Rahul Vangmaya Meri Jeevan Yatra Part-1 (4 Vols)
Author:
Rahul SankrityayanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 1920
₹
2400
Available
हिन्दी में आत्मकथा-साहित्य के क्षेत्र में राहुल जी की 'मेरी जीवन-यात्रा’ एक अविस्मरणीय कृति है।</p>
<p>राहुल जी ने अपनी जीवन-यात्रा में, जन्म से लेकर तिरसठवाँ वर्ष पूरा करने तक का वर्णन किया है। उन्होंने आत्मचरित के लिए 'जीवन-यात्रा’ शब्द का प्रयोग किया है। इस विषय में उनका कथन है, ''मैंने अपनी जीवनी न लिखकर 'जीवन-यात्रा’ लिखी है, यह क्यों? अपनी लेखनी द्वारा मैंने उस जगत की भिन्न-भिन्न गतियों और विचित्रताओं को अंकित करने की कोशिश की है, जिसका अनुमान हमारी तीसरी पीढ़ी मुश्किल से करेगी।’’</p>
<p>'मेरी जीवन-यात्रा’ के प्रथम भाग के कालखंड के विस्तृत वर्ण्य-विषय को लेखक ने चार उपखंडों में विभाजित किया है, और पुस्तक के अन्त में महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी दिया है। जीवनी के विभाजित खंडों के अनुसार—प्रथम उपखंड : बाल्य (1893-1909), द्वितीय उपखंड: तारुण्य (1910-1914), तृतीय उपखंड : नव प्रकाश (1915-1921), चतुर्थ उपखंड : राजनीति-प्रवेश (1921-1927) है। परिशिष्ट में 1922 की डायरी से कुछ पद्य-गद्य की पंक्तियाँ तथा सांकृत्यायन-वंशवृक्ष का वर्णन है, जिसमें (क) वैदिक काल, (ख) बौद्ध काल, (ग) मध्य काल और (घ) आधुनिक काल के अनुसार ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>'जीवन-यात्रा’ के इस प्रथम भाग के अनुसार राहुल जी मुख्यत: भारत में ही रहे। बस, विदेश के नाम पर उन्होंने नेपाल की यात्रा की और वहाँ के कई प्रभावशाली लोगों से मिले।</p>
<p>कलकत्ता की दूसरी उड़ान में उन्होंने प्रसाद जी के प्रसिद्ध ख़ानदान ‘सुँघनी साहु’ की दुकान में काम किया था। काम क्या था, किस तरह उसे करते थे, इसका विशद वर्णन उन्होंने किया है। इसके माध्यम से हमें जयशंकर प्रसाद के ख़ानदान का इतिहास भी प्राप्त हो जाता है। इसी भाग में राहुल जी पर वैराग्य का भूत सवार हो जाता है। आर्यसमाज ने राहुल जी के जीवन की दिशा ही बदल दी थी।
ISBN: 9788183613736
Pages: 2050
Avg Reading Time: 68 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: नामवर सिंह अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनका बोला-बताया अब भी ऐसा बहुत कुछ है जो सामने आना बाकी है। लम्बे समय तक उन्होंने व्यवस्थित ढंग से कुछ नहीं लिखा था; व्याख्यानों और वक्तव्यों के रूप में ही उन्होंने आलोचना के नए-नए पैमाने तोड़े और बनाए। युवाओं, वरिष्ठों, छात्रों-पत्रकारों और समकालीन रचनाकारों को दिए साक्षात्कारों में भी उन्होंने सदैव एक उत्तरदायी आलेचकीय चेतना को अभिव्यक्ति दी। उनकी आश्चर्यजनक स्मृति, वैचारिक स्पष्टता और आस्वादपरक समीक्षा के चलते व्याख्यानों की तरह उनके साक्षात्कार भी सदैव चर्चित रहे। इस पुस्तक में उनके ऐसे साक्षात्कारों को संकलित किया गया है जो अब तक किसी और पुस्तक में नहीं आए थे। कई वरिष्ठ और कनिष्ठ रचनाकारों और सम्पादकों के साथ हुए ये वार्तालाप उनकी आलोचना-दृष्टि, समकालीन रचनात्मकता पर उनके विचारों और सरोकारों को रेखांकित करते हैं। इनमें से कुछ साक्षात्कार इसलिए और भी दिलचस्प है कि इनमें उन्होंने किसी एक ही रचनाकार या कृति पर केन्द्रित प्रश्नों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। मसलन स्वयं प्रकाश, त्रिलोचन, काशीनाथ सिंह का ‘काशी का अस्सी’ आदि पर केन्द्रित बातचीत। साक्षात्कारकर्ताओं में भी अलग-अलग पीढ़ियों के लोग हैं; जिन्होंने अपने-अपने ढंग से उनसे अपनी जिज्ञासाओं पर विचार-विनिमय किया है।
Issac Newton
- Author Name:
Dr. Preeti Srivastava
- Book Type:

- Description: "आइजक न्यूटन सर आइजक न्यूटन अपने समय के बड़े एवं प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में थे। उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में कहा जाता था— प्रकृति अँधेरे में थी, प्रकृति के नियम अँधेरे में थे, तब न्यूटन पैदा हुए और चारों ओर उजाला हो गया। गुरुत्वाकर्षण का प्रसिद्ध सिद्धांत, जिसके अनुसार पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, न्यूटन ने स्थापित किया था। न्यूटन का महान् ग्रंथ ‘प्रिंसिपिया’ विश्वप्रसिद्ध है, जिसमें उनके गति-नियमों (Laws of Motion) की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी अनेक खोजें की थीं। प्रस्तुत पुस्तक में न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भों एवं घटनाओं तथा उनके स्वभाव, व्यवहार व प्रवृत्तियों का ब्योरेवार वर्णन है। विश्वास है, इसे पढ़कर पाठकगण सर आइजक न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक तथ्यों एवं संदर्भों को जान सकेंगे। "
Ek Kahani Yah Bhi
- Author Name:
Mannu Bhandari
- Book Type:

- Description: 'आपका बंटी'और 'महाभोज'जैसे उपन्यास और अनेक बहुपठित-चर्चित कहानियों कीलेखिका मन्नू भंडारी इस पुस्तक में अपने लेखकीय जीवन की कहानी कह रही हैं ।यह उनकी आत्मकथा नहीं है,लेकिन इसमें उनके भावात्मक और सांसारिक जीवन केउन पहलुओं पर भरपूर प्रकाश पड़ता है जो उनकी रचना-यात्रा में निर्णायक रहे ।एक ख्यातनामा लेखक की जीवन-संगिनी होने का रोमांच और एक जिद्दी पति कीपत्नी होने की बाधाएँ,एक तरफ अपनी लेखकीय जरूरतें (महत्वाकांक्षाएँ नही)और दूसरी तरफ एक घर को सँभालने का बोझिल दायित्व,एक धुर आम आदमी की तरहजीने की चाह और महान उपलब्धियों के लिए ललकता,आसपास का साहित्यिकवातावरण-ऐसे कई-कई विरोधाभासों के बीच से मनजी लगातार गुजरती रहीं,लेकिनउन्होंने अपनी जिजीविषा,अपनी सादगी,आदमीयत और रचना-संकल्प को नहीं टूटनेदिया । आज भी जब वे उतनी मात्रा में नहीं लिख रही हैं,ये चीजें उनके साथहैं,उनकी सम्पत्ति हैं ।यह आत्मस्मरण मनजी की जीवन-स्थितियों के साथ-साथ उनके दौर की कईसाहित्यिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी रोशनी डालता है और नईकहानी दौर की रचनात्मक बेकली और तत्कालीन लेखकों की ऊँचाइयों-नीचाइयों सेभी परिचित कराता है । साथ ही उन परिवेशगत स्थितियों को भी पाठक के सामनेरखता है जिन्होंने उनकी संवेदना को झकझोरा ।
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