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Rahul Sankrityayan

Meri Europe Yatra

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: राहुल सांकृत्यायन की ‘मेरी यूरोप यात्रा’ अपने गहन पर्यवेक्षण और विद्वत्तापूर्ण विवरणों के चलते आज भी उतनी ही लोकप्रिय है, जितनी अपने पहले संस्करण के समय थी। भदन्त आनन्द कौसल्यायन के साथ अकस्मात शुरू की गई इस यात्रा में राहुल जी ने अपनी लम्बी समुद्र यात्रा का लोमहर्षक और ज्ञानवर्धक विवरण तो दिया ही है, यूरोप की संस्कृति और रहन-सहन की सूक्ष्म विशिष्टतओं का उल्लेख भी किया है, और भारत व यूरोप की तुलना करते हुए कुछ निष्कर्ष भी प्रस्तुत करते चले हैं। ‘लंदन में साढ़े तीन मास’ आलेख में लंदन म्यूजियम और उसके पुस्तकालय की सुव्यवस्था का जिक्र करते हुए वे इच्छा जाहिर करते हैं कि अपने यहाँ भी अध्ययन-मनन का ऐसा ही माहौल, ऐसी ही स्वच्छता हो तो कितना अच्छा हो। पुस्तक में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के बाद पेरिस और जर्मनी के संस्मरण भी अत्यन्त पठनीय और दृष्टि प्रदायक बन पड़े हैं।
Meri Europe Yatra

Meri Europe Yatra

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Kinnar Desh Mein

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: महा घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन ने हिमालय के तमाम अंचलों को अपनी आँखों से देखकर उनका परिचय लिखने का निश्चय किया था। उसी निश्चय का एक परिणाम है यह अनूठा भ्रमण-वृत्तान्त— ‘किन्नर देश में’। किन्नर देश से उनका आशय हिमाचल के उस रमणीय भू-भाग से है जो तिब्बत की सीमा पर सतलुज की घाटी में लगभग सत्तर मील की लम्बाई और प्रायः उतनी ही चौड़ाई में फैला हुआ है। यहाँ के प्राचीन निवासियों का ही जाति-नाम है किन्नर अथवा किंपुरुष। उन्हें देवयोनि माना जाता था। इस हिसाब से उनका प्रदेश देवलोक हुआ। स्वाभाविक ही उनके बारे में तमाम तरह की किंवदन्तियाँ और धारणाएँ अन्य समाजों में मौजूद रहीं। लेकिन राहुल ने पाया कि ‘जिस देश में कभी देवता रहते थे वहाँ पीछे पिछड़े मनुष्य रहने लगे’। इस पुस्तक में किन्नरों के समाज, संस्कृति, इतिहास, अर्थतंत्र, रीति-रिवाज, रहन-सहन, धर्म, मान्यताएँ, अन्धविश्वास आदि का विवरण दर्ज करते हुए वे उम्मीद जताते हैं कि इन पिछड़े मनुष्यों का देश फिर से देवलोक बन जाएगा। वस्तुतः इस पुस्तक में राहुल ऐसे एक भू-भाग का दर्शन करते हैं जो भारत का हिस्सा होते हुए भी अधिकतर भारतीयों के लिए अजाना या बहुत ही कम जाना हुआ है। कहना न होगा कि इस पुस्तक में साहित्य के सहृदय पाठकों के लिए एक अजाने-अनदेखे समाज और क्षेत्र का दिलचस्प वृत्तान्त है तो इतिहास, संस्कृति और मानवशास्त्र जैसे विषयों के अध्येताओं के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारी।
Kinnar Desh Mein

Kinnar Desh Mein

Rahul Sankrityayan

350

₹ 280

Singh Senapati

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: राहुल सांकृत्यायन के ऐतिहासिक उपन्यासों में ‘सिंह सेनापति’ का विशेष स्थान है। इसमें उस वैशाली की ढाई हजार साल पूर्व की ऐतिहासिक गाथा को लिपिबद्ध किया गया है, जिसे गणतंत्र की जननी माना जाता है। इस उपन्यास में राहुल दिखलाते है कि गणतांत्रिक अथवा प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था से भारत का परिचय हजारों साल पहले हो चुका था। वैशाली के निवासियों ने, आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व अपने लिए गणतांत्रिक व्यवस्था का आविष्कार कर लिया था और उसको सफलतापूर्वक संचालित किया था। ऐतिहासिक तथ्यों के जरिये वे इस कथा को न सिर्फ जीवन्तता बल्कि प्रामाणिकता भी प्रदान करते हैं। उपन्यास की कथा युद्ध और प्रेम का आधार लेकर आगे बढ़ती है, जिसमें तत्कालीन युग और जीवन को सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है। साथ ही उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक-नैतिक मूल्यबोधों के बीच ​स्त्रियों की आजादी, बराबरी, भाई-चारा आदि को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। परिणामत: यह कृति अपने ऐतिहासिक परिधि को लाँघकर सार्वकालिक प्रासंगिकता प्राप्त कर लेती है।
Singh Senapati

Singh Senapati

Rahul Sankrityayan

250

₹ 200

Roos Mein Pachchis Mas

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘मैं रूस में, जर्मनी की लड़ाई के समाप्त होने के थोड़ी ही देर बाद पहुँचा था। रूस की अन्नदायिका भूमि का बहुत सा भाग जर्मनों के हाथ में चला गया था। लेकिन रूसियों ने ‘अधिक अन्न उपजाओ’ जैसा मज़ाक करके प्रोपेगेंडा पर करोड़ों रुपया बेकार खर्च नहीं किया, बल्कि अन्न उपजाने के लिए नहरों के पानी और खाद की आवश्यकता होती है, इसे समझकर इस ओर पूरा ध्यान दिया।’ राहुल जी के ये शब्द बताते हैं कि रूस की तत्कालीन शासन और सामाजिक व्यवस्था के प्रति उनके मन में कितना प्रशंसा-भाव था। यह उनकी तीसरी रूस यात्रा थी। इस यात्रा-वृत्त में वे सोवियत व्यवस्था को बहुत गहरी उम्मीद के साथ देखते हुए विश्वास जताते हैं कि आज या कल सभी मुल्कों को अपनी समस्याओं का हल इसी रास्ते से मिलेगा जिस पर उस समय रूस चल रहा था, और बाद में चीन भी चला। अच्छी बातों के साथ-साथ उन्होंने उस समय दिखाई पड़ रही ऐसी बातों को लिखने में भी संकोच नहीं किया जिन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता। जीवन के लिए आवश्यक साधारण चीजों का अभाव, दुर्व्यवस्था और कुछ लोगों की अकर्मण्यता पर भी उनकी नज़र जाती है, लेकिन उन्हें फिर भी लगता है कि यह स्थायी नहीं है। जो पाठक तत्कालीन सोवियत संघ को जानने की इच्छा रखते हैं उनके लिए इस पुस्तक में अंकित राहुल जी के ऐतिहासिक महत्व के पर्यवेक्षण बेहद सहायक होंगे।
Roos Mein Pachchis Mas

Roos Mein Pachchis Mas

Rahul Sankrityayan

299

₹ 239.2

Rajasthani Ranivas

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘राजस्थानी रनिवास’ राहुल सांकृत्यायन की एक बहुचर्चित कृति है। भारतीय समाज से जुड़ा एक अत्यन्त प्रासंगिक प्रश्न इसके केन्द्र में है—पुरुष प्रधान सामन्ती समाज में स्त्रियों की परवशता। राहुल उन लेखकों में से थे जो लेखन को सामाजिक परिष्कार की संगति में देखते थे। इसलिए उन्होंने चुन-चुनकर उन विषयों पर लिखा जिनकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना वे आवश्यक समझते थे। ऐसे विषयों में एक तरफ इतिहास और संस्कृति की गौरवशाली चीजें थीं तो दूसरी तरफ वे चीजें जो हमारी उन्नति की राह में बाधा। प्रस्तुत पुस्तक में राहुल ने जो विषय उठाया है वह दूसरे प्रकार का है। पुस्तक की नायिका गौरी के मुख से वे राजस्थानी रनिवासों के सात पर्दों में रहने वाली रानियों-ठकुरानियों की दुःख भरी कहानी और वहां के पुरुषों की स्वेच्छाचारिता को वे पूरी साफगोई से उजागर करते हैं। स्त्रियों पर पुरुषों के नियंत्रण को सामन्ती समाज अपने वैभव और गौरव के रूप में पेश करता रहा है, लेकिन उसकी अमानवीय वास्तविकता किसी भी सहृदय व्यक्ति को बेचैन कर देगी। ‘राजस्थानी रनिवास’ इसी बेचैनी को बढ़ाने के उद्देश्य से रची गयी कृति है जिसका सन्देश आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
Rajasthani Ranivas

Rajasthani Ranivas

Rahul Sankrityayan

350

₹ 280

Bhago Nahin Duniya Ko Badlo

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: राहुल सांकृत्यायन का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्न-भिन्न भाषा, साहित्य एवं प्राचीन संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था। उनके घुमक्कड़ जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृति ही सर्वोपरि रही। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गए, उसकी पूरी जानकारी हासिल की। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गए, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रत: आत्मसात् कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया। ‘भागा नहीं दुनिया का बदलो’ राहुल जी की अनुपम क्रान्तिकारी रचना है। यह कहानियों और उपन्यास के बीच की एक अनोखी राजनीतिक कथाकृति है। इस कृति की रचना का विशेष उद्देश्य यह है कि कम पढ़े-लिखे लोग राजनीति को समझ सकें। उन्हें अपनी अच्छाई-बुराई भी मालूम हो और उन्हें इसका भी ज्ञान हो कि राजनीति की दुनिया में कैसे-कैसे दाँव-पेंच खेले जाते हैं। राहुल-साहित्य में इस कृति का एक विशिष्ट स्थान है।
Bhago Nahin Duniya Ko Badlo

Bhago Nahin Duniya Ko Badlo

Rahul Sankrityayan

299

₹ 239.2

Bahurangi Madhupuri

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: राहुल सांकृत्यायन ने हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में यात्राएँ करके वहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को पाठकों के लिए सुलभ किया। अपने यात्रा-वृत्तान्तों और अन्य पुस्तकों में उसके सप्रमाण और सुदीर्घ विवरण दिए, जिससे हिन्दी और पाठकों के ज्ञानकोष में उल्लेखनीय अभिवृद्धि हुई। लेकिन हिमालय के निचले तराई क्षेत्र के जीवन-जगत को भी उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था। यहाँ हो रहे सामाजिक तथा सांकृतिक बदलावों और परिवर्तनशील वर्तमान की ये छवियाँ अकसर उनकी कहानियों में प्रकट हुई हैं। ‘बहुरंगी मधुपुरी’ में शामिल कहानियों को आप उसी के उदाहरण के रूप में पढ़ सकते हैं। मधुपुरी जिसे उन्होंने विलासपुरी भी कहा है, वह स्थान है जहाँ अंग्रेज गर्मियों के दिनों में रहने और काम करने जाते थे। उन्होंने उन क्षेत्र को अपने ढंग से विकसित करना शुरू किया था, फलतः वहाँ के मूल निवासियों से भी उनका सीधा सम्पर्क हुआ। ये कहानियाँ इसी गतिशील सामाजिकी को सामने लाती हैं। ये सिर्फ कहानियाँ नहीं हैं, इनमें एक तरह का समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी है। अंग्रेजों की देखा-देखी देशी राजे-महाराजे भी इस राह चले, तो कहानियों में वे भी आते हैं, और स्थानीय लोग भी जिन पर इन गतिविधियों का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा था, और नकारात्मक भी।
Bahurangi Madhupuri

Bahurangi Madhupuri

Rahul Sankrityayan

250

₹ 200

Meri Ladakh Yatra

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: महापंडित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा-साहित्य का पितामह कहा जाता है। यायावरी उनके लिए शौक नहीं धर्म जैसी अहमियत रखती थी। ज्ञान और प्राचीन ग्रंथों की खोज में वे दूर-दूर तक गए। ‘मेरी लद्दाख यात्रा’ में उनके कुछ यात्रा-वृत्तान्तों को संकलित किया गया है। उनके यात्रा-विवरणों की विशेषता यह है कि वे सिर्फ स्थानों का विवरण नहीं देते, बल्कि वहाँ की संस्कृति, समाज, परम्पराओं, धर्म, इतिहास और भौगोलिक विशेषताओं की विवेचना भी करते चलते हैं। इस पुस्तक में वे मेरठ, पंजाब, कश्मीर, लंका, तिब्बत, नेपाल आदि स्थानों की अपनी ज्ञान-यात्राओं का विवरण देते हुए अनेक दिलचस्प घटनाओं का वर्णन तो करते ही हैं, वहाँ के रहने वाले जनसाधारण के जीवन के सजीव शब्द-चित्र भी खींचते चलते है।
Meri Ladakh Yatra

Meri Ladakh Yatra

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Satmi Ke Bachche

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘सतमी के बच्चे’ राहुल सांकृत्यायन का प्रसिद्ध कहानी संकलन है। इस संग्रह की प्रत्येक कहानी अपनी करुणा और यथार्थ चित्रण से पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ती है। राहुल सांकृत्यायन ने विचार और शोध के क्षेत्र में जितनी गहराई में जाकर काम किया है, उतनी ही गहराई उनके कथा-साहित्य में भी दिखाई देती है। मानव-मन की पीड़ा और साधनहीन विपन्न वर्ग की कठोर जीवन-स्थितियों को उन्होंने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से देखा और उतनी ही बेलाग भाषा में अंकित किया।

    सरल भाषा, गहरा व्यंग्य, पात्रों के साथ आत्मीय संलग्नता और कथा-स्थितियों के माध्यम से समूचे समाज और सभ्यता का विवेचन उनके कथा-कौशल का अभिन्न अंग है। इस संग्रह में शामिल कहानियों में ग्रामीण जीवन का जैसा चित्रण हुआ है, वैसा प्रेमचंद के अलावा शायद ही किसी ने किया हो।

Satmi Ke Bachche

Satmi Ke Bachche

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Kanaila Ki Katha

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘कनैला की कथा’ ग्राम केन्द्रित जनपदीय इतिहास को सँजोने का अन्यतम उदाहरण है। सभ्यता–संस्कृति की प्राचीनता ने भारत को इतिहास की विशिष्ट विरासत सौंपी है। अतीत के प्रसिद्ध स्थान और स्मारक ही इस विरासत के अकेले वाहक नहीं हैं। गाँव-गाँव में यह विरासत बिखरी पड़ी है। हाँ, यह अवश्य हुआ है कि प्रायः अज्ञानता और उदासीनता के कारण यह विरासत उपेक्षित पड़ी रही और समय गुजरने के साथ ओझल होती चली गई। यह पुस्तक लिखकर राहुल सांकृत्यायन ने उस विरासत के एक हिस्से को अन्धकार से बाहर निकाला और वह रास्ता दिखाया जिस पर चलकर अन्य ग्रामों–कस्बों की कथाएँ भी सँजोई जा सकती हैं, जिससे हमारा इतिहास समृद्ध हो सकता है। इस पुस्तक में राहुल ने अपने पितृग्राम कनैला का ऐतिहासिक-भौगोलिक चित्र प्रस्तुत किया है, जिसका एक सिरा ईसा से तेरह सौ वर्ष पूर्व से जुड़ता है तो दूसरा सिरा बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से। इतनी लम्बी कालावधि को कथा के रूप में समेटते हुए स्थानीय सभ्यता-संस्कृति की ऐतिहासिकता का पूरा ध्यान रखा गया है। इस तरह जो चित्र उभरता है वह पाठक को सामाजिक-सांस्कृतिक रूपान्तरों की एक दिलचस्प शृंखला से रू-ब-रू कराता है। वस्तुतः अपनी दूसरी कृतियों की तरह राहुल ने ‘कनैला की कथा’ में भी लेखन का एक अलग ही प्रतिमान रचा है। इतिहास और कथा का जैसा रोचक संयोग इस पुस्तक में घटित हुआ है वैसा किसी और कृति में देख पाना दुर्लभ है।
Kanaila Ki Katha

Kanaila Ki Katha

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Madhur Swapna

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘मधुर स्वप्न’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इतिहास के अध्येता-अन्वेषक के रूप में राहुल सांकृत्यायन ने ऐसे पक्षों और प्रसंगों को उजागर करने में विशेष दिलचस्पी दिखाई जिनमें गणतांत्रिक, समाजवादी और साम्यवादी मूल्यों के चिह्न मिलते हैं। वस्तुतः पाठकों को वे यह दिखलाना चाहते थे कि भेद-भावमुक्त और बराबरी पर आधारित समाज के निर्माण के लिए जिन मूल्यों की वकालत की जा रही है उनका एक ठोस ऐतिहासिक आधार है; वे मानव समाज की विरासत का हिस्सा हैं। यह सोच ‘मधुर स्वप्न’ सहित उनकी सभी ऐतिहासिक कृतियों में स्पष्ट झलकती है। इस उपन्यास की कथाभूमि है मध्य एशिया में दजला नदी से यक्षु नदी तक की भूमि और काल है पाँचवीं सदी के अन्तिम दशक से लेकर छठी सदी के आरम्भिक तीन दशक। तब वहाँ सासानी वंश का पीरोजा पुत्र कवात् का शासन था। धर्माचार्यों का उन दिनों बड़ा जोर था। इस उपन्यास में उन्हीं दिनों के सामन्ती शासन के वैभव-विलास, धर्माचार्यों की अनीति और दुराचार तथा दीन-दुखियों के करुण चीत्कार का विश्वसनीय चित्रण हुआ है। इसमें इतिहास के दोनों प्रकार के पात्र जीवन्त रूप में उपस्थित हैं—वे जिन्होंने बल और धन के जोर पर जन सामान्य का शोषण करना अपना शाश्वत अधिकार समझा, और वे भी जो प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय हासिल करने के स्वप्न को नहीं भूले और उसके लिए त्याग किया। धनिकों और गरीबों, शासकों और शासितों की विषम स्थिति के बीच न्याय और जनमुक्ति का यह मधुर स्वप्न ही इस उपन्यास का मूल सन्देश है। यह उपन्यास, वास्तव में, युग-युग के उस स्वप्न की सम्पूर्ण झलक है जो धीरे-धीरे, आंशिक रूप में ही सही, सत्य बनता जा रहा है।
Madhur Swapna

Madhur Swapna

Rahul Sankrityayan

250

₹ 200

Jeene Ke Liye

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘जीने के लिए’ राहुल सांकृत्यायन का दूसरा उपन्यास है। अपने पहले उपन्यास ‘बाईसवीं सदी’ में उन्होंने दो सदी बाद आने वाले समय का चित्र खींचा था, इसलिए यथार्थ आधारित होते हुए भी उसमें कल्पना का समावेश अधिक था। लेकिन इस उपन्यास में वे अपने समसामयिक देश-काल को आधार बनाते हैं और यथार्थ की जमीन पर उतर आते हैं। वह देश-काल है पहले विश्वयुद्ध के बाद का जिसमें परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं और पूरी दुनिया के सामने चुनौतियाँ जटिल से जटिलतर होती जा रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में ‘जीने के लिए’ की कहानी अपना स्वरूप ग्रहण करती है जिसमें भारतीय जनगण द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से अपनी आज़ादी के लिए किये जा रहे संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण है।

    यह बात अलग से ध्यान खींचती है कि इस उपन्यास में तत्कालीन भारतीय जनजीवन के रोजमर्रा के चित्रों के साथ-साथ उसके वैचारिक आलोड़न का अंकन भी राहुल करते चलते हैं जिसका पता उपन्यास की ऐसी पंक्तियों से मिलता है—‘मुट्ठी भर विदेशी हिन्दुस्तान जैसे बड़े देश को गुलाम नहीं बना सकते, इसका सारा दोष हमारे समाज की बनावट के मत्थे है’; ‘राष्ट्र की एकता मंचों पर लम्बे-लम्बे भाषण से नहीं होगी। इसके लिए हमें ठोस काम करना होगा। वह ठोस काम यही है कि देश के भीतर धर्म और जाति-भेद ने जितनी दीवारें कड़ी की हैं,उन्हें गिरा देना।’

    वस्तुतः ‘जीने के लिए’ उपन्यास एक तरफ हमारे गुजरे दौर की विश्वसनीय कहानी प्रस्तुत करता है तो दूसरी तरफ उन आदर्शों की याद दिलाती है जिन्हें मूर्त करना एक समर्थ समाज और राष्ट्र के रूप में हमारे आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है। 

Jeene Ke Liye

Jeene Ke Liye

Rahul Sankrityayan

250

₹ 200

Baisvin Sadi

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘बाईसवीं सदी’ राहुल सांकृत्यायन का पहला उपन्यास है। गोकि उन्होंने इसे भ्रमण-वृत्तान्त, निबन्ध और शब्दचित्र कहा था। वास्तव में यह अपने ढंग की अनूठी रचना है जो विधागत सीमाओं का अतिक्रमण करने के बावजूद अपनी औपन्यासिकता बचाए रखती है और असाधारण रूप से पठनीय है। इसमें राहुल ने भविष्य का वह चित्र आँका है जिसकी परिकल्पना उनके मन में थी। वे जिस समय—1924 में—यह पुस्तक लिख रहे थे उस समय रूस में साम्यवादी क्रान्ति हो चुकी थी और भारत में आज़ादी की लड़ाई असहयोग आन्दोलन के बाद नए मोड़ पर पहुँच चुकी थी। वे आज़ादी की लड़ाई में ख़ुद सक्रिय थे। ज़ाहिर तौर पर उनके सामने बराबरी और आज़ादी का एक उद्देश्य एक आदर्श था जिसकी प्रेरणा इस कृति में स्पष्ट दिखाई देती है। ‘बाईसवीं सदी’ एक ऐसे समाज का ख़ाका पेश करता है जो ज्ञान-विज्ञान में उन्नति हासिल कर, पुरानी व्यवस्था को आमूल बदलकर अभाव और भेदभाव की समस्त बेड़ियाँ तोड़ चुका है। कहना आवश्यक नहीं कि भावी समय का यह आख्यान पाठक को एक तरफ़, वर्तमान समाज की विषमताओं और बन्धनों के विरुद्ध सचेत करता है तो दूसरी तरफ, बराबरी पर आधारित समाज के स्वप्न को साकार करने के लिए प्रेरित भी। हिन्दी का पहला यूटोपियाई उपन्यास!
Baisvin Sadi

Baisvin Sadi

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Rashtrabhasha Hindi

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: इस पुस्तक में राहुल जी के भाषा-सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण लेखों और भाषणों को संकलित किया गया है, जिनमें उन्होंने सामान्यत: भारत की भाषा-समस्या और विशेषत: हिन्दी पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।

    कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा-सम्बन्धी जो सवाल पचास साल पहले हमारे सामने थे, वे कमोबेश आज भी जस के तस हैं, बल्कि कुछ ज़्यादा ही उग्र हुए हैं। मसलन अंग्रेज़ी का मसला, जिसने व्यवहार में राष्ट्रभाषा हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को दूसरे-तीसरे दर्जे पर पहुँचा दिया है। इसके अलावा वैज्ञानिक और पारिभाषिक शब्दावली की समस्या है, जिस पर अभी भी काफ़ी काम किए जाने की ज़रूरत है। राहुल जी इन निबन्धों में इन सभी बिन्दुओं पर गहराई और अधिकार के साथ विचार करते हैं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर स्थापित करने की पैरवी करते हुए वे अन्य भारतीय भाषाओं को भी उनका उचित और सम्मानित स्थान दिए जाने की ज़रूरत महसूस करते हैं। उनका सुझाव है कि हरेक बालक-बालिका को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए, और सारे देश में जहाँ भी निर्धारित अल्पमत संख्या में विद्यार्थी मिलें, वहाँ उनके लिए अपनी भाषा के स्कूल खोलने चाहिए।

    इसके अलावा हिन्दी की संरचना, विकास, साहित्य और इतिहास आदि अनेक पहलुओं पर राहुल जी के स्पष्ट विचार इन निबन्धों में संकलित हैं।

Rashtrabhasha Hindi

Rashtrabhasha Hindi

Rahul Sankrityayan

395

₹ 316

Vaigyanik Bhautikvad

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ आज के वैज्ञानिक युग के उस चरण की व्याख्या है जिसमें साइंस के नाम पर मृत विचारों की अपेक्षा नए वैज्ञानिक विचारों व आलोक में मानवीय नैतिकता, धर्म, समाज, दर्शन, मूल्यवत्ता और मानवीय सम्बन्धों की व्याख्या की गई है। जर्मन दार्शनिक हीगेल ने जिस द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त पर आध्यात्मिकता की व्याख्या की थी, मार्क्स ने उसी द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त के प्रयोग से भौतिकवाद की व्याख्या की। राहुल जी की पुस्तक वैज्ञानिक भौतिकवाद मूलतः द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को ही प्रतिपादित करने के लिए लिखी गई पुस्तक है। पुस्तक को विद्वान लेखक ने तीन मुख्य अध्यायों में बाँटकर, इतिहास, दर्शन, समाजशास्त्र और धर्म आदि की पूरी व्याख्या प्रस्तुत की है। यह पुस्तक राहुल जी ने सबसे पहले 1942 में लिखी थी जबकि देश में गांधी जी और गांधीवादी का बड़ा प्रबल समर्थन व्याप्त था। इसमें भारतीय सन्दर्भ को लेकर गांधीवाद की विवेचना है। भारतीय चिन्तन और दर्शन की दृष्टि से यह पुस्तक सर्वप्रथम भारतीय साहित्य में विशेषकर हिन्दी में एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति करती है। दार्शनिक दृष्टि से ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ अपनी छोटी-सी काया में ही अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय चिन्तन को सूत्र रूप में भारतीय सन्दर्भ के साथ प्रस्तुत करती है। वस्तुतः इस पुस्तक के अध्ययन से कोई भी भारतीय भाषा-भाषी पाश्चात्य चिन्तन-प्रणाली को भली-भाँति जान सकता है।
Vaigyanik Bhautikvad

Vaigyanik Bhautikvad

Rahul Sankrityayan

110

₹ 88

Ghumakkad Shastra

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: Awating description for this book
Ghumakkad Shastra

Ghumakkad Shastra

Rahul Sankrityayan

199

₹ 159.2

Meri Tibbat Yatra

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: स्त्री-जीवन के क़ानूनी पहलू पर विस्तार और प्रामाणिक जानकारी से लिखते हुए अरविन्द जैन ने स्त्री-विमर्श की सामाजिक-साहित्यिक सैद्धान्तिकी में एक ज़रूरी पहलू जोड़ा। क़ानून की तकनीकी पेचीदगियों को खोलते हुए उन्होंने अक्सर उन छिद्रों पर रोशनी डाली जहाँ न्याय के आश्वासन के खोल में दरअसल अन्याय की चालाक भंगिमाएँ छिपी होती थीं। इसी के चलते उनकी किताब ‘औरत होने की सज़ा’ को आज एक क्लासिक का दर्जा मिल चुका है। स्त्री लगातार उनकी चिन्ता के केन्द्र में रही है। बतौर वकील भी, बतौर लेखक भी और बतौर मनुष्य भी। सम्पत्ति के उत्तराधिकार में औरत की हिस्सेदारी का मसला हो या यौन शोषण से सम्बन्धित क़ानूनों और अदालती मामलों का, हर मुद्दे पर वे अपनी किताबों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पाठक का मार्गदर्शन करते रहे हैं। ‘बेड़ियाँ तोड़ती स्त्री’ उनकी नई किताब है जो काफ़ी समय के बाद आ रही है। इस दौरान भारतीय स्त्री ने अपनी एक नई छवि गढ़ी है, और एक ऐसे भविष्य का नक़्शा पुरुष-समाज के सामने साफ़ किया है जिसे साकार होते देखने के लिए शायद अभी भी पुरुष मानसिकता तैयार नहीं है। लेकिन जिस गति, दृढ़ता और निष्ठा के साथ बीसवीं सदी के आख़िरी दशक और इक्कीसवीं के शुरुआती वर्षों में पैदा हुई और अब जवान हो चुकी स्त्री अपनी राह पर बढ़ रही है, वह बताता है कि यह सदी स्त्री की होने जा रही है और सभ्यता का आनेवाला समय स्त्री-समय होगा। इस किताब का आधार-बोध यही संकल्पना है। तार्किक, तथ्य-सम्मत और सद्भावना से बुना हुआ स्त्री के भविष्य का स्वप्न। उनका विश्वास है कि अब साल दर साल देश के तमाम सत्ता-संस्थानों में शिक्षित, आत्मनिर्भर, साधन-सम्पन्न, शहरी स्त्रियों की भूमिका और भागीदारी अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी। समान अधिकारों के लिए सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष तेज़ होंगे और भविष्य की स्त्री हर क्षेत्र में हाशिये के बजाय केन्द्र में दिखाई देने लगेगी। समानता और न्याय की तलाश में निकली स्त्री अपना सबकुछ दाँव पर लगा रही है। सो भविष्य की स्त्री इन्साफ माँगेगी। सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक इन्साफ़। देह और धरती पर ही नहीं सबकुछ पर बराबर अधिकार।
Meri Tibbat Yatra

Meri Tibbat Yatra

Rahul Sankrityayan

299

₹ 239.2

Rahul Vangmaya Meri Jeevan Yatra Part-1 (4 Vols)

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: हिन्दी में आत्मकथा-साहित्य के क्षेत्र में राहुल जी की 'मेरी जीवन-यात्रा’ एक अविस्मरणीय कृति है।

    राहुल जी ने अपनी जीवन-यात्रा में, जन्म से लेकर तिरसठवाँ वर्ष पूरा करने तक का वर्णन किया है। उन्होंने आत्मचरित के लिए 'जीवन-यात्रा’ शब्द का प्रयोग किया है। इस विषय में उनका कथन है, ''मैंने अपनी जीवनी न लिखकर 'जीवन-यात्रा’ लिखी है, यह क्यों? अपनी लेखनी द्वारा मैंने उस जगत की भिन्न-भिन्न गतियों और विचित्रताओं को अंकित करने की कोशिश की है, जिसका अनुमान हमारी तीसरी पीढ़ी मुश्किल से करेगी।’’

    'मेरी जीवन-यात्रा’ के प्रथम भाग के कालखंड के विस्तृत वर्ण्य-विषय को लेखक ने चार उपखंडों में विभाजित किया है, और पुस्तक के अन्त में महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी दिया है। जीवनी के विभाजित खंडों के अनुसार—प्रथम उपखंड : बाल्य (1893-1909), द्वितीय उपखंड: तारुण्य (1910-1914), तृतीय उपखंड : नव प्रकाश (1915-1921), चतुर्थ उपखंड : राजनीति-प्रवेश (1921-1927) है। परिशिष्ट में 1922 की डायरी से कुछ पद्य-गद्य की पंक्तियाँ तथा सांकृत्यायन-वंशवृक्ष का वर्णन है, जिसमें (क) वैदिक काल, (ख) बौद्ध काल, (ग) मध्य काल और (घ) आधुनिक काल के अनुसार ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है।

    'जीवन-यात्रा’ के इस प्रथम भाग के अनुसार राहुल जी मुख्यत: भारत में ही रहे। बस, विदेश के नाम पर उन्होंने नेपाल की यात्रा की और वहाँ के कई प्रभावशाली लोगों से मिले।

    कलकत्ता की दूसरी उड़ान में उन्होंने प्रसाद जी के प्रसिद्ध ख़ानदान ‘सुँघनी साहु’ की दुकान में काम किया था। काम क्या था, किस तरह उसे करते थे, इसका विशद वर्णन उन्होंने किया है। इसके माध्यम से हमें जयशंकर प्रसाद के ख़ानदान का इतिहास भी प्राप्त हो जाता है। इसी भाग में राहुल जी पर वैराग्य का भूत सवार हो जाता है। आर्यसमाज ने राहुल जी के जीवन की दिशा ही बदल दी थी।

Rahul Vangmaya Meri Jeevan Yatra Part-1 (4 Vols)

Rahul Vangmaya Meri Jeevan Yatra Part-1 (4 Vols)

Rahul Sankrityayan

2400

₹ 1920

Manav Samaz

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: मानव समाज से अलग नहीं रह सकता था, अलग रहने पर उसे भाषा से ही नहीं, चिन्तन से भी नाता तोड़ना पड़ता, क्योंकि चिन्तन ध्वनिरहित शब्द है। मनुष्य की हर एक गति पर समाज की छाप है। बचपन से ही समाज के विधि-निषेधों को हम माँ के दूध के साथ पीते हैं, इसलिए हम उनमें से अधिकांश को बंधन नहीं भूषण के तौर पर ग्रहण करते हैं, किन्तु वह हमारे कायिक, वाचिक कर्मों पर पग-पग पर अपनी व्यवस्था देते हैं, यह उस वक़्त मालूम हो जाता है, जब हम किसी को उनका उल्लंघन करते देख उसे असभ्य कह डालते हैं।

    सीप में जैसे सीप प्राणी का विकास होता है, उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है। मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा अपने परिवार, ठाठ-बाट, पाठशाला, क्रीड़ा तथा क्रिया के क्षेत्र में और समाज द्वारा विकसित भाषा को लेकर होती है।

    ‘मानव समाज’ हिन्दी में अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। हिन्दी और बांग्ला पाठकों के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।

Manav Samaz

Manav Samaz

Rahul Sankrityayan

350

₹ 280

Volga Se Ganga

  • Author Name:

    Rahul Sankrityayan

  • Book Type:
  • Description: राहुल सांकृत्यायन की अत्यन्त चर्चित कृति ‘वोल्गा से गंगा’ ऐसी बीस ऐतिहासिक कहानियों का संकलन है जिनमें उन्होंने आर्यों के आठ हजार साल के इतिहास को कालानुक्रम से अंकित किया है। इन कहानियों में मातृसत्तात्मक समाज-व्यवस्था को पितृसत्तात्मक व्यवस्था में बदलने की प्रक्रिया भी दृष्टिगोचर होती है और आर्यों की यूरेशिया से वोल्गा तथा उसके बाद गंगा तक की यात्रा की रूपरेखा भी पता चलती है।­­­ ई.पू. 6000 से लेकर 1942 ई. तक के कालखंड को कड़ी-दर-कड़ी प्रस्तुत करनेवाली ये कहानियाँ एक तरफ जहाँ राहुल सांकृत्यायन के ​असीम अध्ययन का पता देती हैं, वहीं भारोपीय मानव-इतिहास के प्रति हमें एक व्यापक समझ भी देती हैं। इन कहानियों में इतिहास भी है, और कथा भी। सम्बन्धित काल खंडों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए ये कहानियाँ कथा-रस को भी कहीं भंग नहीं होने देतीं। भारतीय साहित्य में एक क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुकी इस पुस्तक का अनुवाद असमिया, मराठी, बांग्ला, कन्नड़, तमिल, मलयालय, तेलुगु, पंजाबी आदि भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, चेक तथा पोलिश भाषाओं में भी हो चुका है।
Volga Se Ganga

Volga Se Ganga

Rahul Sankrityayan

299

₹ 239.2

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