ए। एह मिट्टी दा असर वी है। ते हां जो बिट्टू संधू नू नहीं जाणदे ते सिर्फ़ ‘सफ़ीना’ दी उर्दू हिन्दी विच बुणी महीन कविता नू मणदे हन। उन्हा लई एह ख़ुशख़बरी है कि पंजाबी बिट्टू संधू नू उन्हां दी अम्मी तों मिलया तोहफ़ा है। पनताली कवितावां विच लखां सदरां करोड़ां सुफनेआं ते अनगिणत सफ़र नामेयां दा एह ज़िक्र ख़ूबसूरत है बिट्टू च रचेया, मिचेया हूबहू उसदे नाल दा, बिलकुल उसदे हाल दा।
Nachnaniya
- Author Name:
Ravindra Bharti
- Book Type:

-
Description:
रवीन्द्र भारती गाहे-बगाहे अपनी कविताएँ सुनाते रहते हैं। उन्हें सुनना हमेशा प्रीतिकर लगता है। साधारणजन के साथ धूल-माटी में घूमती कवि की रागात्मकता जिस पैनेपन के साथ उजागर होती है, वह विलक्षण है। वह न सिर्फ़ भीतर तक पैठ जाती है बल्कि उसका ताप भी स्मृतियों में देर तक बना रहता है।
—जयप्रकाश नारायण; ‘प्रतिकार’, मार्च, 1978
रवीन्द्र भारती की ग्राम्य अनुभूति की विशेषता केवल प्रकृति, केवल मनुष्य या केवल पशु-पंछी को लेकर ही नहीं दिखाई देती, प्रकृति-मनुष्य, पशु-पंछी का एक स्वतः समावेश होता है। सच कहा जाए तो भारती की कविताओं में लोकरंगों की एक अलग ही टोन है जो उनके दूसरे समकालीनों में देखने को नहीं मिलती।
—किशन पटनायक; ‘समय’, दिसम्बर, 1980
रवीन्द्र भारती बिलकुल हमारे आसपास बिखरे तमाम सन्दर्भों में से सबसे सहज तत्त्वों व तथ्यों को तिनकों की तरह उठाते हैं और किसी जादूगर की तरह इशारों में ही बस स्पर्श करते हैं और एकबारगी हमारी सोई संवेदनाएँ जीवन्त हो उठती हैं। दरअसल प्रतीकों का एक अनन्त विस्तार है उनकी कविताओं में। शहर, उसकी आपाधापी और तथाकथित तार्किकता में खोए जीवन के लिए उनकी कविताएँ बड़ी राहत हैं।
—शशि भूषण; ‘इंडिया टुडे’, फरवरी, 2001
Jayasi Soor Bihari
- Author Name:
Ram Bux Jat
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक सिविल सेवा, विश्वविद्यालय परीक्षा समेत समस्त प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
पुस्तक में जायसी, सूरदास और बिहारी के प्रमुख पद सरलार्थ सहित उपलब्ध कराए गए हैं।
परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कवि की रचना पर आलोचनात्मक लेख भी पुस्तक में शामिल है।
Pratinidhi Kavitayen : Raghuvir Sahay
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

-
Description:
‘आज़ादी’ मिली। देश में 'लोकतंत्र’ आया। लेकिन इस लोकतंत्र के पिछले पाँच दशकों में उसका सर्जन करनेवाले मतदाता का जीवन लगभग असम्भव हो गया। रघुवीर सहाय भारतीय लोकतंत्र की विसंगतियों के बीच मरते हुए इसी बहुसंख्यक मतदाता के प्रतिनिधि कवि हैं, और इस मतदाता की जीवन-स्थितियों की ख़बर देनेवाली कविताएँ उनकी प्रतिनिधि कविताएँ हैं।
रघुवीर सहाय का ऐतिहासिक योगदान यह भी है कि उन्होंने कविता के लिए सर्वथा नए विषय-क्षेत्रों की तलाश की और उसे नई भाषा में लिखा। इन कविताओं को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि उन्होंने ऐसे ठिकानों पर काव्यवस्तु देखी है जो दूसरे कवियों के लिए सपाट और निरा गद्यमय हो सकती है। इस तरह उन्होंने जटिल होते हुए कवि-कर्म को सरल बनाया। परिणाम हुआ कि आज के नए कवियों ने उनके रास्ते पर सबसे अधिक चलने की कोशिश की।
रघुवीर सहाय की कविताओं से गुजरना देश के उन दूरदराज़ इलाक़ों से गुज़रना है जहाँ आदमी से एक दर्जा नीचे का समाज असंगठित राजनीति का अभिशाप झेल रहा है।
Shoodra
- Author Name:
Tribhuvan
- Book Type:

- Description: Hindi poems Shoodra by Tribhuvan
Rang Hasi Ke
- Author Name:
Mahesh Garg "Bedhadak"
- Book Type:

- Description: हम जब भी घर गए हम जब भी घर गए अक्सर उधर गए पर छत पर चाँद को बरसों गुज़र गए उनको पता भी है कि नहीं किसको पता है बुढ़ापे का सच सर ऊपर चाँदी उगी, याददाश्त कमज़ोर पीठ धनुष जैसी हुई, कच्ची उम्र की डोर कच्ची उम्र की डोर, दाँत ले रहे हिलोरें छू-मंतर मुस्कान, नज़र हुई कमज़ोर नज़र गड़ाए बीवी कहती—हाय! अभी से तुम सठियाए।
Jharna
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक ‘झरना’ में प्रेम के विविध अनुभवों का जीवन्त वर्णन है। ‘प्रेम’ से उत्पन्न निराशा, बेवफाई की वेदना, वियोग की तड़प आदि के अलावा ‘झरना’ में लोक मंगल की भावना और दीन-दुखी और दलितों के दुःख के अन्त में कामना भी है जो प्रेम को उदार बनाती है। यह सूफियों अथवा विवेकानन्द की प्रेम सम्बन्धी अवधारणाओं की भाँति कविताओं के देश का विस्तार भी है।
Thithurate Lamp Post
- Author Name:
Adnan Kafeel 'Darwesh'
- Book Type:

-
Description:
अदनान कफ़ील ‘दरवेश’ की कविता को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम अपने समय में फिर से दाख़िल हो रहे हैं। यह एक गतिमान समय है जिसमें आगे-पीछे आवाजाही करते हुए जितना आप अतीत में जाते हैं उतना ही वर्तमान में और भविष्य में भी। कवि ने समय की जो विभाजक रेखा बनाई है, वह स्वयं भी उस रेखा से पीछे जाकर ही वर्तमान के चेहरे के नाक-नक़्श उकेरता है। इस समय की ठीक-ठीक शक्ल पहचानने के लिए शायद समय में यह आवाजाही ज़रूरी है। बिना इसके इसे पहचानना सम्भव नहीं है।
वर्तमान, जिसकी विडम्बनाओं, विद्रूपताओं और नई तकनीकों के प्रतिदिन बदलते चेहरे को हम जानते हैं। उसकी बर्बरता और अमानवीयता को हम जानते हैं और समय की गति को अचानक बदल देने वाले परिवर्तनों को भी हमने बहुत क़रीब से देखा है। लेकिन अदनान की कविता को पढ़ने के बाद चीज़ें ज़्यादा साफ़ नज़र आने लगती हैं। जैसे हमारे ऐनक का नम्बर एकाएक बदल गया हो। शायद इस कविता की एक बड़ी ख़ूबी यह भी है कि वह प्रत्यक्षतः जानने और कविता को पढ़कर जानने के बीच के अन्तर का एहसास हमें कराती है। अदनान की कविता बहुत मुखर होकर स्वयं बहुत ऊँची आवाज़ में नहीं बोलती, जीवन की वास्तविकताएँ ही उसमें से बोलती हैं। इसलिए उसकी आवाज़ ज़्यादा विश्वसनीय लगती है। उसकी कविता में वाचिक कविता जैसा प्रवाह और उसकी प्रति-गति कविता के क़द को ऊँचा कर देती है। वह हमारी संवेदनाओं को झिंझोड़कर जागृत कर देती है और चीज़ों और स्थितियों के प्रति ज़्यादा वस्तुनिष्ठ बना देती है।
अदनान की कविता अपनी अस्मिता और परम्पराओं को बचाते हुए हमारे समय के सांस्कृतिक आघात के प्रति असहमति और प्रतिरोध की कविता है। वह हिन्दी कविता के अनुभवों के लैंडस्केप को अपने अनुभवों और मिथकों से पूरा करने की बहुत सजग कोशिश है।
–राजेश जोशी
Sab Ki Aawaz Ke Parde Mein
- Author Name:
Vishnu Khare
- Book Type:

-
Description:
बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में अपनी धुन और आत्महानि की सीमा तक जाकर, लीक छोड़ लिख पानेवाले कम थे लेकिन शायद विष्णु खरे उन्हीं में गिने जाएँ। विष्णु खरे के साथ एक बड़ी घटना यह रही कि उनकी कविता हिन्दी के विभिन्न समसामयिक सम्प्रदायों को तुष्ट नहीं कर पाई। उनके न तो गुरु-संरक्षक रहे, न मित्र-प्रोत्साहक और न भक्त-शिष्य। ऐसी लगभग सर्वसम्मत उपेक्षा के बावजूद कहीं-कहीं उनकी कविताएँ न केवल याद रखी गईं, बल्कि कभी-कभी उनकी माँग भी की जाती रही, यही कोई कम ग़नीमत नहीं है।
अपने और दूसरों के लिए और मुश्किलें पैदा करते हुए विष्णु खरे एक ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं जिसमें भूले-भटके काव्यावेश आ जाता है, वरना अक्सर उसमें निम्न-मध्यवर्गीय संकेतों और ब्याजशब्दावली का बाहुल्य रहता है और कभी उनकी ज़ुबान बातचीत की तरह आमफ़हम, दफ़्तरी, अख़बारी, तत्समी या गवेषणात्मक तक हो जाती है और ख़तरनाक ढंग से कहानी, गद्य, वर्णन, ब्योरों, रपट आदि के नज़दीक पहुँचती है और यह तय करना कठिन होता है कि उस निर्विकार-सी वस्तुपरकता में तथ्याभास का व्यंग्य है, करुणा है या उन्हें कविता लिखना ही नहीं आता।
कविता के विषयों को लेकर भी उनके यहाँ एक कैलाइडोस्कोप की बहुबिम्बदर्शी विविधता है जो उनकी हर चीज़ में दिलचस्पी के दख़ल की पैदाइश है और इस ज़िद की कि सब कुछ में जो कविता है, उसका कुछ हिस्सा हासिल करना ही है। दुनिया उनके आगे बाज़ीचा-ए-इत्फ़ाल नहीं, उसमें जन्म ले चुके आदमी का कौतूहल और कशमकश है। विष्णु खरे को भी कवियों का कवि कहकर दाख़िल-दफ़्तर कर देना सुविधाजनक है लेकिन वे उन सजगों के कवि हैं जिनकी तादाद अन्दाज़ से कहीं ज़्यादा है। भारतीय आदमी और मानव के लिए उनकी प्रतिबद्धता असन्दिग्ध है लेकिन वे सारे ऐहिक और अपौरुषेय व्यापार, माया और लीला, यथार्थ और मिथक को जानने के प्रयास के प्रति भी वचनबद्ध हैं, क्योंकि हर बार उसे नई तरह से जानना चाहे बिना आदमी और अस्तित्व के पूरे बखेड़े को समझने की कोशिश अधूरी ही रहेगी। इसमें अनुभववाद या दूर की कौड़ी लाने का लाघव-प्रदर्शन नहीं है, समूचे जीवन से वाबस्तगी की बात है।
इसीलिए विष्णु खरे की कविता न तो आदमी और समाज से घबराकर ‘शुद्ध कला’, अध्यात्म या रहस्यवाद में पलायन करती है और न कायनात को मात्र भौतिक मान किसी आसान ‘वाद’ की शरण लेती है। उनके यहाँ अनुभव और कविता ‘प्योर’ तथा ‘अप्लाइड’ दोनों अर्थों में हैं क्योंकि दोनों प्रकारों का एक-दूसरे के बिना अस्तित्व और गुज़ारा सम्भव नहीं है। वे वाक़ई अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने को मनुष्य और कवि होने की सार्थकता मानते हैं। इस संग्रह की कविताओं में भी वे अपने कथ्य, भाषा तथा शैली को जोखिम-भरी चुनौतियों और परीक्षाओं के सामने ले गए हैं। वे कविता को बाँदी या देवदासी की तरह नहीं, मानव-प्रतिभा की तरह हर काम में सक्षम देखना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिसकी अपनी कोई अर्थवत्ता न हो—हर आवाज़ के पीछे जो दुनिया है, विष्णु खरे की यदि कोई महत्त्वाकांक्षा है तो उसे ही अभिव्यक्ति देने का प्रयास करने की लगती है।
Wah Aadami Naya Garam Coat Pahinkar Chala Gaya Vichar Ki Tarah
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
विनोद कुमार शुक्ल की कविता, उस पूरे काव्यानुभव को एक विकल्प देती है जिसके हम अभ्यस्त हैं। हम जैसे सिर्फ़ एक क़दम उठाकर एक ऐसी दुनिया में आ जाते हैं जो बहुत बड़ी है, जहाँ चाहें तो उड़ा भी जा सकता है। यह कविता आपको बदल देती है। आपके पढ़ने और आपके जीने, दोनों की आदत को।
वह पहले आपको एक अलग भाषा देती है, फिर देखने का, महसूस करने का एक अलग तरीक़ा। एक सामर्थ्य जो हमें अपने आसपास मौजूद तमाम चीज़ों के प्रति नए सिरे से जीवित कर देती है। विनोद कुमार शुक्ल न आपको विचार देते हैं, न सन्देश, बस दुनिया में होने का एक हल्का, सरल और मानवीय ढंग देते हैं, एक विज़न, जहाँ वह सब ख़ुद चला आता है, जिसे मनुष्यों, पेड़ों, हवाओं, आसमानों, आदिवासियों, समुद्रों, नदियों, मिट्टियों, पत्तियों, चिड़ियाओं, लड़कियों, बादलों और मज़दूरों की इस दुनिया में होना चाहिए।
‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’ विनोद कुमार शुक्ल का दूसरा कविता संकलन है जो 1981 में प्रकाशित हुआ था। काफ़ी समय से यह अनुपलब्ध था।
Yugantar Ke Phool
- Author Name:
Kumar Mithilesh Prasad Singh
- Book Type:

-
Description:
‘युगान्तर के फूल’ में युग-युग का अन्तर जतलाने की तहज़ीब है। व्यक्तित्व की प्रधानता के कारण ख़ास कालखंड को उस व्यक्तित्व का नाम देकर युग को सम्बोधित करने की परिपाटी है कि वह अमुक युग था या यह अमुक युग चल रहा है।
‘युगान्तर के फूल’ में दस लम्बी कविताएँ हैं। सभी कविताएँ अलग-अलग भावभूमि की हैं, जिनमें देखी-समझी-भोगी अनुभूतियों के अलावा वर्तमान विसंगतियों और ज़रूरतों का समावेश भी हैं।
‘युगान्तर के फूल’ ऐसे विषय से सम्बन्धित है, जो काव्य-रचना की परम्परा में सर्वस्वीकृत नहीं माने जा सकते। इसकी स्वीकार्यता के ख़तरे को जानते हुए भी मैंने जोखिम उठाया है। मैं साहित्य की समृद्धि के लिए ऐसे जोखिम को आवश्यक मानता हूँ। यदि पाठक ऐसे विषयों पर लिखी कविताओं को साहित्य की समृद्धि एवं दीन-दुखियों की सेवा के लिए अपरिहार्य मानें तो मैं उन्हें भरोसा दे सकता हूँ कि इस दिशा में अभिनवपन की ख़ुराक उन्हें भविष्य में भी मिलेगी।
यों भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने लेखकों को चुनौती दे रखी है कि अब नई पीढ़ी को अद्यतन जानकारी से सहज-सरल तरीक़ों से अवगत कराओ। ग्राह्य और विषयगत बनाने की जवाबदेही लेखक बिरादरियों की है। पुरातन परम्पराएँ बदलाव के साथ अपना विकास चाहती हैं।
Nazir Banarasi Ki Shayari
- Author Name:
'Nazeer' Banarasi
- Book Type:

-
Description:
यह ‘कविता की दुनिया में उर्दूमुखी हिन्दी और हिन्दीमुखी उर्दू के अकेले कवि के रूप में सबसे अधिक’ जाने-पहचाने और, ‘राष्ट्रीयता और आपसी भाईचारे अर्थात् भारतीयता के प्रतिनिधि कवि-शायर’ नज़ीर बनारसी की प्रतिनिधि रचनाओं का संग्रह है।
‘नज़ीर’ की सबसे बड़ी ख़ूबी उनकी भाषा की जन-सम्प्रेषणीयता है। भाषा और ग़ज़ल की विशेषता पर स्वयं नज़ीर का दृष्टिकोण एकदम साफ़ था। उनका कहना था—“शायर होने के नाते ग़ज़ल मेरा मिज़ाज है, ग़ज़ल को मैं दीगर असनाफ़े सुखन (रचना-विधा) के मुक़ाबले में मुश्किल समझता हूँ। मेरा विचार है कि ग़ज़ल में इस बात की सम्पूर्ण योग्यताएँ विद्यमान हैं कि वह सम्पूर्ण विचार और तसव्वुरात को अच्छी तरह और आसानी से पेश कर सके, क्योंकि इसका दामन काफ़ी फैला हुआ है।”
ज़ाहिर है कि इस किताब में उनकी उन सभी ग़ज़लों को ले लिया गया है, जिन्हें वे ख़ुद भी अहम मानते थे और उनके चाहनेवाले भी। इसके अलावा वे नज़्में भी यहाँ दे दी गई हैं, जिनसे उनका वैचारिक पक्ष साफ़ होता है।
गंगा प्रदूषण, आतंकवाद और फ़िरकापरस्ती आज भी ज्वलन्त समस्याएँ हैं। इन पर उनका नज़रिया ‘गंगा प्रदूषण’, ‘कैसे-कैसे ज़ेहन को फ़िरक़ापरस्ती खा गई’, ‘फ़िरक़ापरस्ती का चैलेंज’ और ‘फ़िरक़ापरस्ती के चैलेंज का जवाब’ में देखा जा सकता है। वाराणसी में बुनकरों की अलग तरह की समस्या है। ‘इस कटौती की मैयत उठाएँगे हम’ तथा ‘कटौती का दसवाँ’ के माध्यम से इस समस्या पर भी जिस तरह से चर्चा की गई है, उससे समाधान भी दिखाई देता और नज़ीर का एक्टीविस्ट चेहरा भी सामने आता है।
राष्ट्रीयता और आपसी भाईचारे का सन्देश तो क़दम-क़दम पर मिलता ही है। यही नज़ीर का वास्तविक चेहरा है, यही उनकी चिन्ता भी है और चिन्तन भी।
Ajnabi Shahar
- Author Name:
Zubairul-Hasan Ghafil
- Book Type:

- Description: Ghazals
Hind Mahasagar Ka Sanskritik Itihas
- Author Name:
Gopal Kamal
- Book Type:

-
Description:
आसियान के देशों तथा भारतवर्ष की मैत्री पुरानी है। कितनी पुरानी? काफ़ी पुरानी है, कम-अज-कम चार हज़ार वर्षों का इतिहास तो बता ही सकते हैं। संस्कृति के स्तर पर। कलाकृतियों एवं व्यापार में भँजाई हुई चीज़ों के स्तर पर। क्या इन देशों के पुराने इतिहास से नए सम्बन्ध गहरा करने में मदद मिलेगी? तो हिन्द महासागर की इस इकाई को केवल भौगोलिक एकरूपता के लिए जानेंगे। अन्तर्सम्बन्धों की जाँच-पड़ताल में अनेकानेक बिन्दु उभरते हैं।
इस पुस्तक में नई किताबों नए शोधों को आत्मसात् किया गया है। नेचर, साइंस एवं साइंटिफ़िक अमेरिकन में परिपक्व शोधों के आधार पर, भाषाओं के अन्तर्द्वन्द्व को ठोस वस्तुओं, लेखों-शिलालेखों एवं प्रशस्तियों को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में रखा गया है। भारतीय इतिहास लेखन में भी स्वतंत्रता आन्दोलन के ‘भारतीयपन’ को पिछली सीट दी जाने लगी है। मार्क्सीय लेखन में वस्तुपरकता एवं चीज़ों के आधार पर सम्बन्धों की परख शुरू हुई है। नए इतिहासकार ‘लोकल’ तथा ‘सब आल्टर्न’ को समझते हैं। इन सबकी ब्योरेवार तो नहीं किन्तु पूरी नई समीक्षा की गई है।
हीगेल, वाल्तेयर ‘इतिहास के दर्शन’ को समझाते हैं तथा इसे धर्म तथा धार्मिक मान्यताओं से अलग भी करते हैं। वे दोनों ‘इतिहास का दर्शन’ एवं ‘दर्शन का इतिहास’ में दिलचस्पी रखते हैं तथा इतिहास को रीजन से संचालित मानते हैं। उसी परम्परा में एक वैज्ञानिक ईमानदार प्रयास।
—भूमिका से
Naye Subhashit
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
सुभाषित संस्कृत काव्य-साहित्य की एक प्रचलित शैली है जिसमें रचित पदों में दृष्टि, सत्य, सौन्दर्य आदि का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। कम शब्दों में बात कहने की कला इस शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। राष्ट्रकवि दिनकर की इस पुस्तक में इसी शैली में रचे गए हिन्दी-पद शामिल हैं।
सुभाषित हमेशा वाक्-कौशल लिये होते हैं। इनमें अन्तर्निहित सन्देश ऐसी चतुराई से पद्य-बद्ध किए जाते हैं कि इन्हें याद भी किया जा सकता है और अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग भी किया जा सकता है। इस पुस्तक के सुभाषित विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं और इनका कैनवस बहुत बड़ा है। ये अनुभव और अध्ययन के साँचे में ढले हुए सुभाषित हैं। इसलिए इनमें जो एक अलग छन्दात्मक रंग देखने को मिलता है, उसके प्रभाव में ग़ज़ब का आकर्षण और माधुर्य है। व्यंग्य-विनोद का पुट तो ख़ास है ही।
दिनकर ने अपने इन सुभाषितों में जिस काव्य-कौशल का परिचय दिया है, वह अपनी सम्प्रेषणीयता में एक मिसाल है। मिसाल इस मायने में भी कि आम पाठकों को ध्यान में रखकर भी ऐसे काव्य की रचना की जानी चाहिए। यही कारण है कि ये सुभाषित पढ़नेवाले को अपनी ही कहन का हिस्सा लगने लगते हैं और हृदयतल को छू वहीं ठहर जाते हैं।
इस पुस्तक में ऐसे कई सुभाषित हैं जो आज के उथल-पुथल-भरे समय में साठ साल पहले लिखे जाने के बाद भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह पुस्तक सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, एक ज़रूरी पुस्तक भी है।
Rangon Ki Manmani
- Author Name:
Wasim Nadir
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Pratinidhi Shairy : Akhtar Sheerani
- Author Name:
Akhtar Sheerani
- Book Type:

-
Description:
1905 में रियासत टोंक में जन्मे दाउद ख़ान शीरानी, जो आगे चलकर ‘अख़्तर’ शीरानी के नाम से मशहूर हुए, एक बहुत ही अमीर और प्रभावशाली पिता के पुत्र थे। देश-विभाजन से पहले ही उनके पिता हाफ़िज़ महमूद ख़ान शीरानी लाहौर आकर बस गए और यहाँ भी उनको वही मर्तबा हासिल हुआ जो टोंक में हुआ करता था। ज़ाहिर है कि नौजवान दाउद ख़ान के लिए पैसे-कौड़ी की कोई समस्या नहीं थी; शायरी भी उनके लिए पैसा कमाने का ज़रिया नहीं, शौक़ थी। फिर क्या कारण है कि यही दाउद ख़ान शीरानी बीच में ही तालीम से बेज़ार होकर आवारागर्दी को अपना मशग़ला बना बैठे? क्या कारण है कि ‘अख़्तर’ बनकर उन्होंने ख़ुद को शराब में डुबो लिया? वह कौन सी प्रेरणा थी जिसने उनके और उनके वालिद या घरवालों के बीच कोई सम्बन्ध लगभग छोड़ा ही नहीं? वह कौन सी कसक थी जो उनको हिन्दुस्तान के कोने-कोने में लिए फिरी? इस और ऐसे ही दूसरे अनेक सवालों के जवाब अभी भी पूरी तरह और सन्तोषजनक ढंग से सामने नहीं आए हैं। लेकिन इतना तय है कि ‘अख़्तर’ शीरानी एक बहुत ही निराशाजनक सीमा तक अपने माहौल से कटे हुए थे, और उनके व्यक्तित्व की ठीक यही विशेषता उनके कृतित्व की निर्धारक शक्ति भी बनी।
रहा सवाल ‘अख़्तर’ साहब की शायरी का, तो इसमें शक़ नहीं कि वे बहुत कम उम्र में ही कुल-हिन्द शोहरत के शायरों में गिने जाने लगे थे और पत्र-पत्रिकाओं में उनका कलाम छपने के लिए होड़-सी लगी रहती थी। लेकिन उनकी उदासीनता का, दुनिया से बेज़ारी का आलम यह था कि अपने जीवनकाल में उन्होंने अपना संग्रह प्रकाशित कराने की तरफ़ ध्यान तक नहीं दिया; उनकी रचनाओं का संकलन उनकी मृत्यु के बाद ही हुआ। नागरी लिपि में ‘अख़्तर’ की अभी तक बहुत छोटे-छोटे दो-एक चयन ही सामने आए हैं जो कि पाठक की प्यास को बुझाने का पारा नहीं रखते। मगर यह शिकायत प्रस्तुत संकलन को लेकर नहीं आएगी, इसका हमें विश्वास है।
Upshirshak
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
कुमार अम्बुज की ये कविताएँ अभूतपूर्व गहराई के साथ इस महाद्वीप के संकटग्रस्त, दुरभिसन्धि-युक्त जीवन और इसमें जी रहे मनुष्य की मुकम्मल अभिव्यक्तियाँ हैं। जो चीज़ें ओट और अँधेरे में रखी जा रही हैं, उन्हें प्रकाशित करते हुए ये उनकी अचूक पहचान करती हैं। उन सत्ता-शक्ति संरचनाओं और प्रविधियों को भी स्पष्टता से उजागर करती हैं जो नागरिकों को नयी दासता, असहिष्णुता और अमानुषिकता में धकेलने की कोशिश कर रही हैं।
इनमें दैनिक जीवन से उपजा, समकालीन यथार्थ में दूर तक पैठनेवाला एक नया, बहुआयामी शब्द-संसार दिखाई देगा। यहाँ सामाजिक-राजनीतिक चेतना और ऐतिहासिक समझ के साथ एक भविष्य-दृष्टि लगातार सक्रिय है। ये अपनी प्रखर काव्यात्मकता क़ायम रखते हुए, दख़ल और प्रतिरोध की जुझारू ज़मीन तैयार करने का साहस दिखाती हैं। प्राकृतिक और राजनीतिक आपदाओं का फ़र्क़ रेखांकित करती हैं। इनमें लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के पक्ष में एक अथक, असमाप्त जिरह है।
इनमें वंचितजन की हताशा, जिजीविषा और उनके कारणों की अनवरत पड़ताल है। यहाँ रागात्मक, पारिवारिक सम्बन्धों, प्रेम, विस्थापन, अकेलेपन और अस्मिता की मार्मिक कविताओं में भी सभ्यता की अन्वेषी समीक्षा निहित है। अपने दृष्टिसम्पन्न शिल्प से ये, कविता की लिजलिजी, रूमानी और रूढ़ पदावलियों की परिधि तोड़ देती हैं। स्मृति, मृत्यु, संत्रास, न्याय, आशा और अस्तित्व के प्रश्नों को ये किसी विस्मयकारी अलौकिकता से नहीं बल्कि अविस्मरणीय लौकिक ढंग से सम्बोधित करती हैं।
व्यापक आशयों की इन रचनाओं से गुज़रते हुए समाज एवं मनुष्यता के प्रति असीम चिन्ता और लगाव का आवेग महसूस किया जा सकता है और यही इन कविताओं का आख्यान और इनका वास्तविक उपशीर्षक भी है। अर्थगर्भी भाषा का यह आत्मानुशासन बहुआयामी नैतिकता, बौद्धिकता और प्रतिबद्धता से उपजता है।
सहधर्मी कलाओं से संवादरत और विषय-वैविध्य से भरी ये कविताएँ हमारे समय में ‘विडम्बना के नए वृत्तांत’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का भी उदाहरण हैं। ये कविता की नई ताक़त, अनन्यता और प्रौढ़ता का सबूत हैं।
Ichchaon Ke Jivashm
- Author Name:
Usman Khan
- Book Type:

- Description: उस्मान ख़ान की कविता उखड़े हुए नागरिक के एलिएनेशन की कविता है। आततायी राज्य, अन्याय, सत्तात्मक दम्भ, लूट, निर्बुद्धिकरण और कुबुद्धिकरण, राजनीतिक पतन, सामाजिक विषमता और विभाजन ने उस्मान को आन्दोलित कर रखा है। वे बेज़ार हैं। यह मामूली मोहभंग नहीं है। लेकिन यह ग़ैरमामूली असन्तोष उन्हें न तो निरुपाय बनाता है और न ही असंयत। उनके यहाँ भाषा एक बड़े उपाय में बदल जाती है। लोकतंत्र, सत्ता और समाज के स्लम को वर्णित करने के लिए उस्मान को ‘स्ट्रीट लैंग्वेज’ उपलब्ध होती जाती है जो हिन्दुस्तानी विपन्नता, दारिद्र्य, असहमति और बेदखली की अस्ल अभिव्यंजना है। इस जन भाषा, जो नई हिन्दुस्तानियत की द्रोह-भाषा सरीखी है, को पाने के बाद उस्मान ख़ान समकालीन हिन्दी के मध्यवर्गीय टकसाली भाषिक रूप-बन्ध को आहिस्ता से परे हटा देते हैं और अपने निहंग अनुभवों और देखन को किसी निचाट ज़बान के हवाले कर देते हैं। इसीलिए उस्मान को पढ़ना काफ़ी कुछ ख़ुसरो की याद दिलाता है। तब यह बात भी खुल जाती है कि कविता के अपने कारोबार में वह ला-सानी हैं। कोई उन जैसा नहीं, वह किसी जैसे नहीं। फिर भी मुक्तिबोध की चिन्ताओं और राजकमल की उखड़ी हुई साँसों वाली कविता का यदि कोई काव्याकार देखना हो तो उस्मान ख़ान की बेचैन चहलक़दमियों में वह दिख जाएगा। और अपनी इस बेचैनी में वह मुक्तिबोध की तरह एक बडे भूभाग में नहीं भटकते—उनकी दुविधाएँ और द्वन्द्व बेहद संघनित और आन्तरिक होने के साथ ही प्रतिरोधात्मक और वैचारिक होते जाते है। जीवन के नष्ट होने की वजह यदि जनविरोधी तंत्र है तो इसका विकल्प ढूँढ़ना पड़ेगा जो तुरत-फुरत तो हासिल नहीं हो सकता। कह लीजिए कि उस्मान सामूहिक आत्मन् के निर्माण को किसी सतत् धीरज का परिणाम मानने से विरत नहीं होते। विपत्तियों को देखने-समझने का जो हुनर उन्होंने हासिल किया है और फ़कीरी बेबाक़ी, बाँकपन और तंज़ के साथ कहने की जो शैली उन्होंने पा ली है, हिन्दी कविता के समकाल में वह बड़ी रचनात्मक उपलिब्ध है जो उस्मान की क़द-काठी को नायाब और अप्रतिम बनाती है और अपनी पीढ़ी का सबसे निराला राजनीतिक काव्य-व्यक्तित्व। -देवी प्रसाद मिश्र
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.