Deerghatapa
Author:
Phanishwarnath RenuPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
आज के युग में जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो, चरित्रहीनता पराकाष्ठा पर हो, अपने और पराये का भाव-बोध जड़ जमाए बैठा हो, चारों ओर ‘हाय पैसा, हाय पैसा’ की अफरा-तफरी मची हो, ऐसे माहौल में शान्तिपूर्वक जीवन बसर कर पाना किसी चुनौती से कम नहीं।</p>
<p>बेला गुप्त भी सहज जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उनके साथ क्या हुआ? कई हादसों से गुज़रने के बावजूद वह टूटी नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य-पथ पर अग्रसर रही। लेकिन आज...?</p>
<p>आज वह टूट चुकी है। ईमानदारी, कार्य के प्रति निष्ठा—उसके लिए अब बेमानी हो चुकी है। जैसे सारी चीज़ों पर से उसका मोहभंग हो गया हो! और यही वजह है कि दूसरों के अपराधों को स्वीकार कर वह जेल-जीवन अपना लेती है।</p>
<p>‘दीर्घतपा’ फणीश्वरनाथ रेणु का एक मर्मस्पर्शी उपन्यास है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने जहाँ वीमेंस वेलफ़ेयर की आड़ में महिलाओं के यौन उत्पीड़न को उजागर किया है, वहीं सरकारी वस्तुओं की लूट-खसोट पर से पर्दा हटाया है।
ISBN: 9788126715923
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Bhagawan Parshuram
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

- Description: आर्य-संस्कृति का उषःकाल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त्त में यदु और पुरु, भरत और तृत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हु तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं और जहाँ वसिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं। लेकिन दूसरी ओर सम्पूर्ण आर्यावर्त्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैहयराज सहस्रार्जुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा, तेजस्विता, संगठन-क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के बल पर विजयी हुए। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास एक युगपुरुष की ऐसी शौर्यगाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती रहेगी।
Ruskin Bond Ki BestSeller Pustak (Best of Ruskin Bond) Set of 4 Books
- Author Name:
Ruskin Bond
- Book Type:

- Description: 9789355214096 - Suno Bachcho, Meri Priya Kahaniyan (Hindi Translation of Collected Short Stories) सुप्रसिद्ध कहानीकार रस्किन बॉण्ड की बाल कहानियाँ न केवल मनोरंजक होती हैं, बल्कि प्रेरणादायी भी| हर कहानी में बच्चों के लिए अनुकरणीय सीख अवश्य रहती है| 9789355214157 - 21 Baal Kahaniyan प्रस्तुत संग्रह की 21 बाल कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं, जिनमें बच्चों के मनोविज्ञान, कल्पना लोक और वास्तविक धरातल की मिली-जुली कहानियाँ हैं, जो शिक्षाप्रद तो हैं ही, मनोरंजन और पठनरस से भरपूर भी हैं। 9789355210494 - Ruskin Bond Ki Diary (Hindi Translation of A Book of Simple Living) यह पुस्तक ऐसे अनेक छोटे-छोटे पलों को दर्ज करती है, जो स्वयं के साथ ही इस प्राकृतिक जगत्, दोस्तों और परिवार ही नहीं आने-जानेवालों को मिलाकर भी एक सामंजस्यपूर्ण जीवन की रचना करती है। इन पन्नों में हम एक जंगली बेर को फलते और देवदार के पेड़ों के बीच से चंद्रमा को निकलते देखते हैं। हम रेडस्टार्ट पक्षियों को चहचहाते और टिन की छत पर बारिश को ढोल बजाते सुनते हैं। हम क्षति के परिणामों और पुराने साथियों की सांत्वना को समझते हैं। 9789355214102 - Pariyonwali Pahadi Aur Anya Kahaniyan सुप्रसिद्ध किस्सागो रस्किन बॉण्ड की कहानियों का यह संग्रह बालक-तरुण पाठकों को परियों की हसीन दुनिया की सैर कराता है; ये भी परियों के साथ बिना परों के ही उड़ने लगते हैं । मनोरंजन से भरपूर कहानी-संग्रह|
Yanosh Bahadur
- Author Name:
Sándor Petőfi
- Book Type:

- Description: 2023 में शान्दोर पैतोफ़ी की 200वीं जयंती मनाने की विश्वव्यापी तैयारी हो रही है। उनकी 43 कविताओं के संग्रह स्वाधीनता, प्यार की कविताओं पर प्रसिद्ध कवि यानोश हाय और संगीतज्ञ तॉमॉश रोज़ ने संगीतबद्ध प्रस्तुतियाँ दीं और इन कविताओं ने श्रोताओं को ख़ूब प्रभावित किया। जैसा कि मारिया नेज्यैशी लिखती हैं, इस काव्यात्मक कथा यानोश बहादुर का संग-साथ उन्हें तब से प्राप्त है जब वे 5-6 साल की थीं और पढ़ना-लिखना भी नहीं जानती थीं। यानोश हाय लिखते हैं कि यानोश बहादुर के रचनाकार शान्दोर पैतोफ़ी उन आरम्भिक चार-पाँच शब्दों में से एक हैं, जिन्हें उनके देश के बच्चे पहली बार अपनी भाषा सीखते समय ही याद कर लेते हैं। यानोश बहादुर किस विधा की रचना है? 1845 में इसके प्रकाशन के बाद से इसे विभिन्न खाँचों में रखने की कोशिश होती रही है। यह लोकगीत है या महाकाव्य है? कुछ लोगों ने इसे हल्की-फुल्की ‘कहानी’ भी कहा है। लेकिन इसने एक अनाथ लघु मानव के संघर्ष की, उत्कर्ष की, साहसिक यात्रा की, और शायद सबसे अधिक एक अटूट प्रेम की अनोखी कहानी दी है। यहाँ तक कि यह भी कहा जाता है कि इसे पढ़कर हर नौजवान यानोश बहादुर, और युवती इलुश्का बनना चाहती है।
Take 2
- Author Name:
Ruchi Singh
- Book Type:

- Description: Priya's idyllic world turns upside down when she realizes her husband considers her dead weight after stripping her off her inheritance for his ambitions and lavish lifestyle. Instantly attracted to Priya, Abhimanyu knows getting involved with a married woman is inviting trouble. But despite common sense, cautions and hesitations, he is drawn to help her. Happily ever after has become a myth for Priya and trying to keep the relationship platonic is becoming more and more difficult for Abhimanyu. In the tussle between ethics, fears and desires... will Priya embrace a second chance at happiness?
Mamooli Cheezon Ka Devata
- Author Name:
Arundhati Roy
- Book Type:

- Description: v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>एक विशुद्ध व्यावहारिक अर्थ में तो शायद यह कहना सही होगा कि यह सब उस समय शुरू हुआ, जब सोफ़ी मोल आयमनम आई। शायद यह सच है कि एक ही दिन में चीज़ें बदल सकती हैं। कि चंद घंटे समूची ज़िन्दगियों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कि जब वे ऐसा करते हैं, उन चंद घंटों को किसी जले हुए घर से बचाए गए अवशेषों की तरह—करियाई हुई घड़ी, आँच लगी तस्वीर, झुलसा हुआ फ़र्नीचर—खंडहरों से समेटकर उनकी जाँच-परख करनी पड़ती है। सँजोना पड़ता है। उनका लेखा-जोखा करना पड़ता है।</p> <p>छोटी-छोटी घटनाएँ, मामूली चीज़ें, टूटी-फूटी और फिर से जोड़ी गईं। नए अर्थों से भरी। अचानक वे किसी कहानी की निर्वर्ण हड्डियाँ बन जाती हैं।</p> <p>फिर भी, यह कहना कि वह सब कुछ तब शुरू हुआ जब सोफ़ी मोल आयमनम आई, उसे देखने का महज़ एक पहलू है।</p> <p>साथ ही यह दावा भी किया जा सकता था कि वह प्रकरण सचमुच हज़ारों साल पहले शुरू हुआ था। मार्क्सवादियों के आने से बहुत पहले। अंग्रेज़ों के मलाबार पर क़ब्ज़ा करने से पहले, डच उत्थान से पहले, वास्को डी गामा के आगमन से पहले, ज़मोरिन की कालिकट विजय से पहले।</p> <p>किश्ती में सवार ईसाइयत के आगमन और चाय की थैली से चाय की तरह रिसकर केरल में उसके फैल जाने से भी बहुत पहले हुई थी।</p> <p>कि वह सब कुछ दरअसल उन दिनों शुरू हुआ जब प्रेम के क़ानून बने। वे क़ानून जो यह निर्धारित करते थे कि किस से प्रेम किया जाना चाहिए, और कैसे।</p> <p>और कितना।</p> <p>बहरहाल, व्यावहारिक रूप से एक नितान्त व्यावहारिक दुनिया में...वह दिसम्बर उनहत्तर का (उन्नीस सौ अनुच्चरित था) एक आसमानी नीला दिन था। एक आसमानी रंग की प्लिमथ, अपने टेलफ़िनों में सूरज को लिए, धान के युवा खेतों और रबर के बूढ़े पेड़ों को तेज़ी से पीछे छोड़ती कोचीन की तरफ़ भागी जा रही थी...</p>
Rangbhoomi
- Author Name:
Premchand
- Book Type:

- Description: ‘सूरदास’ एक चरित्र नहीं, नायक है और इसी नायकत्व की सृष्टि के लिए सूरदास और ज्ञानसेवक ने उपन्यास में अपनी-अपनी भूमिकाएँ अदा की हैं। ‘सूरदास’ चौतरफ़ा भौतिक दृष्टि से पराजित होने के बाद भी सदा सुखी रहता है। उसके मन में कभी भी मैल नहीं आता। जीत-हार में भी, इस समान स्थिति में कोई अन्तर नहीं आता। उसने नीति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। अपने प्रतिद्वन्द्वी पर कभी भी धोखे से वार नहीं किया। इतना दीन-हीन होते हुए भी उसमें क्षमाशीलता और उदारता सदा बनी रहती है। स्पष्ट लगता है कि प्रेमचन्द अपने समय के संग्राम के लिए शलाका पुरुष की सृष्टि कर रहे हैं जो लोगों के लिए एक आदर्श नायक बन सकेगा। यह भी स्पष्ट है कि प्रेमचन्द तत्कालीन परिस्थिति में अपने देश की जनता के जीवन की एक ऐसी व्याख्या प्रस्तुत कर रहे थे जो देश को आज़ाद करने का सही मार्ग था। वस्तुत: देश की आज़ादी के लिए उस समय चल रहे क्रान्तिकारी मार्ग के स्थान पर देश को सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर ले जाना चाहते थे। यही कारण है कि उन्होंने ‘रंगभूमि' को यह महाकाव्यात्मक रूप प्रदान किया। यही कारण है कि सूरदास किसान दृष्टि का प्रतिनिधि होने के बावजूद एक चरित्र नहीं वरन् प्रेमचन्द द्वारा सृजित उनकी आदर्शवादी दृष्टि का महानायक है। कथावाचन से लेकर चरित्रांकन तक रंगभूमि का सृजन जैसे एक लेखक का आत्मसंवाद है। प्रेमचन्द ने बड़ी महारत के साथ गांधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा सम्बन्ध सोच को औपचारिक रूप देकर सचमुच एक महान सृजन किया है। ऐसा वही कथाकार कर सकता है जिसके प्राणों में उसके देश की धरती और आदर्श समाए हुए हों।
Bambai Dinank
- Author Name:
Arun Sadhu
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Duniya Anna Ki Nazar Se
- Author Name:
Jostein Gaarder
- Book Type:

- Description: इस उपन्यास की कथा काल्पनिक है, लेकिन तथ्य, तर्क, विश्लेषण... सब वास्तविक है। यह मनोरंजक कहानी आपको दुनिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य की वह सच्ची तस्वीर देती है, जिसे आप जीवन में देखते हैं और उपन्यास में महसूस करते हैं, इसलिए अंतिम पेज़ तक पहुँचते हुए आप बदल जाते हैं। इसकी कथा सिर्फ़ एक दिन की है। लेकिन इस एक दिन को एना अतीत और भविष्य से ऐसे देखती है कि हम अपने आत्मघाती व्यवहारों व भावी पीढ़ियों के प्रति अपनी जवाबदेहियों का साक्षात्कार कर लेते हैं। एक मनुष्य के रूप में अपने आत्मसाक्षात्कार का प्रभाव बहुत गहरा होता है। आप इस ग्रह के तमाम पारितंत्रों, जीव-जंतुओं और उनपर आसन्न संकटों के बारे में जानेंगे। आप अपने पैरों के नीचे की इस पृथ्वी को नई आँखों से देखेंगे। आसपास के पारिस्थितिक वैभव और उसके मूल्य को पहली बार महसूस करेंगे। यह किताब आपके ज्ञान और संवेदना का विस्तार करेगी। पृथ्वी के पारिस्थितिक संकट पर ढेरों किताबें पढ़ने से बेहतर है यह रुचिकर उपन्यास पढ़ना।
Rukshat - The Departure
- Author Name:
Sujit Banerjee
- Rating:
- Book Type:

- Description: Where a story stops, another one begins. The thing with them is, they never walk alone. They always walk with a group of friends. Each reaches its climax. Then with a final gasp of mortality and despair, fade away. No, they never die; they multiply. To the extent that the original gets lost and new ones are born. Over and over again. Yes, they get lost. No, they never die. They live on, permanently etched in the book of time. And from there, we borrow them and bring them alive. Again. And again. Here are twenty-six of them, some standing alone and some chatting with their long-lost friends. When they depart, they leave a lingering fragrance of nostalgia and curiosity. What happened then? Twenty-six alphabets, twenty-six names, and twenty-six short stories. Each explores one unique emotion, taking you into the dark recess of the mind. Some are frothy, and most of them opaque. Most are standing alone, and some are facing a mirror, where the same story comes alive in two different ways through two other protagonists. Meet diverse characters - from the single-minded prostitute to the man on the railway's station br>Bereft of any memory; a woman desperate for a biological child to a dead man's trial. Meet a jealous lover with a twisted brain and a gay man's memory of a one-night encounter. Meet twenty-six such characters arrested and sentenced for life inside the pages of a book—each one leaving an indelible mark on your soul.
Dhaar
- Author Name:
Sanjeev
- Book Type:

-
Description:
उपेक्षा, भूख, ग़रीबी में लिपटी आरण्यमुखी आदिवासी अस्मिता में ख़लल तब नहीं पड़ती जब भूख उन्हें परेशान करती है, अभाव उन्हें तोड़ने लगता है, मौसम की मार से जीना हराम हो जाता है, इन सबके तो वे अभ्यस्त रहे हैं। ख़लल तब पड़ती है, जब विकास के नाम पर कोई उनके गहरे शान्त जीवन को गन्दला करने चला आता है।
भरसक वे कंगाल हों लेकिन उनके नीचे खनिज और वन-सम्पदा के कुबेर के ख़ज़ाने हैं। उनके जीवन, यौवन और ख़ज़ाने पर लार टपकाते दिकुओं से लेकर मल्टीनेशनल्स और उनके दलालों तक की नज़र है और वे उद्वास्त होने और लुटने को अभिशप्त हैं। पहले बिहार और अब झारखंड का ऐसा ही एक क्षेत्र है संताल परगना। संजीव ने इस उपन्यास के माध्यम से इस आदिवासी अंचल के खनन-दोहन और उसके प्रतिरोध में उठती आदिवासी चेतना, लूट की सरकारी और निजी योजनाओं के विरुद्ध ‘जनखदान’ जैसे वैकल्पिक मॉडलों की तलाश तब शुरू की थी जब इस विषवृक्ष का अंकुर मात्र फूटा था, जो आज पूरे देश के आदिवासी-अस्तित्व के लिए विकराल दानव बन चुका है। विकास के नाम पर विनाश, उद्भव के नाम पर पराभव और शौर्य की परम्परा को दलाल-परम्परा में रेड्यूस करने के विरुद्ध एक सक्षम प्रतिवाद है ‘धार’। ‘धार’ आदमी की भोथरी होती हुई ‘धार’ का सन्धान है।
‘धार’ की अतिरिक्त विशिष्टता है उपन्यास की नायिका मैना जो प्रेमचन्द के ‘गोदान’ की धनिया और एमिल जोला के ‘जर्मिनल’ की माहेदी की दुर्धर्ष नायिकाओं की परम्परा की अगली और अधुनातन कड़ी है। बाहरी और अन्दरूनी पचासों झंझावातों से जूझती, दलाल बनते जा रहे पिता, पति, पुत्री, परिजन, पुरजन और पतनशील परम्पराओं से जूझती ‘मैना’ हिन्दी का अविस्मरणीय चरित्र है।
Gorakhgatha
- Author Name:
Ram Shankar Mishra
- Book Type:

-
Description:
महायोगी गोरक्षनाथ एक महान समाज-दृष्टा थे। भारतीय इतिहास में मध्यकाल को संक्रान्ति काल भी कहा जाता है। इस युग में भोगवाद की प्रतिष्ठा थी। उच्च वर्ग भोगवादी था और निम्न वर्ग भोग्य था। महायोगी गोरक्षनाथ ने सामाजिक पुनरुत्थान तथा सामाजिक नवादर्शों की प्रस्थापना के लिए उस भोगात्मक साधना का प्रबल विरोध किया। वे निम्न वर्ग और समाज के लिए आराध्य देवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। योग और कर्म की सम्यक् साधना उन्होंने की थी।
गोरक्षनाथ योगमार्गी होते हुए भी एक महान रचनाधर्मी साधक थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषाओं में अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। गोरक्षनाथ के शब्दों में अनुशासन भी है और बेलाग फक्कड़पन भी। उनकी काव्याभिव्यक्तियों में कबीर की काव्य-वस्तु के स्रोत मिलते हैं। गोरक्षनाथ अन्याय तथा शोषण के प्रति तेजस्वी हस्तक्षेप थे। पीड़ितों एवं शोषितों को दुख तथा शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने जनन्दोलनों का भी प्रवर्तन किया था। वे यायावर थे। दक्षिणात्य और आर्यावर्त में भ्रमण करते रहे और जनभाषा तथा जनसंस्कृति का साक्षात्कार करते रहे। अनेक जनश्रुतियाँ उनके व्यक्तित्व को महिमामंडित करने के लिए प्रचलित हैं। लेकिन इस औपन्यासिक कृति में मिथकों को तद् रूपों में स्वीकार न करते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से उनका विश्लेषण किया गया है। यात्रा-वृत्तान्त और जीवनी के आस्वाद से भरपूर यह उपन्यास भारतीय आध्यात्मिक इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण दौर से परिचित कराता है।
Unwritten Letters
- Author Name:
Monica Mujumdar Dixit
- Book Type:

- Description: Anthology
Aryagatha
- Author Name:
Virendra Sarang
- Book Type:

-
Description:
वीरेन्द्र सारंग का यह उपन्यास ‘आर्यगाथा’ आर्य-अनार्य संघर्ष का एक यथार्थपरक विश्लेषण है। यह एक तरह से संस्कृति-गाथा है जिसमें आर्य और मूल निवासी अनार्यों की परम्पराओं और प्रतीकों को एक नए नज़रिए से देखने की कोशिश साफ़ देखी जा
सकती है। पारम्परिक रामकथा के ज़रिए कथा का विन्यास बुना गया है, लेकिन यह महज़ रामकथा नहीं है। यह देव-दानव, आर्य-अनार्य, राक्षस-संस्कृति का एक विराट रूपक है जिसे वैज्ञानिक स्तर पर समझने की कोशिश की गई है।
रामकथा के मिथकीय अंशों को छोड़कर यह बताया गया है कि कैसे आर्य संस्कृति और राम की विजय सम्भव हुई। आर्यों के पास शब्द-संस्कृति थी और अनार्यों के पास अपनी मानवीय परम्पराएँ और शिल्प कौशल। रावण अनार्यों को एकजुट करके रक्ष-संस्कृति की स्थापना करता है। आर्य उसकी विस्तारवादी नीति से भयभीत हैं और एक महानायक की तलाश कर रहे हैं। अगस्त्य इसके लिए अनार्य हनुमान को तैयार करते हैं और उधर विश्वामित्र राम को। अगस्त्य और विश्वामित्र के प्रयासों से अनार्य हनुमान और राम का मिलन सम्भव होता है।
यह कथा रुझान को परखने, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, पिंडों की स्थापना जैसे—लिंग पिंड, कुबेर पिंड, देवी पिंड आदि की कथा है। यहाँ रूप-कुरूप पर नई बहस है तो पहचान-प्रतीक जैसे—पगड़ी, पूँछ, उत्तरीय, सींग, मुकुट पर ख़ासा विमर्श भी। ‘राम नाम सत्य है’ की स्थापना और उसका प्रारम्भ तो आश्चर्यचकित करता है। शिव अनार्यों के इष्ट हैं, वे आयुधों के निर्माता हैं, लेकिन निर्लिप्त। आर्य-अनार्य, देव-दानव सभी उनसे आयुध लेते हैं। धीरे-धीरे आर्य-अनार्य मिश्रण के परिणामस्वरूप शिव सभी के उपास्य हो जाते हैं। यह दो संस्कृतियों की मिलन-गाथा है जो रावण के विनाश से एक आयाम ग्रहण करती है। यहाँ तथ्य हैं तो कल्पना का भी भरपूर प्रयोग किया गया है।
कुल मिलाकर एक पठनीय और दिलचस्प उपन्यास है—‘आर्यगाथा।’
—शशिभूषण द्विवेदी
Shaldungari Ka Ghayal Sapna
- Author Name:
Manoj Bhakt
- Book Type:

-
Description:
शालडुंगरी का घायल सपना झारखंड में विकास की विडम्बना और राजनीति के विद्रूप का आईना है। लेखक ने इस क्षेत्र को बहुत क़रीब से देखा है—यह देखना किसी सैलानी की तरह देखना नहीं है बल्कि एक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर इसमें सक्रिय साझेदार होना है। इसलिए वे बड़ी सहजता से एक ऐसी कहानी बुन पाए हैं जो बिलकुल शुरू से अपने पाठक को बाँधे रखती है—किसी चटपटी भाषा में नहीं बल्कि बहुत सजीव ढंग से एक ऐसे पाठ में जो बीच-बीच में कारुणिक भी हो उठता है। उपन्यास जहाँ शुरू होता है वहाँ एक मंत्री गाँव के दौरे पर हैं—उनके साथ अफ़सरों और पत्रकारों की टोली है, सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर चलने वाले तमाशे की तैयारी है और महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में जकड़ा एक पूरा समाज है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हमारे सामने एक स्तब्धकारी, अमानुषिक व्यवस्था के कई धागे खुलते जाते हैं। उपन्यास में आदिवासी-संघर्ष और उसके इर्द-गिर्द बनती गई राजनीतिक-सामाजिक छटपटाहट है, विराट शोषण को जवाब देने की तमाम कोशिशें हैं, हॉकी खेलती लड़कियाँ और उनके विकट संघर्ष हैं, एक पूरी सांस्कृतिक चेतना को कुचलने की त्रासदी भी है। मनोज भक्त बस इस त्रासदी की कथा नहीं कहते। वे इसके समानान्तर चल रहे प्रतिरोध को भी साथ दर्ज करते हैं। उपन्यास के अन्त में हॉकी स्टिक लिये मुख्यमंत्री की ओर दौड़ती लड़की के साथ हम भी दौड़ पड़ते हैं और उसे बचाने की कोशिश में हमारी आवाज़ भी शामिल हो जाती है।
मनोज भक्त के पास बहुत समृद्ध और चाक्षुष भाषा है। वे स्थितियों को बिलकुल सजीव कर देना जानते हैं। लेकिन यह भाषा की नहीं, उस वृत्तान्त की भी ताक़त है जिसे मनोज भक्त कई स्तरों पर इस उपन्यास में घटित होने देते हैं। हिन्दी के समकालीन संसार में एक जनजातीय राज्य के बहुफलकीय यथार्थ को इस महीनी से उकेरने वाली रचनाएँ कम हैं। निस्सन्देह यह कृति अपनी विशिष्ट जगह बनाने में सक्षम है।
—प्रियदर्शन
Parichit Katha Ki Ankahi Kahani
- Author Name:
Madhu Bhaduri
- Book Type:

- Description: परिचित कथा की अनकही कहानी एक मध्यवित्त परिवार की लड़कीउमा की दास्तान है जो अपने लिए एक हँसती-खेलती दुनिया की आकांक्षा मन में पाले हुए है लेकिन यह सब वह अपनी स्वतन्त्रता खोकर नहीं चाहती। ऊँची और उन्मुक्त उड़ान की आकांक्षी उमा स्वस्थ जीवन-मूल्यों के लिए जीना चाहती है। लेकिन सुरक्षा और स्वतन्त्रता, दोनों एकसाथ मिलना हमारी दुनिया में दुर्लभ है। यही इस लड़की का और इस उपन्यास का भी, रचनात्मक आत्मसंघर्ष है। उमा सदियों से बहती आ रही धारा में कूदकर अपनी अस्मिता नहीं खोना चाहती। तकनीकी क्रान्ति की पक्षधर होते हुए भी वह मानती है कि सामाजिक दुविधाओं को कम्प्यूटर से हल नहीं किया जा सकता और साहित्य तथा कला की ज़रूरत वहीं से शुरु होती है जहाँ तकनीकी की सीमा है। स्त्री-चेतना की अन्तर्वस्तु से लबरेज़ यह उपन्यास बीसवीं शताब्दी के आखिरी दो-तीन दशकों की राजनीतिक-सामाजिक हलचलों और सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों में तेज़ी से आ रहे बदलावों को बड़ी संजीदगी से हमारे सामने उद्घाटित करता है। हालाँकि ये घटनाएँ रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की ही हैं लेकिन नियति के सवालों से बार-बार टकराती पारम्परिक जीवन-मूल्यों की जगह एक जनतान्त्रिक व ख़ुशहाल समाज की वकालत करती हैं। कथारस का प्रवाह ऐसा कि पूरा उपन्यास एक ही साँस में पढ़ लेने को जी चाहे।
Hool
- Author Name:
Bhalchandra Nemade
- Book Type:

-
Description:
हूल में चांगदेव पाटील नाम के एक युवा के जरिए भालचन्द्र नेमाड़े भारतीय जीवन और समाज की कमजोरियों के साथ उसकी जिजीविषा को भी एक बड़े फलक पर अंकित करते हैं। मन का सूक्ष्म और संसार का स्थूल यहाँ साथ-साथ चलता है जिसे उनकी व्यापक विश्वदृष्टि एक महाकाव्यात्मक आयाम देती है।
हूल का चांगदेव एक बदला हुआ चांगदेव है, मुम्बई में अपने विद्यार्थी काल में हुए आदर्शनाशी अनुभवों के बाद अब वह यथार्थ का सामना करने के लिए तैयार है जिसके लिए वह एक छोटे से कस्बे में आकर अध्यापक हो जाता है। ‘कन्वर्टेड’ ईसाइयों के इस विद्यालय में उसे जातिवाद, लिंगभेद और संकीर्ण विभागीय राजनीति के अनेक ऐसे रूप देखने को मिलते हैं जो पुनः उसे उतना ही सम्भ्रमित कर छोड़ते हैं, जितना वह यहाँ आने से पहले था। उसे चिढ़ होती है, अपने आप पर दया आती है, और अपने आसपास के लोगों और जीवन पर क्रोध। प्रोफेसर बनने का उसका सुन्दर सपना यहाँ धराशायी हो जाता है।
लेकिन चांगदेव उनमें से नहीं हैं जो धारा के साथ चलने लगें और अन्ततः उसी का हिस्सा हो जाएँ, उनमें से भी नहीं जो शक्तिमन्त संरचनाओं के आगे घुटने टेक दें, और स्वयं के शक्तिशाली होने के लिए अपने अस्तित्वगत मूल्यों को तिलांजलि दे दें। विरोध करने का, खुद के सत्त्व को बचाने का उसका अपना तौर-तरीका है। अन्तस की लाख गुंजलकों के बीच अपनी असहमति की रक्षा करना वह जानता है, इसलिए बेहतर की ओर उठे अपने कदम को वह कभी वापस नहीं लेता। जगत को जिस वृहत रूप में वह देखता है, व्यक्ति और समाज के बीच जो प्राकृतिक सम्बन्ध उसे महसूस होता है, उसके साथ चेतना की अपनी यात्रा को वह सतत जारी रखता है।
हूल स्वतंत्र रूप से भी उतना ही दिलचस्प और पूर्ण पाठ है, जितना कि शृंखला की एक कड़ी के रूप में। यह एक बड़ी विशेषता है।
Bihar Main Nilahe Kothiyon Ka Itihas
- Author Name:
Minden Wilson
- Book Type:

- Description: नील फैक्टरियों के किस्से आमतौर पर उत्तर बिहार से जुड़े हैं, वह भी चंपारण और तिरहुत से। इसका मुख्य कारण यह रहा है कि नील की खेती में शोषण पर आधारित तौर-तरीके के खिलाफ और नीलहे रैयतों (नील की खेती करनेवालों) के प्रति हो रहे अत्यधिक आर्थिक उत्पीड़न के खिलाफ चंपारण में सत्याग्रह हुए। इसलिए भारत में उपनिवेशवाद के शोषक चरित्र व साथ ही इसके प्रतिरोध के अध्ययन में रुचि रखनेवालों और इतिहासकारों के लिए उत्तर बिहार में नील की खेती जिज्ञासा के विषय रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक मिंडेन विल्सन रचित ‘History of Indigo Factory in Bihar’ का हिंदी अनुवाद है। यह रिपोर्ट मुख्यतः उत्तर बिहार के क्षेत्रों के नील उद्योगों के संबंध में है। मिंडेन ने उत्तर बिहार की लगभग सभी छोटी-बड़ी नील फैक्टरियों की स्थापना, क्रमिक विकास एवं उनके पतन का कारण सहित विस्तृत विवरण लिखा है तथा उत्तर बिहार के नील एवं चीनी उद्योगों के लिए बेहतर उत्पादन के तरीकों का भी उल्लेख किया गया है। मिंडेन विल्सन एक ब्रिटिश नागरिक थे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नील उद्योग के प्रबंधन क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। औपनिवेशिक भारत में प्रमुख समृद्ध नील उत्पादकों की श्रेणी में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। नील उद्योग के क्षेत्र में मिंडेन विल्सन ने अपना प्रारंभिक जीवन मॉरीशस में बिताया। भारत आने के पूर्व वे मॉरीशस के गन्ना उद्योग से भी जुड़े रहे। बेहतर जीवन की तलाश में मिंडन ने भारत आने का निर्णय लिया, जहाँ उनकेबड़े भाई पहले से ही नील उद्योग से जुड़े थे। वर्ष 1847 में अमेरिकन जहाज ‘अलबाटरोस’ से कलकत्ता पार्ट सिटी पर उनका आगमन हुआ। वहाँ से वे बिहार के नील उत्पादन क्षेत्र में आए। उसके पश्चात् बिहार के अनेक नील फैक्टरियों में सहायक प्रबंधक व प्रबंधक के तौर पर उन्होंने कार्य किया। नील उद्योग क्षेत्र में उनका व्यापक अनुभव था।
Yogeshwar
- Author Name:
Shakuntala Mishra
- Book Type:

- Description: योगेश्वर अर्थात श्रीकृष्ण के अनेक रूप जनमानस में अंकित हैं—माखन-चोर से लेकर गीता-उपदेशक तक जिन्हें भारतवासियों ने कई कोणों से देखा और प्रेम किया। यह आख्यान उन्हीं श्रीकृष्ण को एक समग्र व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करने का कथात्मक प्रयास है। उनके वंश-इतिहास और जीवन की हर घटना के साथ। कथाकार का मानना है कि कृष्ण के चरित्र को पूरी तरह समझने के लिए हमें चमत्कारों और भावुकता की मन:स्थिति से निकलकर उन्हें एक ऐसे युगपुरुष के रूप में देखना होगा जिसके जीवन का हर क्षण मानवता के लिए एक बहुमूल्य सन्देश है। यह कथा कृष्ण के माता-पिता और उनके भी पूर्वजों की पृष्ठभूमि के वर्णन से आरम्भ होती है जिसमें देवकी और वसुदेव के तप, उनके सुदीर्घ कष्ट और कंस द्वारा उनके छह पुत्रों की हत्या के लोमहर्षक विवरण हमें देखने को मिलते हैं। कृष्ण के बाल्यकाल और छात्र-जीवन को भी कथाकार ने विभिन्न स्रोतों के आधार पर यहाँ पुनर्सृजित किया है। कृष्ण के जीवन में आए विभिन्न पात्रों के माध्यम से चलती यह कथा भगवान श्रीकृष्ण को एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में स्थापित करती है—एक ऐसा मनुष्य जो एक समय इस पृथ्वी पर अपने दुर्लभ और असाधारण गुणों के साथ उपस्थित था।
Julaikhan
- Author Name:
Asakad Mukhtar
- Book Type:

-
Description:
प्रत्येक समाज और राष्ट्र का अपना साहित्य है, परन्तु कुछ साहित्य अपनी गहरी और व्यापक अनुभूतियों के बल से राष्ट्रीय साहित्य की सीमाओं को लाँघकर अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में पहुँच जाता है।
उज़बेक लेखक अस्कद मुख़्तार का उपन्यास ‘बहिनें’ मुझे उसी श्रेणी की रचना जँची है।
मुख़्तार के उपन्यास में चित्रित उज़बेक समाज के जीवन और उनकी समस्याओं की छवि मुझे उत्तर भारत के जीवन से इतनी मिलती-जुलती लगी कि उसे अपनी भाषा के पाठकों को दे सकने के उत्साह को दबा नहीं सका।
उज़बेक उच्चारण की ध्वनि को बनाए रखने के लिए जुलैखाँ ही रहने दिया है।
—यशपाल
Okka-Bokka
- Author Name:
Vinod Dubey
- Book Type:

-
Description:
लोकप्रिय कवि-कथाकार विनोद दूबे का उपन्यास ‘ओक्का-बोक्का’ पहली नज़र में तीन ऐसे दोस्तों की जीवन-गाथा है जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक दोस्ती की जादुई भावना को नए-नए सिरे से जीते हैं। सुलभ, अनवर और शरद की सदाबहार दोस्ती का ये क़िस्सा, उन्हीं तीनों में से एक शरद बयान कर रहा है, जिसने सबसे ज़्यादा दुनिया देखी है। सुलभ और अनवर अपने शहर जबलपुर में ही अपने सपनों को जीते हैं पर शरद की महत्त्वाकांक्षाओं के लिए जबलपुर बहुत छोटा है। वह सिंगापुर जाता है जहाँ वह एक बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी में सर्वोच्च पद तक पहुँचता है। और पैसे कमाने की दौड़ में कब ताक़त के पीछे भागने लगता है, यह उसे ख़ुद पता नहीं चलता। शिखर तक पहुँचने की इस दौड़ में उसकी सहजता, पत्नी और बेटी के साथ सम्बन्ध—सब कुछ दाँव पर लग जाते हैं और वह अपने आप को अकेला और बेचैन पाता है।
ओक्का-बोक्का में इन तीनों दोस्तों के तीन दिशाओं में खुलने वाले सपने हैं। इनके निजी और सार्वजनिक संघर्ष हैं। इनके परिवार हैं पर इनमें से हर एक इसे अपने ही अन्दाज़ में जी रहा है। इसमें साधारण जीवन की असाधारणता का, उसकी मन्थर गति का, उसकी नितान्त सामान्यता का, उसके भटकावों का एक बहती हुई बोलचाल की भाषा में किया गया बयान है। इसमें किसी बहुत बड़े दार्शनिक सच के उद्घाटन के बजाय उस जीवन का उद्घाटन है जो कला या साहित्य के बारे में ज़्यादा तो नहीं जानता पर उसका विषय ज़रूर बनता रहा है। ओक्का-बोक्का की सारी गाथा एक युवा डॉक्टर वैदेही से बयान की जा रही है इसलिए बिना किसी अतिरिक्त पक्षधरता या कोशिश के दो पीढ़ियों के बीच, उनके सपनों और अन्तर्द्वन्द्वों के बीच एक तुलना भी चलती रहती है। निजी भौतिक उपलब्धियों और सामाजिक अर्थवत्ता के बीच की तनी हुई रस्सी पर लिखा गया एक पठनीय उपन्यास।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...