Dhoop Ghari
Author:
Rajesh JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
कविता जादू है। जो जैसा है उसे तुरत-फुरत पलक झपकते बदल डालने का जादू है कविता। राजेश जोशी ने यह बात अपने पहले कविता-संग्रह में कही थी। इसी कविता के जादू को समझने के लिए उन्होंने कहा कि एक कबूतर ख़ाली टोकरी से निकलेगा और फिर लम्बी-लम्बी उड़ान भरेगा। यह उड़ान ही कविता के जादू की परिणति है। इसी समझ के कारण राजेश जोशी की कविताओं में यथार्थ और फ़ैंटेसी का अन्तर्गठन सम्भव हुआ। अपने समय के विरुद्ध तात्कालिक प्रतिक्रिया व्यक्त करते वक़्त वे कभी भी अच्छे जीवन का सपना देखना नहीं भूलते।</p>
<p>विश्व-हिंसा और दिन-रात फैलते प्रदूषण के ख़िलाफ़ राजेश जोशी ने बहुत समर्थ कविताएँ लिखी हैं। इसका एक कारण तो यह है कि भोपाल की त्रासदी उन्होंने बहुत निकट से देखी और झेली है। दूसरा यह कि उनके अन्तरंग संवेदनों की दुनिया को इससे ज़बर्दस्त आघात पहुँचा है। उन्होंने मनुष्य की महानतम उपलब्धियों की क्षणभंगुरता और आत्मघाती दर्प की भयावह सच्चाई को पहचान लिया।</p>
<p>अपने परिवेश के प्रति अगाध प्रेम और सम्बद्धता शायद ही इधर प्रकाशित दूसरे कवियों की कविताओं में मिले। ख़ास बात यह है कि राजेश जोशी अपने अनुभव को कविता में सिरजते वक़्त शोकगीत की लयात्मकता नहीं छोड़ते। लय उनकी कविताओं में अत्यन्त सहज भाव से आती है, जैसे कोई कुशल सरोदवादक धीमी गति में आलाप द्वारा भोपाल राग का विस्तार कर रहा हो। इस दृष्टि से राजेश जोशी के शिल्प को एक सांगीतिक संरचना कहा जा सकता है। वे स्थानीयता के रंग में डूबकर भी कविता के सार्वजनिक प्रयोजनों को रेखांकित करते हैं।</p>
<p>राजेश जोशी की कविताओं में कहीं भी पराजित होकर दूर खड़े रहने का भाव नहीं है। वे अपने परिवेश और लोगों से गहरे जुड़े हैं और उन्हीं से अपनी कविताओं के लिए ऊर्जा और आस्वाद ग्रहण करते हैं।</p>
<p>वे फैंटेसी का इस्तेमाल भयावह पटकथा के रूप में नहीं करते। वे तो इसे अपने मन की सहज, सरल भावाकुलता में गूँथकर यथार्थ के बरअक्स तीखे विपर्यय के रूप में रखते हैं, ताकि यथार्थ का चेहरा अधिक नुकीला और वास्तविक दिखाई दे।</p>
<p>—ऋतुराज की एक टिप्पणी से कुछ पंक्तियाँ।
ISBN: 9788126704064
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘धूमिल की श्रेष्ठ कविताएँ’ अत्यन्त प्रखर और हिन्दी काव्य-जगत में नई हलचल पैदा करनेवाले सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की कविताओं का प्रथम सम्पादन है। एक लम्बी भूमिका के साथ सम्पादकों ने उनकी श्रेष्ठ कविताओं का चयन किया है, साथ ही भाषा के माध्यम से गाँव को शहर की होड़ में लानेवाले कवि की कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की है। लक्ष्य, धूमिल की अनगढ़ भाषा और नए मुहावरे को पाठकों तक सहजता से पहुँचाना है। सम्पादकों की दृष्टि में धूमिल का सर्जनात्मक व्यक्तित्व उनकी कविता में सक्रियता से मुखर है। ‘धूमिल को उनके कथ्य और भाषा के स्वीकृत स्वरूप के लिए जानना चाहिए, न कि प्रयोगात्मक शैलीकार के रूप में।’
Maujood
- Author Name:
Rahat Indori
- Book Type:

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Description:
राहत साहब मेरे बड़े पुराने दोस्त हैं, लगभग चालीस बरस से मेरी और उनकी दोस्ती क़ायम है। वो एक बड़े शायर और एक सच्चे इनसान हैं। सच्चा इनसान उसे कहता हूँ, जो अच्छाइयों को ही नहीं बुराइयों को भी प्यार कर सके। मेरा व्यक्तित्व भी अच्छाइयों और बुराइयों का नमूना है और राहत का भी। इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि फ़रिश्तों के टूटे हुए ख़्वाब का एक नाम राहत है। राहत ने जीवन और जगत के विभिन्न पहलुओं पर जो ग़ज़लें कही हैं, वो हिन्दी-उर्दू की शायरी के लिए एक नया दरवाज़ा खोलती हैं। वर्तमान परिवेश पर जो टिप्पणी उन्होंने अपनी ग़ज़लों में की है वो आज की राजनीति, आज की साम्प्रदायिकता, धार्मिक पाखंड और पर्यावरण पर बड़े ही मार्मिक भाव से की है। छोटी-बड़ी बहर की ग़ज़ल में उनका प्रतीक और बिम्ब विद्यमान है, जो नितान्त मौलिक और अद्वितीय है। उनके कितने ही शे’र ऐसे हैं जो ज़ुबान पर बरबस बैठे जाते हैं। नए रदीफ़, नई बहर, नए मज़मून, नया शिल्प उनकी ग़ज़लों में जादू की तरह बिखरा है और पढ़ने व सुननेवाले सभी के दिलों पर छा जाता है। राहत की शायरी तसव्वुफ़ की उच्चतम ऊँचाइयों तक पहुँचती है। उनका ये शे’र मेरे ज़ेहन में अक्सर कौंधता रहता है—
किसने दस्तक दी है दिल पर, कौन है?
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है...?
भाई राहत की सोच एक सच्चे इनसान की सोच है। वो यद्यपि अपनी उम्र से अधेड़ दिखाई पड़ते हैं लेकिन आज भी उनके दिल में एक मासूम-सा बच्चा है जो बिना किसी भय के सच बोलना जानता है। मुझे विश्वास है कि पाठक उनके इस ग़ज़ल-संग्रह ‘मौजूद’ को भी बड़े प्यार और सम्मान से ग्रहण करेंगे।
—गोपालदास नीरज
Navmallika
- Author Name:
Kunal +3
- Book Type:

- Description: आधुनिक मैथिलीक समग्र पत्रकारिताक इतिहास मे दिल्ली सँ प्रकाशित 'अंतिका'क भूमिका बहुत तरहें अन्यतम रहल छै। कोनो पूर्व वा समकालीन मैथिली पत्रकारिताक उपरौंझ मे वा प्रतिस्पर्धा मे नहि, अपितु पत्रिकाक अपन प्रयोगशील संरचना, दृष्टिकोण ओ बहुकोणीय साहित्य-प्रयोगक समानांतर अभ्यास रूप मे। हमरा बुझने मैथिलीक समकालीन आधुनिक बोधक रचनाशीलता केँ देशक समस्त भाषा-साहित्यक मुख्य प्रवाह मे आनि वैश्विक गतिविधि पर्यंत जोड़बा मे 'अंतिका'क भूमिका सदैव अहम आ उल्लेखनीय रहतैक। अपन एहि विशेष भूमिकाक अद्यतन शृंखला मे 'अंतिका'क आरंभिक 25 अंक सभ मे सँ आजुक समय मे हस्तक्षेप करैत महत्त्वपूर्ण चौंतीस कविक बीछल कविताक संकलन 'नवमल्लिका'क प्रकाशनक प्रयोग सेहो हमरा अभिनव आ प्रीतिकर लागलए तथा प्रासंगिक सेहो। हमरा जनैत एहि प्रक्रिया मे रचना ओ रचनाकारक सामाजिक प्रयोजनीयता एक टा नव संदर्भ मे भविष्योन्मुख होइत छै। निश्चये एहन उपक्रम कोनो सजग सचेष्ट सम्पादकीय बोध आ रचनात्मक ऊहिए सँ संभव होइत छै। -गंगेश गुंजन # मैथिली पत्रकारिताक परंपरा मे 'अंतिका' नवाचारक लेल जानल जाइत अछि जकर प्रमाण थिक ई कविता संचयन। 'नवमल्लिका' मे संकलित चारि पीढ़ीक कवि आ हुनक कविताक कैनवास बहुआयामी अछि आ प्रयोगधर्मी सेहो। मैथिलीक कोनो एक पत्रिकाक अंक सँ एहन उत्कृष्ट संकलन निकालब हमरा जनतबे असंभव। विषयक विविधता, काव्यगत-प्रयोगधर्मिता आ समग्र-प्रभावान्विति मे ई संकलन छात्र-प्राध्यापक आ कविताक विज्ञ पाठक लेल अनमोल उपहार थिक। — प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा
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