Rajendra Yadav

Rajendra Yadav

22 Books

Kulta

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: प्यार और मुक्ति इनसान की बुनियादी आकांक्षाएँ हैं। स्वाभाविक और दुर्निवार। लेकिन यही प्यार अगर उसे अपनी सहज गति को बाधित करने वाला बन्धन लगने लगे तो उसे तोड़कर आगे बढ़ने में भी वह एकपल की देरी नहीं करना चाहता। स्वेच्छा से चुनी गई एक राह को छोड़कर किसी और रास्ते पर बढ़ने का यह निर्णय निर्द्वन्द्व नहीं होता लेकिन प्यार की तलाश में इनसान नए रास्ते पर बढ़ने का जोखिम उठा ही लेता है। ‘कुलटा’ प्यार के इसी प्रमेय को साबित करने वाली कहानी है। मिसेज तेजपाल अपने पति के अनुशासनबद्ध अभिजात परिवेश में खुद को बँधा महसूस करती है जबकि उसका व्यक्तित्व किसी निर्बन्ध झरने जैसा है। यौन सम्बन्धों के असन्तुलन और सैनिक जकड़बन्दी से मुक्ति के लिए वह अपने पवित्र प्यार की राह चुनती है। लेकिन एक स्त्री के अपने चुनाव को हमारा आधुनिक समाज कोई मान्यता नहीं देता। यदि वह अपनी राह स्वयं चुनती है तो उसके लिए कोई क्षमा नहीं है। इसे ही वह चुनौती देती है!... मिसेज तेजपाल पागल और कुलटा नहीं तो क्या है ?
Kulta

Kulta

Rajendra Yadav

199

₹ 159.2

Mantra-Viddh

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: ‘मंत्र-विद्ध’ प्यार की खुरदरी कहानी है—आज की मूर्तिकला की तरह... तारक और सुरजीत कौर के बीच एक तीसरा ‘व्यक्ति’ और है, और वह है प्यार! तारक अपने को समझाते हुए, दूसरे आदमी की निग़ाह से सारी स्थिति को देखता है और स्वयं आतंकित रहता है कि क्या सचमुच वीरता का वह क्षण उसी ने धारण किया था...क्षण अथवा आवेश-भरे दबाव का शायद एक ऐसा विस्फोट, जिसका अनुभव केवल कायर ही कर सकता है। यानी परम वीरता के काम पक्के कायर के सिवा कोई दूसरा नहीं कर सकता! प्यार जैसे रिश्ते और मानवीय आशा-आकांक्षा के साथ प्रायः ही उठ खड़े होने वाले द्वन्द्व का एक अलग ही कोण दिखाती है यह कथाकृति। तारक स्वयं को जिस रूप में प्रस्तुत करता है, वास्तव में वह उसके विपरीत है अर्थात भीरु, शंकालु और जिम्मेदारियों से भागने वाला। उसके विपरीत स्वाभिमानी और जिम्मेदार सुरजीत सामन्ती घुटन से मुक्ति के लिए तारक का साथ स्वीकार करती है और अपनी शक्ति और अभावों की तरफ से आँखें मूँदकर प्रेम को हासिल कर लेने का स्वप्न देखती है। परस्पर विपरीत ध्रुवों की नजदीकी का यह त्रासद यथार्थ इस उपन्यास को प्रेम और व्यक्ति-सम्बन्धों के बारे में एक भिन्न ही कोण से सामने लाता है। अपने समय का एक चर्चित उपन्यास।
Mantra-Viddh

Mantra-Viddh

Rajendra Yadav

199

₹ 159.2

Auron Ke Bahane

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: यदि डॉ. रामविलास शर्मा के एक वाक्य का संशोधित इस्तेमाल करें तो कह सकते हैं, ‘राजेन्द्र यादव सीमित अर्थ में साहित्यकार न थे। अपने लम्बे रचनात्मक जीवन में राजेन्द्र यादव ने कहानी व उपन्यास के अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी अपनी छाप छोड़ी। विमर्श, आलोचना, संस्मरण आदि के क्ष्रेत्र में उनकी मौलिकता का अनुभव किया जा सकता है।

    ‘औरों के बहाने’ संस्मरण और संश्लेषण की पुस्तक है। रांगेय राघव, अश्क, कृष्णा सोबती, कमलेश्वर, मन्नू भंडारी, अमरकान्त, पदमसिंह शर्मा कमलेश, ओमप्रकाश जी पर राजेन्द्र यादव के संस्मरण हैं। प्रेमचन्द व काफ़्का की आत्मीय चर्चा हैं। चेख़व का ऐसा काल्पनिक साक्षात्कार है, जिसको पढ़कर चेख़व के व्यक्तित्व-कृतित्व को देखने की दृष्टि बदल जाती है। पुस्तक में एक विशेष आलेख है ‘डार्करूम में बन्द आदमी : राजेन्द्र यादव’। इसे राजेन्द्र यादव की पत्नी और सुप्रतिष्ठित कथाकार मन्नू भंडारी ने ‘आलोचनात्मक आत्मीयता’ के साथ लिखा है।

    ‘औरों के बहाने’ की पृष्ठभूमि स्पष्ट करते हुए राजेन्द्र यादव ने लिखा है, “मेरी चेतना और मानसिकता के हिस्से बनकर भी कुछ लोग बढ़े और उगे हैं, कुछ समकालीनता की नियति से बँधे हैं और कुछ को देशकाल की सरहदों से खींचकर मैंने अपने बोध का हिस्सा बनाया है। वे भी मेरे अपने ‘होने’ के साथ ही हैं। इन सबको ‘देखना’ मुझे ‘आत्मसाक्षात्कार’ का ही एक आयाम लगता है।”

    संस्मरण, विश्लेषण और संश्लेषण की एक अनूठी पुस्तक।

Auron Ke Bahane

Auron Ke Bahane

Rajendra Yadav

695

₹ 556

Ab Ve Vhan Nahin Rehte

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव की त्रयी को ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रवर्त्तक और उन्नायक के रूप में जाना जाता है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह को नई कहानी की प्रवृत्तियों को सूत्रबद्ध करने का श्रेय है। यह बात ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद के ये चार शिखर रचनाकार आपस में गहरे मित्र थे, 1950 तथा ’60 के दशक में इन लोगों के बीच ज़बरदस्त अन्तर्संवाद भी था। आलोचना-प्रत्यालोचना और आत्मालोचना से भरे इस अन्तर्संवाद ने उस आन्दोलन को बल दिया, इन रचनाकारों को भी इससे ऊर्जा मिली यह वह समय था जब भारत का नया समाज बन रहा था और साहित्य का भी स्वरूप बदल रहा था। ऐसे में कुछ भी नया करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी था और उसका सबसे सुगम मार्ग था पत्र। मित्रों की स्वस्थ आलोचना उस समय का युगधर्म था। जाहिर है, रचनाशीलता के विकास में भी उसकी गहरी भूमिका थी। राजेन्द्र यादव के नाम मोहन राकेश, कमलेश्वर और डॉ. नामवर सिंह तथा राजेन्द्र यादव के नामवर सिंह के लिए पत्रों का यह संग्रह अपने समय के लेखकीय अन्तर्संवादों का जीवन्त दस्तावेज़ है। इनके माध्यम से इन लेखकों के रचनात्मक संघर्ष को भी समझा जा सकता है और साहित्य की उन अन्तर्ध्वनियों को भी, जिन्हें साहित्य के किसी इतिहास के माध्यम से सुन-समझ पाना सम्भव नहीं है।
Ab Ve Vhan Nahin Rehte

Ab Ve Vhan Nahin Rehte

Rajendra Yadav

895

₹ 716

Mubarak Pahla Kadam

  • Author Name:

    Sanjeev +1

  • Book Type:
  • Description: पहली नज़र, पहली प्रीति, पहली कृति...ग़रज़ कि किसी भी चीज़ का पहला होना। कितना आह्लादकारी होता है, इस पहले का अनुभव करना। यह अहसास अपने लिए तो रोमांचक होता ही है, औरों के लिए भी कम रोमांचक नहीं होता। कथा साहित्य में पहली कहानी अपने आप में सृजन-संभार के टटकेपन के इसी सुखद अहसास को समोए रहती है। आगे चलकर उस कथाकार के विकास के ग्राफ़ को जानने के लिए भी परिमापन इसी बिन्दु से होता है। इसीलिए कथाकारों के बारे में अक्सर पूछा जाता है कि कौन थी उनकी पहली कहानी, कहाँ प्रकाशित हुई थी और कब? ‘हंस’ में प्रकाशित कथाकारों की पहली कहानियों का यह संचयन इन प्रश्नों का एक विनम्र उत्तर है। यह संचयन इस लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें जिन कहानीकारों की कहानियाँ संकलित हैं, उनमें से अधिसंख्य ने बाद में अपनी बुलन्दी के झंडे गाड़े।
Mubarak Pahla Kadam

Mubarak Pahla Kadam

Sanjeev

1295

₹ 1036

Dhol Aur Apne Paar

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: राजेन्द्र यादव नई कहानी की ज़मीन को हमवार करनेवाले अगली पंक्ति के कथाकारों में एक रहे हैं। शहरी मध्यवर्गीय समाज की वर्गगत विद्रूपताओं, विडम्बनाओं और पीड़ाओं का अत्यन्त प्रामाणिक विश्वसनीय लेखा-जोखा उनके यहाँ मिलता है।

    जीवन के दैनिक प्रसंगों में निहित अन्तर्विरोध को उजागर करने के लिए कहानी के शिल्प में भी राजेन्द्र यादव ने अनेक प्रयोग किए हैं। मध्यवर्गीय मनोरचना की जटिल गुत्थियों को खोलने-समझने के लिए यह शायद ज़रूरी भी था।

    इस संकलन की कहानियाँ भी स्वातंत्र्योत्तर भारत के मध्यवित्त समाज के भीतर संक्रमण से गुज़र रहे नैतिक मूल्यों, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, सामाजिक परिस्थितियों तथा इन सबके बीच पैदा हो रही नई दृष्टि को रेखांकित करती हैं।

    —डॉ. देवराज।

Dhol Aur Apne Paar

Dhol Aur Apne Paar

Rajendra Yadav

895

₹ 716

Vahan tak pahuchane ki daur

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: राजेन्द्र यादव अपने दौर के विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण रचनाकार ही नहीं, नई कहानी आन्दोलन के प्रतिनिधि लेखक भी हैं। विगत कुछ वर्षों में राजेन्द्र यादव का रचनात्मक लेखन बहुत ही सीमित रहा है, परन्तु उनकी सक्रियता सदा बनी रही है। अपने लेखों, बहसों व ‘हंस’ के माध्यम से वह एक रचनात्मक माहौल तैयार करने की दिशा में ही सक्रिय नहीं रहे हैं, बल्कि लगभग सभी सामयिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं में एक जीवन्त हस्तक्षेप करते रहे हैं।

    वैसे भी किसी लेखक की सार्थकता अन्ततः इस बात में नहीं है कि उसने कितना लिखा, बल्कि इस बात में है कि उसने क्या लिखा और समाज तथा साहित्य विशेष के सन्दर्भ में उस लेखन का महत्त्व व भूमिका क्या रही। राजेन्द्र यादव की कहानियाँ बदलते सन्दर्भों में अपनी सार्थकता तथा ‘रिलीवेंस’ खोजते पात्रों के ऊहापोह, द्वन्द्व व आत्म-संघर्ष का लेखा-जोखा हैं। चूँकि राजेन्द्र यादव के पात्र अधिकांशतः मध्यवर्ग से सम्बन्धित हैं, सम्भवतः इसीलिए उनमें एक विशिष्ट क़िस्म की बौद्धिक ऊर्जा का भास है। यह वह वर्ग है, जो अपने कार्य-कलाप और मानसिकता से बदलते यथार्थ का गहरा अहसास ही नहीं कराता, बल्कि इस बात का भी संकेत देता है कि यह समाज आख़िर जानेवाला किस दिशा में है।

    राजेन्द्र यादव की कहानियों को पढ़ना, नई कहानी की सामान्य प्रवृत्ति के अलावा कहीं आगे जाकर एक सजग और संवेदनशील रचनालोक से गुज़रना है, जिसमें भावुकता का अनियंत्रित व असन्तुलित प्रवाह न होकर (जो नई कहानी के रचनाकारों में दोष की हद तक है) एक सजग व नियंत्रित ‘इंटरप्ले’ देखने को मिलता है और यह किसी सिद्धहस्त रचनाकार की क़लम से ही सम्भव हो सकता है।

Vahan tak pahuchane ki daur

Vahan tak pahuchane ki daur

Rajendra Yadav

495

₹ 396

Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: पच्चीस साल। एक सदी का चौथाई हिस्सा। हर साल में बारह अंक। हर अंक में औसतन छह या सात कहानियाँ।

    मानकर चलें कि ‘हंस’ में छपने के लिए चुने जाने का मतलब ही किसी भी कहानी के लिए संकलन योग्य होना है और क़ायदे से बारह-पन्द्रह कहानियों का एक सालाना संकलन हर बरस छापा जा सकता है।

    कुल मिलाकर तकरीबन 2100 कहानियों में से बार-बार के सोच-विचार के बाद 136 कहानियाँ सूचीबद्ध की गईं।

    ‘हंस’ के भीतर से साथियों के सुझाव भी तरह-तरह के थे। पाठकों की वोटिंग से, सुधी पाठकों या लेखकों के सुझाव से, लेखकों के अपने अनुरोध की रक्षा से, एक चयन-समिति की नियुक्ति और सम्मिलित चयन से, वग़ैरह। लेकिन ये सभी चुनाव एक निश्चित परियोजना के बजाय यादृच्छिक क़िस्म का घालमेल ही बनकर रह जा सकते थे।

    यहाँ अनुसूचित लगभग हर कहानी अपने आप में एक प्रतिमान कही जा सकती है।

    —भूमिका से

Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

Rajendra Yadav

750

₹ 600

Ek Duniya : Samanantar

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: आधुनिक साहित्य की सबसे अधिक सशक्त, जीवन्त और महत्त्वपूर्ण साहित्य विधा—कहानी—को लेकर इधर जो विवाद, हलचलें, प्रश्न, जिज्ञासाएँ और गोष्ठियाँ हुई हैं, उन सभी में कला-साहित्य के नए-पुराने सवालों को बार-बार उठाया गया है। कथाकार राजेन्द्र यादव ने पहली बार कहानी के मूलभूत और सामयिक प्रश्नों को साहस और व्यापक अन्तर्दृष्टि के साथ खुलकर सामने रखा है, देशी-विदेशी कहानियों के परिप्रेक्ष्य में उन पर विचार और उनका निर्भीक विवेचन किया है। कइयों की अप्रसन्नता और समर्थन की चिन्ता से मुक्त, यह गम्भीर विश्लेषण जितना तीखा है, उतना ही महत्त्वपूर्ण भी।

    लेकिन उन कहानियों के बिना यह सारा विश्लेषण अधूरा रहता जिनका ज़िक्र समीक्षक, लेखक, सम्पादक, पाठक बार-बार करते रहे हैं; और जिनसे आज की कहानी का धरातल बना है।

     

    निर्विवाद रूप से यह स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कहानी का बेजोड़ संकलन और प्रामाणिक ‘हैंड-बुक’ है। यह सिर्फ़ कुछ कहानियों का ढेर या बंडल नहीं है, बल्कि इनके चुनाव के पीछे एक विशेष जागरूक दृष्टि और कलात्मक आग्रह है।

    इसीलिए आज की सम्पूर्ण रचनात्मक चेतना को समझने के लिए ‘एक दुनिया : समानान्तर’ अपरिहार्य और अनुपेक्षणीय संकलन है, ऐतिहासिक और समकालीन लेखन का प्रतिनिधि सन्दर्भ ग्रन्थ...

    ‘एक दुनिया : समानान्तर’ की भूमिका ने कथा-समीक्षा में भीषण उथल-पुथल मचाई है, मूल्यांकन को नए धरातल दिए हैं। यह समीक्षा अपने आप में हिन्दी के विचार-साहित्य की एक उपलब्धि है।

    यह नया संस्करण इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है।

Ek Duniya : Samanantar

Ek Duniya : Samanantar

Rajendra Yadav

895

₹ 716

Ukhde Huye Log

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज की त्रासदी को यह उपन्यास दो स्तरों पर उद्‌घाटित करता है—पूँजीवादी शोषण और मध्यवर्गीय भटकाव। आकस्मिक नहीं कि सूरज-सरीखे संघर्षशील युवा पत्रकार के साहस और प्रेरणा के बावजूद उपन्यास के केन्द्रीय चरित्र—शरद और जया जिस भयावह यथार्थ से दूर भागते हैं, उनका कोई गंतव्य नहीं। न वे शोषक से जुड़ पा रहे हैं, न शोषित से।

    छठे दशक के पूर्वार्द्ध में प्रकाशित राजेन्द्र यादव की इस कथाकृति को पहला राजनीतिक उपन्यास कहा गया था और अनेक लेखकों एवं पत्र-पत्रिकाओं ने इसके बारे में लिखा था। मसलन, श्रीकान्त वर्मा ने कलकत्ता से प्रकाशित ‘सुप्रभात' में टिप्पणी करते हुए कहा कि  “शासन का पूँजी से समझौता है, ग़रीब मज़दूरों पर गोलियाँ चलाकर कृत्रिम आँसू बहानेवाली राष्ट्रीय पूँजी की अहिंसा है। इन सबको लेकर लेखक ने एक मनोरंजक और जीवन्त उपन्यास की रचना की है (और) पूँजीवादी संस्कृति की विकृतियों की अनेक झाँकियाँ दिखाई हैं।” अथवा ‘आलोचना’ में लिखा गया कि “ ‘उखड़े हुए लोग' में जिन लोगों का चित्रण किया गया है, वे एक ओर रूढ़ियों के कठोर पाश से व्याकुल हैं तथा दूसरी ओर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निरन्तर लुटते रहने के कारण जम पाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं। इस दोतरफ़ा संघर्ष में रत उखड़े हुए चेतन मध्यवर्गीय जीवन का एक पहलू प्रस्तुत उपन्यास में प्रकट हुआ है। बौद्धिक विचारणा की दृष्टि से यह उपन्यास पर्याप्त स्पष्ट और खरा है।” या फिर चन्द्रगुप्त विद्यालंकार की यह टिप्पणी कि, “सम्पूर्ण उपन्यास में एक ऐसी प्रभावशाली तीव्रता विद्यमान है, जो पाठक के हृदय में किसी न किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न किए बिना न रहेगी और (इसमें) अनुभूति की एक ऐसी गहराई है जो हिन्दी के बहुत कम उपन्यासों में मिलेगी।” कहना न होगा कि इस उपन्यास में लेखक ने “जहाँ एक ओर कथानक के प्रवाह, घटनाचक्र की निरन्तर और स्वाभाविक गति तथा स्वच्छ और अबाध नाटकीयता को निभाया है, वहीं दूसरी ओर उसने जीवन से प्राप्त सत्यों और अनुभूतियों को सुन्दर शिल्प और शैली में यथार्थ ढंग से अंकित भी किया है।”

Ukhde Huye Log

Ukhde Huye Log

Rajendra Yadav

695

₹ 556

Mud-Mudke Dekhta Hoon

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: यह मेरी आत्मकथा नहीं है? इन ‘अन्तर्दर्शनों’ को मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा ‘आत्मकथांश’ का नाम दे सकता हूँ। आत्मकथा वे लिखते हैं जो स्मृति के सहारे गुज़रे हुए को तरतीब दे सकते हैं। लम्बे समय तक अतीत में बने रहना उन्हें अच्छा लगता है। लिखने का वर्तमान क्षण, वहाँ तक आ पहुँचने की यात्रा ही नहीं होता, कहीं-न-कहीं उस यात्रा के लिए ‘जस्टीफिकेशन’ या वैधता की तलाश भी होती है—मानो कोई वकील केस तैयार कर रहा हो। लाख न चाहने पर भी वहाँ तथ्यों को काट-छाँटकर अनुकूल बनाने की कोशिशें छिपाए नहीं छिपतीं : देख लीजिए, मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ किन-किन घाटियों से होकर आया हूँ। अतीत मेरे लिए कभी भी पलायन, प्रस्थान की शरणस्थली नहीं रहा। ‘वे दिन कितने सुन्दर थे...काश, वही अतीत हमारा भविष्य भी होता’—की आकांक्षा व्यक्ति को स्मृतिजीवी, निठल्ला और राष्ट्र को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बनाती है। ज़ाहिर है इन स्मृति-खंडों में मैंने अतीत के उन्हीं अंशों को चुना है जो मुझे गतिशील बनाए रहे हैं। जो छूट गया है वह शायद याद रखने लायक नहीं था; न मेरे, न औरों के....कभी-कभी कुछ पीढ़ियाँ अगलों के लिए खाद बनती हैं। बीसवीं सदी के ‘उत्पादन’ हम सब ‘ख़ूबसूरत पैकिंग’ में शायद वही खाद हैं। यह हताशा नहीं, अपने ‘सही उपयोग’ का विश्वास है, भविष्य की फ़सल के लिए...बुद्ध के अनुसार ये वे नावें हैं जिनके सहारे मैंने ज़िन्दगी की कुछ नदियाँ पार की हैं और सिर पर लादे फिरने के बजाय उन्हें वहीं छोड़ दिया है। —भूमिका से
Mud-Mudke Dekhta Hoon

Mud-Mudke Dekhta Hoon

Rajendra Yadav

250

₹ 200

Rajendra Yadav Rachanawali : Vols. 1-15

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: राजेन्द्र यादव आज़ाद हिन्दुस्तान की दहलीज़ पर तैयार खड़ी नौजवान पीढ़ी के उस समुदाय के सदस्य हैं जिसकी मानसिकता 20वीं सदी के तीसरे-चौथे-पाँचवें दशक में विश्वव्यापी निराशा और मोहभंग में संरचित हुई है। दहलीज़ पर खड़ी आज़ाद, नौजवान पीढ़ी के इस समुदाय के लिए विचार, दर्शन, रणनीति, भविष्य की संरचना, आगामी का नक़्शा—सब कुछ एक भिन्न विवेक और नए तर्क के सहारे गढ़ा जाना है। उसकी मंशा में नई शुरुआत अतीत के साथ सम्पूर्ण विच्छेद से होनी है।

    राजेन्द्र यादव के रचनात्मक उपक्रम की अन्तर्वस्तु यही विचार है जो नई दुनिया की रचना का मूलाधार है। यह ‘कैंड़े’ के आदमी का काम है; गुर्दा चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक विरल पराक्रम है। अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में राजेन्द्र यादव विशेषत: अपने विचार को उसकी तार्किक संगति की आख़िरी हद तक ले जा सकने की क्षमता से लैस दिखाई देते हैं। उनके उपन्यासों में ऐसे ही किसी जड़ीभूत पारिवारिक-सामाजिक-राजनीतिक आग्रहों के उच्छेदन का अभियान छेड़ा गया है। रचनावली के खंड 1 से 5 तक में संकलित उपन्यास इसकी गवाही देते हैं।

    राजेन्द्र जी ने अपने लेखन का प्रारम्भ कविताओं से किया। परन्तु बाद में 1945-46 की इन आरम्भिक कविताओं को महत्त्वहीन मानकर नष्ट कर दिया। बाद में लिखी उनकी कविताएँ 'आवाज़ तेरी है' नाम से 1960 में ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित हुईं। इनके अतिरिक्त राजेन्द्र यादव की कुछ कविताएँ अभी तक अप्रकाशित हैं। रचनावली का पहला खंड उनके इसी आरम्भिक लेखन को समर्पित है। जिसमें एक तरफ़ उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित कविताएँ हैं और दूसरी तरफ़ ‘प्रेत बोलते हैं’ और ‘एक था शैलेन्द्र’ जैसे प्रारम्भिक उपन्यास। दूसरे खंड में ‘उखड़े हुए लोग’ तथा ‘कुलटा’, तीसरे खंड में ‘सारा आकाश’, ‘शह और मात’, ‘अनदेखे अनजान पुल’ और चौथे खंड में ‘एक इंच मुस्कान’ तथा ‘मंत्रविद्ध’ जैसे उपन्यास शामिल हैं। रचनावली का पाँचवाँ खंड राजेन्द्र जी के अधूरे-अप्रकाशित उपन्यासों को एक साथ प्रस्तुत करता है। अधूरे होने के कारण इन सबको एक ही खंड में शामिल किया गया है।

Rajendra Yadav Rachanawali : Vols. 1-15

Rajendra Yadav Rachanawali : Vols. 1-15

Rajendra Yadav

6000

₹ 4800

Narak Le Janewali Lift

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: मेरे लिए अनुवाद दो भाषाओं की क्षमता, सम्भावना और शब्द-शक्तियों को खँगालने और सही अर्थ या मन्तव्य पकड़ सकने की चुनौती के रूप में आता है। यहाँ दोनों भाषाओं की अपनी बनावट ही नहीं, भौगोलिक स्थितियों और संस्कृतियों के साथ अलग समयों की यात्रा भी करनी पड़ती है। सौ-दो सौ या हज़ार साल पहले के समाज-समय को आज के मिज़ाज में ढालना सिर्फ़ शब्दार्थ देना ही नहीं है। इस प्रयास में प्रायः नाश अपनी भाषा का ही होता है। हमारे दिमाग़ पर मूल पाठ इतना हावी होता है कि अपनी भाषा-प्रकृति की तरफ़ ध्यान ही नहीं दे पाते।

    अनुवाद में मैं पहली जवाबदेही अपनी भाषा के प्रति मानता हूँ। वह मूल के प्रति ईमानदार होने के साथ अधिक से अधिक सहज, सम्प्रेषणीय और प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि या तो आप स्वयं मूलपाठ से मुक्त होकर अनुवाद का संशोधन करें या दूसरे ऐसे व्यक्ति से मदद लें जो मूल से आक्रान्त न हो।

    इन कहानियों के चुनाव के पीछे न कोई योजना है, न सिद्धान्त। जब जो कहानी पसन्द आ गई या जितनी फ़ुर्सत या मनःस्थिति सामने हुई, उसी हिसाब से कहानी चुन ली गई। चूँकि इन सारी कहानियों के अनुवाद की अवधि मोटे रूप से दस-पन्द्रह साल (1952-65) रही है, इसलिए शायद भाषा भी एक-सी नहीं है। फिर भी सम्भवतः पठनीय है।

    —भूमिका से

Narak Le Janewali Lift

Narak Le Janewali Lift

Rajendra Yadav

200

₹ 160

Waqt Hai Ek Break Ka

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: टी.वी. आज हमारे जीवन में जितनी गहराई तक उतर चुका है, उससे दुगुनी गहराई उसने शायद पतन की दिशा में हासिल कर ली है। वैचारिक शून्यता, दिशाहीनता, समाज की मूलभूत चिन्ताओं से निरपेक्ष रहने की आदत और सबसे ऊपर स्वयं को ईश्वर का स्थानापन्न मानने का ढीठ आत्मविश्वास। सस्ती अपराध कथाएँ, हत्याएँ, बलात्कार, भूत-प्रेत, अमीरों की लिजलिजी भावुक कहानियाँ, क्रिकेट और चटखारेदार राजनीति। लगभग यही सब है जो टी.वी. हमें चौबीसों घंटे दे रहा है। और यह सब जिस कारख़ाने में बनता है, या कहें कि जहाँ इसे परोसने लायक़ बनाया जाता है, वहाँ क्या होता है, परदे के परे के उस रहस्यलोक में कौन, कैसे और क्यों इन सिरकटे सपनों की कठपुतलियाँ नचा रहा है—इस किताब में शामिल कहानियाँ यही बताती हैं।

    जनवरी 2007 में प्रकाशित ‘हंस’ के विशेषांक ‘ख़बर चैनलों में पहली बार’ के लिए विभिन्न अग्रणी चैनलों में काम कर रहे पत्रकारों ने अपनी आपबीती को आधार बनाकर ये कहानियाँ लिखी थीं। बेशक, सभी कहानियाँ कलात्मक शर्तों पर खरी नहीं उतरतीं लेकिन इनके माध्यम से छोटे परदे के भीतरी सच की जो छवियाँ सामने आई हैं, वे हौलनाक हैं। इनसे हमें पता चलता है कि किस तरह देश की श्रेष्ठ पत्रकार प्रतिभाएँ सिर्फ़ अपनी जगह सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे को छुरा भोंकने में जुटी हैं, कैसे अकल्पनीय तनख़्वाहों का जाल उन्हें अपनी माया में बुन चुका है, और कैसे रचनात्मकता के नाम पर उनके पास सिर्फ़ ये छटपटाहट ही बची है जो इन कहानियों में प्रकट हुई है।

Waqt Hai Ek Break Ka

Waqt Hai Ek Break Ka

Rajendra Yadav

299

₹ 239.2

Katha Jagat Ki Baghi Muslim Auratein

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: ‘मुसलमान औरत’ नाम आते ही घर की चारदीवारी में बन्द या क़ैद, पर्दे में रहनेवाली एक ‘ख़ातून’ का चेहरा उभरता है। अब से कुछ साल पहले तक मुसलमान औरतों का मिला-जुला यही चेहरा ज़ेहन में महफ़ूज़ था। घर में मोटे-मोटे पर्दों के पीछे जीवन काट देनेवाली या घर से बाहर ख़तरनाक ‘बुर्कों’ में ऊपर से लेकर नीचे तक ख़ुद को छुपाए हुए।

    समय के साथ काले-काले बुर्कों के रंग भी बदल गए, लेकिन कितनी बदलीं मुस्लिम औरत या बिलकुल ही नहीं बदलीं! क़ायदे से देखें, तो अब भी छोटे-छोटे शहरों की औरतें बुर्का-संस्कृति में एक न ख़त्म होनेवाली घुटन का शिकार हैं, लेकिन घुटन से बग़ावत भी जन्म लेती है और मुसलमान औरतों के बग़ावत की लम्बी दास्तान रही है। ऐसा भी देखा गया है कि ‘मज़हबी फ़रीज़ों’ से जकड़ी, सौमो-सलात की पाबन्द औरत ने यकबारगी ही बग़ावत या जेहाद के बाज़ू फैलाए और खुली आज़ाद फ़िजा में समुद्री पक्षी की तरह उड़ती चली गई।

    लेखन के शुरुआती सफ़र में ही इन मुस्लिम महिलाओं ने जैसे मर्दों की वर्षों पुरानी हुक्मरानी के तौक़ को अपने गले से उतार फेंका था। ये महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं है कि मुस्लिम महिलाओं ने जब क़लम सॅंभाली तो अपनी क़लम से तलवार का काम लिया। इस तलवार की ज़द पर पुरुषों का, अब तक का समाज था। वर्षों की ग़ुलामी थी। भेदभाव और कुंठा से जन्मा, भयानक पीड़ा देनेवाला एहसास था। संग्रह में शामिल कहानियों में इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया है कि कहानी में नर्म, गर्म बग़ावत के संकेत ज़रूर मिलते हों। संग्रह की कुछ कहानियाँ तो पूरी-पूरी बगावत का ‘अलम’ (झंडा) लिए चलती नज़र आती हैं, लेकिन कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं, जहाँ बस दूर से इस एहसास को छुआ भर गया है।

    निःसन्देह ये कहानियाँ औरतों की अपने अस्तित्व की लड़ाई की दास्ताँ बयान करती हैं जो तरक़्क़पसन्द पाठकों को बेहद प्रभावित करेंगी।

Katha Jagat Ki Baghi Muslim Auratein

Katha Jagat Ki Baghi Muslim Auratein

Rajendra Yadav

250

₹ 200

Hasil Aur Anya Kahaniyan

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: प्रख्यात कथाकार राजेन्द्र यादव की इन कहानियों के केन्द्र में है, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध। सामन्ती मानदंडों और मूल्यों से ग्रस्त लोगों के लिए ये कहानियाँ ‘अश्लील, आपत्तिजनक, फूहड़ और कुंठित व्यक्ति की सेक्स-भड़ास’ हो सकती हैं। लेकिन नए मानवीय विवेक के आधार पर स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को देखने-परखने वाले पाठक इन कहानियों में उस स्त्री की करुणा और प्रतिरोध को भी लक्षित कर सकते हैं जो उसी बिस्तर से मुक्ति का नया द्वार ढूँढ़ने की बेचैन कोशिश कर रही है जहाँ वह अब तक पुरुष की हवस और क्रूरता की शिकार होती रही है। कथाकार ने खलनायकत्व का ख़तरा उठाकर भी इन कहानियों के माध्यम से पुरुष वर्ग की हिंस्र लम्पटता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है।

    कई दशकों के बाद राजेन्द्र यादव की कहानियों का यह नया संग्रह सामने आ रहा है। अपने शैली लाघव और जीवन की जटिलताओं को भीतर तक उकेरनेवाली ये कहानियाँ परिपक्व कथाभाषा के कारण भी पाठकों का ध्यान खींचेंगी। लेकिन बहुत सम्भव है कि इन कहानियों के विस्फोटक और विवादास्पद कथ्य ही चर्चा में रहे और बाक़ी बातों की ओर सुधी आलोचकों का ध्यान नहीं जाए। ये कहानियाँ मध्यवर्गीय पाठक ही नहीं, हिन्दी कथालोचना के सामने भी एक बड़ी चुनौती पेश करती हैं।

Hasil Aur Anya Kahaniyan

Hasil Aur Anya Kahaniyan

Rajendra Yadav

125

₹ 100

Pratinidhi Kahaniyan : Rajendra Yadav

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: समकलीन हिन्दी कहानी के विकास में राजेंद्र यादव एक अपरिहार्य और महत्त्वपूर्ण नाम है। हिन्दी कहानी की रूढ़ रूपात्मकता को तोड़ते हुए नई कहानी के क्षेत्र में जितने और जैसे कथा-प्रयोग उन्होंने किए हैं, उतने किसी और ने नहीं। राजेन्द्र यादव की कहानियाँ स्वाधीनता-बाद के विघटित हो रहे मानव-मूल्यों, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, बदलती हुई सामाजिक और नैतिक परिस्थितियों तथा पैदा हो रही एक नई विचार दृष्टि को रेखांकित करती हैं। उनकी कहानियों की व्यक्ति-चेतना सामाजिक चेतना से निरपेक्ष नहीं है; क्योंकि एक अनुभूत सामाजिक यथार्थ ही उनका यथार्थ है। यथार्थबोध के सम्बन्ध में उनकी अपनी मान्यता है कि ‘जो कुछ हमारे संवेदन के वृत्त में आ गया है, वही हमारा यथार्थ है...लेकिन इस यथार्थ को कलात्मक और प्रामाणिक रूप से सम्प्रेषणीय बनने के लिए ज़रूरी है कि हम इसे अपने से हटकर या उठकर देख सकें, उसे माध्यम की तरह इस्तेमाल कर सकें।’

    इस संकलन में लेखक की कई महत्त्वपूर्ण कहानियाँ शामिल हैं, जिनमें नए मानव-मूल्यों और युगीन यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। अपनी शिल्प-संरचना में ये इतनी सहज और विश्वसनीय हैं कि पाठक-मन परत-दर-परत उनमें उतरता चला जाता है।

Pratinidhi Kahaniyan : Rajendra Yadav

Pratinidhi Kahaniyan : Rajendra Yadav

Rajendra Yadav

199

₹ 159.2

Andekhe Anjaan Pul

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: भूरे लोगों के इस भारतीय समाज में स्त्री को कई अपमानजनक परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है। विवाह की पहली शर्त है—उसका गोरा होना। लड़की यदि काली, कुरूप हुई तो अस्वीकार का कोड़ा लहराने लगता है। क्या काली लड़की को सपने देखने का हक़ नहीं है? इस उपन्यास की नायिका निन्नी कालापन और कुरूपता के बावजूद सपनों में निकट के सागर को देखती है, लेकिन निन्नी के छूते ही सपने में बनी बर्फ़ की मूर्ति गल जाती है। जबकि दूर का और लगभग अनजाने दर्शन द्वारा समानता और स्नेह से दिया गया चुम्बन एक पुल बन जाता है। प्रख्यात कथाकार का यह उपन्यास स्त्री-जीवन को समानता की गरिमा देने पर बल देता है।
Andekhe Anjaan Pul

Andekhe Anjaan Pul

Rajendra Yadav

60

₹ 48

Shah Aur Maat : Sujata Ki Diary

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: ‘शह और मात’ दूसरे प्यार की जटिल और कटु कहानी है, जहाँ अपराध-भावना से पीड़ित प्रत्येक पात्र अपना पुनरान्वेषण करता है और अन्त में अपने को एक यंत्रणादायक भ्रान्ति और छलना से घिरा पाता है।

    उपन्यास की भाषा अपनी ताज़गी, अभिव्यंजना और शक्ति के लिए बार-बार प्रशंसित हुई है। इस उपन्यास को पढ़ना एक अद्भुत—लेकिन बेहद आत्मीय—अनुभव से गुज़रना है, जो अपने को देखने की नई दृष्टि देता है।

    ‘शह और मात’...एक शुद्ध मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, इसमें दो व्यक्तियों के प्रति तीसरे व्यक्तित्व (यानी सुजाता) की प्रतिक्रियाओं का वर्णन है। अचरज की बात यह है कि देशकाल की स्थितियों से प्रायः कोई मदद न लेते हुए भी लेखक इस उपन्यास को इतना नाटकीय और सजीव बना देता है! सुजाता की उदय से सम्बद्ध दिलचस्पी क्रमशः अधिक तीखी और गहरी होती जाती है। यह दिलचस्पी बहुत कुछ बौद्धिक क़िस्म की है, उपन्यास की नाटकीयता भी एक ख़ास तरह का बौद्धिक मनोवैज्ञानिक विनोद करती है। उपन्यास की नाटकीयता और रोचकता का एकमात्र रहस्य उसकी मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता एवं यथार्थ की अनुकारिता है। उपन्यास का प्रत्येक पन्ना रोचक है।

    —डॉ. देवराज

Shah Aur Maat : Sujata Ki Diary

Shah Aur Maat : Sujata Ki Diary

Rajendra Yadav

299

₹ 239.2

Sara Aakash

  • Author Name:

    Rajendra Yadav

  • Book Type:
  • Description: आज़ाद भारत की युवा-पीढ़ी के वर्तमान की त्रासदी और भविष्य का नक़्शा। आश्वासन तो यह है कि सम्पूर्ण दुनिया और सारा आकाश तुम्हारे सामने खुला है—सिर्फ़ तुम्हारे भीतर इसे जीतने और नापने का संकल्प हो—हाथ-पैरों में शक्ति हो...

    मगर असलियत यह है कि हर पाँव में बेड़ियाँ हैं और हर दरवाज़ा बन्द है। युवा बेचैनी को दिखाई नहीं देता कि किधर जाए और क्या करे। इसी में टूटता है उसका तन, मन और भविष्य का सपना। फिर वह क्या करे—पलायन, आत्महत्या या आत्मसमर्पण?

    आज़ादी के पचास बरसों ने भी इस नक़्शे को बदला नहीं—इस अर्थ में ‘सारा आकाश’ ऐतिहासिक उपन्यास भी है और समकालीन भी।

    बेहद पठनीय और हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासों में से एक ‘सारा आकाश’ चालीस संस्करणों में आठ लाख प्रतियों से ऊपर छप चुका है, लगभग सारी भारतीय और प्रमुख विदेशी भाषाओं में अनूदित है। बासु चटर्जी द्वारा बनी फ़िल्म ‘सारा आकाश’ (हिन्दी) सार्थक कलाफ़िल्मों की प्रारम्भकर्ता फ़िल्म है।

Sara Aakash

Sara Aakash

Rajendra Yadav

299

₹ 239.2

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