Women Studies
Nari Chetna Ke Ayam
- Author Name:
Alka Prakash
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Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में अपने अस्तित्व स्थापन के लिए सदियों से संघर्षरत नारी और उसकी चेतना के विविध रूपों का चित्रण है। समाज की एक इकाई के रूप में अपनी पहचान की निर्मिति के लिए नारी ने जिस अदम्य जिजीविषा एवं प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दिया, उसका यहाँ खुलकर विश्लेषण किया गया है। भारतीय समाज में परम्परागत नारी की छवि, उसका ऐतिहासिक स्वरूप तथा नारी चेतना को प्रतिबिम्बित करनेवाले हिन्दी साहित्य की सम्यक् मीमांसा की गई है। नारी ने धर्म, आस्था, परम्परा, मूल्य एवं व्यवस्था से यदि असन्तोष प्रकट किया है, तो इसके पीछे के निहित कारणों को प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से समझा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक में नारी चेतना के संश्लिष्ट आयामों का विवेचन हुआ है, जो पूरी पुस्तक में बेबाक़ी से अभिव्यक्त हुआ है। —प्रो. शैल पाण्डेय यह पुस्तक उन सभी सुधी पाठकों के लिए एक नई सोच विकसित करने में सहायक हो सकती है, जो जीवन की बारीकियों को अपने जीवन की अनुभूतियों से समझना चाहते हैं। मेरा मानना है कि अनुभूति एवं तदनुभूति के बीच एक झीनी दीवार है, जिसे समझने के लिए लेखक या लेखिका को जीवन की बारीकियों की एवं मनोवैज्ञानिक समझ होना ज़रूरी है। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास है। —अजय प्रकाश
Nari Chetna Ke Ayam
Alka Prakash
Ateet Hoti Sadi Aur Stree Ka Bhavishya
- Author Name:
Archana Verma
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Book Type:

- Description:
लोकप्रिय कथा-मासिक ‘हंस’ ने विगत सदी के अन्तिम दशक में ‘औरत उत्तरकथा’ और ‘अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य’ नाम से विशेषांकों का आयोजन किया था। इस किताब की आधार सामग्री ‘अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य’ विशेषांक से ली गई है। उपरोक्त विशेषांकों की अपार लोकप्रियता और अनुपलब्धता के मद्देनज़र कुल सामग्री को पुस्तकाकार प्रकाशित करने की योजना को अमली जामा पहनाने के क्रम में यह किताब आपके हाथों में है।
आज जब हम नई सदी में क़दम रख चुके हैं, हमें हर क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों और अधूरे कामों की फ़ेहरिस्त हर चन्द अपने सामने रखनी चाहिए। बीती सदी की एक सतत-सुदीर्घ
जद् दोजहद के दौरान स्त्रियों ने अपने हार्दिक मनोभावों को अभिव्यक्त करने की जो बेचैन कोशिशें की हैं, उनसे ग़ुलामी को स्थायित्व देनेवाली नाना प्रकार की प्रवृत्तियाँ और शक्तियाँ बेपर्दा होती जाती हैं। पहली बार स्त्रियाँ उन समस्याओं पर उँगली रखने ख़ुद सामने आई हैं जो सेक्स के आधार पर अलगाए जाने से जन्म लेती हैं। पुस्तक के शुरुआती खंड में शामिल आत्मकथ्यों पर नज़र डालें तो पाएँगे कि वहाँ स्त्रियाँ अपनी आकांक्षाओं-स्वप्नों और संघर्षों की अक्कासी के लिए भाषा को एक नया हथियार बनाए मौजूद हैं—पर्दे और गुमनामियत से बाहर—पुरुषों की दया-सहानुभूति से परे।‘पितृ-सत्ता के षड्यंत्र’ और ‘स्त्री-छवि’ खंडों में दोनों दृष्टिकोणों को साथ-साथ रखकर जटिलता को उसके पूरेपन में पकड़ने की कोशिशें की गई हैं। यह सारा उद्यम इस एक संकल्प के इर्द-गिर्द है कि नई सदी में भारतीय समाज नए मूल्यों, नए सम्बन्धों, नए व्यवहार, नई मानसिकता की ओर अग्रसर होगा। इस 21वीं सदी में स्त्रियों की मुक्ति के सवालों के जवाब ही देश में आधुनिकता और विकास के चरित्र को तय करेंगे।
Ateet Hoti Sadi Aur Stree Ka Bhavishya
Archana Verma
Priywar
- Author Name:
Nimai Bhattacharya
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Book Type:

- Description: स्त्री-जीवन की विडम्बनाएँ हमेशा साहित्यिक चिन्ता को अपनी तरफ़ खींचती रही है। यह उपन्यास एक सफल भारतीय स्त्री के जीवन को उकेरते हुए बताता है कि कैसे भीतर से सुखी होने की उसकी चाहत क़दम-क़दम पर उन्हीं लोगों द्वारा छली जाती रही, जिनकी तरफ़ उसने उम्मीद की निगाह से देखा। उपन्यास की नायिका कविता चौधरी यूनाइटेड नेशंस में कार्यरत हैं, देश-विदेश के दौरों में उनका जीवन बीतता है। उनके पास सब कुछ है लेकिन भीतर एक ख़ालीपन है जो लगातार किसी तलाश में रहता है। ऐसी ही एक यात्रा में उसे एक पत्रकार मिलता है जिसके साथ उनका रिश्ता बड़ी बहन का बन जाता है। और फिर शुरू होता है पत्रों का एक सिलसिला जिसमें वे अपने अन्तस् को उघाड़कर अपने उस संवेदनशील छोटे भाई के सामने रख देती है। यह उपन्यास उन्हीं पत्रों को बुनकर तैयार किया गया है। इमसें भारतीय सामाजिक जीवन की नैतिक हिप्पोक्रेसी ख़ास तौर पर देखने लायक़ है जो नायिका की आन्तरिक पीड़ा के सामने और ज़्यादा ओछी लगती है।
Priywar
Nimai Bhattacharya
kirdar Zinda Hai
- Author Name:
Rekha Kastwar
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Book Type:

- Description: ज़िन्दगी में आस-पास उगे कैक्टस जैसे प्रश्न...। रचनाओं के किरदारों से उन प्रश्नों पर सोते-जागते होनेवाला संवाद...। मेरे भीतर की स्त्री ने सम्भावना की चिट्ठी रची। मैंने महसूस किया कि यह सिर्फ़ मेरे अन्दर की स्त्री नहीं थी। क्या यह तमाम दुनिया के अन्दर की सम्भावना थी? पर लोग तो कहते हैं, नस्ल, जाति, देश, काल के धरातल पर औरत के प्रश्न इतने अलग-अलग हैं कि कभी-कभी मुठभेड़ की मुद्रा में दिखाई देते हैं। जैसे कोई माँ बनकर ख़ुश होता है तो कोई मातृत्व से मुक्ति में राह ढूँढ़ रहा है, कोई परिवार के बाहर खड़ा अन्दर आने का दरवाज़ा खटखटा रहा है तो कोई कुंडी खोल बाहर जाने को छटपटा रहा है। ख़ैर! सम्भावना ने चिट्ठी रची, चिट्ठी की आत्मीयता और संवेदना ने लुब्रीकेशन का काम किया, पत्र लेखों ने अपना आकार लेना शुरू कर दिया। सही पते की तलाश तब भी पूरी कहाँ हुई। मेरा ख़ुद से सवाल था कि यह मैं किसके लिए लिख रही हूँ? सही पते कौन से हैं? आम औरत के जीवन के सवाल और किताबों के उनके पाठकों तक पहुँचाने में, मैं क्या कोई पुल का काम कर सकती हूँ? मेरे लिए मेरे किरदार महत्त्वपूर्ण थे, जो आम ज़िन्दगी के प्रश्नों के वाहक बने। लोगों ने मेरी चिट्ठी में पात्र खोजे, प्रश्नों से साक्षात्कार किया, फिर कहा कि किताब तक कहाँ और कैसे जाएँ, आप कहानी सुना दें। मेरी किताबें गले लगकर रोईं, मुझे लताड़ा भी...लोगों के पास हम तक आने का वक़्त नहीं बचा, ‘जिस्ट’ चाहिए...। हमारा भविष्य तो लाइब्रेरियों में दब के दम घुटकर मरने या फिर ‘राइट ऑफ़’ होकर जल-मरने में है। तुम हमारी कहानी सुना दो उन्हें, वे चलकर नहीं आएँगे हम तक...। कितनी रातें हम साथ-साथ सुबके हैं। हाँ, तो सवाल था कि सही पते कौन से हैं, मेरे लेखक मित्रों ने चिकोटी काटी...किसी ‘नामवर’ तक पहुँची तुम्हारी चिट्ठी? अनाम मोहिनी देवियों की कहानी के इस्तरी-बिस्तरी विमर्श से बुद्धिजीवियों को क्या लेना-देना! आप समाज से सीधे बात करना चाहती हैं, आँकड़ों-वाँकड़ों का खेल समाजशास्त्री खेलते हैं। मैंने चुपचाप रहना ठीक समझा...समाजशास्त्रियों के अपने तर्क थे—वैज्ञानिक दृष्टि से बात कीजिए। ये साहित्यिक भाषा, संवेदना, आत्मीयता...। अरे, तटस्थ होकर सोचिए...! चिट्ठियों को सही पते की तलाश है...यूँ जानती हूँ, ऊपर लिखे सारे पते सही हैं।
kirdar Zinda Hai
Rekha Kastwar
Ek Stri Ka Vidageet
- Author Name:
Mrinal Pande
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Book Type:

- Description: हमारे समय में, जब अख़बारी ख़बर को ‘स्टोरी’, और रोमांच और सनसनी-भरी वारदातों को 'सत्यकथा' या ‘नाटक‘ कहकर परिभाषित किया जाने लगा है, तो एक ईमानदार कहानीकार के लिए ज़रूरी हो जाता है, कि वह नए सिरे से वह लिखे, जो सत्यकथा नहीं, स्टोरी नहीं, राष्ट्र के नाम सन्देश या रिपोर्ताज भी नहीं, सिर्फ़ एक विशुद्धि गठी हुई कहानी हो, और कहानी के सिवा कुछ न हो। इस संकलन की कहानियाँ हमारे समय, और ख़ुद कलाकार की, रचनात्मक शक्ति को आख़िरी बूँद तक निथारकर, उससे वह अन्तिम आकार छान पाने की कोशिश करती हैं, जो प्रचार-माध्यमों की पकड़ के परे, कहानी-कला का विशुद्ध स्वरूप है। इनमें एकल क़िस्सागोई भी है, और सामूहिक हुंकारा भी। सुनी-सुनाई भी है, और देखि-दिखाई भी, जन्म भी है, और मृत्यु भी, चलायमान समय भी है, और सर्वव्यापी काल भी। और अगर कोई सुधीजन कुनमुना-हिनहिनाकर पूछे, कि इनमें आदि-मध्य-अन्त (और समाज के लिए सन्देश या सूक्तिवचन समान कुछ बातें) क्यों नहीं हैं? तो यह कहानियाँ बड़ी विनम्रता से पूछना चाहेंगी, जीवन में ही वह सब है क्या?
Ek Stri Ka Vidageet
Mrinal Pande
Stree : Lamba Safar
- Author Name:
Mrinal Pande
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Book Type:

- Description: मैं इस बारे में ज़्यादा जिरह नहीं करना चाहती कि स्त्री-मुक्ति का विचार हमें किस दिशा में ले जाएगा, लेकिन मुझे हमेशा लगता रहा है, कि अपनी जिस संस्कृति के सन्दर्भ में मैं स्त्री-मुक्ति की चर्चा करना और उसके स्थायी आधारों को चीन्हना चाहती हूँ, उसमें पहला चिन्तन भाषा पर किया गया था। जब दो शब्दों का संस्कृत में समास होता है, तो अक्सर अर्थ में अन्तर आ जाता है। इसलिए स्त्री, जो हमारे मध्यकालीन समाज में प्रायः मुक्ति के उलट बन्धन, और बुद्धि के उलट कुटिल त्रिया-चरित्र का पर्याय मानी गई, मुक्ति से जुड़कर, उन कई पुराने सन्दर्भों से भी मुक्त होगी, यह दिखने लगता है। अब बन्धन बनकर महाठगिनी माया की तरह दुनिया को नचानेवाली स्त्री जब मुक्ति की बात करे, तो जिन जड़मतियों ने अभी तक उसे पिछले साठ वर्षों के लोकतांत्रिक राज-समाज की अनिवार्य अर्द्धांगिनी नहीं माना है, उनको ख़लिश महसूस होगी। उनके लिए स्त्री की पितृसत्ता राज-समाज परम्परा पर निर्भरता कोई समस्या नहीं, इसलिए इस परम्परा पर उठाए उसके सवाल भी सवाल नहीं, एक उद्धत अहंकार का ही प्रमाण हैं। इस पुस्तक के लेखों का मर्म और उनकी दिशा समझने के लिए पहले यह मानना होगा कि एक जीवित परम्परा को समझने के लिए सिर्फ़ मूल स्थापनाओं की नजीर नाकाफ़ी होती है, जब तक हमारी आँखों के आगे जो घट रहा है, उस पूरे कार्य-व्यापार पर हम ख़ुद तटस्थ निर्ममता से चिन्तन नहीं करते, तब तक वैचारिक शृंखला आगे नहीं बढ़ सकती।
Stree : Lamba Safar
Mrinal Pande
Kaisa Sach
- Author Name:
Asha Prabhat
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Book Type:

- Description: सुपरिचित लेखिका आशा प्रभात का यह कहानी-संग्रह ‘कैसा सच’ अपने नामानुसार ही हक़ीक़त का भिन्न-भिन्न रूप समेटे हुए है अपने अन्दर। ये कहानियाँ सामाजिक विसंगतियों को परत-दर-परत खोलती उसके यथार्थ से गहराई से साक्षात्कार कराती हैं। लेखिका ने ‘स्त्री’ के व्यक्ति बनने की जद्दोजहद को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर नए दृष्टिकोण से अवगत कराया है। उनकी रचनाओं की पात्र समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने का ऐलान नहीं करतीं, बल्कि ख़ामोशी से परम्पराओं की दीवारें लाँघ आगे निकल जाती हैं और आत्मविश्वास से लबरेज यह पुरुषों से टकराव किए बगैर अपनी पहचान कायम करती हैं। ये कहानियाँ सिर्फ़ सामाजिक विसंगतियों से ही नहीं, बल्कि व्यवस्था के घातक तंत्रों से भी रू-ब-रू कराती हैं कि कैसे इनसान जाने-अनजाने व्यवस्था का अंग बन उसकी बुराइयों में शरीक होता चला जाता है और जब तक उसे अपने फँसने का बोध होता है, बहुत देर हो चुकी होती है, और यह देरी ही जन्म देती है एक संवेदनहीन समाज को, जहाँ बड़े-से-बड़े तूफ़ान की आहट सुन इनसान सिर्फ़ पल-भर के लिए चौंकता है, नज़रें उठाकर देखता है और फिर आँखें बन्द कर सो जाता है। आशा प्रभात की रचनाओं का फलक विस्तृत है। भाषा, शिल्प, कथ्य तथा बुनावट के स्तर पर ये कहानियाँ इतनी चुस्त हैं कि कब ये पाठकों को अपना हमख़याल और हमसफ़र बना लेती हैं, उन्हें आभास तक नहीं होता और जब पड़ाव आता है तो पाठक काफ़ी समय तक उनके प्रभाव से ख़ुद को मुक्त नहीं करा पाते। लेखिका ने स्त्री-विमर्श को नया आयाम देने की कामयाब कोशिश की है।
Kaisa Sach
Asha Prabhat
Dharm Aur Gender
- Author Name:
Ilina Sen
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Book Type:

- Description: जेंडरगत मानसिकता से ग्रस्त नागरिकों के निर्माण और पुनर्निर्माण में धर्म की भूमिका से सम्बन्धित अध्ययन की ज़रूरत सिर्फ़ यह मान लेने के चलते ही नहीं है कि धर्म रोज़मर्रा के हमारे जीवन के संरचनात्मक ढाँचे में रची-बसी एक प्रभावशाली संस्था है, बल्कि अब यह ज़रूरत इसलिए और ज़्यादा है क्योंकि वर्तमान राजनीतिक सन्दर्भ में हमारी अस्मिताओं को लामबन्द करने या मज़बूत बनाने में भी यह प्रभावी भूमिका निभा रहा है। यह संचयन दो भागों में विभाजित है। पहले भाग के अन्तर्गत दस आलेखों का संकलन है जो भारत, पाकिस्तान और चीन से सम्बन्धित हैं। इन आलेखों को तीन विषयवस्तुओं के तहत बाँटा गया है। पहली विषयवस्तु में शामिल तीन आलेख जाति और धर्म के बीच अन्तर्संवाद और उसके जेंडरगत परिणामों के बारे में सैद्धान्तिक चर्चा करते हैं। दूसरी विषयवस्तु में वे आलेख समाहित हैं जो भिन्न-भिन्न तरीक़ों से जेंडर का निर्माण करनेवाले सांस्थानिक मानकों और नियमों की श्रेष्ठता के आत्मसातीकरण की चर्चा करते हैं। तीसरी श्रेणी में उन लेखों को शामिल किया गया है जो सीधे तौर पर महिलाओं के आन्दोलन से सम्बन्धित हैं या जहाँ धर्म के साथ नारीवादी सम्बद्धता है। इस अन्तर्सम्बन्ध की अभिव्यक्ति अस्मिता-विमर्श, कट्टरपन्थी सामूहिकता या धार्मिक-राजनीतिक आन्दोलनों के रूप में होती है। संचयन के दूसरे भाग में धार्मिक दृष्टि से महिलाओं के आचरण-सम्बन्धी मानकों को निर्देशित करनेवाली हिन्दी और उर्दू की एक-एक प्रचलित पुस्तक (‘बहिश्ती जेवर' और ‘नारी शिक्षा') के चुनिन्दा हिस्सों को शामिल किया गया है। ये उपदेशात्मक पुस्तकें हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं के आचरण और व्यवहार से जुड़ी जेंडरगत परम्पराओं को मज़बूत करती हैं। आशा है, पाठकों के सहयोग से यह शुरुआत एक सफल अंजाम तक पहुँचेगी।
Dharm Aur Gender
Ilina Sen
Abalaaon Ka Insaf
- Author Name:
Sfurana Devi
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Book Type:

- Description: नवजागरण अपने राष्ट्रीय जागरण व सुधारवादी आन्दोलन के दौरान अनेक सार्थक प्रयासों और अपनी सफलताओं के लिए जाना जाता है। यह वही दौर था जब साम्राज्य विरोधी चेतना एक विराट राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप ले चुकी थी, और राष्ट्रवाद अपने पूरे उफान पर था। मगर बावजूद इसके यह दौर अनेक विडम्बनाओं और विरोधाभासों के साथ-साथ कई विवादों का जन्मदाता भी रहा है। सबसे बड़ी विडम्बना इसकी यह रही कि दलित-प्रश्न और स्त्री-लेखन इसके परिदृश्य से पूरी तरह ग़ायब रहे। विशेषकर स्त्री-मुक्ति की छटपटाहट और चिन्ता इसके चिन्तन के केन्द्र में जैसे रहे ही नहीं। स्त्री-शिक्षा के अभाव और पितृसत्तात्मक व्यवस्था की गहरी पैठ के चलते, यह छटपटाहट हिन्दी साहित्य के इस दौर के इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से वंचित रह गई। बाद में इस काल के साहित्यिक परिदृश्य और विशेषताओं को हिन्दी के अनेक महानायकों ने रेखांकित और विश्लेषित किया, लेकिन उनकी नज़रों से भी यह छटपटाहट अलक्षित और ओझल ही रही। इन महानायकों के सामने पुरुषों द्वारा रचित वही लेखन रहा, जिसके कारण हिन्दी नवजागरण को अतिशयोक्ति में कभी-कभी ‘हिन्दू नवजागरण’ भी कहा जाता है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हिन्दी नवजागरण के शुरुआत से लेकर आधुनिक काल (द्विवेदी युग) का पूरा कालखंड स्त्री-लेखन (स्त्रियों द्वारा किया गया लेखन) रहित रहा है? आख़िर ऐसे कौन से कारण थे जिनके चलते स्त्री-लेखन के रूप में, जो भी लेखन प्रकाश में आया, वह पुरुषों द्वारा ही किया गया लेखन था? ये ऐसे प्रश्न हैं जो हिन्दी साहित्य में बड़ी बहस की माँग करते हैं। बड़ी इसलिए कि यह मात्र एक धारणा या भ्रामक प्रचार है कि हिन्दी नवजागरण और उसके बाद के कुछ दशकों के दौरान स्त्री-लेखन नहीं हुआ। ‘अबलाओं का इन्साफ़’ (1927) को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। यह आत्मकथा गम्भीर स्त्री-प्रश्नों के साथ-साथ उस पुरुषवादी मानसिकता और सोच को पूरी निर्ममता के साथ बेपर्दा और उनके ऊपर जमी गर्द को पोंछती है, जिसे या तो जानबूझकर पोंछा नहीं गया या किसी कारणवश छोड़ दिया गया।
Abalaaon Ka Insaf
Sfurana Devi
Striyon Ki Paradhinta
- Author Name:
John Stuart Mill
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Book Type:

- Description: स्त्रियों की पराधीनता’ पुस्तक में मिल पुरुष-वर्चस्ववाद की स्वीकार्यता के आधार के तौर पर काम करनेवाली सभी प्रस्तरीकृत मान्यताओं-संस्कारों-रूढ़ियों को, और स्थापित कानूनों को तर्कों के ज़रिए प्रश्नचिह्नों के कठघरे में खड़ा करते हैं। निजी सम्पत्ति और असमानतापूर्ण वर्गीय संरचना के इतिहास के साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ पाने के बावजूद, मिल ने परिवार और विवाह की संस्थाओं के स्त्री-उत्पीड़क, अनैतिक चरित्र के ऊपर से रागात्मकता के आवरण को नोच फेंका है और उन नैतिक मान्यताओं की पवित्रता का रंग-रोगन भी खुरच डाला है जो सिर्फ़ स्त्रियों से ही समस्त एकनिष्ठता, सेवा और समर्पण की माँग करती हैं और पुरुषों को उड़ने के लिए लीला-विलास का अनन्त आकाश मुहैया कराती हैं। पुरुष-वर्चस्ववाद की सामाजिक-वैधिक रूप से मान्यता प्राप्त सत्ता को मिल ने मनुष्य की स्थिति में सुधार की राह की सबसे बड़ी बाधा बताते हुए स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में पूर्ण समानता की तरफ़दारी की है। स्त्री-पुरुष समानता के विरोध में जो उपादान काम करते हैं, उनमें मिल प्रचलित भावनाओं को प्रमुख स्थान देते हुए उनके विरुद्ध तर्क करते हैं। वे बताते हैं कि (उन्नीसवीं शताब्दी में) समाज में आम तौर पर लोग स्वतंत्रता और न्याय की तर्कबुद्धिसंगत अवधारणाओें को आत्मसात् कर चुके हैं लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के सन्दर्भ में उनकी यह धारणा है कि शासन करने, निर्णय लेने और आदेश देने की स्वाभाविक क्षमता पुरुष में ही है। स्त्री-अधीनस्थता की समूची सामाजिक व्यवस्था एकांगी अनुभव व सिद्धान्त पर आधारित है। मिल के अनुसार, प्राचीन काल में बहुत-से स्त्री-पुरुष दास थे। फिर दास-प्रथा के औचित्य पर प्रश्न उठने लगे और धीरे-धीरे यह प्रथा समाप्त हो गई लेकिन स्त्रियों की दासता धीरे-धीरे एक क़िस्म की निर्भरता में तब्दील हो गई। मिल स्त्री की निर्भरता को पुरातन दासता की ही निरन्तरता मानते हैं जिस पर तमाम सुधारों के रंग-रोगन के बाद भी पुरानी निर्दयता के चिह्न अभी मौजूद हैं और आज भी स्त्री-पुरुष असमानता के मूल में ‘ताक़त’ का वही आदिम नियम है जिसके तहत ताक़तवर सब कुछ हथिया लेता है। —सम्पादकीय से,
Striyon Ki Paradhinta
John Stuart Mill
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwandwa -2-Hardcover
- Author Name:
Rekha Sethi
-
Book Type:

- Description: एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है। स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwandwa -2-Hardcover
Rekha Sethi
Jwaar
- Author Name:
Madhu Bhaduri
-
Book Type:

- Description: नारी-स्वातंत्र्य के लिए प्रतिभूत इस युग में सुपरिचित लेखिका मधु भादुड़ी का यह उपन्यास कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। नारी विवाहित हो या अविवाहित—आर्थिक स्वावलम्बन उसके लिए बहुत ज़रूरी है, लेकिन आर्थिक रूप से स्वावलम्बी स्त्रियाँ भी क्या इस समाज में अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान और स्वातंत्र्य को बनाए रख पा रही हैं? सुखवादी सपनों में खोई रहनेवाली पढ़ी-लिखी निशा अगर एक ‘सम्पन्न घर की बहू’ बनने के अपने और अपने माता-पिता के व्यामोह का शिकार हो जाती है, और अनपढ़ लाजो अगर कठोर श्रम के बावजूद अपने शराबी पति की ‘सेवा का धर्म’ निबाहे जा रही है, तो यह मसला शिक्षा और श्रम से ही हल होनेवाला नहीं है। इसके लिए तो वस्तुत: उसे अपने गले-सड़े संस्कारों से लड़ना होगा। यही कारण है कि लेखिका ने सुषमा जैसे नारी-चरित्र की रचना की है। सुषमा इस उपन्यास की केन्द्रीय पात्र है, जिसके आत्मसंघर्ष में सम्भवत: नारी-स्वातंत्र्य के सही मायने निहित हैं, क्योंकि इसे वह स्त्री के बाह्य व्यक्तित्व और व्यवहार तक ही सीमित नहीं मानती, बल्कि यह चीज़ उसकी अस्मिता और समूची मानसिक संरचना के साथ जुड़ी हुई है।
Jwaar
Madhu Bhaduri
Stree Kavita : Paksh Aur Pariprekshya
- Author Name:
Rekha Sethi
-
Book Type:

- Description: एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है। स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
Stree Kavita : Paksh Aur Pariprekshya
Rekha Sethi
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwand
- Author Name:
Rekha Sethi
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Book Type:

- Description: एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है। स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwand
Rekha Sethi
Khari Nadi
- Author Name:
Richa Nagar
- Rating:
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Book Type:

- Description: खारी नदी को आप मुमताज़ बेगम की कहानी कहिए, या फिर उनकी कहानी से हिम्मत बटोरती कई कहानियाँ कहिए, आपबीती कहिए, ज़िन्दगी के तजुर्बे कहिए, पर यह कहानी हमें अपने आप से और दुनिया की कठोर सच्चाई से रू-ब-रू कराती है और आगे के रास्ते भी दिखाती है। इसलिए ये महज़ कहानी या आपबीती नहीं रह जाती बल्कि खारी नदी कहलाती है। खारा तो समुन्दर भी होता है, लेकिन इस नदी का खारापन आँसुओं से जुड़ा है। उसके बावजूद इसमें उमंगों की लहरें हैं जो इस कहानी को ख़ास बनाती हैं। हमारे आसपास की दुनिया ने कुछ दस्तूर बना दिए हैं, कुछ ठप्पे बना दिए हैं, जो बस इनसानों पर लगा दिए जाते है, कि ये तो ऐसा ही होगा। एक तयशुदा नज़रिया और तयशुदा सज़ा... लेकिन खारी नदी तो इन सब नज़रियों से परे एक औरत का संघर्ष दिखाती है जो किसी भी वंचित समुदाय की औरत का संघर्ष हो सकता है। खारी नदी में बयाँ की गई मुमताज़ बेगम, नन्दा, और चन्द्रभागा के साथ-साथ तमाम औरतों की आपबीतियाँ हमें झकझोर कर रख देती हैं। हर कहानी किसी एक औरत की नहीं, बल्कि तमाम औरतों का बयान है जो उन पर लगाए गए असंख्य बन्धनों और दुखों को उजागर करता है। और ये सारे बन्धन और दुख कहीं-न-कहीं धर्म और जाति के साथ उलझकर अलग-अलग जगहों पर अपना जाल बिछाए हुए हैं, औरत गाँव-देहात की हो या शहर की, अनपढ़ हो चाहे पढ़ी-लिखी। लेकिन खारी नदी की हर कहानी में एक ज़िन्दा मन भी है, और संघर्ष की तैयारी भी। खारी नदी औरतों के दुख, आँसू और शोषण के साथ-साथ उनकी ज़िन्दगी को बेहतरीन बनाने के लिए किया गया संघर्ष है। उम्मीद है यह संघर्ष पाठक को बहुत कुछ सोचने, समझने, आँकने और उसे जीवन में उतारने पर मजबूर करेगा; एक नया नज़रिया देगा।
Khari Nadi
Richa Nagar
Band Galiyon Ke Virudh
- Author Name:
Mrinal Pande
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Book Type:

- Description: गली तो चारों बन्द भई हैं, हरि से कैसे मिलूँ री जाय? ऊँची नीची राह रपटीली पाँव नहीं ठहराय, सोच–सोच पग धरूँ जतन से बार–बार डिग जाय... — मीराबाई ‘‘बीस साल पहले बसमतिया थी, बीस साल बाद भँवरीबाई है। कितना साम्य है बसमतिया और भँवरीबाई में। फिर भी कितना फ़र्क़ है...दोनों ग़रीब, दोनों दलित, दोनों एक ही अपराध (बलात्कार) की शिकार। दोनों ने गाँव के फ़ैसले को मानने से इनकार किया। एक ज़िन्दा जला दी गई, एक ने दोबारा जीवन शुरू किया। कितने स्नेह, शोक, अपमान, सम्मान, दु:ख, सुख के बाद एक औरत इंसान बनकर खड़ी हो पाती है, और बसमतिया से भँवरीबाई तक का स़फ़र तय होता है।’’ मणिमाला : ‘एक सफ़र—बसमतिया से भँवरीबाईं’ तक में यह जो सफ़र बसमतिया से भँवरीबाई तक ने बीस बरसों में तय किया, उससे भी बड़ा और दुरूह सफ़र वह है, जो हमारी महिला–पत्रकारों, लेखिकाओं ने तय किया है; मीराबाई से लेकर मणिमाला तक। यह संकलन इंडियन वीमेंस प्रेस कोर की एक विनम्र कोशिश है, उस सफ़र को अपने–अपने ढंग से आज भी तय कर रही लेखिकाओं की कलम से प्रस्तुत करने की। इस सफ़र में हास्य भी है, करुणा भी; आक्रोश भी है, और क्षमा भी| ‘‘कृष्ण कली तब हर साहित्यिक घर की किराएदारिन थी। उसके देर से घर लौटने का इन्तज़ार हर मकान मालिक करता था और मैं करती थी अख़बार वाले का इन्तज़ार। उन दिनों मेरा कोई घर नहीं था, जहाँ मैं ‘कृष्ण कली’ को रखती, सो उसे मैंने रखा था अपनी पलकों पर।’’ — पद्मा सचदेव ‘शब्दों का हरसिंगार’ में जिस समाज में जनगणना–दर–जनगणना औरतों और बच्चियों की तादाद लगातार घट रही हो; जहाँ निरोधी–क़ानूनों के बावजूद दहेज–उत्पीड़न जारी हो, और गर्भजल–परीक्षण (अम्नीयोसेंटेसिस) तकनीक की मदद से कन्या–भ्रूणों की गर्भपात द्वारा हत्या की जा रही हो, वहाँ एक स्त्री के लिए न सिर्फ़ अपने वजूद को कायम रखना, बल्कि देश के कोने–कोने में घट रहे सकारात्मक और नकारात्मक बदलावों को लेखन और पत्रकारिता की मुख्यधारा में दर्ज कराते चलना; क़ुदरत के महानतम अचम्भों में से एक माना जाना चाहिए। ग्रन्थ में संकलित इन लेखों की कमानी स्वतंत्रता के बाद के भारत के पूरे पचास–साला इतिहास को अपनी तरह से मापती है। इसमें ‘बच्चों की दुनिया’ (मृदुला गर्ग, पारुल शर्मा), ‘आदिवासी तथा दलित औरतों की संघर्ष–गाथा’ (इरा झा, मणिमाला, मनीषा), ‘आतंकवाद तथा शराब के मुद्दों से जूझती महिलाओं का जीवट’ (अमिता जोशी और सुषमा वर्मा), ‘पंचायतों, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक आन्दोलनों में स्त्रियों की भागीदारी’ (अन्नू आनन्द, अलका आर्य, गीताश्री), ‘चुनावों में उनकी उपस्थिति और अनुपस्थिति’ (नीलम गुप्ता), ‘देह व्यापार’ (उषा महाजन), ‘स्त्रियों के जीवन में तनाव तथा हिंसा’ (जयन्ती, उषा पाहवा, मीना कौशिक), ‘लिंगगत ग़ैर–बराबरी के विभिन्न सामाजिक–आर्थिक मंच’ (रजनी नागपाल, रश्मिस्वरूप जौहरी) तथा ‘फ़िल्म, ललित कलाएँ तथा युवाओं की समस्याएँ’ (मंजरी, सन्तोष मेहता, सरोजिनी बर्तवाल)—सभी विषय समेटे हुए हैं। माँ को हमारे यहाँ भले ही आदि–गुरु कहा जाता हो, औपचारिक तौर पर इतिहास–लेखन पर पुरुषों का ही दबदबा रहा है। इसलिए शायद अनजाने में ही हमारे समाज और राज में औरतों की सशक्त भागीदारी की कहानियाँ अक्सर इतिहास की किताबों से बेदख़ल होती रही हैं। नतीजतन ख़ुद औरतों को अपनी जमात की सही तस्वीर, राज–काज और समाज के निर्वहन में उनकी भूमिका समझ पाने में वक़्त लगा है | ‘‘समाज के शिल्पकारों ने औरत के ज़हन में पुरुष की वीरता, ताक़त की ऐसी शौर्यगाथाएँ लिखीं कि उसके दिमाग़ में कभी यह सवाल कौंधा ही नहीं कि सिर्फ़ हमारे पूर्वज पिताजी ने ही नहीं, हमारी पूर्वजा माँओं ने भी इतिहास रचा है...’’ —अलका आर्य : ‘वीरता कोई ख़ुशबू नहीं’ में ...‘‘कथा लेखिकाओं से शायद उत्सुकतावश ही यह अवश्य पूछा जाता है कि उन्होंने लिखना कैसे शुरू किया। अच्छे–ख़ासे बैठे–बिठाए उन्हें क्या पड़ी थी कि वे लेखिका बन बैठीं?’’ — उषा महाजन : ‘पुरुष के समाज में महिला लेखिकाएँ’ में ‘‘हशमत सख़्त हो गए। याद रख प्यारे, लिखना वह धन्धा नहीं कि अगर तुमने पचास लाख कमाए हैं तो हमने पाँच करोड़...तुम इतना कड़ा दाना हो कि चाहो भी तो आत्महत्या न कर पाओगे। तुम डरकर भागनेवालों में से नहीं हो।...’’ — कृष्णा सोबती : ‘हम हशमत’ में।
Band Galiyon Ke Virudh
Mrinal Pande
Aurat : Uttarkatha
- Author Name:
Archana Verma
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Book Type:

- Description: लगभग सात-आठ वर्ष पहले (1994 हठ ने ‘औरत : उत्तरकथा’ नाम से विशेषांक का आयोजन किया था, बीसवीं सदी के अन्तिम दशक तक लगने लगा था कि समाज और साहित्य में औरत की कथा अब वह नहीं रह गई है जो सौ-डेढ़ सौ सालों से कही जाती रही है, क्योंकि उसे ‘हम' कहते रहे हैं—‘उसकी’ ओर से। हमारे सामने कुछ सवाल थे जो समस्याओं के रूप में रेखांकित किए जा रहे थे, और हम उनके हल उन्हीं बँधे हुए साँचों में थोड़ी फेर-बदल के साथ तलाश रहे थे। लोकतांत्रिक खुलावों ने अब तक अनसुनी आवाज़ों को साहित्य में ‘मित्रो मरजानी’ (कृष्णा सोबती), ‘आपका बंटी’ (मन्नू भण्डारी), ‘रुकोगी नहीं राधिका’ (उषा प्रियंवदा) और ‘बेघर’ (ममता कालिया) के रूप में सबका ध्यान दूसरे पक्षों की ओर खींचना शुरू कर दिया था। लगा कि हमारे सवालों के उत्तर तो यहाँ से आ रहे हैं। इधर मैत्रेयी पुष्पा की ‘चाक’ और ‘कस्तूरी कुंडल बसै’ आदि किताबों को भी इस कड़ी में जोड़ा जा सकता है। पिछली सदी का अन्तिम दशक लगभग स्त्री और दलित-विमर्श के उभार का दशक रहा है। ‘हंस’ उस पर बात न करे, यह साहित्य और समय के साथ विश्वासघात होगा और यह ऋणशोध किया गया ‘औरत : उत्तरकथा’ के रूप में... इधर यह विशेषांक शुरू से ही अनुपलब्ध हो गया था। आख़िर कब तक इसकी फ़ोटो प्रतिलिपियाँ दी जाती रहें—इसी दबाव में तय किया गया कि अब इसे पुस्तकाकार आना चाहिए...कुछ रचनाएँ छोड़कर अब यह आपके सामने है। —भूमिका से
Aurat : Uttarkatha
Archana Verma
Stritvavadi Vimarsh : Samaj Aur Sahitya
- Author Name:
Kshama Sharma
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Book Type:

- Description: किसी बुज़ुर्ग के पाँव छुइए और आशीर्वाद पाइए—‘मेरे पूत बने रहें,’ या कि ‘अखंड सौभाग्यवती रहो,’ यानी कि जब मरो तो सुहागिन मरो। यह जीवन का नहीं, मृत्यु का वरदान है। इस प्रकार के वरदानों से हमारा प्राचीन साहित्य भरा पड़ा है। जहाँ एक ओर नायिका–भेद पढ़ाए जाते हैं तो दूसरी ओर स्त्रियों से बचने के तरीक़े। ‘औरत पर कभी भरोसा न करो।’—यह इन महान ग्रन्थों का सूत्र–वाक्य है। स्त्रियों और दलितों से इस समय का समाज इतना आक्रान्त है कि उन्हें पीटने का कोई तरीक़ा नहीं छोड़ता। चूँकि सारे विधान, सारी संहिताएँ, सारे नियम, धर्म, क़ानून पुरुषों ने रचे हैं, इसलिए हर क़ानून, हर रीति–रिवाज और परम्परा का पलड़ा उनके पक्ष में झुका हुआ है। माफ़ कीजिए, साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। एक भारतीय नारी जो त्यागमयी है, सती–सावित्री है, जिसके मुँह में ज़ुबान नहीं है, जो सबसे पहले उठती है, दिन–भर घर की चक्की में पिसती है, सबसे बाद में सोती है, जो कभी शिकायत नहीं करती और इसी के बरक्स एक पश्चिमी नारी जो स्कर्ट पहनती है, सिगरेट पीती है, मर्दों के साथ क्लबों में नाचती है, एक नहीं, बहुत सारे प्रेमी पालती है—इन दो स्टीरियो टाइप में हर कठिन परिस्थिति के बाद भारतीय नारी की विजय होती है और पश्चिमी संस्कृति की प्रतीक नारी या तो किसी की गोली का शिकार होती है अथवा भारतीय नारी अपने पति, जो इस ‘कुलटा’ द्वारा फँसा लिया गया था, के द्वारा झोंटा पकड़कर बाहर निकाल दी जाती है। जितनी दूर तक उसे घसीटा जाता है, उतनी ही दूर और देर तक पश्चिमी संस्कृति पर भारतीय संस्कृति की विजय की तालियाँ आप सुन सकते हैं। ऐसे ही समाज और साहित्य के विभिन्न आयामों से गुज़रती यह पुस्तक स्त्री-परिदृश्य में एक बड़े विमर्श को जन्म देती है, और कई अनदेखी चीज़ों को देखने की दृष्टि भी। आज के दौर में एक बेहद ही महत्त्वपूर्ण कृति है ‘स्त्रीवादी-विमर्श : समाज और साहित्य’।
Stritvavadi Vimarsh : Samaj Aur Sahitya
Kshama Sharma
Nari Prasna
- Author Name:
Sarla Maheshwari
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Book Type:

- Description: नारी प्रश्न के असंख्य आयाम हैं। कुछ प्रश्न ऐसे हैं, जो काल और स्थान की सीमाओं से बँधे हुए हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो काल के दीर्घ प्रवाह के बीच से चिरन्तन प्रश्नों के रूप में सामने आए हैं। काल और स्थान-निरपेक्ष ये प्रश्न हर देश के नारी समाज की मानवीय अस्मिता से जुड़े हुए हैं। एक वृहत्तर मानव समाज में ऐसे प्रश्नों की अपनी नारी-पहचान के बावजूद ये प्रश्न किसी संकीर्णता के द्योतक नहीं हैं, बल्कि वास्तविक अर्थों में मानव समाज को ही और अधिक मानवीय बनाने की निरन्तर जारी प्रक्रिया के अंग हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नारीवाद के अन्दर की अनेक परस्पर विरोधी धाराओं के बावजूद, नारी-मुक्ति और उससे जुड़े हुए मानव-मुक्ति के बहुत से महत्त्वपूर्ण प्रश्न इस संघर्ष के बीच से उभरकर सामने आए हैं। भारत का नारी आन्दोलन भी ऐसे तमाम प्रश्नों की अवहेलना नहीं कर सकता। सरला माहेश्वरी की यह पुस्तक हिन्दी में अपने क़िस्म की पहली पुस्तक है, जिसमें बहुत व्यापक और गहन अध्ययन के ज़रिए नारी आन्दोलन की अन्तरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि और उसके आधार पर निर्मित दृष्टि की रोशनी में नारी जीवन से जुड़े कई ज़रूरी सामाजिक प्रश्नों पर गम्भीरता से रोशनी डाली गई है।
Nari Prasna
Sarla Maheshwari
Jahan Auratein Gadhi Jati Hain
- Author Name:
Mrinal Pande
-
Book Type:

- Description: हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार और पत्रकार मृणाल पाण्डे अपने लेखन में समय तथा समाज के गम्भीर मसलों को लगातार उठाती रही हैं। भारतीय स्त्रियों के संघर्ष और जिजीविषा को भी वे इसी व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखती–परखती रही हैं। यही कारण है कि स्त्री–प्रश्न के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के बावजूद, उनका लेखन स्त्री–विमर्श के संकीर्ण दायरे में सिमटा हुआ नहीं है। वे ‘अन्दर के पानियों का सपना’ देखती हैं, तो ‘नारीवादी आन्दोलन की विडम्बना’ को भी उजागर करती हैं। इस पुस्तक में समय–समय पर लिखी गई उनकी टिप्पणियाँ और आलेख संकलित हैं। लेखिका ने राजनीति में ‘महिला सशक्तिकरण’ और ‘पंचायती राज में महिला भागीदारी’ जैसे बड़े सवालों के साथ–साथ कई छोटे–छोटे मसलों और प्रश्नों को भी उठाया है, जिनसे गुज़रते हुए एक ऐसा ‘हॉरर शो’ पाठकों के सामने उपस्थित होता है, जिसमें पुरुषवादी समाज की नृशंसता में फँसी स्त्री की छटपटाहटों के कई रूप दिखलाई देते हैं। इसमें सिर्फ़ पराजय ही नहीं, प्रतिकार की छटपटाहट भी है। करुणा के भीतर की बेचैनी को रेखांकित करना मृणाल पाण्डे के लेखन की ख़ास विशेषता है। एक पत्रकार के नाते वे हर छोटे–बड़े सवाल को शिद्दत के साथ उठाती हैं, लेकिन, अपने पात्रों को जड़ पदार्थ मानकर छोटा नहीं बनातीं, बल्कि एक लेखिका के नाते संवेदना के स्तर पर उनसे जुड़ जाती हैं—यही चीज़ मृणाल पाण्डे के लेखन को सबसे अलग और विशिष्ट बनाती है।
Jahan Auratein Gadhi Jati Hain
Mrinal Pande
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