Moortein : Mati Aur Sone Ki
Author:
Nandkishore NavalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
नवल जी कहते रहे हैं कि संस्मरण एक थकी हुई विधा है, यद्यपि वे युवा-काल में भी स्फुट संस्मरण लिखते रहे हैं। उदाहरण के लिए नागार्जुन पर लिखे गए उनके संस्मरण ‘लौट आ ओ फूल की पंखड़ी’ को देखा जा सकता है। अब जाकर उन्होंने उसका उत्तरार्ध इस पुस्तक में लिखा है।</p>
<p>इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने संस्मरण लिखने की कठिनाइयों की ओर संकेत भी किया है। यह वस्तुतः साहित्य की सबसे नाजुक विधा है, जिसकी रचना में यह ख़तरा बराबर बना रहता है कि कहीं ऐसा न हो कि ‘लिखत सुधाकर गा लिखि राहू’। संस्मरण के चरित्रों की स्मृतियाँ भले क्रमबद्ध रूप में सामने न आएँ, पर उनमें संजीदगी के साथ एक खुलापन तो होना ही चाहिए। दूसरे, कमल पूर्णतः प्रस्फुटित हो, पर उसकी पंखुरियों पर जल का दाग न लगे। वस्तुतः संस्मरण लिखना ‘तलवार की धार पर धावनो है’। पाठक देखेंगे कि नवल जी सत्य का अलाप न करते हुए भी इसमें सफल हुए हैं।</p>
<p>संस्मरणों की इस पुस्तक के दो खंड हैं। पहले खंड में घर और गाँव के पाँच चरित्र हैं। ये सारे चरित्र अपने वैशिष्ट्य से युक्त हैं, जिन्हें लेखक ने विलक्षण कुशलता से चित्रित किया है। उनके चित्रण में यथास्थान बज्जिका के शब्दों के प्रयोग से माटी की ख़ुशबू उठती है और चतुर्दिक् फैल जाती है। दूसरे खंड में हिन्दी के पाँच महत्त्वपूर्ण लेखकों को विषय बनाया गया है। कितना अन्तर है इन दोनों प्रकार के संस्मरणों में! जैसे धरती के ऊपर आकाश का नक्षत्रों से जड़ित नीला तनोवा तना हो। इस पुस्तक की एक अतिरिक्त ख़ूबी यह है कि इससे आप जितना लेखक के विषय में जानेंगे, उतना ही विषय को भी, पर बिना किसी आत्मप्रक्षेपण के। अब आप पुस्तक को उठाएँ और उसकी माटी और सोने की धूलों से स्नात हो जाएँ।
ISBN: 9788126730711
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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स्वामी विवेकानन्द आगे लिखते हैं : “भारत-भूमि हमेशा विचारकों और ऋषियों से समृद्ध रही है। शंकर के पास एक महान मस्तिष्क था और चैतन्य के पास एक विशाल हृदय था और अब वह समय आ गया था जब मस्तिष्क और हृदय—इन दोनों के एक समन्वित मूर्तरूप की आवश्यकता थी—एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसके अन्दर एक ही शरीर में शंकर के चमत्कारिक मस्तिष्क और चैतन्य के आश्चर्यजनक रूप से उदार व विशाल हृदय का समावेश हो; जो प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही आत्मा, एक ही परमात्मा को कार्य करते हुए देखता हो; जो प्रत्येक वस्तु के अन्दर भगवान को देखता हो, जिसका हृदय इस संसार में भारतवर्ष व उसके बाहर सब जगह समस्त दीन-दुखियों, दुर्बलों, पददलितों और पीड़ितों के लिए आर्तनाद करता हो और इसके साथ ही जिसकी विशाल तीव्र बुद्धि परस्पर विरोधी विभिन्न सम्प्रदायों के बीच संगति स्थापित करनेवाले उदार विचारों की कल्पना करती हो...और उनमें संगति स्थापित करके मस्तिष्क और हृदय के एक सार्वभौम धर्म को जन्म देनेवाली हो—ऐसे मनुष्य ने जन्म लिया था।...समय उसके अनुकूल था, यह आवश्यक था कि ऐसे मनुष्य का जन्म हो, और वह आया था, और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसका कर्मक्षेत्र एक ऐसी नगरी के निकट था, जो पाश्चात्य विचारों से पूर्ण थी, जो पश्चिमी विचारों के पीछे पागल हो उठी थी और जिस नगरी ने भारत के अन्य सब नगरों की अपेक्षा कहीं अधिक आचार-विचारों को अपनाया था। ऐसे स्थान में, बिना किसी किताबी ज्ञान के वह रहता था। इस महान मनीषी को अपना नाम तक भी लिखना न आता था, परन्तु हमारे विश्वविद्यालयों के बड़े-बड़े प्रतिभाशाली स्नातक उसकी बुद्धि की विराट शक्ति को देखकर दंग रह जाते थे...वह अपने समय का महान ऋषि था, जिसकी शिक्षाएँ वर्तमान समय के लिए सबसे अधिक लाभदायक हैं।”
...यदि मैं आपको एक भी सत्य बात कहता हूँ तो वह उसकी और केवल उसकी है और यदि मैंने आपसे कोई भ्रान्तिपूर्ण या ग़लत बातें कही हैं, तो वे सब मेरी अपनी हैं, उनका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।’’
“जिस मनुष्य की मूर्ति की मैं यहाँ स्थापना करना चाहता हूँ, वह तीस करोड़ नर-नारियों के दो सहस्र वर्षव्यापी आध्यात्मिक जीवन का परिपूर्ण रूप है। यद्यपि चालीस वर्ष हुए, उसका देहावसान (सन् 1886) हो चुका है, तथापि उसकी आत्मा आधुनिक भारत को प्राणदान कर रही है। वह गांधी के समान कर्मवीर नहीं था, कला या विचार में गेटे व टैगोर के समान प्रतिभाशाली नहीं था। वह बंगाल के एक छोटे से गाँव का रहनेवाला ब्राह्मण था, जिसका बाह्य जीवन संकीर्ण रूढ़ियों की सीमा में आबद्ध था। उसमें उल्लेख योग्य कोई विशेष घटना न थी, और तात्कालिक सामाजिक व राजनीतिक हलचल से वह सर्वथा पृथक् था; परन्तु उसके आन्तरिक जीवन में नाना देवताओं और मानवों का एक विचित्र समावेश था। उसका अभ्यन्तरीय जीवन उस सकल शक्ति की मूलाधार स्वरूपिणी दैवी ‘शक्ति’ का अंशमात्र था, जिस दैवी शक्ति की मिथिला के प्राचीन कवि विद्यापति और बंगाल के कवि रामप्रसाद ने वन्दना की है।
—रोमां रोलां
kabaadkhana
- Author Name:
Gyanranjan
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Description:
यह आश्चर्यजनक है कि ‘लौट आ जो धार’ में दूधनाथ सिंह ने ज्ञानरंजन के शिल्प की तुलना सुमित्रानन्दन पन्त से की है और बताना चाहा है कि कुछ दूर तक चलने के बाद ज्ञानरंजन अमूर्त दार्शनिकता में फँस जाते हैं। ज्ञानरंजन की कहानियाँ पढ़ने में तो ऐसा कुछ नहीं लगता। उत्सुकतावश उनकी गद्य रचनाओं के संकलन ‘कबाड़खाना’ को पढ़ा कि शायद यहाँ ऐसा कुछ दिख जाए, लेकिन यहाँ भी ज्ञानरंजन वही हैं–वही सीधी बात करने की जवाँमर्दी, वही सच्चाई का गुरूर। विचारधारा का आग्रह है, मार्क्सवाद का आग्रह है, पर फटी लंगोट बचाने जैसा आग्रह नहीं है, यह लड़ाई को दुश्मन के घर में घुसकर लड़ने का आग्रह है। संग्रह के हिसाब से यह एक बेतरतीब-सा संग्रह है। इसमें संस्मरण हैं, व्याख्यान हैं, सम्पादकीय हैं, रचनात्मक निबन्ध हैं, साक्षात्कार हैं, अखबारी टिप्पणियाँ हैं, और तो और, एक उपन्यास- अंश और काशीनाथ सिंह के नाम लिखा एक पत्र भी है, लेकिन ये सारी की सारी गद्य रचनाएँ मिलकर इस प्रदर्शनप्रिय समय में एक जीवन्त प्रतिवाद का निर्माण करती हैं। ये उसी ‘जेनुइन’ बेचैनी और छटपटाहट का मूर्त रूप बनती हैं, जो साठोत्तरी पीढ़ी की पहचान थी और उससे भी ज्यादा बेचैनी और छटपटाहट आज सर्वत्र मौजूद होने के बावजूद आज की साहित्यिक पीढ़ी की पहचान नहीं है।
‘कबाड़खाना’ पढ़ना दिलचस्प है और इसका हर शब्द झकझोरने वाला है। काफी हद तक यह ज्ञानरंजन के द्वारा कहानी न लिखने या न के बराबर लिखने की भरपाई करता है। यहाँ, ‘राजा हो, तुमने बुढ़ौती में चंचल प्यार कर मारा’ जैसे स्वतःस्फूर्त वाक्य है जो लाख गढ़न के बावजूद कहानियों में भी मुश्किल से ही मिलते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इसमें वह बेचैनी है जो सांस्कृतिक हमले और सतहीपन के इस दौर में हमारी भाषा और समाज को बेबस मौत से बचाएगी। सफाई देना ज्ञानजी की फितरत वैसे भी नहीं है लेकिन हिन्दी पाठकों की सन्तुष्टि तब होगी, जब वे ‘कबाड़खाना’ के ही मानदण्डों पर अपनी खास विधा में कुछ लेकर आएँ।
–चन्द्रभूषण
From Hampi to Harappa
- Author Name:
Tirumala Ramachandra +1
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- Book Type:

- Description: "From Hampi to Harappa" is considered among the top ten Telugu autobiographies of the twentieth century. Ramachandra's honesty, self-reflection, and the conflict between his traditional Vaishnava beliefs and modern education make this book remarkable. During the nationalist struggle, he was attracted to extremist ideas but found his own path again through personal struggles. It's astonishing that someone who was a great scholar in Sanskrit, Telugu, Kannada, and Prakrit, had to experience hunger and travel across India to find work to feed himself in the 1930s and 40s. The book is filled with unbelievable incidents, such as his mentor Veturi Prabhakara Sastry experiencing extreme hunger while the author survived on very little food. Similarly, he survived on Ganga water for almost a month while waiting in Kanpur for a conman who had promised a business partnership. He did a variety of jobs, including working as a cataloguer in manuscript libraries, a hotel worker, and a Havaldar clerk in the military, before finally settling in a newspaper. Through his experiences, Ramachandra provides us with glimpses of the civilizations around Hampi and Harappa and insights into modern India during the Independence Movement.
Gautam Adani: A Complete Biography
- Author Name:
Mahesh Dutt Sharma
- Book Type:

- Description: Gautam Adani is an exceptional entrepreneur, full of determination and vision. From the modest beginnings, he became a global billionaire, showing us the true power of hard work. His diverse business success reflects his smart decision-making and inspires aspiring entrepreneurs everywhere. This book tells the inspiring story of Gautam Adani, a visionary business leader who has made a significant impact on the global corporate world. With remarkable business skills and unwavering determination, Adani built a diverse and successful business empire from humble beginnings. “No business is small or big, and there is no religion greater than the business”. Implementing this maxim in his life, Gautam Adani left the narrow streets behind and became the most famous businessman in India. This book will inspire aspiring entrepreneurs, showcasing the incredible power of determination and forward-thinking in achieving greatness in the business world.
Ret Par Khema
- Author Name:
Zabir Hussain
- Book Type:

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Description:
‘मौत पर मुआवज़ा। मेरे गाँव आजकल मौत का मुआवज़ा मिलता है?’ कबीर छह सौ वर्ष बाद एक दिन अपने गाँव आकर जुम्मन शेख से पूछते हैं : और जुम्मन उन्हें बताता है कि ‘हाँ, मिलता है, सिर्फ़ ख़ुशक़िस्मत लोगों को मिलता है।’
नए और लगातार बदलते हुए इस दौर के बारे में राजनीतिज्ञ और लेखक जाबिर हुसेन की यह कथा-डायरी इसी तरह कभी कल्पना के सहारे, कभी अपने आसपास फैली ख़बरों के बहाने और कभी अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के अनुभवों के आधार पर भावप्रवण टिप्पणियाँ करती चलती है।
जाबिर हुसेन अहसास की गहरी नमी के पीछे से अपने आसपास की दुनिया को देखनेवाले रचनाकार हैं, इसीलिए शायद उन्होंने कहानी-उपन्यासों के बजाय डायरी जैसी विधा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है जो निजी तथा सार्वजनिक के बीच एक दिल की तरह धड़कते हुए पुल का निर्माण करती है।
2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से विभूषित यह रचना उनकी कथा-डायरी है जिसमें वे अपने अनुभवों और विचारों को छोटी-छोटी कहानियों में पिरोकर पेश करते हैं। बचपन की अपनी प्यारी नाजो बी की यादों से शुरू होकर यह किताब अनेक दिलचस्प और हमारी सोच की राह को रौशन करनेवाली कहानियों और मौजूदा समय की सच्चाइयों को उजागर करनेवाले क़िस्सों से होकर गुज़रती है। कबीर हैं तो लोहिया भी इसमें हैं, दादा कृपलानी हैं तो दंगाई भीड़ के सामने खड़े मांगी रामजी भी हैं।
Satya Ke Mere Prayog
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

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Description:
विश्व के स्वप्नदर्शी और युगांतरकारी नेताओं में सर्वाधिक चर्चित और देश-काल की सीमाओं को लांघकर एक प्रतीक बन जानेवाले महात्मा गांधी की यह आत्मकथा न किसी परिचय की मुहताज है और न किसी प्रशंसा की। अनेक भाषाओं और देशों के असंख्य पाठकों के मन में राजनीति, समाज और नैतिकता से जुड़े सवालों को जगाने, विचलित करनेवाली इस पुस्तक का यह मूल गुजराती से अनूदित प्रामाणिक पाठ है।
समाज और राजनीति की धारा में गांधी जी ने असहयोग और अहिंसा जैसे व्यावहारिक औज़ारों से एक मानवीय हस्तक्षेप किया, वहीं अपने निजी जीवन को उन्होंने सत्य, संयम और आत्मबल की लगभग एक प्रयोगशाला की तरह जिया। नैतिकता उनके लिए सिर्फ़ समाजोन्मुख, बाहरी मूल्य नहीं, उनके लिए वह अपने अन्त:करण के पारदर्शी आइने में एक ऐसे नग्न प्रश्न के रूप में खड़ी थी, जिसका जवाब व्यक्ति को अपने सामने, अपने को ही देना होता है। अपने स्व की कसौटी ही जिसकी एकमात्र कसौटी होती है। यह पुस्तक गांधी जी के इसी अविराम नैतिक आत्मनिरीक्षण की विवरणिका है।
इस चर्चित पुस्तक की पुनर्प्रस्तुति यह बात ध्यान में रखते हुए की जा रही है कि महान कृतियों का अनुवाद बार-बार होते रहना चाहिए। इस अनुवाद में प्रयास किया गया है कि गांधी जी की इस सर्वाधिक पढ़ी जानेवाली कृति को आज का पाठक उस भाषा-संवेदना की रोशनी में पढ़ सके जो आज़ादी के बाद हमारी चेतना का हिस्सा बनी है।
Akela Aadmi (Kahani Nitish Kumar Ki)
- Author Name:
Sankarshan Thakur
- Book Type:

- Description: नीतीश कुमार सन् 1974 में विश्वविद्यालय में पढ़नेवाले एक युवा ही थे, तभी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ पटना की सड़कों पर जनांदोलन शुरू हो गया। आंदोलन बढ़ता गया और देश भर में फैल गया। छात्र, राजनेता, मजदूर और पुराने राजामहाराजा—सब आंदोलन में शामिल हो गए। इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर भारत के लोकतंत्र पर बड़ा आघात किया। युवा संकर्षण ठाकुर तब स्कूल में ही पढ़ते थे और इन घटनाओं को चुपचाप देखा करते थे। वह समय, जब जनता आदर्शवाद के सपने देखने लगी थी, गुजर गया, उसके बाद दशक गुजर गए और सारे सपने राख हो गए। हालाँकि उस राख से एक ऐसा नेता निकला, जिसने बिहार का स्वरूप बदल दिया और उसे देश की सबसे संपन्न अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करा दिया। बिहार में लालूप्रसाद यादव के अंधकारमय, नैराश्यपूर्ण और अराजक शासन के बाद बिहार को नीतीश कुमार के रूप में सभ्य, आधुनिक और काम करनेवाला मुख्यमंत्री मिला। उनके नेतृत्व में बिहार ने हर क्षेत्र में जबरदस्त कामयाबी हासिल की। हालाँकि, उनकी इस यात्रा में कई कमियाँ भी हैं। क्या नीतीश कुमार सफल होंगे या असफल हो जाएँगे? नीतीश कुमार आज जो हैं, वो कैसे बने? वे हैं कौन? इस पुस्तक में समकालीन राजनीति के छलकपट, रिपोर्ताज, किस्सागो और विश्लेषण दिए गए हैं; जिनके बीच नीतीश कुमार देश के एक अँधेरे कोने से उभरे और पुंज बनकर चमके। संकर्षण ठाकुर ने नीतीश कुमार के जटिल व्यक्तित्व की परतें निपुणतापूर्वक और आकर्षक रूप से खोली हैं।
Omkar The Stealth Warrior
- Author Name:
Balraj Tiwari
- Book Type:

- Description: ओंकार' एक गुमनाम देश-सेवक के संस्मरणों का संग्रह है। इसका कालखंड अस्सी के दशक के आखिरी वर्षों से लेकर नब्बे के दशक के मध्य तक का है। यह वह समय था, जब देश में राजनीतिक व आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से हालात काफी नाजुक थे।1 उस समय भारत के कई राज्यों में कट्टरपंथी ताकतें व आतंकवाद अपने चरम पर था। ऐसे समय में भारत की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आतंकवाद से लड़ने के लिए अलग-अलग कदम उठाए गए। 'ओंकार' भी इन्हीं में से किसी एक टीम का सदस्य था, जिसने अपने छोटे से कार्यकाल में अलग-अलग तरह से व अलग-अलग जगहों पर जाकर कई ऑपरेशंस को अंजाम दिया था। वह समय ऐसा था, जब सीमित संसाधनों के सहारे ही गुप्त रूप से काम करने होते थे। संचार, यातायात व आश्रय के साधन बहुत सीमित होते थे। ओंकार का कार्यक्षेत्र उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों, जैसे पंजाब, कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल व हरियाणा में रहा। हर तरह के मौसम, हालातों से जूझते हुए व अलग-अलग परिवेशों में उसने अपने कार्यों को पूरा किया। किसी भी इनसान का एक दोहरी जिंदगी को जीते हुए कार्य, परिवार व सामान्य जीवन में सामंजस्य बिठाना बहुत कठिन होता है। ओंकार ने अपने संस्मरणों में इस मनःस्थिति का भी जिक्र किया है। इस पुस्तक में ऐसे अनाम देशप्रेमी के संस्मरणों को संकलित कर हर भारतीय को प्रेरित करने का मंतव्य निहित है।
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