Parti Parikatha
Author:
Phanishwarnath RenuPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
इस उपन्यास को पढ़ते हुए प्रत्येक संवेदनशील पाठक स्पन्दनीय ज़िन्दगी के सप्राण पन्नों को उलटता हुआ-सा अनुभव करेगा। सहृदयता के सहज-संचित कोष के रस से सराबोर प्रत्येक शब्द, हर गीत की आधी-पूरी कड़ी ने मानव-मन के अन्तरतम को प्रत्यक्ष और सजीव कर दिया है। दो पीढ़ियों के जीवन के विस्तृत चित्रपट पर अनगिनत महीन और लयपूर्ण रेखाओं की सहायता से चतुर कथाशिल्पी ने एक अमित कथाचित्र का प्रणयन किया है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास को पढ़कर समाप्त करने तक पाठक अनेक चरित्रों, घटना-प्रसंगों, संवादों और वर्णन-शैली के चमत्कारों से इतना सामीप्य अनुभव करने लगेंगे कि उनसे बिछुड़ना एक बार उनके हृदय में अवश्य कसक पैदा करके रहेगा।
ISBN: 9788126716999
Pages: 379
Avg Reading Time: 13 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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वृन्दावन को कृष्ण की क्रीड़ा-स्थली के रूप में जाना जाता है। श्रद्धा, भक्ति और समर्पण का यह केन्द्र वर्षों से न सिर्फ़ भारत बल्कि दुनिया-भर के कृष्ण-प्रेमियों को आकर्षित करता आ रहा है।
लेकिन इस धार्मिक नगरी का एक पक्ष और है—यहाँ रहनेवाली विधवाएँ और उनका त्रासद जीवन। देश-भर से वे स्त्रियाँ जिन्हें विधवा हो जाने के बाद अपने घर या ससुराल, कहीं भी ठिकाना नहीं मिलता, वे वृन्दावन चली आती हैं। वे चाहे जिस आयु की हों।
प्रतिष्ठित कथाकार और अपने हर उपन्यास के लिए व्यापक अध्ययन करनेवाले भगवानदास मोरवाल ने ‘मोक्षवन’ में इसी विषय को उठाया है। इसके लिए उन्होंने वृन्दावन में काफ़ी समय भी बिताया और सम्बन्धित सामग्री की खोज-बीन की।
इस कथाकृति में आज के वृन्दावन, उसके मन्दिरों, परम्पराओं, गलियों-मुहल्लों, देवस्थानों आदि का एक विराट दृश्य रचते हुए, वे विधवाओं के दैनिक दुखों, जीवन-चर्या, वृन्दावन के धािर्मक वातावरण में उनकी दृश्यता का एक प्रामाणिक और मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हैं।
कहानी कोलकाता से आई युवा विधवा हरिदासी की है, जो मोक्ष की इस यात्रा में अत्यन्त दुख सहन करते हुए अन्तत: संसार को विदा कह देती है और भारतीय संस्कृति से जुड़े कई ऐसे सवालों को उठा जाती है जिन पर हमारा समाज अकसर मौन रहता है।
वृंदावन के साथ-साथ इस उपन्यास में बंगाल की लाल सौंधी मिट्टी की महक और कपास के सफ़ेद फूलों की कोमल बेचैनी भी रह-रहकर पाठक को उद्वेलित करती है।
Baba Batesarnath
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

- Description: अगर यह कहना सच है कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती तो यह कहना सच को रेखांकित करना है कि नागार्जुन के उपन्यासों में इस महादेश की आत्मा साकार हो उठी है। वे सच्चे अर्थों में जनवादी कथाकार हैं जनसाधारण की बात को जनसाधारण के लिए जनसाधारण की भाषा में कहनेवाले कथाकार। उनके भाषा-शिल्प में कहीं कोई घटाटोप नहीं बनावट नहीं अगर कुछ है तो जीवन का सहज प्रवाह और इसीलिए मन को छू लेने की जैसी शक्ति उनके उपन्यासों में है वह कम देखने को मिलती है। बाबा बटेसरनाथ रचना-शिल्प की दृष्टि से नागार्जुन का विलक्षण प्रयोग है। इसका कथानायक कोई मानव-शरीरधारी नहीं बल्कि एक बूढ़ा बरगद है जिसके प्रति गाँव के लोगों की भावना वैसी ही है जैसी अपने किसी बड़े-बूढ़े के प्रति होती है और इसीलिए वे लोग उस पेड़ को साधारण बरगद नाम से नहीं बल्कि आदरसूचक बाबा बटेसरनाथ कहकर पुकारते हैं। यही बाबा बटेसरनाथ अपनी कहानी सुनाते-सुनाते पूरे गाँव की कहानी सुना जाते हैं,जिसकी कई पीढ़ियों के इतिहास के वे साक्षी रहे हैं। ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, ह्रास-रुदन और अभाव-अभियोगों का इसमें बड़ा ही सहज और मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।
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