Bhavana Shekhar
Saanjh Ka Neela Kivaar
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Bhavana Shekhar
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भारतीय कविता विशेषकर हिन्दी कविता में अभी का समय स्त्री-नवजागरण का समय है। भक्तिकाल के बाद इतनी बड़ी संख्या में इतनी तेजोमय स्त्री कवियों का आविर्भाव हुआ है। भावना शेखर इसी स्त्री-काव्य का एक नवीनतम शिखर हैं। अन्तर केवल यह है कि भावना शेखर की कविताएँ रूढ़ या प्रचलित अर्थ में स्त्रीवादी कविताएँ नहीं हैं। ये बस उतनी ही और वैसी ही जाग्रत कविताएँ हैं जितनी कि किसी भी कविमात्र द्वारा सृजित हो सकती हैं—स्त्री वा पुरुष। क्योंकि ये मनुष्य जाति बल्कि सम्पूर्ण जीव-जगत और ब्रह्मांड की कविताएँ हैं। ‘बिछुड़न’ शीर्षक कविता इस जगत व्याप्ति का अद्भुत उदाहरण है। ‘हृदय की भूमि में’, ‘गुरुत्वाकर्षण’ की शक्ति को पहचानती भावना शेखर की कविताओं के लिए कुछ भी अस्पृश्य नहीं है। बचपन की स्मृतियों से लेकर ऐन्द्रिक अनुभवों और गहन लालसा से भरी ये कविताएँ सहसा हमें बेचैन कर देती हैं। ‘मेरी नसों में कुछ जी उठा है/मालूम होता है/दीवार के उस पार गुज़री हो तुम अभी-अभी’—आज केवल भावना शेखर ही ऐसी पंक्ति रच सकती हैं। और इतना नया और सूक्ष्म विवरण भी—‘पत्तों से छनती धूप बदरंग है कलई उतरे बर्तनों सी’, साथ-साथ भावना ने ऐसी कविताएँ भी लिखी हैं जो मूलत: स्त्री-अनुभव की कविताएँ हैं जैसे ‘सत्रहवीं दहलीज़’ या ‘ऋतुस्नान के बाद’। लेकिन यहाँ कोई तिक्तता या द्वेष नहीं है, केवल एक पृथक् जीवनचर्या है और यही इस कविता की प्रतिरोध-भूमि है। ‘बित्ता-भर ज़मीन’ की तलाश पूरे संग्रह की प्रेरणा-शक्ति है, फिर भी यहाँ कुछ भी सपाट या अनगढ़ नहीं है। ‘यह अभिधा नहीं व्यंजना है’ कवि का कहना है जो सच तथा प्रामाणिक है तथा ‘स्त्रीलिंग’ का इन्द्रधनुषी आक्षितिज प्रसार। इस संग्रह की एक अनूठी और मार्मिक कविता है ‘स्त्रीलिंग।’ इन कविताओं को पढ़ना एक नए अनुभव-संसार, एक नए शिखर की चमक और प्राणवायु को आत्मसात् करना है। मैं केवल एक कविता उद्धृत कर रहा हूँ—
“चूल्हे की राख में बुझते अंगारे
हथेली पर सूखती क़तरा-भर नमी
इकलौते पैर पर लँगड़ाती मैना
और पुलिया के पारवाली बंजर ज़मीं
कभी तो सुलगेगी बुझती चिंगारी
चुल्लू-भर तरावट मुट्ठी में होगी
उस ओर होगी परिन्दों की आहट
मेरी मुँडेर भी गौरैया फुदकेगी”
—अरुण कमल
Saanjh Ka Neela Kivaar
Bhavana Shekhar
Khuli Chhatri
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Bhavana Shekhar
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जीवन के विविध प्रसंगों में कई बार धारणाएँ ध्वस्त होती हैं, भ्रान्तियाँ भग्न होती हैं, नवीन अनुभव नवनिष्कर्षों को गढ़ते हुए कभी मनुष्य को सन्तप्त करते हैं तो कभी चमत्कृत। ऐसे में जीवन-सरणि पर विचरते कुछ किरदारों की केंचुल उतरने लगती है—उनकी विद्रूपता झलकने लगती है तो कुछ किरदार साँचा तोड़ नवरूप धरते दिखाई देते हैं। नवरूपता ही नहीं, अपरूपता भी जीने का सलीक़ा सिखाती है।
पुस्तक की प्रायः सभी कहानियाँ द्रष्टा को ‘नॉन जजमेंटल’ होने और पूर्वग्रहों से मुक्त होकर जीवन को परखने को कहती हैं।
नारी है तो अभिशप्त है, पुरुष है तो परुष है, दलित है तो पीड़ित है, वेश्या है तो चरित्रहीन है, गुंडा है तो भ्रष्ट है—ये पूर्वग्रह बहुत बार भ्रम साबित होते हैं। ‘निरापद’, ‘वो युधिष्ठिर’, ‘गणिका’, ‘कबूतरी’, ‘दबंग’, ‘देवभूमि’ आदि पुस्तक की अधिकांश कहानियाँ इस बात को प्रतिबिम्बित करती हैं। सफ़ेदपोशी में कालिख की डुगडुगी तो सभी बजाते हैं पर कालिमा का भी उजास है—इसे स्वीकारना और तलाशना ही जीवन का मर्म है।
पर कुछ अनुभूतियाँ कालनिरपेक्ष सत्य की तरह अकाट्य होती हैं। सूरज-चाँद-सितारों की तरह सनातन प्रतीत होती हैं, जैसे अपनी माँ सबसे सुन्दर और अपना घर सबसे बड़ा स्वर्ग है। संवेदना ने जिस कुरूप चेहरे को सदा हिकारत से देखा, वही एक दिन सुन्दरता की मिसाल बन गया।
परदेस गए बेटे का वियोग बूढ़े माँ-बाप को कैसे सालता है—‘अपना घर अपना आसमान’ इस पीड़ा का आईना है, ‘खुली छतरी’ बाल मनोविज्ञान का चित्रण करती है तो ‘सज़ा’ आदर्श नारी के मिथक को तोड़कर उसके सहज रूप में संवेग और आवेग, प्यार और प्रतिकार की सृष्टि करती है।
अनब्याही माँ बनना, बलात्कार को मात्र दुर्घटना मानना, स्त्री द्वारा लीक तोड़कर शठे शाठ्यं समाचरेत् की परिपालना—समाज के ये नए मूल्य कहानियों में उजागर हुए हैं।
Khuli Chhatri
Bhavana Shekhar
Jugani
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Bhavana Shekhar
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अपनी दूसरी पुस्तक ‘जुगनी’ में पन्द्रह कहानियों के माध्यम से भावना शेखर ने आसपास घटती साधारण घटनाओं को भी असाधारण बनाने की अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है। सरल भाषा में परिपक्व भावनाओं को गूँथा गया है। अधिकांश कहानियाँ नारी पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती हैं और सफलतापूर्वक उनके अन्तर्मन में झाँकने का प्रयास करती हैं। भावना शेखर नारी-मन की कुशल चितेरी हैं—कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सदियों से दमित-कुंठित और शोषित नारी का चित्रण करना लेखिका का अभीष्ट नहीं वरन् अन्याय से लोहा लेती नारी को अन्ततः विजयी दर्शाना इन्हें अवश्य प्रिय लगता है। प्रायः हर कहानी एक ‘पॉजिटिव नोट’ पर समाप्त होती है।
वृन्दा हो या नीलांजना, देव या जुगनी—पात्रों का चरित्र-चित्रण तो प्रभावशाली है ही, पुरुष और नारी पात्रों की देहयष्टि का वर्णन भी लेखिका बेबाकी से कर जाती हैं—चाहे वह ‘त्रिकोण’ का हेमन्त हो या ‘वन्ध्या’ की अम्बिका या गोगो या ‘मलेच्छन’ की नैन्सी।
भावना शेखर के लेखन में प्रकृति के साथ पात्रों का सहज ही साहचर्य स्थापित हो जाता है। पहाड़ों से अपने जुड़ाव के कारण वे पाठकों को भी प्रकृति-भ्रमण की ओर बरबस खींच लेती हैं। अपनी कहानियों के माध्यम से न केवल बचपन में बार-बार लौटती हैं, अपितु सम्पूर्ण मानव जीवन की गतिविधियों पर एक दर्शनशास्त्री की तरह अपनी निश्छल टिप्पणी भी देती हैं।
संक्षेप में, पुस्तक की सभी कहानियाँ धारदार और असरदार हैं। अतः निस्सन्देह पठनीय और संग्रहणीय हैं।
—डॉ. नरेन्द्रनाथ पांडेय
Jugani
Bhavana Shekhar
Milkar Rahna
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Bhavana Shekhar
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- Description: Awating description for this book