Mithileshwar
Paharua Jan "पहरुआ जन" Book in Hindi- Mithileshwar
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Mithileshwar
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- Description: Awating description for this book
Paharua Jan "पहरुआ जन" Book in Hindi- Mithileshwar
Mithileshwar
Pratinidhi Kahaniyan : Mithileshwar
- Author Name:
Mithileshwar
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Book Type:

- Description: मिथिलेश्वर हिन्दी कथा-साहित्य में एक अलग महत्त्व रखते हैं। प्रेमचन्द और रेणु के बाद हिन्दी कहानी से जिस गाँव को निष्कासित कर दिया गया था, अपनी कहानियों में मिथिलेश्वर ने उसी की प्रतिष्ठा की है। दूसरे शब्दों में, वे ग्रामीण यथार्थ के महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं और उन्होंने आज की कहानी को संघर्षशील जीवन-दृष्टि तथा रचनात्मक सहजता के साथ पुन: सामाजिक बनाने का कार्य किया है। इस संग्रह में शामिल उनकी प्राय: सभी कहानियाँ बहुचर्चित रही हैं। ये सभी कहानियाँ वर्तमान ग्रामीण जीवन के विभिन्न अन्तर्विरोधों को उद्घाटित करती हैं, जिससे पता चलता है कि आज़ादी के बाद ग्रामीण यथार्थ किस हद तक भयावह और जटिल हुआ है। बदलने के नाम पर ग़रीब के शोषण के तरीक़े बदले हैं और विकास के नाम पर उनमें शहर और उसकी बहुविध विकृतियाँ पहुँची हैं। निस्सन्देह इन कहानियों में लेखक ने जिन जीवन-स्थितियों और पात्रों का चित्रण किया है, वे हमारी जानकारी में कुछ बुनियादी इज़ाफ़ा करते हैं और उनकी निराडम्बर भाषा-शैली इन कहानियों को और अधिक सार्थक बनाती हैं।
Pratinidhi Kahaniyan : Mithileshwar
Mithileshwar
Tera Sangi Koi Nahin
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Mithileshwar
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कृषक जीवन की बुनियादी संरचना के तहत कृषि के निरन्तर उपेक्षित, अभावग्रस्त और परेशानीपूर्ण बनते जाने के कारणों का राईं-रक्स उजागर करता यह उपन्यास कृषक जीवन, कृषक समाज और कृषि समस्या का जीवन्त विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
खेत मज़दूरों को ही किसान मानकर उन पर आधारित रचनाओं से पृथक् एक मध्यवर्गीय किसान की त्रासद कथा के माध्यम से इस उपन्यास ने सही अर्थों में प्रतिनिधि कृषक चरित्र तथा कृषि जीवन से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं को न सिर्फ़ चिन्हित किया है, बल्कि उन्हें जानने-समझने और एक सही अंजाम तक पहुँचाने के लिए सार्थक ज़मीन भी मुहैया कराई है।
‘तेरा संगी कोई नहीं’ कृषक जीवन, कृषक समाज और कृषि से सम्बन्धित समस्याओँ की सूक्ष्मता, बेबाकी और ज़मीनी सार पर पड़ताल करनेवाला विलक्षण उपन्यास है।
Tera Sangi Koi Nahin
Mithileshwar
Jamuni
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Mithileshwar
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- Description: मिथिलेश्वर ग्रामीण परिवेश के सशक्त कथाकार हैं। उनकी लम्बी कहानी ‘जमुनी’ को कृषक-जीवन की महागाथा कहा जा सकता है, जिसमें एक सामान्य भारतीय कृषक परिवार के प्रेम-घृणा, आस्था-विश्वास, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद, सम्पत्ति-विपत्ति और उत्थान-पतन का मार्मिक एवं सजीव चित्र प्रस्तुत किया गया है...। शिल्प का रचाव निश्चय ही कहानी को महत्त्वपूर्ण बना देता है, किन्तु कहीं-कहीं अनायास सादगी ही शिल्प का शृंगार बन जाती है। प्रेमचन्द का कथाशिल्प ऐसा ही था। वर्तमान कथाकारों में मिथिलेश्वर का कथाशिल्प भी इसी प्रकार का है।’’ —डॉ. राकेश गुप्त एवं डॉ. ऋषिकुमार चतुर्वेदी ‘हिन्दी कहानी 1991-95’, खंड-2 का भूमिकांश शीर्षक कथा ‘जमुनी’ एक लम्बी कहानी है जिसमें एक कृषक परिवार का संघर्ष जीवन्त हो उठता है और जहाँ अपनी भूख-प्यास और नींद-आराम को दरकिनार करते हुए हर एक की चिन्ता बीमार भैंस को मृत्यु के मुख में जाने से बचाने की है, क्योंकि वह भैंस ही उनकी सुख-समृद्धि का केन्द्र है। ‘जमुनी’ के अतिरिक्त इस संग्रह की अन्य कहानियाँ भी जीवन और जगत के जरूरी सवालों के जवाब तलाशती अमिट प्रभाव क़ायम करनेवाली कहानियाँ हैं। निःसन्देह, यह कहानी-संग्रह समर्थ कथाशिल्पी मिथिलेश्वर के प्रौढ़ कथा-लेखन की सार्थक यात्रा का द्योतक है। ‘बाबूजी’ के कथाकार ने अपने लेखकीय नैरन्तैर्य और श्रेष्ठ कथा-लेखन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट मौजूदगी का एहसास कराते हुए हिन्दी कथा-जगत को और अधिक ऊर्जस्वित और विकसित किया है...।
Jamuni
Mithileshwar
Ek Aur Mrityunjay
- Author Name:
Mithileshwar
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मिथिलेश्वर की ये लम्बी कहानियाँ शोषण, अन्याय, अत्याचार, अन्धविश्वास और सर्वग्रासी भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील रचनाकार मन की तीखी प्रतिक्रियाएँ हैं, जिनके माध्यम से वह इन सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक प्रतिकूल वातावरण तैयार करने की चेतना जाग्रत करते हैं। इस तरह उनकी कहानियाँ कथा-सूत्रों एवं चरित्रों के माध्यम से सभ्यता की समीक्षा भी हैं।
मिथिलेश्वर अपनी इन लम्बी कहानियों में हमारे समय की ज्वलन्त समस्याओं को उनके अन्तर्विरोधों के साथ मारक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे ये कहानियाँ अनियंत्रित, अमर्यादित, अपसंस्कृति को बेनक़ाब करती हुई वर्गीय चेतना को प्रामाणिक रूप में व्यक्त करती हैं। लोगों की बद्धमूल धारणाएँ, मानसिक पिछड़ापन, बदलते सामाजिक-आर्थिक सम्बन्ध, पारिवारिक ढाँचे में बदलाव, धर्म, संस्कृति एवं अर्थसत्ता का अन्तर्सम्बन्ध, असहिष्णुता, संवेदनहीनता और संकीर्णता में अनपेक्षित वृद्धि, सत्ता की संस्कृति एवं लोकतंत्र की पतनशीलता के परिणाम-जैसे पक्ष इन लम्बी कहानियों की संरचनाओं में समाहित है।
इन कहानियों को पढ़ते हुए कुछ समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ भी स्पष्ट होती हैं। असहाय एवं उपेक्षित लोगों के प्रति संवेदनशील दृष्टि और उनके अस्तित्व को स्थापित करने का प्रयास इन लम्बी कहानियों को सार्थक एवं सफल बनाते हैं। इन कहानियों में जीवन का राग है तथा तपती और खुरदरी ज़मीन पर नंगे पाँव चलने का एहसास है। इस रूप में ये कहानियाँ पाठकों के अन्दर आलोचनात्मक विवेक जागृत करने में सक्षम एवं सफल हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि मिथिलेश्वर की ये लम्बी कहानियाँ असाधारण महत्त्व की कहानियाँ हैं, जो न सिर्फ़ पठनीय हैं, बल्कि संग्रहणीय एवं उल्लेखनीय भी हैं।
Ek Aur Mrityunjay
Mithileshwar
Sant Na Bandhe Ganthari
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Mithileshwar
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‘संत न बाँधे गाँठड़ी’ उपन्यास जीवन और समाज से अभिन्न धार्मिक आस्था-विश्वास, श्रद्धा-भक्ति तथा आध्यात्मिक चेतना के विकास के नाम पर हमारे समक्ष निरन्तर गहराते संकट से न सिर्फ़ अवगत कराता है बल्कि अन्धश्रद्धा के ख़िलाफ़ हमें जागरूक और सतर्क बने रहने की प्रबल प्रेरणा भी देता है।
यह उपन्यास वैसे बाबाओं, स्वामियों एवं गुरुओं को ही कटघरे में नहीं लाता बल्कि इसके लिए जनसमाज की अन्धश्रद्धा को भी ज़िम्मेवार मानता है। अपने ही जैसे किसी इंसान को गुरु और संत के तहत ईश्वर का प्रतिरूप समझ उनके प्रति अपना तन-मन और धन सर्मिपत कर देना अन्धश्रद्धा नहीं तो और क्या है।
उपन्यास की व्यापकता और महत्त्व का परिचायक इसका ऐसा कथ्य और तथ्य है जिसके तहत धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र के किसी भी पक्ष को ऩजरअन्दाज नहीं किया गया है, बल्कि गहराई, बेबाकी और सूक्ष्मता के साथ पूरे परिदृश्य का ऐसा सम्यक् और सटीक विश्लेषण हुआ है जिसके तहत दूध का दूध और पानी का पानी की तरह धार्मिक, आध्यत्मिक जगत का सत्य और तथ्य, कपट और पाखंड तथा योग और भोग सबकुछ स्पष्ट होता चला गया है।
Sant Na Bandhe Ganthari
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