
Nandkishore Naval
Hindi Aalochana Ka Vikas (Raj)
- Author Name:
Nandkishore Naval
-
Book Type:
- Description:
भारतेन्दु-युग में जैसे नाटक, उपन्यास, निबन्ध आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं का रचनारम्भ हुआ, वैसे ही आलोचना का भी—यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है; लेकिन और भी अधिक महत्त्व इस बात का है कि हिन्दी आलोचना अपने शैशव-काल से ही साहित्य के सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत है।
नंदकिशोर नवल प्रगतिशील दृष्टिसम्पन्न आलोचकों में अग्रगण्य हैं। इस पुस्तक में उन्होंने हिन्दी आलोचना के इतिहास को नहीं, विकास को स्पष्ट किया है।
पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. रामविलास शर्मा और डॉ. नामवर सिंह की आलोचना-दृष्टि का जो समाजशास्त्रीय अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है, उससे यह तथ्य साफ तौर पर उभरकर सामने आता है कि हिन्दी आलोचना की मुख्यधारा प्रगतिशील रही है जिसके निर्माण में इन आलोचकों ने अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। वस्तुत: इन्हें और इनके अलावा उन्हीं आलोचकों को लेखक ने अपने अध्ययन का विषय बनाया है 'जिनके पास साहित्य के सम्बन्ध में एक सुनिश्चित दृष्टिकोण है, या कम-से-कम जिनमें उसे उपलब्ध करने का प्रयास मिलता है, और जिन्होंने हिन्दी साहित्य का समग्र या आंशिक रूप में आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है।Ó
निश्चय ही यह पुस्तक उस वैचारिक संघर्ष का जीवन्त दस्तावेज है, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य में जनवादी मूल्यों के लिए होता रहा है और जिसे आज के साहित्य-संदर्भ में जानना-समझना निहायत जरूरी है।

Hindi Aalochana Ka Vikas (Raj)
Nandkishore Naval
Nagarjuna Aur Unki Kavita
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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खड़ीबोली कविता की परम्परा भी प्रचुर समृद्ध है। नागार्जुन इस परम्परा की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। उनकी कविता के अनेक पक्ष हैं, यथा—आत्माभिव्यक्ति, प्रगतिशीलता, राजनीति, प्रकृति आदि। कुछ कथात्मक कविताओं में उन्होंने पौराणिक आख्यानों को भी आधार बनाया है, पर उसे आधुनिक संवेदना से नया बना दिया है।
नागार्जुन के प्रत्येक पक्ष की कविता में गजब का वैविध्य है। यह वैविध्य अन्तर्वस्तु के स्तर पर भी है और रूप के स्तर पर भी। उनकी तरह अनेक प्रकार की भाषाओं का प्रयोग करनेवाले कवि आधुनिक काल में निराला के अलावा शायद ही कोई हुए हों।
आम तौर पर उन्हें जन-कवि माना जाता है, लेकिन वे उसके साथ-साथ अभिजन-कवि भी थे। अभी कुछ दिन पहले ‘कवि अज्ञेय’ नामक डा. नवल की आलोचना-पुस्तक प्रकाशित हुई है। उससे स्पष्ट हो जाता है कि अज्ञेय और नागार्जुन एक-दूसरे के उलट नहीं थे, बल्कि उनमें मिलन के अनेक बिन्दु थे। अज्ञेय की कविता का नायक भी जनसाधारण था और नागार्जुन ने भी अनेक स्थलों पर अभिजात संवेदना का परिचय दिया है।
उनकी कविता के सम्बन्ध में ज्यादा न कहकर उनकी कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जाती हैं, जिससे उनकी अभिजात संवेदना और भाषा-शैली का भी पता चल सके। एक कविता में उन्होंने राष्ट्रगान की याद दिलानेवाला यह चित्र अंकित किया है: ‘दक्षिण में है नारिकेल-पूगीवन वलयित केरल जनपद/ तमिलनाडु की धनुष्कोटि-कन्याकुमारिका/पश्चिम जलनिधि सिंध-कच्छ-सौराष्ट्र/और गुर्जर- परिशोभित/उत्तर का दिक्पाल तुम्हारा महानाम उत्तुंग भाल/गौरीपति शंकर-तपःपूत कैलाश शिखर दंडायमान है/प्राची में है वरुणालय वह वंग-विभूषण/और वक्ष पर कौस्तुभ मणि-सा विंध्य पड़ा है/जाने कब से!’
डा. नवल की यह पुस्तक निश्चय ही लोकप्रियता प्राप्त करेगी, ऐसा विश्वास है।

Nagarjuna Aur Unki Kavita
Nandkishore Naval
Moortein : Mati Aur Sone Ki
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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नवल जी कहते रहे हैं कि संस्मरण एक थकी हुई विधा है, यद्यपि वे युवा-काल में भी स्फुट संस्मरण लिखते रहे हैं। उदाहरण के लिए नागार्जुन पर लिखे गए उनके संस्मरण ‘लौट आ ओ फूल की पंखड़ी’ को देखा जा सकता है। अब जाकर उन्होंने उसका उत्तरार्ध इस पुस्तक में लिखा है।
इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने संस्मरण लिखने की कठिनाइयों की ओर संकेत भी किया है। यह वस्तुतः साहित्य की सबसे नाजुक विधा है, जिसकी रचना में यह ख़तरा बराबर बना रहता है कि कहीं ऐसा न हो कि ‘लिखत सुधाकर गा लिखि राहू’। संस्मरण के चरित्रों की स्मृतियाँ भले क्रमबद्ध रूप में सामने न आएँ, पर उनमें संजीदगी के साथ एक खुलापन तो होना ही चाहिए। दूसरे, कमल पूर्णतः प्रस्फुटित हो, पर उसकी पंखुरियों पर जल का दाग न लगे। वस्तुतः संस्मरण लिखना ‘तलवार की धार पर धावनो है’। पाठक देखेंगे कि नवल जी सत्य का अलाप न करते हुए भी इसमें सफल हुए हैं।
संस्मरणों की इस पुस्तक के दो खंड हैं। पहले खंड में घर और गाँव के पाँच चरित्र हैं। ये सारे चरित्र अपने वैशिष्ट्य से युक्त हैं, जिन्हें लेखक ने विलक्षण कुशलता से चित्रित किया है। उनके चित्रण में यथास्थान बज्जिका के शब्दों के प्रयोग से माटी की ख़ुशबू उठती है और चतुर्दिक् फैल जाती है। दूसरे खंड में हिन्दी के पाँच महत्त्वपूर्ण लेखकों को विषय बनाया गया है। कितना अन्तर है इन दोनों प्रकार के संस्मरणों में! जैसे धरती के ऊपर आकाश का नक्षत्रों से जड़ित नीला तनोवा तना हो। इस पुस्तक की एक अतिरिक्त ख़ूबी यह है कि इससे आप जितना लेखक के विषय में जानेंगे, उतना ही विषय को भी, पर बिना किसी आत्मप्रक्षेपण के। अब आप पुस्तक को उठाएँ और उसकी माटी और सोने की धूलों से स्नात हो जाएँ।

Moortein : Mati Aur Sone Ki
Nandkishore Naval
Kavita Ke Aar Par
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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हिन्दी में कृति की राह से गुज़रने की बहुत बात की जाती है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसमें आलोचना और रचना का आपसी सम्बन्ध काफी कुछ टूट चुका है। जहाँ तक कविता की बात है, ज़्यादा शक्ति उसके सामाजिक और राजनीतिक सन्दर्भों को स्पष्ट करने में ख़र्च की जा रही है। जब कविता से अधिक उसके कारणों को महत्त्व दिया जाएगा, तो अनिवार्यतः उसके सम्बन्ध में जो निष्कर्ष निकाले जाएँगे, वे पूरी तरह से सही नहीं होंगे। कविता अन्ततः एक कलात्मक सृष्टि है, जिसमें उसके देश और कालगत सन्दर्भ स्वयं छिपे होते हैं। आलोचना का काम रचना से ही आरम्भ कर उन सन्दर्भों तक पहुँचना है, न कि उन सन्दर्भों को अलग से लाकर उनमें रचना को विलीन कर देना। प्रस्तुत पुस्तक में इस कठिन काम को अंजाम देने का भरसक प्रयास किया गया है।
निराला, शमशेर और मुक्तिबोध हिन्दी के ऐसे कवि हैं, जिनकी कविता का पाठ अत्यधिक जटिल है। हिन्दी काव्यालोचन उस पाठ से उलझने से बचता रहा है, जबकि संज्ञान और सौन्दर्य दोनों का मूल स्रोत वही है। डॉ. नंदकिशोर नवल निराला और मुक्तिबोध के विशेष अध्येता हैं और शमशेर में उनकी गहरी दिलचस्पी है। स्वभावतः उन्होंने इस पुस्तक के लेखों में उक्त कवियों की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का पाठ-विश्लेषण करते हुए उनके सौन्दर्योन्मीलन की चेष्टा की है। उनका कहना है कि पाठ-विश्लेषण काव्यालोचन का प्रस्थानबिन्दु है। निश्चय ही उससे शुरू करके वे वहीं तक नहीं रुके हैं।
अज्ञेय, केदार और नागार्जुन अपेक्षाकृत सरल कवि हैं, लेकिन चूँकि कविता-पात्र एक जटिल वस्तु है, इसलिए प्रस्तुत पुस्तक में उनकी कुछ कविताओं से भी आत्मिक साक्षात्कार किया गया है। नमूने के रूप में रघुवीर सहाय की एक कविता की भी पाठ-केन्द्रित आलोचना दी गई है। इस तरह की पुस्तक हिन्दी काव्य-प्रेमियों के लिए एक ज़रूरी पुस्तक है, जो उनकी आस्वादन क्षमता को विकसित करेगी।

Kavita Ke Aar Par
Nandkishore Naval
Kavi Ajneya
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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अज्ञेय का नाम हिन्दी कविता में एक विवादास्पद नाम रहा है। ख़ास तौर से प्रगतिशीलों और जनवादियों ने न केवल उन्हें व्यक्तिवादी कहा, बल्कि उनके विरुद्ध घृणा तक का प्रचार किया और इस तरह एक बड़े पाठक-समूह को इस महान शब्द-शिल्पी से दूर रखने की कोशिश की। सबसे बड़ा अन्याय उनकी कविता के साथ यह किया गया कि उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़े बग़ैर उनके सम्बन्ध में ग़लत धारणा बनाई गई और उसे उनका अन्तिम मूल्यांकन करार दिया गया। हिन्दी के प्रगतिशील कवियों में सबसे बड़े काव्य-मर्मज्ञ शमशेर थे। उन्हें अपना माननेवाले लोगों ने यह भी नहीं देखा कि अज्ञेय के प्रति वे कैसी उच्च धारणा रखते हैं।
आज जब देश और विश्व का परिदृश्य बदल गया है और वैचारिक स्तर पर सभी बुद्धिजीवी पूँजीवाद और समाजवाद के बीच से एक नया रास्ता निकलने के लिए बेचैन हैं, अज्ञेय नए सिरे से पठनीय हो उठे हैं। अब जब हम उनकी कविता पढ़ते हैं, तो यह देखकर विस्मित होते हैं कि बिना व्यक्तित्व का निषेध किए उन्होंने हमेशा समाज को ही अपना लक्ष्य बनाया। इतना ही नहीं, अत्यन्त सुरुचि-सम्पन्न और शालीन इस कवि की कविता का नायक भी ‘नर’ ही है, जिसकी आँखों में नारायण की व्यथा भरी है। उस नर को उन्होंने कभी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया और उसकी चिन्ता में हमेशा लीन रहे। निराला और मुक्तिबोध के साथ वे हिन्दी के तीसरे कवि थे, जो एक साथ महान बौद्धिक और महान भावात्मक थे।
उनके काव्य में आधुनिकता-बोध, प्रेमानुभूति, प्रकृति-प्रेम और रहस्य-चेतना—ये सभी एक नए आलोक से जगमग कर रहे हैं। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नवल की यह पुस्तक आपको आपकी सीमाओं से मुक्त करेगी और आपकी आँखों के सामने एक नए काव्य-लोक का पटोन्मीलन। आप इसे अवश्य पढ़ें।

Kavi Ajneya
Nandkishore Naval
Samkaleen Kavya Yatra
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Nandkishore Naval
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Book Type:
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मुक्तिबोध ने अपनी एक प्रसिद्ध कविता में कहा है : ‘नहीं होती, कहीं भी खतम कविता नहीं होती/कि वह आवेग-त्वरिता काल-यात्री है।’ इसका एक प्रमाण यह भी है कि आधुनिक हिन्दी कविता अज्ञेय और स्वयं मुक्तिबोध के साथ ही समाप्त नहीं हो जाती और काल के साथ वेग से उसकी यात्रा जारी रहती है। जिस कवि की रचना का स्रोत उसका अपना जीवन होता है, उसका एक न एक दिन चुकना तय है, लेकिन जो कविता इतिहासाश्रित होती है, उसका प्रवाह अजस्र रहता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इतिहास केवल काल-बोध नहीं, देश-बोध भी है। प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के सुपरिचित आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल ने विजयदेव नारायण साही से लेकर धूमिल तक की कविता का गहन, विशद और वस्तुपरक अध्ययन कर यह सिद्ध कर दिया है कि आधुनिक हिन्दी कविता न केवल निरन्तर गतिशील है, बल्कि वह विकासशील भी है।
अज्ञेय-मुक्तिबोध-परवर्ती इस कविता की विशेषता यह है कि यह बहुआयामी और बहुवर्णी है, जिस कारण इसका अध्ययन जनवादिता अथवा कलावादिता की किसी संकीर्ण कसौटी पर नहीं हो सकता। नवल जी ने इन दोनों कसौटियों को अपर्याप्त मानकर सर्वप्रथम उस प्रतिमान पर प्रत्येक कवि की परीक्षा की है, जो उसकी कविता से प्राप्त होता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने अपने मूल मानववादी दृष्टि को छोड़ दिया है। वस्तुतः इस दृष्टि में जन और कला दोनों की स्वीकृति है, पर वह इन दोनों की सीमाओं का अतिक्रमण भी करती है।
इस अध्ययन और मूल्यांकन का निष्कर्ष यह है कि हिन्दी कविता बड़े पेचीदे ढंग से कल्पना से यथार्थ की ओर, व्यक्ति से समय की ओर और असाधारण से साधारण की ओर विकसित हुई है। ‘समकालीन काव्य-यात्रा’ पाठकों के बीच लोकप्रियता प्राप्त कर अब संशोधित और परिष्कृत रूप में सामने आ रही है। निश्चय ही यह पुस्तक नवल जी के आलोचनात्मक लेखन की ही नहीं, समकालीन काव्यालोचन की भी एक उपलब्धि है।

Samkaleen Kavya Yatra
Nandkishore Naval
Maithilishran
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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मैथिलीशरण गुप्त खड़ीबोली के पहले महान कवि हैं। टी.एस. इलियट के अनुसार महान कवि कविता में नई रुचि का निर्माण करता है, उसके अनुरूप काव्य-सृजन करता है और उसमें श्रेष्ठता का प्रतिमान स्थापित करता है। गुप्त जी इन तीनों ही कसौटियों पर खरे उतरनेवाले कवि हैं। खड़ीबोली की कविता में उनके महत्त्व को ऐतिहासिक समझा जाता है, लेकिन साहित्य में ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व दो नहीं होते। वे ऐसे कवि हैं, जिन्होंने हिन्दी कविता में सभी आधुनिक मूल्यों की प्रस्तावना की है और अपने कंठ से सम्पूर्ण युग को वाणी दी है। ‘जयद्रथ-वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ और ‘भारत-भारती’ उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ हैं।
त्रिलोचन ने लिखा है कि गुप्त जी के रचनात्मक प्रयोगों का पूरी तरह आकलन करके काम होना बाक़ी है। हिन्दी के सुपरिचित आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल ने इस चुनौती को स्वीकार कर प्रस्तुत पुस्तक में उनके युग सहित उनका सामान्य परिचय देते हुए उनकी सबसे सुन्दर ग्यारह कृतियों के रचनात्मक प्रयोगों का पूर्णता से आकलन किया है और इस क्रम में उन्होंने न केवल उनके सौन्दर्य को उन्मीलित किया है, बल्कि कवि के शब्द-संसार को विस्तार भी दिया है।

Maithilishran
Nandkishore Naval
Nirala Kriti Se Sakshatkar
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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हिन्दी आलोचना में डॉ. नंदकिशोर नवल का मुख्य कार्य-भार रहा है पाठ से हटी हुई आलोचना को पाठाधारित करना। यह काम उन्होंने इस तरह किया है कि आलोचना पाठ-केन्द्रित भी हो और वह अपने भीतर रचना के अदृश्य विस्तार को भी समेट सके। वे निराला-काव्य के समर्पित अध्येता रहे हैं और उन्होंने निराला पर शोध करने के साथ विश्वविद्यालय में लम्बे समय तक निराला-काव्य का अध्यापन भी किया है। हिन्दी संसार उनके द्वारा सम्पादित ‘निराला रचनावली’ के आठ खंडों में उनका श्रम और निष्ठा देख चुका है। प्रस्तुत पुस्तक के दो खंडों में उन्होंने निराला की महत्त्वपूर्ण काव्य-कृतियों का ऐसा पाठाधारित विश्लेषण किया है, जो जितना ही पांडित्य के पाखंड से शून्य है, उतना ही सरस और रचनात्मक। उचित ही उन्होंने कहा है कि उन्होंने निराला की कविता की पंखुड़ियाँ छिन्न-भिन्न नहीं कीं, सिर्फ़ इसके लिए प्रयास किया है कि वह अपनी नाल पर प्रस्फुटित हो जाए।
‘कृति से साक्षात्कार’ के प्रथम खंड में निराला की कालजयी पूर्ववर्ती कविताओं का विवेचन है और द्वितीय खंड में गीतों के साथ उनकी मध्यवर्ती और परवर्ती उन कविताओं का, जिन्होंने हिन्दी कविता में नए-नए वाग्द्वार खोले। 1936 में निराला ऐसा मानते थे कि उनकी शमा पूरी-पूरी नहीं जली, उसमें हज़ार-दो हज़ार बत्तियों की ताक़त नहीं आई। उनके पूर्ववर्ती कृतित्व के साथ मध्यवर्ती और परवर्ती कृतित्व को भी दृष्टि में रखने पर वह अपनी रोशनी से आँखें चौंधियाती दिखलाई पड़ती हैं।
डॉ. नवल के इस अध्ययन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परवर्ती पीढ़ी के एक आलोचक द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें दृष्टि की वस्तुपरकता तो है ही, नई काव्य-संवेदना की दीप्ति भी है।

Nirala Kriti Se Sakshatkar
Nandkishore Naval
Nirala Aur Muktibodh : Chaar Lambi Kavitayen
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
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हिन्दी में लम्बी कविता का इतिहास नया नहीं है, भले उसे पारिभाषिक अभिधा मुक्तिबोध की लम्बी कविताओं से प्राप्त हुई हो। पुराने कवियों को छोड़ दें, तो लम्बी कविता द्विवेदी-युग के कवियों से लेकर समवर्ती युग के कवियों तक ने लिखी है। हिन्दी के महत्त्वपूर्ण युवा आलोचक नंदकिशोर नवल ने अध्ययन के लिए चार लम्बी कविताएँ चुनी हैं। उनमें से दो निरालाकृत हैं और दो मुक्तिबोधकृत। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये चारों कविताएँ हिन्दी की चर्चित और विवादास्पद ही नहीं, महान कविताएँ भी हैं, जिनके सोपानों पर चरण रखते हुए हिन्दी कविता ने ऊँचाई प्राप्त की है।
लम्बी कविता का सम्बन्ध निश्चय ही केवल आकार से न होकर प्रकार से भी है। इसे संयोग ही कहेंगे कि लेखक द्वारा चुनी गई चारों कविताएँ चार तरह की हैं। ‘सरोज-स्मृति’ के चित्रों को यदि स्मृति का सूत्र गुम्फित करता है, तो 'राम की शक्ति-पूजा' कथा के सहारे आगे बढ़ती है। ‘ब्रह्मराक्षस’ और ‘अँधेरे में’ दोनों ही फ़ैंटास्टिक कविताएँ हैं, लेकिन एक की फ़ैंटेसी जहाँ एक अखंड रूपक के रूप में है, वहीं दूसरे की फ़ैंटेसी एक पूरी चित्रशाला है। नवल ने बड़ी सूक्ष्मता से चारों लम्बी कविताओं के शिल्पगत वैशिष्ट्य को उद्घाटित करते हुए उनकी उस अन्तर्वस्तु पर प्रकाश डाला है, जो कि उससे अभिन्न है।
समकालीन हिन्दी आलोचना में रचना से साक्षात्कार की बहुत बात की जाती है, लेकिन उसका सामना होने पर प्राय: आलोचक बग़ल से निकल जाते हैं। नवल ने रचना के अन्तर्लोक में प्रवेश करते हुए उसके उस बृहत्तर सन्दर्भ को हमेशा याद रखा है, जिसमें ही कोई रचना अपनी सार्थकता अथवा प्रासंगिकता प्राप्त करती है। ‘निराला और मुक्तिबोध : चार लम्बी कविताएँ’ नामक उनकी यह आलोचना-पुस्तक हिन्दी कविता के मर्मग्राहियों के लिए निश्चय ही उपयोगी बनी रहेगी।

Nirala Aur Muktibodh : Chaar Lambi Kavitayen
Nandkishore Naval
Hindi Kavita : Abhi, Bilkul Abhi
- Author Name:
Nandkishore Naval
-
Book Type:
- Description:
अपनी इस पुस्तक में नामवरोत्तर हिन्दी आलोचना के अग्रगण्य आलोचक
डॉ. नंदकिशोर नवल ने अपने समकालीन कवियों की कविता पर विचार किया है। ये वे कवि हैं, जिनके साथ वे उठे हैं, दौड़े हैं और झगड़े हैं; स्वभावत: इन कवियों पर लिखना अग्नि–परीक्षा से गुज़रना था, लेकिन साहित्य की पवित्रता की पूरी तरह से रक्षा करते हुए वे उसमें सफल हुए हैं। कभी–कभी उन्होंने कवियों की त्रुटियों की ओर भी संकेत किया है, लेकिन उसका ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व नहीं है, क्योंकि उनका लक्ष्य कवियों के वैशिष्ट्य का निरूपण रहा है और यह कार्य उन्होंने पूरे वैदग्ध्य से किया है। एक पीढ़ी के कवियों की पारस्परिक भिन्नता को रेखांकित करना आसान नहीं है, लेकिन उनकी कविताएँ उनकी नसों में इस क़दर प्रवाहित रही हैं कि उसमें उन्हें ज़रा भी दिक़्क़त नहीं हुई है।डॉ. नवल आलोचना साधारण पाठकों को सामने रखकर लिखते हैं। इतना ही नहीं, वे उनके साथ चलते हैं, उन्हें प्रासंगिक संस्मरण सुनाते हैं और घुमाते हुए कवि की सम्पूर्ण चित्रशाला का दर्शन करा देते हैं। वे उस आलोचना के सख़्त ख़िलाफ़ हैं, जो कविता की ज़मीन छोड़कर चील की तरह आकाश की गहराइयों में उड़ती है और वहाँ उड़ते कीड़ों की जगह पाठकों का शिकार करती है। ऐसी आलोचना पाठकों को आतंकित जितना कर ले, उसकी मित्र और बन्धु नहीं बन पाती।
निश्चय ही आलोचना कविता को कहानी या यात्रा–वर्णन बना देना नहीं है, लेकिन यदि उसे ‘रचना’ का ओहदा प्रदान करना है, तो उसमें रचना जैसी संवेदनशीलता लानी होगी। संवेदनशीलता के साथ स्पष्टता और आत्मीयता डॉ. नवल की ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्हें सराहते ही बनता है। अन्त में उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि ‘अब निर्मल जल–भर है, सेवार नहीं है’।

Hindi Kavita : Abhi, Bilkul Abhi
Nandkishore Naval
Tulsidas
- Author Name:
Nandkishore Naval
-
Book Type:
- Description:
तुलसीदास हिन्दी कवियों के शिरोमणि हैं, लेकिन हिन्दी की नई पीढ़ी में उनके प्रति एक उपेक्षा का भाव देखा जाता है। इसका कारण उनका वर्णाश्रम-धर्म में विश्वास करना है। किसी भी कवि को चित्रण की जगह उसके विश्वासों के आधार पर परखना ग़लत है। संसार में अनेक ऐसे बड़े रचनाकार हुए हैं, जिनके विश्वासों से हम सहमत नहीं होते, लेकिन जो हमारे ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। नई पीढ़ी कबीर की तरफ़ अधिक झुकी हुई है, जबकि उनका लक्ष्य लोक न होकर परलोक था, वे योगमार्गी थे और वर्ण-व्यवस्था तथा बाह्याचार का विरोध उनका उपलक्ष्य-मात्र था। उनकी महानता में भी किसी को सन्देह नहीं है, लेकिन तुलसीदास की महानता का उससे कोई विरोध नहीं। डॉ. नामवर सिंह के शब्द लेकर कहें, तो साहित्य की गली प्रेम की गली-जैसी सँकरी नहीं है कि उसमें एक से अधिक की समाई न हो।
डॉ. नवल हिन्दी के सुपरिचित आलोचक हैं। अब तक वे आधुनिक कविता पर लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने पहली बार मध्ययुग के एक कवि को विषय बनाया है। स्वभावतः ऐसा उन्होंने अपनी अन्तःप्रेरणा से किया है, जिससे उनकी पुस्तक में एक रसज्ञ पाठक से मुलाक़ात होती है, शुष्क विश्लेषण करनेवाले शास्त्रज्ञ आलोचक से नहीं। इसमें सिर्फ़ तीन लेख हैं, जिनसे तुलसीदास की कविता का सम्पूर्ण चित्र आँखों के सामने आ जाता है। वह चित्र जितना ही भास्वर है, उतना ही सरस भी। इसके बल पर तुलसीदास का कवि-चित्र भी विशाल से विशालतर होता जाता है।

Tulsidas
Nandkishore Naval
Nirala Kavya ki Chhaviyan
- Author Name:
Nandkishore Naval
-
Book Type:
- Description:
निराला आज खड़ी बोली के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में मान्य हैं, लेकिन इस मान्यता तक उनके पहुँचने की भी एक कहानी है—संघर्षपूर्ण। उन्होंने एक तरफ़ कविता को मुक्त किया और दूसरी तरफ़ उसमें ऐसे अनुशासन की माँग थी, जिसकी पूर्ति बहुत थोड़े कवि कर सकते हैं। उनकी विशेषता यह है कि प्रचंड भावुक होते हुए भी वे एक विचारवान कवि थे और उनकी विचारशीलता स्थिर न होकर अपनी जटिलता में भी गतिशील थी। वे वस्तुतः भारतीय स्वाधीनता-आन्दोलन की देन थे, लेकिन उनकी स्वाधीनता की धारणा अपने समकालीन कवियों से बहुत आगे ही नहीं थी, बल्कि क्रान्तिकार थी। यही कारण है कि वे नई पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक बने हुए हैं। ‘निराला-काव्य की छवियाँ’ नामक इस पुस्तक का पहला खंड इन तमाम बातों का विश्लेषणपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता
है।दूसरा खंड निराला की कुछ पूर्ववर्ती और परवर्ती चुनी हुई कविताओं की पाठ-केन्द्रित आलोचना से सम्बन्धित है। ‘प्रेयसी’, ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘वन-बेला’ और ‘हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की ऐसी कविताएँ हैं, जो उनके पूर्ववर्ती काव्य के विषय-वैविध्य को दर्शाती हैं। यहाँ उनकी व्याख्या के प्रसंग में उनकी अखंडता को ध्यान में रखते हुए उन्हें परत-दर-परत उधेड़कर देखने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के दूसरे खंड की अप्रतिम विशेषता यह है कि इसमें कदाचित् पहली बार निराला के परवर्ती काव्य का मार्क्सवाद और हिन्दी प्रदेश के कृषक-समाज से सम्बन्ध पूर्वग्रहमुक्त होकर निरूपित किया गया है। जैसे ‘सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की पूर्ववर्ती आत्मपरक सृष्टि है, वैसे ही ‘पत्रोकंठित जीवन’ उनकी परवर्ती आत्मपरक सृष्टि। निराला-काव्य के अध्येता डॉ. नंदकिशोर नवल ने, जो निराला रचनावली के सम्पादक भी हैं; प्रस्तुत पुस्तक में निस्सन्देह निराला के काव्य-लोक की बहुत ही भव्य फलक दिखलाई है।

Nirala Kavya ki Chhaviyan
Nandkishore Naval
Dinkar Ardhnarishwar Kavi
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Book Type:
- Description:
दिनकर आधुनिक हिन्दी कविता के उत्तर–छायावादी व नवस्वच्छन्दतावादी दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। कवि–रूप में उनकी दो विशेषताएँ थीं। एक तो यह कि उनकी कविता के अनेक आयाम हैं और दूसरी यह कि उनमें अन्त–अन्त तक विकास होता रहा। ‘प्रण–भंग’ से लेकर ‘हारे को हरिनाम’ तक की काव्य–यात्रा जितनी ही विविधवर्णी है, उतनी ही गतिशील भी। दिनकर रचनावली के अवलोकन के बाद डॉ. नामवर सिंह ने उचित ही यह टिप्पणी की कि कुल मिलाकर दिनकर जी का रचनात्मक व्यक्तित्व बहुत कुछ निराला की तरह है।
दिनकर की कविता के उल्लेखनीय आयाम हैं राष्ट्रीयता, सामाजिकता, प्रेम और शृंगार तथा आत्मपरकता एवं आध्यात्मिकता। इन आयामों का अतिक्रमण करते हुए उन्होंने अच्छी संख्या में ऐसी कविताएँ लिखी हैं, जिन्हें किसी खाने में नहीं रखा जा सकता। वस्तुत: ऐसी कविताएँ ही उन्हें महान कवि बनाती हैं। सबसे ऊपर उनकी विशेषता है उनके व्यक्तित्व की ओजस्विता, जो उनकी प्रत्येक प्रकार की कविताओं में अभिव्यंजित होती है। स्वभावत: उनकी प्रेम–शृंगार और आध्यात्मिक कविताओं में जो लावण्य है, उसे एक आलोचक के शब्द लेकर ‘ओजस्वी लावण्य’ कहा जा सकता है।
‘नई कविता’ के दौर में दिनकर जी को वह सम्मान न मिला, जिसके वे अधिकारी थे। उन्हें वक्तृतामूलक और प्रचारवादी कवि कहा गया, जबकि सच्चाई यह है कि ये दोनों बातें स्वतंत्रता–आन्दोलन के प्रवक्ता कवि के लिए स्वाभाविक थीं, लेकिन ज्ञातव्य यह है कि उन्होंने श्रेष्ठ कविता का दामन कभी नहीं छोड़ा।
दूसरे, समय के साथ उनकी कविता का तर्ज बदलता गया और वे भी ‘महीन’ कविताएँ लिखने लगे, जिनमें एक नई आभा है। निश्चय ही उनकी कविता हिन्दी की कालजयी कविता है, उसे नया विस्तार और तनाव देनेवाली।

Dinkar Ardhnarishwar Kavi
Nandkishore Naval
Maithilisharan Gupta Sanchayita
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Maithilisharan Gupta Sanchayita
Nandkishore Naval
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