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Culture Valture

  • Author Name:

    Mamta Kaliya

  • Book Type:
  • Description:

    शीर्षस्थ कथाकार ममता कालिया की प्रत्येक रचना पर उनकी रचनाशीलता के हस्ताक्षर रहते हैं। संवेदना की थाह लेने और भाषा में उसे संभव करने का उनका अपना एक अनूठा ढंग है। ‘कल्चर वल्चर’ ममता कालिया का एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। इसके बीज-विचार के सन्दर्भ में उन्होंने लिखा है, 'कला, साहित्य व संस्कृति आज सरोकार न रहकर कारोबार बनते जा रहे हैं और इसके प्रबन्धक, कारोबारी। इनके हाथों में संस्कृति, विकृति बन रही है और साहित्य, वाहित्य।' ममता कालिया ने बहुत कुशलता के साथ कोलकाता की पृष्ठभूमि में इस उपन्यास की कथा बुनी है। महत्तर उद्देश्यों को लेकर अस्तित्व में आई एक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था किस तरह विडंबनाओं, विरूपताओं, अन्तर्विरोधों, कपट, कलह, चतुर चाटुकारिता व निजी महत्त्वाकांक्षाओं का तलघर बन जाती है—यह तथ्य 'कल्चर वल्चर' में बहुत बारीकी से उजागर हुआ है। लेखकीय कौशल यह है कि सारे चरित्र और कथा-प्रसंग कल्पना पर आधारित होते हुए भी अपनी निष्पत्तियों में अत्यन्त जीवन्त हैं। चाहें तो इस उपन्यास में समकालीनता की पदचाप या अनुगूँज भी सुन सकते हैं। नवीन और सुषमा जैसे चरित्र अपने निहितार्थों के साथ पाठक के चित्त पर अंकित हो जाते हैं। लेखक ने व्यापक सन्दर्भों के साथ उन मनोवृत्तियों को टटोला है जो शब्द में सिक्कों की खनक और साहित्य में सरोकारों का शोकगीत सुनना चाहती हैं। यह उपन्यास भूमंडलीकरण, उद्दंड पूँजी, निरंकुश सोच आदि के आशयों को भी खंगालता है। अपनी प्रांजल व खिलंदड़ी भाषा के लिए ममता कालिया बहुप्रशंसित हैं। यह उपन्यास उनकी रचनात्मक सिद्धि का एक अभिनव आयाम है।

Culture Valture

Culture Valture

350

₹ 273

PAPERBACK

Khari Nadi

  • Author Name:

    Richa Nagar

  • Rating:
  • Book Type:
  • Description:

    खारी नदी को आप मुमताज़ बेगम की कहानी कहिए, या फिर उनकी कहानी से हिम्मत बटोरती कई कहानियाँ कहिए, आपबीती कहिए, ज़िन्दगी के तजुर्बे कहिए, पर यह कहानी हमें अपने आप से और दुनिया की कठोर सच्चाई से रू-ब-रू कराती है और आगे के रास्ते भी दिखाती है। इसलिए ये महज़ कहानी या आपबीती नहीं रह जाती बल्कि खारी नदी कहलाती है। खारा तो समुन्दर भी होता है, लेकिन इस नदी का खारापन आँसुओं से जुड़ा है। उसके बावजूद इसमें उमंगों की लहरें हैं जो इस कहानी को ख़ास बनाती हैं। हमारे आसपास की दुनिया ने कुछ दस्तूर बना दिए हैं, कुछ ठप्पे बना दिए हैं, जो बस इनसानों पर लगा दिए जाते है, कि ये तो ऐसा ही होगा। एक तयशुदा नज़रिया और तयशुदा सज़ा... लेकिन खारी नदी तो इन सब नज़रियों से परे एक औरत का संघर्ष दिखाती है जो किसी भी वंचित समुदाय की औरत का संघर्ष हो सकता है। खारी नदी में बयाँ की गई मुमताज़ बेगम, नन्दा, और चन्द्रभागा के साथ-साथ तमाम औरतों की आपबीतियाँ हमें झकझोर कर रख देती हैं। हर कहानी किसी एक औरत की नहीं, बल्कि तमाम औरतों का बयान है जो उन पर लगाए गए असंख्य बन्धनों और दुखों को उजागर करता है। और ये सारे बन्धन और दुख कहीं-न-कहीं धर्म और जाति के साथ उलझकर अलग-अलग जगहों पर अपना जाल बिछाए हुए हैं, औरत गाँव-देहात की हो या शहर की, अनपढ़ हो चाहे पढ़ी-लिखी। लेकिन खारी नदी की हर कहानी में एक ज़िन्दा मन भी है, और संघर्ष की तैयारी भी। खारी नदी औरतों के दुख, आँसू और शोषण के साथ-साथ उनकी ज़िन्दगी को बेहतरीन बनाने के लिए किया गया संघर्ष है। उम्मीद है यह संघर्ष पाठक को बहुत कुछ सोचने, समझने, आँकने और उसे जीवन में उतारने पर मजबूर करेगा; एक नया नज़रिया देगा।

Khari Nadi

Khari Nadi

250

₹ 195

PAPERBACK

Parai Daal Ka Panchhi

  • Author Name:

    Amarkant

  • Book Type:
  • Description:

    महत्त्वाकांक्षा, प्यार और स्वार्थ। दीपक को अपने जीवन का सार यही लगता है। लेकिन उसे महसूस होता है कि जीवन से उसे कुछ नहीं मिला। पत्नी के रूप में उसे अहिल्या मिली जबकि वह चाहता था कि उसकी शादी किसी आधुनिक लड़की से होती। इसलिए वह हमेशा किसी पराई डाल की तलाश में रहता है, मित्रों के घर में, उनकी पत्नियों से ऐसा व्यवहार कर जाता है जो अपे‌क्षित नहीं है। इसके लिए उसे कई बार अपमान का पात्र भी बनना पड़ता है, जिसके चलते कुछ समय के लिए वह एक संयमित पारिवारिक जीवन बिताने और अपने मन के ऊपर नियन्त्रण रखने का संकल्प भी लेता है। लेकिन फिर रेखा उसकी जिन्दगी में आती है। साहित्य में रुचि रखनेवाली एक मेधावी छात्रा। दीपक की बौद्धिक बातों से वह उसके प्रेमपाश में बँध जाती है और दीपक एक बार फिर अहिल्या से दूर अपने सुख की तलाश में चल देता है... इस मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास में अमरकान्त एक मध्यवर्गीय परिवार में स्त्री की स्थि‌ति को भी भली-भाँति चित्रित करते हैं, और समाज के सम्बन्धों को भी जिनका आधार बहुत छोटे-छोटे स्वार्थ होते हैं।

Parai Daal Ka Panchhi

Parai Daal Ka Panchhi

299

₹ 233.22

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Bida Ki Raat

  • Author Name:

    Amarkant

  • Book Type:
  • Description:

    यथार्थवादी कथाकार अमरकान्त के इस चर्चित उपन्यास के केन्द्र में आज़ादी के बाद का भारतीय मुस्ल‌िम समाज, उसकी संस्कृति, उसकी सोच और उसके सामाजिक-पारिवारिक मरहले हैं। मुस्लिम महिलाओं के हालात पर लेखक ने इस उपन्यास में ख़ासतौर पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। भारत और पाकिस्तान का बँटवारा इस कथा में बार-बार विचार के केन्द्र में आता है और वह माहौल भी जो बँटवारे के वक़्त विशेष तौर पर उन इलाक़ों में मौजूद था जहाँ हिन्दू-मुस्लिम बरसों से साथ रहते आए थे। उपन्यास का एक पात्र मुनीर अहमद इन हालात के मद्देनज़र कहता है कि आज़ादी के पहले मज़हब और जात-पाँत के अलगाव तो थे, मगर सभी अपनी-अपनी हद में रहते हुए आज़ादी की लड़ाई में शामिल थे, लेकिन आज़ादी के बाद यह चीज़ गायब हो गई। साम्प्रदायिक दंगों के दौरान आम लोगों की स्थितियाँ भी इस उपन्यास में दिखाई देती हैं। इस उपन्यास के बारे में मशहूर है कि अमरकान्त जी ने इसकी पांडुलिपि को तब तक छपने नहीं दिया था जब तक इस्लामी समाज और धार्मिक पहलुओं के जानकार लोगों को इसे पढ़वा नहीं लिया। भारतीय मुस्लिम समाज के सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक मसलों पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास।

Bida Ki Raat

Bida Ki Raat

350

₹ 273

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Bahu Thakurain Ki Haat

  • Author Name:

    Rabindranath Thakur

  • Book Type:
  • Description:

    सजीवता का स्वत: स्फूर्त चांचल्य बीच-बीच में इस कृति में दिखाई देगा। इसका एक प्रमाण तो यही है कि इस उपन्यास के प्रकाशन के पश्चात बंकिम से एक अयाचित प्रशंसा-पत्र मिला था, वह अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ था। वह पत्र, एक मित्र के सँभालकर न रखे जा सके संग्रह में से खो गया। बंकिम ने अपना अभिमत प्रकट किया था कि पुस्तक यद्यपि कच्ची उम्र की पहली रचना है, फिर भी इसमें क्षमता का प्रभाव दिखाई दिया—उन्होंने इस कृति की आलोचना नहीं की। उसमें, कैशोर्य के भीतर आनन्दोपलब्धि का ऐसा कोई तत्त्व देखा, जिसने उन्हें एक अपरिचित बालक को चिट्ठी लिखने में प्रवृत्त किया। भविष्य की जो परिणति अजानी थी, वही उनके लिए किंचित आशा का आश्वासन लेकर आई थी। उनकी वह उत्साह-वाणी मेरे लिए बहुमूल्य थी। —रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Bahu Thakurain Ki Haat

Bahu Thakurain Ki Haat

250

₹ 195

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Lahrein

  • Author Name:

    Amarnath

  • Book Type:
  • Description:

    सामाजिक सरोकारों को लेकर अत्यन्त सचेत कथाकार अमरकान्त के इस उपन्यास के केन्द्र में क़स्बाई परिवेश की साधारण घरेलू महिलाएँ हैं जो धीरे-धीरे पुरुषप्रधान पारिवारिक व्यवस्था में अपनी अस्मिता और स्थिति के प्रति सजग होती हैं। उनका यह सफ़र शुरू होता है उस वक़्त जब मुहल्ले में किराये पर रहने वाला एक आत्ममुग्ध व्यक्ति बरसों से गाँव में छोड़ी अपनी पत्नी को लेकर आता है। यह सीधी-सादी ग्रामीण स्त्री बस एक सवाल से वहाँ की सुखी-सन्तुष्ट स्त्रियों को ‌झिंझोड़ देती है—‘ख़ूब कहती हो बहिनी, कहीं सुहागिन स्त्री का नाम पूछता है कोई? नाम लेकर बुलाता है भला?’ इस सवाल का जवाब किसी से नहीं बन पाता। वे सोचने लगती हैं कि वाक़ई, अपने ही विवाहित जीवन में, अपने ही परिवार में उनका नाम कैसे ग़ायब हो गया! यहीं से शुरू होता है उनका आत्म-चिन्तन जो पहले अकेले-दुकेले और फिर नियमित बैठकों तक जाता है और एक संस्था के रूप में फलीभूत होता है। अपनी पहचान को लेकर सजग होती स्त्रियों की विचारोत्तेज कथा है यह कृति।

Lahrein

Lahrein

199

₹ 155.22

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Zameen

  • Author Name:

    Mamang Dai

  • Book Type:
  • Description:

    “परमानन्द की यह अनुभूति कहाँ से जनमती है? यह उत्पन्न होती है प्रेम से, ज़मीन से जुड़ा प्रेम, उस प्रकाश से जुड़ा प्रेम जो पहाड़ियों के नक़ूश पैने करता है, उन्हें देवताओं के लिए सँवारता है। यह अनुभूति उत्पन्न होती है उस परितृप्त जीवन से जो नदियों और पेड़ों के परिपार्श्व में पनपता है, यह लड़ने, हारने और हार कर एक बार फिर से जूझने के लिए उठ खड़े होने से उत्पन्न होती है, और यह एक दिन, हम पर हमेशा के लिए यह ज़ाहिर होने से उत्पन्न होती है कि ज़िन्दगी और ज़मीन एक-दूसरे से कैसे नाभि-नालबद्ध हैं।” इतिहास, मिथक और समकालीन राजनीति को समेटते हुए ‘ज़मीन’ एक निहायत सुन्दर, किन्तु अशान्त प्रदेश और इसके रहवासियों की गाथा है। इसकी मार्फ़त कवि-उपन्यासकार ममंग दई हमें एक अविस्मरणीय यात्रा पर ले चलती हैं—काल के बन्धनों से परे कोजुम-कोजा की पवित्र भूमि से आधुनिक राज्य के रूप में अरुणाचल प्रदेश के गठन तक की यात्रा। मेइंग, जो अपने राज्य से दूर रहती है, अपने लोगों के इतिहास को दर्ज करने के लिए लौटती है—उन लोगों का इतिहास जिन्हें वह जानती है और जिन्होंने उसकी ‘ज़मीन’ को वास्तविक आकार दिया है। उनसे बातें करने, पुराने दस्तावेज़ों को उलटने-पुलटने के क्रम में असंख्य कथाएँ-उपकथाएँ सामने आती हैं, मानो तारों से खचित किसी झील का प्राचीन पानी उफनकर बाहर आने लगा हो। एक-एक कर सारे पात्र अपनी सम्पूर्णता व एक-अपर से सम्बद्धता के साथ सामने आने लगते हैं—वह संघर्ष और जिज्ञासा जो ‘नेफा’ (नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) की स्थापना की नींव में थी, लिपुन जैसे साहसी पुरुष और महिलाएँ जिन्होंने ऊँचे और अलंघ्य पर्वत दर्रों और घने जंगलों को पार कर दूरस्थ जनजातियों के बीच पुलों का निर्माण किया, ‘बारिशवाला’ जो प्रकृति के अबूझ इशारों को पढ़-समझ सकने में सक्षम है क्योंकि वह उससे गहरे जुड़ा हुआ है, उम्सी जो अपने आत्म की खोज में दूर-दुर्गम की यात्रा पर निकल जाती है, और लुतोर, जो अपनी जनता की नब्ज़ को परखने का हुनर रखता है, भले ही सार्वजनिक जीवन से उसका मोहभंग हो चुका है। इन सबके अलावा वहाँ भूमि और वन माफिया भी हैं, हिंसक उपद्रवियों से साँठ-गाँठ रखने वाले भ्रष्ट राजनेता हैं, ऐसे दोस्त हैं जो अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जानी दुश्मन में बदल सकते हैं। गीतात्मक, जीवन्त और महाकाव्यात्मक विस्तार लिये हुए ‘ज़मीन’ ऐसे लोगों और स्थान का आख्यान है, जो सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों की तरह, अपनी चौहद्दी को लाँघता हुआ समस्त मानवता की गाथा बन जाता है।

Zameen

Zameen

399

₹ 311.22

PAPERBACK

Mahua Ka Ped

  • Author Name:

    P. Baidyanath

  • Book Type:
  • Description:

    ‘महुआ का पेड़’ गाँव और शहर के विरोधाभास और उनके बीच आवाजाही करते सीधे-सादे पात्रों की ऐसी कहानियों का संग्रह है जो हमारे समय के यथार्थ को एकदम सरल और सहज भाषा में रेखांकित करती हैं। सरल हृदय लोगों की उदारता और स्वार्थ में अन्धे हुए लोगों की विद्रूपता के कई लोमहर्षक चित्र ये कहानियाँ हमारे सामने उपस्थित करती हैं। मनुष्यता को लेकर एक अन्तहीन उम्मीद इन कहानियों का वह आधार है जो कहीं कमजोर नहीं पड़ता। राबिया का सरल समर्पण हो या सुकुल बाबू और सुलक्षणा का मानवता के प्रति उदात्त व्यवहार; लेखक की निगाह अपने सूक्ष्म पर्यवेक्षण से जीवन में उन तन्तुओं की तलाश कर ही लेती है, जिनसे मनुष्य समाज प्रेरणा ग्रहण कर सकता है, और हताशा के अँधेरों में भी अपनी राह पा सकता है। ‘झूठी शान’ कहानी के नितेश और चन्दा अपने समाज की रूढ़ियों को ही किस तरह एक आधुनिक मोड़ देते हैं, यह देखने लायक है, इसी तरह जुम्मन द्वारा अपनी बकरी और उसके बच्चों को बचाने का संघर्ष मानव-मन की जटिल प्रकृति के उजले पक्ष को दिखाता है। इन कहानियों की एक उल्लेखनीय विशेषता इनकी सरल संरचना है जो इन्हें हर पाठक के लिए पठनीय बनाती है। कथाकार ने कहीं भी उपदेश देने का प्रयास नहीं किया, बल्कि जीवन के यथार्थ को एक सुन्दर कथा के रूप में ढालते हुए वे पाठक को सोचने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि वह अपने परिवेश के स्याह-सफ़ेद को स्वयं देख सके।

Mahua Ka Ped

Mahua Ka Ped

199

₹ 155.22

PAPERBACK

Arsalan aur Bahzad

  • Author Name:

    Khalid Javed

  • Book Type:
  • Description:

    ख़ालिद जावेद का नाम समकालीन उर्दू उपन्यास की पहचान भी है और शान भी। ‘अरसलान और बहज़ाद’ जादुई कहानियों के इस रचयिता का तीसरा उपन्यास है। जिसमें यथार्थ तल में है और सतह पर ऐसी ना-मुमकिन और अमूर्त घटनाएँ कि पढ़ने वाला हैरतज़दा रह जाए। प्रेम, करुणा, अपमान, क्रोध और महरूमी को इस दास्तान में जिस आवर्धक लेंस से देखा गया है, वह जीवन के प्रति हमें कभी बेज़ार करता है तो कभी उसकी निरर्थकता को हम पर और रोशन करता है। अगर आप ख़ालिद जावेद की लेखनी से परिचित हैं तो इसमें आपको महीन और गहरे ख़यालात की विस्तृत दुनिया से शनासाई होगी और अगर आप उन्हें इसी उपन्यास से पहली दफ़ा जान रहे हैं तो आप उनकी पिछली कृतियों के अध्ययन के लिए ख़ुद को विवश पाएँगे। ख़ालिद जावेद अपने पिछले दो उपन्यासों, ‘मौत की किताब’ और ‘नेमतख़ाना’ से हिन्दी पाठकों तक पहुँच कर पहले भी, कथ्य और क्राफ्ट की नई लहरों से परिचित करवा चुके हैं। ‘अरसलान और बहज़ाद’ इसी सिलसिले में एक ज़बरदस्त इज़ाफ़ा है, जिसे मौजूदा उर्दू फ़िक्शन के एक बड़े कारनामे के तौर पर तस्लीम किया जा चुका है।

Arsalan aur Bahzad

Arsalan aur Bahzad

399

₹ 311.22

PAPERBACK

Sah-Saa

  • Author Name:

    Geetanjali Shree

  • Book Type:
  • Description:

    ‘सह-सा’ छोटे-छोटे अकस्मातों में बनती व्यापक मानव नियति की कहानी है। रोज़मर्रा के अनाटकीय प्रसंगों की टकराहटों से बड़े सवालों के खुले में आ जाने की कहानी। न्यायमूर्ति भूलेराम मिसिर अवकाश-प्राप्ति के बाद पत्नी प्रेमिला, बेटी चिया, और अपाहिज अम्मा के साथ रह रहे हैं। पत्नी व बेटी नौकरी पर निकल जाती हैं और घर की ज़िम्मेदारियाँ खुशी खुशी उन्होंने अपने ऊपर ले ली हैं। माँ अपनी शोर करती पटरागाड़ी पर बैठ घर भर का मुआयना करती रहती हैं। भूलेराम का बेटा, श्रवण, दूसरे शहर में है। दो नौकर हैं, शम्भु और उसकी जिज्जी। सब साथ भी हैं, अलग-थलग भी। घरों के जाने पहचाने शीतयुद्ध में रत, जिसे भूलेराम खुला युद्ध नहीं बनने देते। हँसते-खेलते सब पर आदतन चिल्लाते हैं, और बिना डींग-दावे के सबका ध्यान रखते हैं। सहसा एक दिन वे बेआराम हो जाते हैं। प्यार से बनाये उनके वन-प्रांगण में एक गौरैया उनकी बाँह पर आ बैठती है। वे मुस्कुराते हैं कि बाँह को डाल समझ रही है पर तभी मन में संदेह कौंधता है कि उन्हें देख ही नहीं रही शायद। ‘मैं क्या अदृश्य? हवा? प्रेत? भूत सा फिरता अपने घर में।’ यह संदेह यादों की लंबी कड़ी से जुड़ता है। वे जर्जराने लगते हैं और अचानक बीमारी के एक झटके में दम तोड़ देते हैं। जीते जी अदृश्य होने लगे भूले मृत्योपरांत चारों ओर छा जाते हैं। प्रकट कथा के पीछे, उसके अनकहे में, एक और कथा भी चलती है जो दिखाती है कि इस वाचाल समय में हम वही देखते सुनते हैं जो ढिंढोरा है, भड़कीला है, उसके पीछे हो रहे को नहीं। बात चाहे परिजनों की हो या नेताओं की या मेहनतकश मज़दूरों की, हम चुपचाप के अच्छे और बुरे दोनों को मिस कर देते हैं। भूले द्वारा चुपचाप किया गया अच्छा और चूहों द्वारा चुपचाप किया गया संहार इसीलिए छिपा रहता है। इस कृति में भी गीतांजलि श्री की भाषा और शैली का अपना वैभव है। बदलती स्थितियों, मनःस्थितियों को उजागर करती कभी चुटीली, नुकीली, कभी प्रशांत, उदास और दार्शनिक। हमेशा बहुअर्थी। और इसमें है उस प्रकृति का अद्भुत वात्सल्य जिसे हम बेगाना बना बैठे हैं। ‘सह-सा’ एक अनूठी प्रेम गाथा है।

Sah-Saa

Sah-Saa

499

₹ 389.22

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Narak Dar Narak

  • Author Name:

    Mamta Kaliya

  • Book Type:
  • Description:

    ‘नरक-दर-नरक’ ममता कालिया के चर्चित उपन्यासों में से एक है। अपने समय का सांगोपांग चित्रण करने वाली यह रचना पाठकों और आलोचकों दोनों की प्रिय रही है। उपन्यास के केन्द्र में जगन और उषा हैं जो एक तरह से आज़ादी के बाद पैदा हुई युवा पीढ़ी का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। अच्छा रोज़गार और बेहतर जीवन उनके ऐसे सपने हैं जो अपनी योग्यता के बावजूद उन्हें अपनी पहुँच से दूर दिखाई देते हैं। प्रेम और उसके बाद तुरन्त ही शादी के बाद उनका प्यार ही है जो उन्हें राहत देता है, नहीं तो जगन के कॉलेज में वहाँ की राजनीति, मामूली-सी तनख़्वाह और उषा के सामने घर को सँभालने की चुनौती उन्हें तनाव में ही रखती है। हारकर वे मुम्बई से इलाहाबाद आते हैं और वहाँ जगन एक प्रेस शुरू करता है। लेकिन चुनौतियाँ यहाँ भी कम नहीं। नया शहर, नया काम और फिर एक बच्चा भी उनके जीवन में आ जाता है। दाम्पत्य जीवन और सामाजिक–राजनीतिक तनावों को यह उपन्यास अत्यन्त कुशलता से चित्रित करता है। भाषा की चुस्ती, संवाद और सूक्ष्म मनोभावों का अंकन कहीं भी पाठक को भटकने नहीं देता।

Narak Dar Narak

Narak Dar Narak

250

₹ 195

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Imartiya

  • Author Name:

    Nagarjun

  • Book Type:
  • Description:

    प्रगतिशील कवि-कथाकार नागार्जुन का यह उपन्यास माई इमरतीदास उर्फ इमरतिया नामक एक युवा अवधूतिन के बहाने भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक जड़वाद और पाखण्ड को अत्यन्त गहराई से उघाड़ता है। पूर्वोत्तर भारतीय सीमा के निकट एक गाँव से जुड़े जिस मठ को नागार्जुन ने इस कथा का केन्द्र बनाया है, उसी से अनपढ़ और धर्मभीरु ग्रामीण जन के शोषण के तमाम सूत्र आकर जुड़ते हैं। बड़े भूमिपति हों या धनपति, प्रशासक हों या स्मगलर, अफीम चरस के शौकीन हों या औरत के—वह मठ सभी का स्वर्ग है। सभी उससे जुड़े हैं, सभी उससे समृद्ध हो रहे हैं, इसीलिए उसकी समृद्धि चाहते हैं। लेकिन ‘लाल झंडावालों’ के इशारे पर घटी एक घटना ने उस स्वर्ग के समूचे नरक को उजागर कर दिया और उसका सारा तिलिस्म टूटने लगा। इसके बावजूद इमरतिया इसी नरक की ‘देवी’ है। एक ऐसी मानवी, जो दानवों के साथ रहते हुए भी अपनी तमाम मानवीय संवेदनाओं को बचाए हुए है और अन्ततः मस्तराम जैसे युवा अवधूत की प्रेम-प्रतीक्षा में तीर्थाटन को निकल जाती है।

Imartiya

Imartiya

199

₹ 155.22

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Qissa-Qissa Lucknowaa

  • Author Name:

    Zilani Bano

  • Book Type:
  • Description:

    ्सागोई उर्दू ज़बान का कदीमी फ़न है, जिसे वक्‍़त के साथ भुला दिया गया था, लेकिन इधर कुछ लोगों की कोशिशों के चलते यह कला वापस मुख्यधारा में आ रही है। हिमांशु बाजपेयी इन्हीं जियालों में एक हैं। इस किताब में उनके लखनऊ से मुतल्लिक क़िस्से हैं जिन्हें उन्होंने लोगों से, बड़े-बूढ़ों से, किताबों से, और कुछ ख़ुद के अपने तजुर्बों से हासिल करके क़लमबंद किया है। कुछ क़िस्से हो सकता है, पहले आपने सुने हों, लेकिन यहाँ हिमांशु ने उन्हें जिस तरह पेश किया है, वह उन्हें उनके क़िस्से बना देता है। एक बात और, लखनऊ के बारे में क़िस्सों की बात आती है तो ध्यान सीधे नवाबों के क़िस्सों की तरफ़ चला जाता है, लेकिन ये क़िस्से आमजन के हैं। लखनऊ की गलियों-मुहल्लों में रहने-सहनेवाले आम लोगों के क़िस्से। इनमें उनके दु:ख-दर्द भी हैं, उनकी शरारतें भी हैं, उनकी हिकमतें और हिमाकतें भी हैं, गरज़ कि वह सब है जो हर आम शख़्स इतिहास द्वारा गढ़े किसी भी नवाब या बादशाह से बड़ी और ज़्यादा काबिले-यक़ीन शय बनता है। बकौल हिमांशु वाजपेयी ‘‘ये क़िस्से लखनऊ की मशहूर तहज़ीब के ‘जनपक्ष’ को उभारते हैं...ज़्यादातर क़िस्से सच्चे हैं। कुछ एक सच्चे नहीं भी हैं...।’’ लेकिन इंसान के रुतबे को बतौर इंसान देखने की उनकी मंशा एकदम सच्ची है। लखनऊ के नवाबों के क़िस्से तमाम प्रचलित हैं, लेकिन अवाम के क़िस्से किताबों में बहुत कम मिलते हैं, जो उपलब्ध हैं, वह भी बिखरे हुए। यह किताब पहली बार उन तमाम बिखरे क़िस्सों को एक जगह बेहद ख़ूबसूरत भाषा में सामने ला रही है, जैसे एक सधा हुआ दास्तानगो सामने बैठा दास्तान सुना रहा हो

Qissa-Qissa Lucknowaa

Qissa-Qissa Lucknowaa

250

₹ 195

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