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Phanishwarnath Renu

Kalank-Mukti

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: ‘कलंक मुक्ति’ का संसार, नारी-जीवन के क्रूरतम अन्तर्विरोधों का संसार है, जिसे रेणु ने बड़ी सहजता, आत्मीयता और सूक्ष्मता के साथ रचा है। इसमें चित्रित ‘वर्किंग विमेन्स होस्टल’ का चकलाघर में बदल जाना भारतीय शासक वर्ग के पतनशील चरित्र और झूठे लोकतंत्र की विडम्बनाओं का कच्चा चिट्ठा है, जो अपने आप में एक चीखता हुआ सवाल बन गया है कि इस सबके लिए जिम्मेदार कौन? और उपन्यास की प्रत्येक पंक्ति इस प्रश्न का उत्तर देती है। दूसरी ओर है—बेला गुप्त, त्याग, कर्त्तव्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति । संघर्षशील । पराजित। एक संजीवनी... पुण्य... पवित्र... पापहरा धारा—बेला—कब राष्ट्रीय अस्मिता में बदल जाती है, पता नहीं लगता। केवल प्रश्न ही शेष रह जाता है वहाँ—ईश्वर की तरह तरंगायित कि क्या उस समाज का विध्वंस आवश्यक नहीं, जिसमें मनुष्य अपनी अस्मिता को सुरक्षित नहीं रख पाये? जहाँ उसका अस्तित्व स्वयं उसके हाथों से छीन लिया जाये ? और यदि ये प्रश्न जन-मानस को मथने लगते हैं तो निश्चय है कि मुक्ति की सम्भावनाएँ भी विद्यमान हैं।
Kalank-Mukti

Kalank-Mukti

Phanishwarnath Renu

495

₹ 396

Atma Parichaya

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: औराही-हिंगना नामक गाँव में जिस आदमी को ‘धरती की माँग पर विशेष रूप से’ भेजा गया था, बाद में वही फणीश्वरनाथ रेणु के नाम से जाना गया, जिसकी चर्चा उसने स्वयं अपनी कलम से यत्र-तत्र की है। भारत यायावर द्वारा संकलित-सम्पादित यह पुस्तक रेणु की ऐसी ही रचनाओं को एक साथ प्रस्तुत करती हैं जिनमें उन्होंने अपने जीवन और अपने लेखन को लेकर लिखा। पूरी पुस्तक चार खंडों में संयोजित है—आत्म-रचना, आत्म-संस्मरण, आत्म-वक्तव्य और व्यक्तिगत निबन्ध। इन रचनाओं से गुजरते हुए हम लेखक के जीवन और जीवनचर्या, परिवेश और रचनागत विस्तार तथा समाज के प्रति उसके व्यापक एवं गहरे सरोकार से परिचित होते हैं। एक जागरूक लेखक के रूप में कभी वे लेखन और राजनीति के नाजुक रिश्ते पर विचार करते हुए दिखते हैं, कभी अपनी रचनाओं की समकालिक पृष्ठभूमि को लेकर हुई आलोचनाओं को झेलते हैं, कभी ‘आंचलिक लेखक’ बना दिए जाने की साहित्यिक राजनीति का खुलासा करते हैं, तो कभी ‘प्रेमचन्द के बाद' जैसे फतवों से हुए नुकसान से बेचैन दिखाई देते हैं। लेकिन यह सब लिखते हुए भी वे नितान्त व्यक्तिगत नहीं हो जाते, उनकी रचनात्मकता के खास-खास गुण उनका साथ नहीं छोड़ते और उनकी भाषा एवं शिल्प-भंगिमा सब कहीं मौजूद रहती है। यह पुस्तक हमें रेणु को उनके बड़े समय-संदर्भ में समझने का अवसर देती है।
Atma Parichaya

Atma Parichaya

Phanishwarnath Renu

795

₹ 636

Van Tulasi Ki Gandh

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: रंग-बिरंगी ज़िन्दगियों की पृष्ठभूमि में छिपे मनुष्य के अविरत संघर्ष, उसके दु:ख-सुख और उसकी करुणा को रेणु ने जिस गहन तल्लीनता से अपने कथा-साहित्य में चित्रित किया है, वह निश्चय ही हिन्दी साहित्य की अमिट उपलब्धि है। किन्तु इस उपलब्धि तक पहुँचने में रेणु ने जिन व्यक्तियों के जीवन से प्रेरणा ग्रहण की है, उनके बारे में रेणु क्या सोचते थे। यह जिज्ञासा रेणु के पाठकों के मन में वर्षों से रही है और इस बात की गहरी आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि इधर-उधर बिखरे उनके रेखाचित्रों का व्यवस्थित संग्रह प्रकाशित हो। ‘वन तुलसी की गन्ध’ इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आपके हाथों में है।

    इस संग्रह के पहले खंड में यशपाल, अज्ञेय, अश्क, जैनेन्द्र, उग्र, कामताप्रसाद सिंह ‘काम’ और त्रिलोचन पर लिखे रेखाचित्र हैं। ये सभी रेणु से वरिष्ठ हिन्दी लेखक हैं। दूसरे खंड में बालकृष्ण ‘सम’, सुहैल अजीमाबादी, रवीन्द्रनाथ अंकुर, हंग्री जेनेरेशन के कवियों एवं सतीनाथ भादुड़ी पर लिखे रेखाचित्र हैं। ये क्रमश: नेपाली, उर्दू एवं बांग्ला के लेखक हैं। तीसरे खंड में उन रेखाचित्रों को रखा गया है, जो साधारण पात्रों पर लिखे गए हैं। साथ ही इस खंड में रेणु की पहली कहानी के ‘बट बाबा’ भी उपस्थित हैं—जटाजूट लटकाए...‘योगी वृक्ष’—ठीक रेणु की तरह—‘एक महान महीरुह’...ऋषितुल्य, विराट...!

Van Tulasi Ki Gandh

Van Tulasi Ki Gandh

Phanishwarnath Renu

395

₹ 316

Ek Shravni Dophari Ki Dhoop

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: एक  श्रावणी  दोपहरी  की  धूप  प्रख्यात  कथाकार फणीश्वरनाथ 'रेणु’ की असंकलित कहानियों का संग्रह है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ये प्राय: उनकी प्रारम्भिक रचनाएँ हैं, इसलिए इनका दोहरा महत्त्व है। एक ओर ये हमें उनकी रचनात्मक प्रतिभा के शैशव तक ले जाती हैं, तो दूसरी ओर समकालीन कथा-साहित्य में उस नई कथा-प्रवृत्ति का उदयाभास कराती हैं जो बाद में उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण कहानियों और उपन्यासों में परिपक्व हुई और जिसने एक समूचे कथायुग को प्रभावित किया।

    रेणु की कहानियाँ मानव-जीवन के प्रति गहन रागात्मकता का परिणाम हैं। वे उनके यथार्थ को समग्रता में पकडऩे और उसकी तरल भावनात्मक अभिव्यक्ति में विश्वास रखते हैं। हम उनके पात्रों के साथ-साथ उदास और उल्लसित हो उठते हैं। उनमें जो लोक-मानस का विस्तार है, जो रस और संगीत है, वह हमारे मानवीय संवेगों को गहराता है।

    इन कहानियों के माध्यम से वस्तुत: रेणु एक बार फिर हमें उस रचना-भूमि तक ले जाते हैं, जिसमें पहली बार नहाई धरती के सोंधेपन, बसन्त की मादकता और पसीने की अम्लीय गन्ध का अहसास होने लगता है

Ek Shravni Dophari Ki Dhoop

Ek Shravni Dophari Ki Dhoop

Phanishwarnath Renu

595

₹ 476

Thumari

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास अगर लोकजीवन के महाकाव्य हैं, तो उनकी कहानियाँ अविस्मरणीय कथा-गीत। ये मन के अछूते तारों को झंकृत करती हैं। इनमें एक अनोखी रसमयता और एक अनोखा सम्मोहन है।

    ‘ठुमरी’ में रेणु की नौ अतिचर्चित कहानियाँ संगृहीत हैं। इन कहानियों में जैसे कथाकार ने अपने प्राणों का रस घोल डाला है। इन्हें पढ़ते-पढ़ते कोमलतम अनुभूतियाँ अपने-आप सुगबुगा उठती हैं। चाहे वह ‘रसप्रिया’ या ‘लाल पान की बेगम’ हो, या ‘तीसरी क़सम’—इस संग्रह की लगभग हर कहानी मन पर अपनी कभी न मिटनेवाली छाप छोड़ जाने में समर्थ है।

    ‘ठुमरी’ की कहानियाँ जीवन की सहज लय को मोहक सुरों में बाँधने का कलात्मक प्रयास हैं। इनमें पीड़ा और अवसाद की अनुगूँजें हैं, आनन्द और उल्लास के मुखरित कलरव-गान हैं।

    ‘ठुमरी' की कहानियाँ एक समय-विशेष की पहचान हैं। जीवन की एक विशिष्ट लयधारा इनमें पूरी प्राणमयता से प्रवाहित है।

Thumari

Thumari

Phanishwarnath Renu

695

₹ 556

Samay Ki Shila Par

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: प्रख्यात कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु ने रिपोर्ताज़ के बारे में अपनी राय इन शब्दों में व्यक्त की है—‘‘गत महायुद्ध ने चिकित्साशास्त्र के चीर-फाड़ (शल्य-क्रिया) विभाग को पेनसिलिन दिया और साहित्य के कथा-विभाग को रिपोर्ताज़।’’ रेणु का यह कथन हिन्दी-साहित्य में रिपोर्ताज़ के आविर्भाव का काल-निर्धारण ही नहीं, उसकी सामाजिक भूमिका को भी रेखांकित करता है।

    रेणु मानवीय भावनाओं के अप्रतिम चितेरे हैं, लेकिन उनका रचनाकार मन उन सामाजिक, राजनीतिक और प्राकृतिक त्रासदियों की अनदेखी नहीं करता, जो किसी भी भावना-लोक को प्रभावित करती हैं। एक योद्धा रचनाकार के नाते रेणु ने स्वयं ऐसी त्रासदियों का सामना किया था। यही कारण है कि उनके अनेक कथा-रिपोर्ताज़, जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को भी समृद्ध किया, विभिन्न त्रासद स्थितियों का अत्यन्त रचनात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

    इतिहास पर अपने निशान छोड़ जानेवाली अनेक घटनाएँ, रचनाकार की विभिन्न भावस्थितियाँ, जीवन-स्थितियाँ और उसके लगाव-सरोकार इस विधा को निश्चय ही एक विशिष्ट ऊँचाई सौंपते हैं। ‘समय की शिला पर’ में रेणु के अब तक उपलब्ध सभी रिपोर्ताज़ संकलित हैं।

Samay Ki Shila Par

Samay Ki Shila Par

Phanishwarnath Renu

895

₹ 716

Aginkhor

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: हिन्दी भाषा फणीश्वरनाथ रेणु की ऋणी है उस शब्द-सम्पदा के लिए जो उन्होंने स्थानीय बोली-परम्परा से लेकर हिन्दी को दी। नितान्त ज़मीन की ख़ुशबू से रचे शब्दों को खड़ी बोली के फ़्रेम में रखकर उन्होंने ऐसे प्रस्तुत किया कि वे उनके पाठकों की स्मृति में हमेशा-हमेशा के लिए जड़े रह गए। उनके लेखन का अधिकांश इस अर्थ में बार-बार पठनीय है। दूसरे जिस कारण से रेणु को लौट-लौटकर पढ़ना ज़रूरी हो जाता है, वह है उनकी संवेदना और उसे शब्दों में चित्रित करने की उनकी कला। वे भारतीय लोकजीवन और जनसाधारण के अस्तित्व के लिए निर्णायक अहमियत रखनेवाली भावधाराओं को तक़रीबन जादुई ढंग से पकड़ते हैं, और उतनी ही कुशलता से उसे पाठक के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। इस संग्रह में ‘अगिनखोर’ के अलावा ‘मिथुन राशि’, ‘अक्ल और भैंस’, ‘रेखाएँ : वृत्तचक्र’, ‘तब शुभ नामे’, ‘एक अकहानी का सुपात्र’, ‘जैव’, ‘मन का रंग’, ‘लफड़ा’, ‘अग्निसंचारक’ और ‘भित्तिचित्र मयूरी’ कहानियाँ शामिल हैं। इन ग्यारह कहानियों में से हर एक कहानी और उसका हर पात्र इस बात का प्रमाण है कि उत्तर भारत, विशेषकर गंगा के तटीय इलाक़ों की ग्राम्य-संवेदना और जीवन को समझने के लिए रेणु का ‘होना’ कितना महत्त्वपूर्ण और ज़रूरी है।
Aginkhor

Aginkhor

Phanishwarnath Renu

595

₹ 476

Achchhe Aadmee

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: रेणु ने अपने आत्म-कथ्य में चित्रगुप्त महाराज द्वारा निर्मित भाग्य-लेख के अंशों में अपना परिचय देते हुए कहा है कि यह आदमी ‘एक ही साथ सुर और असुर, सुन्दर और असुन्दर, पापी और विवेकी, दुरात्मा और सन्त, आदमी और साँप, जड़ और चेतन—सब कुछ होगा।’ क्या यही परिचय अपने विविध और विस्तृत रूप में उनकी समस्त रचनाओं में नहीं लहरा रहा है? जड़ीभूत सौन्दर्याभिरुचि को गतिशील और व्यापक फ़लक प्रदान करनेवाली रेणु की कहानियों ने हिन्दी कथा-साहित्य को एक नई दिशा दी है—सामाजिक परिवर्तन ही एकमात्र विकल्प है। यह दिशा ही रेणु की रचनाओं की मूल सोच है। बड़े चुपके से कभी उनकी कहानियाँ किसानों और खेत मज़दूरों के कान में कह देती हैं कि ज़मींदारी प्रथा अब नहीं रह सकती और ज़मीन जोतनेवाले की ही होनी चाहिए। कभी मज़दूरों को यह सन्देश देने लगती हैं कि तुम्हारी मुक्ति में ही असली सुराज का अर्थ छिपा है—भूल-भुलैया में पड़ने की जरूरत नहीं। क्या कला, क्या भाषा, क्या अन्तर्वस्तु और विचारधारा, कोई भी कसौटी क्यों न हो, रेणु की कहानियाँ एकदम खरी उतरती हैं, लोगों का रुझान बदल देती हैं और यही रचनात्मक गतिविधि रेणु के साहित्य में उनके अप्रतिम योगदान को अक्षुण्ण बनाती है। ‘अच्छे आदमी’ में संग्रहीत विधित रंगों की ये कहानियाँ रेणु की इसी विशिष्ट रचना-यात्रा का अगला पड़ाव हैं।
Achchhe Aadmee

Achchhe Aadmee

Phanishwarnath Renu

595

₹ 476

Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Rating:
  • Book Type:
  • Description: फणीश्वरनाथ रेणु—वह लेखक जिसने हिन्दी कथाधारा का रुख बदला, उसे ग्रामीण भारत के बिम्बों और ध्वनियों से समृद्ध किया और हिन्दी गद्य की भाषा को कविता से भी ज़्यादा प्रवहमान बनाया।

    उन्हीं रेणु की सम्पूर्ण कहानी सम्पदा को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया जा रहा है।

    प्रेम, संवेदना, हिंसा, राजनीति, अज्ञानता और भावुकता के विभिन्न रूप और रंगों की ये कहानियाँ भारत के ग्रामीण अंचल की चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं और स्वातंत्र्योत्तर भारत का सांस्कृतिक आईना हैं। इन कहानियों में लेखक ने लोकभाषा, जनसाधारण के रोज़मर्रा जीवन और परिवेश को जितने मांसल ढंग से व्यक्त किया है, उसने हिन्दी की ताक़त और क्षमता को भी बढ़ाया है।

    रेणु की 27 अगस्त, 1944 में प्रकाशित पहली कहानी ‘बट बाबा’ से लेकर नवम्बर, 1972 में प्रकाशित अन्तिम कहानी ‘भित्तिचित्र की मयूरी’ सहित विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित उनकी कहानियों को यहाँ साथ लाया गया है, ताकि पाठक अपने इस प्रिय लेखक को एक लय में पढ़ सकें।

Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

Phanishwarnath Renu

599

₹ 479.2

Aadim Ratri Ki Mehak

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य को आंचलिक कहा गया है किन्तु उनकी कहानियाँ (तथा उपन्यास भी) जहाँ एक ओर ग्राम्य-जीवन की आंचलिकता को ही नहीं उसकी सम्पूर्ण आन्तरिकता को व्यक्त करती हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण तथा शहरी जीवन के अन्त:सम्बन्धों की वास्तविकता का भी उद्घाटन करती हैं। रेणु की कहानियों में अत्यन्त ‘निजी’ को व्यापक सामाजिक यथार्थ से जोड़ पाने की अद्भुत क्षमता है और ऐसा वे अपूर्व काव्यात्मक रचाव के साथ कर पाते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी कहानियाँ संगीत की सरहदों को छूने लगती हैं। उनके सहज प्रतीत होनेवाले कथा-शिल्प से अनायास ‘ऑडियो-विजुअल’ प्रभाव उत्पन्न होने लगता है। उनकी टेकनीक एक सर्ररियलिस्टिक पैटर्न निर्मित करती है जिसमें एक ‘प्रिज़्म’ की तरह छनकर रंगारंग विचारों तथा भावनाओं की घुलनशीलता शामिल हो जाती है। उनकी कहानियाँ हमारी सम्पूर्ण संवेदनाओं को एक साथ तृप्त करती हैं। अगर उनमें गहरी लयबद्ध ऐन्द्रिकता है तो बिना बौद्धिकता का छद्म धारण किए ही ‘वस्तु सत्य’ के मर्म तक पहुँच जानेवाली विश्लेषणपरकता भी है। आज़ादी के बाद के राजनैतिक परिवर्तनों का दस्तावेज़ी बयान प्रस्तुत करनेवाली कहानियों में यह तथ्य ख़ूब उभरकर आता है—‘जलवा’ तथा ‘आत्म-साक्षी’ जैसी कहानियों में तटस्थ राजनैतिक बोध की निर्ममता के साथ उस क्रूर ‘ट्रेजडी’ का एहसास भी है जिसमें कोमल मानवीय सच्चाइयों के निर्दयता से कुचले जाने का इतिहास अंकित है। ‘आदिम रात्रि की महक’ की कहानियों में एक नैसर्गिक विनोद वृत्ति है जो एक साथ भाषा, स्थितियों तथा चरित्रों से छेड़छाड़ करती चलती है—चुलबुलेपन की हद तक जाकर। लेकिन उनमें कब अचानक एक करुण मानवीय बोध उतर आता है, इसका पता पाठक को तब चलता है जब उसकी ‘हँसी’ में सहसा एक ‘हूक’ शामिल हो जाती है। ऐसे विरल संयोगों के हिन्दी में रेणु एकमात्र कथाकार हैं।    

    —विजय मोहन सिंह

Aadim Ratri Ki Mehak

Aadim Ratri Ki Mehak

Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Paltu Babu Road

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: 'पल्टू बाबू रोड' अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु का लघु उपन्यास है। यह उपन्यास पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ज्योत्स्ना' के दिसम्‍बर, 1959 से दिसम्‍बर, 1960 के अंकों में धारावाहिक रूप से छपा था। रेणु के निधन के बाद 1979 में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ।

    नई-नई कथाभूमियों की खोज करनेवाले रेणु 'पल्टू बाबू रोड' में एक क़स्बे को अपनी कथा का आधार बनाते हैं। वे कठोर, विकृत और ह्रासोन्मुख समाज को लेखकीय प्रखरता के साथ परखते हैं। इस उपन्यास में रेणु अपने गाँव-इलाक़े को छोड़कर बैरगाछी क़स्बे को कथाभूमि बनाते हैं। इस क़स्बे की नियति पल्टू बाबू जैसे काइयाँ, धूर्त, कामुक बूढ़े के हाथ में है। उसने क़स्बे के लिए ऐसी राह निर्मित की है जिस पर राजनीतिज्ञ, ठेकेदार, व्यापारी, वकील (पूरे क़स्बे के लोग ही) चल रहे हैं। लगता है, क़स्बावासी शतरंज के मोहरे हैं और पल्टू बाबू इनके संचालक।

    इस उपन्यास का लक्ष्य है उच्च वर्ग के अंतर्विरोधों, उसकी गिरावट, राजनीतिक और आर्थिक सम्‍बन्‍धों में यौन-व्यापार आदि का चित्रण। निम्न वर्ग छिटपुट आया है। आदर्शवादी पात्र विडम्बना से घिरे हैं। भाषा प्रवाहपूर्ण और अर्थव्यंजक है। अत्यन्त पठनीय उपन्यास।

Paltu Babu Road

Paltu Babu Road

Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Renu Rachanawali : Vols. 1-5

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: रेणु के ‘मैला आँचल’ का प्रकाशन अगस्त, 1954 में हुआ और इसके ठीक दस वर्ष पूर्व उनकी पहली कहानी ‘बट बाबा’ 27 अगस्त, 1944 के साप्ताहिक ‘विश्वमित्र’ में प्रकाशित हुई। 1944 ई. से 1972 ई. तक उन्होंने लगातार कहानियाँ लिखीं—प्रारम्भिक कहानियों—‘बट बाबा’, ‘पहलवान की ढोलक’, ‘पार्टी का भूत’ से लेकर अन्तिम कहानी ‘भित्तिचित्र की मयूरी’ तक एक ही कथा–शिल्पी रेणु का दर्शन होता है जो अपने कथा–विन्यास में एक–एक शब्द, छोटे–से–छोटे पात्र, परिवेश की मामूली बारीकियों, रंगों, गन्धों एवं ध्वनियों पर एक समान नज़र रखता है; किसी की उपेक्षा नहीं करता। नई कहानी के दौर में रेणु ने अपनी कहानियों द्वारा एक नई छाप छोड़ी। उनकी ‘रसप्रिया’, ‘लालपान की बेगम’ और ‘तीसरी क़सम’ अर्थात् ‘मारे गए गुलफ़ाम’ छठे दशक की हिन्दी कहानी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ मानी जाती हैं। ‘तीसरी क़सम’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय फ़िल्म का निर्माण हो चुका है। रेणु की ‘पंचलाइट’ कहानी पर एक टेलीफ़िल्म भी बन चुकी है। ‘रेणु रचनावली’ के पहले खंड में रेणु की सम्पूर्ण कहानियाँ पहली बार एक साथ, एक जगह प्रकाशित हो रही हैं। इन तमाम कहानियों से एक साथ गुज़रने के बाद पाठक यह सहज ही महसूस करेंगे कि रेणु ने एक कहानी की वस्तु या पात्र को परिवेश या नाम बदलकर दुहराया नहीं है। हर कहानी में रेणु का अपना मिज़ाज और रंग होते हुए भी वे एक–दूसरे से अलग हैं और उनके अपूर्व रचना–कौशल की परिचायक हैं।
Renu Rachanawali : Vols. 1-5

Renu Rachanawali : Vols. 1-5

Phanishwarnath Renu

3000

₹ 2400

Rinjal Dhanjal

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: सन् 1966 का भयानक सूखा—जब अकाल की काली छाया ने पूरे दक्षिण बिहार को अपनी लपेट में ले लिया था और शुष्कप्राण धरती पर कंकाल ही कंकाल नज़र आने लगे थे...और सन् 1975 की प्रलयंकर बाढ़—जब पटना की सड़कों पर वेगवती वन्या उमड़ पड़ी थी और लाखों का जीवन संकट में पड़ गया था...

    अक्षय करुणा और अतल-स्पर्शी संवेदना के धनी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु प्राकृतिक प्रकोप की इन दो महती विभीषिकाओं के प्रत्यक्षदर्शी तो रहे ही, बाढ़ के दौरान कई दिनों तक एक मकान के दुतल्ले पर घिरे रह जाने के कारण भुक्तभोगी भी। अपने सामने और अपने चारों ओर मानवीय विवशता और यातना का वह त्रासमय हाहाकार देखकर उनका पीड़ा-मथित हो उठना स्वाभाविक था, विशेषतः तब, जबकि उनके लिए हमेशा ‘लोग’ और ‘लोगों का जीवन’ ही सत्य रहे। आगे चलकर मानव-यातना के उन्हीं चरम साक्षात्कार-क्षणों को शाब्दिक अक्षरता प्रदान करने के क्रम में उन्होंने संस्मरणात्मक रिपोर्ताज़ लिखे, और उन्हीं का संकलित रूप यह ‘ऋणजल धनजल’ है। इसमें वस्तुतः व्यापक मानवीय पीड़ाबोध की वह ‘अकथ कथा’ वर्णित है जो अक्षरशिल्पी रेणु की विलक्षण अन्तर्भेदी दृष्टि और लेखनी का संस्पर्श पाकर सहज ही शब्दचित्रात्मक और आश्चर्यजनक रूप से जीवन्त हो उठी है।

Rinjal Dhanjal

Rinjal Dhanjal

Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Pratinidhi Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कथा-साहित्य में रेणु उन थोड़े-से कथाकारों में अग्रगण्य हैं जिन्होंने भारतीय ग्रामीण जीवन का उसके सम्पूर्ण आन्तरिक यथार्थ के साथ चित्रण किया है। स्वाधीनता के बाद भारतीय गाँव ने जिस शहरी रिश्ते को बनाया और निभाना चाहा है, रेणु की नज़र उससे होनेवाले सांस्कृतिक विघटन पर भी है जिसे उन्होंने गहरी तकलीफ़ के साथ उकेरा है। मूल्य-स्तर पर उससे उनकी आंचलिकता अतिक्रमित हुई है और उसका एक जातीय स्वरूप उभरा है। वस्तुतः ग्रामीण जन-जीवन के सन्दर्भ में रेणु की कहानियाँ अकुंठ मानवीयता, गहन रागात्मकता और अनोखी रसमयता से परिपूर्ण हैं। यही कारण है कि उनमें एक सहज सम्मोहन और पाठकीय संवेदना को परितृप्त करने की अपूर्व क्षमता है। मानव-जीवन की पीड़ा और अवसाद, आनन्द और उल्लास को एक कलात्मक लय-ताल सौंपना किसी रचनाकार के लिए अपने प्राणों का रस उँडेलकर ही सम्भव है और रेणु ऐसे ही रचनाकार हैं। इस संग्रह में उनकी प्रायः सभी महत्वपूर्ण कहानियाँ संकलित हैं।
Pratinidhi Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

Pratinidhi Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Parti Parikatha

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: इस उपन्यास को पढ़ते हुए प्रत्येक संवेदनशील पाठक स्पन्दनीय ज़िन्दगी के सप्राण पन्नों को उलटता हुआ-सा अनुभव करेगा। सहृदयता के सहज-संचित कोष के रस से सराबोर प्रत्येक शब्द, हर गीत की आधी-पूरी कड़ी ने मानव-मन के अन्तरतम को प्रत्यक्ष और सजीव कर दिया है। दो पीढ़ियों के जीवन के विस्तृत चित्रपट पर अनगिनत महीन और लयपूर्ण रेखाओं की सहायता से चतुर कथाशिल्पी ने एक अमित कथाचित्र का प्रणयन किया है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास को पढ़कर समाप्त करने तक पाठक अनेक चरित्रों, घटना-प्रसंगों, संवादों और वर्णन-शैली के चमत्कारों से इतना सामीप्य अनुभव करने लगेंगे कि उनसे बिछुड़ना एक बार उनके हृदय में अवश्य कसक पैदा करके रहेगा।
Parti Parikatha

Parti Parikatha

Phanishwarnath Renu

499

₹ 399.2

Maila Anchal

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: ‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं भी घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। ‘मैला आँचल का कथानायक’ एक युवा डॉक्टर है जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा इसी क्रम में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दु:ख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अन्धविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण-चक्र में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता है। कथा का अन्त इस आशामय संकेत के साथ होता है कि युगों से सोई हुई ग्राम-चेतना तेज़ी से जाग रही है। कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की इस युगान्तरकारी औपन्यासिक कृति में कथाशिल्प के साथ-साथ भाषा और शैली का विलक्षण सामंजस्य है जो जितना सहज-स्वाभाविक है, उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी। ग्रामीण अंचल की ध्वनियों और धूसर लैंडस्केप्स से सम्पन्न यह उपन्यास हिन्दी कथा-जगत में पिछले कई दशकों से एक क्लासिक रचना के रूप में स्थापित है।
Maila Anchal

Maila Anchal

Phanishwarnath Renu

399

₹ 319.2

Kitne Chaurahe

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: ‘कितने चौराहे’ फणीश्वरनाथ रेणु का पठनीय लघु उपन्यास है। पहली बार यह 1966 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के वृत्तान्त में लेखक ने निजी जीवन की कई घटनाओं को संयोजित किया है।

    ‘कितने चौराहे' की रचना का उद्‌देश्य स्पष्ट है। यह उपन्यास आज़ादी के लिए संघर्ष करने और बलिदान देनेवाले युवकों को केन्द्र में रखकर लिखा गया है, ताकि आज के किशोरों में देशप्रेम, सेवा, त्याग आदि आदर्शों के भाव जाग्रत् हो सकें।

    यह उपन्यास व्यक्तिगत सुख-दु:ख, स्वार्थ-मोह से ऊपर उठकर देश के लिए जीने-मरने वालों के मानवीय, संवेदनशील रूप को उभारता है। पाठकों के मन में यह वृत्तान्त श्रद्धा जाग्रत् करता है। पाठक के मन में चारों ओर चीखते भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता आदि के प्रति क्षोभ उभरता है। उत्सर्गी परम्परा के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

    ‘कितने चौराहे' में 'आंचलिकता का विश्वसनीय पुट, ज्वलन्त चरित्र सृष्टि, मार्मिक कथावस्तु और चरित्रानुकूल भाषा मोहित करती है। साधारण में निहित असाधारणता का उन्मेष सर्वोपरि है। रेणु के उपन्यास-शिल्प की अनेक विशेषताएँ इस रचना में दृष्टिगोचर होती हैं। शब्दों के बीच से बिम्ब झाँकते हैं, 'सूरज पच्छिम की ओर झुक गया। बालूचर पर लाली उतर आई। परमान की धारा पर डूबते हुए सूरज की अन्तिम किरण झिलमिलाई।' जीवन का जयगान करता उपन्यास।

Kitne Chaurahe

Kitne Chaurahe

Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Deerghatapa

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: आज के युग में जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो, चरित्रहीनता पराकाष्ठा पर हो, अपने और पराये का भाव-बोध जड़ जमाए बैठा हो, चारों ओर ‘हाय पैसा, हाय पैसा’ की अफरा-तफरी मची हो, ऐसे माहौल में शान्तिपूर्वक जीवन बसर कर पाना किसी चुनौती से कम नहीं।

    बेला गुप्त भी सहज जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उनके साथ क्या हुआ? कई हादसों से गुज़रने के बावजूद वह टूटी नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य-पथ पर अग्रसर रही। लेकिन आज...?

    आज वह टूट चुकी है। ईमानदारी, कार्य के प्रति निष्ठा—उसके लिए अब बेमानी हो चुकी है। जैसे सारी चीज़ों पर से उसका मोहभंग हो गया हो! और यही वजह है कि दूसरों के अपराधों को स्वीकार कर वह  जेल-जीवन अपना लेती है।

    ‘दीर्घतपा’ फणीश्वरनाथ रेणु का एक मर्मस्पर्शी उपन्यास है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने जहाँ वीमेंस वेलफ़ेयर की आड़ में महिलाओं के यौन उत्पीड़न को उजागर किया है, वहीं सरकारी वस्तुओं की लूट-खसोट पर से पर्दा हटाया है।

Deerghatapa

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Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

Juloos

  • Author Name:

    Phanishwarnath Renu

  • Book Type:
  • Description: फणीश्वरनाथ रेणु का सम्पूर्ण साहित्य राजनीति की मज़बूत बुनियाद पर स्थित है। उन्होंने सामाजिक बदलाव में साहित्य की भूमिका को कभी राजनीति से कमतर नहीं माना। ‘मैला आँचल’ और 'परती परिकथा’ की भाँति 'जुलूस’ उपन्यास पूर्णिया ज़‍िले में नए बस रहे एक गाँव नबीनगर और पूर्व-प्रतिष्ठित गोडियर गाँव के पारस्परिक सम्बन्धों और संघर्षों की कथा है।

    इस उपन्यास में ‘रेणु’ ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् होनेवाले दंगों के कारण पूर्वी बंगाल से विस्थापित होकर भारत आए लोगों के दु:ख-दर्द की गाथा को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। साथ ही उन्होंने यह भी दिखाना चाहा है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के चौदह-पन्द्रह साल बाद भी गाँव में कितना अन्धकार, अन्धविश्वास, ग़रीबी और भुखमरी आदि व्याप्त है और लोग अनेक जटिलताओं में फँसे हुए हैं। एक संघर्षधर्मी सामाजिक चेतना तथा सामन्ती मूल्यों एवं लोगों के प्रति प्रतिरोध की भावना 'रेणु' के लगभग सभी उपन्यासों में मिलती है। ऐसा इस उपन्यास में भी देखने को मिलेगा। साथ ही माटी और मानुष के लगाव की इस रागात्मक कथा में पाठक को पवित्रा जैसी अविस्मरणीय किरदार देखने को मिलेगी।

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Phanishwarnath Renu

199

₹ 159.2

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