Kashinath Ambalge

Kashinath Ambalge

11 Books

Barhavi Sadi Ki Kannad Kavayitriyan Aur Stree-Vimarsh

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में, विशेषकर बारहवीं शताब्दी के दौर में, स्त्री-विमर्श की अनुगूँज केवल कन्नड़ साहित्य में उपलब्ध होती है। जाति-प्रथा का निषेध, वर्ण और वर्ग की विषमता का प्रतिरोध बारहवीं शताब्दी में केवल कन्नड़ भाषा-साहित्य में प्राप्त होता है। 5वीं शताब्दी में तमिल भाषा-साहित्य में निम्न वर्ग और दलित वर्ग के रचनाकारों को महत्त्व प्राप्त होता है, नायनार और आलवार सम्प्रदाय में मनुष्य की वेदना और अस्मिता को सामाजिक स्वीकृति मिलती है पर स्त्री-समुदाय को, वह भी लगभग पैंतीस महिला रचनाकारों को, सामाजिक, आध्यात्मिक और वर्ग चेतना के स्तर पर स्वीकृति केवल कन्नड़ भाषा-साहित्य में बारहवीं शताब्दी में उपलब्ध होती है। अपभ्रंश और प्राकृत भाषा-साहित्य में चेरी गाथाओं के बाद सम्पूर्ण भारतीय स्तर पर स्त्री-विमर्श का यह श्रेय कन्नड़ की अक्कमहादेवी और अन्यान्य शिवशरणियों को जाता है। मुक्तायक्का और अल्लमप्रभु ने भी कला, साहित्य, संस्कृति और दर्शन के स्तर पर अप्रतिम योगदान दिया है। राहुल सांकृत्यायन, भगवतीशरण उपाध्याय, रामविलास शर्मा और डी.डी. कोसम्बी की परम्परा में डॉ. काशीनाथ अंबलगे ने एक प्रतिबद्ध समीक्षक और तत्त्ववेत्ता के रूप में इस अभूतपूर्व कृति की रचना की है। विश्वास है, इसका आकलन सुधी पाठक और समर्थ आलोचक सम्यक् रूप से करेंगे। —रोहिताश्व
Barhavi Sadi Ki Kannad Kavayitriyan Aur Stree-Vimarsh

Barhavi Sadi Ki Kannad Kavayitriyan Aur Stree-Vimarsh

Kashinath Ambalge

150

₹ 120

Baseshwar

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: निर्बलों की सहायता करना ही सबलों का कर्तव्य है। उसी से सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। सभी धर्मों के मूल में दया की भावना ही प्रमुख है। बसवेश्वर के एक वचन का यही भाव है—दया के बिना धर्म कहाँ? सभी प्राणियों के प्रति दया चाहिए। दया ही धर्म का मूल है, दया-धर्म के पथ पर जो नहीं चलता कूडलसंगमदेव को वह नहीं भाता।

    बसवेश्वर की वचन रचना का उद्देश्य ही सुखी समाज की स्थापना था। चोरी, असत्य, अप्रामाणिकता, दिखावा, आडम्बर एवं अहंरहित समाज की स्थापना बसव का परम उद्देश्य था, जो निम्न एक वचन से स्पष्ट होता है—चोरी न करो, हत्या न करो, झूठ मत बोलो, क्रोध न करो, दूसरों से घृणा न करो, स्वप्रशंसा न करो, सम्मुख ताड़ना न करो, यही भीतरी शुद्धि है और यही बाहरी शुद्धि है, यही मात्र हमारे कूडलसंगमदेव को प्रसन्न करने का सही मार्ग है। हठ चाहिए शरण को पर-धन नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को पर-सती नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को अन्य देव को नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को लिंग-जंगम को एक कहने का, हठ चाहिए शरण को प्रसाद को सत्य कहने का, हठहीन जनों से कूडलसंगमदेव कभी प्रसन्न नहीं होंगे।

Baseshwar

Baseshwar

Kashinath Ambalge

125

₹ 100

Hadapada Appanna-Lingam

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: ध्यान करना चाहूँ तो क्या ध्यान करूँ।

    मन तेजोहीन धुँधला पड़ गया था, तन शून्य हो गया था।

    कायक गुण गल चुका। देह से अहं मिट गया था।

    अपने आपसे प्रकाश में झूमते मैं सुखी बनी

    अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥

     

    मन याद कर रहा है।

    बुरी विषय वासना की ओर मन बहक रहा है।

    डाली की चोटी की ओर जा रहा है मन

    मन किसी भी नियम में बँधता नहीं,

    छोड़ देने पर मन जाता भी नहीं।

    अपनी इच्छा पर मनमानी करते मन को नियम में बाँधकर

    लक्ष्य में स्थिर करके शून्य में विहरनेवाले

    शरणों के चरणों में मैं समा रही

    अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥

    —लिंगम्मा

     

    घास-फूस-कचरा निकालकर स्वच्छ किए

    हुए खेत में कूड़ा-करकट बोनेवाले पागलों की तरह

    विषय-सुखों के झूठे भ्रम में लोलुप होकर

    तकलीफ़ में पड़नेवाले मनुष्य कैसे जान सकते

    महाघन गुरु के स्वरूप को?

    मरण बाधा में पड़नेवाले आपको कैसे जान सकते हैं

    बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा? ॥

     

    भूख मिटाने अन्न स्वीकार करते हैं,

    विषय के मोह में झूठ बोलते हैं,

    नए-नए व्यसन में पड़कर

    भस्म धारण करके सारा विश्व घूमते हैं।

    इस मिथ्या को छोड़कर, माया के धुँधलेपन को दूर किए बिना

    नहीं समा सकता हमारा बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा॥    

    —अप्पण्‍णा

Hadapada Appanna-Lingam

Hadapada Appanna-Lingam

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Channabasavanna : Gyan Ki Nidhi

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: छोटा होने से क्या हुआ? या बड़ा होने से?

    ज्ञान के लिए क्या छोटे-बड़े में अन्तर है?

    आदि-अनादि से पूर्व, अंडांड

    ब्रह्मांड कोटि के उत्पन्न होने से पूर्व

    गुहेश्वर लिंग में तुम ही अकेले एक महाज्ञानी

    दिखाई पड़े, देखो जी, हे चन्नबसवण्णा!

     

    भक्त को शान्तचित्त रहना चाहिए

    अपनी स्थिति में सत्यवान रहना चाहिए

    सबके हित में वचन बोलना चाहिए

    जंगम में निन्दा रहित होकर

    सभी प्राणियों को अपने समान मानना चाहिए

    तन मन धन, गुरु लिंग जंगम के लिए समर्पित करना चाहिए।

    अपात्र को दान न देना चाहिए

    सभी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए

    यही पहला आवश्यक वृतनेम है देखो

    लिंग की पूजा कर प्रसाद पाने के लिए यही मेरे लिए साधन है।

Channabasavanna : Gyan Ki Nidhi

Channabasavanna : Gyan Ki Nidhi

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Basaveshwara : Samata Ki Dhwani

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: निर्बलों की सहायता करना ही सबलों का कर्तव्य है। उसी से सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। सभी धर्मों के मूल में दया की भावना ही प्रमुख है। बसवेश्वर के एक वचन का यही भाव है—

     

    दया के बिना धर्म कहाँ?

    सभी प्राणियों के प्रति दया चाहिए

    दया ही धर्म का मूल है

    दया धर्म के पथ पर जो न चलता

    कूडलसंगमदेव को वह नहीं भाता।

     

    बसवेश्वर की वचन रचना का उद्देश्य ही सुखी समाज की स्थापना करना था। चोरी, असत्य, अप्रामाणिकता, दिखावा, आडम्बर एवं अहंरहित समाज की स्थापना बसव का परम उद्देश्य था, जो निम्न एक वचन से स्पष्ट होता है—

     

    चोरी न करो, हत्या न करो, झूठ मत बोलो

    क्रोध न करो, दूसरों से घृणा न करो,

    स्वप्रशंसा न करो, सम्मुख ताड़ना न करो,

    यही भीतरी शुद्धि है और यही बाहरी शुद्धि है,

    यही मात्र हमारे कूडलसंगमदेव को प्रसन्न करने का सही मार्ग है।

     

    हठ चाहिए शरण को पर-धन नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को पर-सती नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को अन्य देव को नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को लिंग-जंगम को एक कहने का, हठ चाहिए शरण को प्रसाद को सत्य कहने का, हठहीन जनों से कूडलसंगमदेव कभी प्रसन्न नहीं होंगे॥

Basaveshwara : Samata Ki Dhwani

Basaveshwara : Samata Ki Dhwani

Kashinath Ambalge

400

₹ 320

Allamprabhu : Pratibha Ka Shikhar

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: अज्ञान रूपी पालने में

    ज्ञान रूपी शिशु सुलाकर

    सकल वेदशास्त्र रूपी रस्सी से बाँधकर झूला,

    झुलाती हुई पालने

    लोरी गा रही है, भ्रान्ति रूपी माई!

    जब तक पालना न टूटे, रस्सी न कटे

    लोरी बन्द न हो

    तब तक गुहेश्वर लिंग के दर्शन नहीं होंगे॥

     

    अल्लम सृजनशीलता के प्रति विश्वास रखते हैं कि ‘नि:शब्द ज्ञान क्या शब्दों की साधना से सम्भव है?’

     

    बहती नदी को देह भर पाँव

    जलती आग को देह भर जिह्वा

    बहती हवा को देह भर हाथ

    अतः गुहेश्वर, तेरे शरण का सर्वांग लिंगमय है॥

Allamprabhu : Pratibha Ka Shikhar

Allamprabhu : Pratibha Ka Shikhar

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Aaydakki Marayya-Aaydakki Lakkamma

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: अहंकार की भक्ति से धन का नाश

    क्रियाहीन बातों से ज्ञान का नाश

    दान दिए बिना दानी कहलाना केश बिना शृंगार जैसा

    दृढ़ताहीन भक्ति तलहीन कुंभ में पूजा जल भरने जैसी

    मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को यह न छूनेवाली भक्ति है॥

    कायक की कमाई समझ भक्त दान की कमाई से

    दासोह कर सकते हैं कभी?

    इक मन से लाकर इक मन से ही

    मन बदलने से पहले ही

    मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को

    समर्पित करना चाहिए मारय्या॥

    जो मन से शुद्ध नहीं, उसमें धन की ग़रीबी हो सकती है,

    चित्त शुद्धि से कायक करनेवाले

    सद्भक्तों को तो जहाँ देखो वहाँ लक्ष्मी अपने आप मिलेगी

    मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग की सेवा में लगे रहने तक॥

    —लक्कमा

     

    कायक में मग्न हो तो

    गुरुदर्शन को भी भूलना चाहिए।

    लिंग पूजा को भी भूलना चाहिए।

    जंगम सामने होने पर भी उसके दाक्षिण्य में न पड़ना चाहिए।

    कायक ही कैलास होने के कारण

    अमरेश्वरलिंग को भी कायक करना है॥

    —मारय्या

     

    दो नयनों की भक्ति एक दृष्टि में देखने की तरह सती-पति एक भक्ति में देखने से गुहेश्वर को भक्ति स्वीकार है।

Aaydakki Marayya-Aaydakki Lakkamma

Aaydakki Marayya-Aaydakki Lakkamma

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Vachan Chintan

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: Awating description for this book
Vachan Chintan

Vachan Chintan

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Urilinga Peddi-Kaalavve

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: Awating description for this book
Urilinga Peddi-Kaalavve

Urilinga Peddi-Kaalavve

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Siddharameshwara : Vyakti-Kriti

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: वाचन से जो अनुभवी नहीं होता वह प्रेत है, वाचन से जो अनुभवी होता है वह पंडित है। विद्या तो परिश्रमी के वश में है, विद्या-अविद्या की पहचान से जग के लिए वेदज्ञ हो सका तो वही महापंडित है। हे कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुन! भक्त का मन कामिनी में अनुरक्त होता है तो विवाह कर संग रहना चाहिए, भक्त का मन भूमि पर अनुरक्त होता है तो प्राप्त कर घर बनाना चाहिए, भक्त का मन कनक में अनुरक्त होता है तो सप्रयास प्राप्त करना चाहिए, हे कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुन! 
Siddharameshwara : Vyakti-Kriti

Siddharameshwara : Vyakti-Kriti

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

Molige Maarayya : Molige Mahadevi

  • Author Name:

    Kashinath Ambalge

  • Book Type:
  • Description: महिलाएँ इस दुनिया में सदैव ही उपेक्षित रही हैं। उनको सामाजिक भागीदारी से दूर रखा गया, अतः वे साहित्य एवं सांस्कृतिक लोक में हाशिए पर रही हैं। पर इस वचन साहित्य के सन्दर्भ में महिला अपने व्यक्तित्व विकास की बुलंदी पर पहुँच चुकी थी, ऐसा लगता है।

    घास-फूस, झाड़ निकाले बिना खेत स्वच्छ न होता/अशुद्धि और मल को स्वच्छ किए बिना मन शुद्ध न होता/जीव का मूल जाने बिना तन शुद्ध न होता/काय जीव का सम्बन्ध जाने बिना ज्ञानलेपी नहीं होता/इस प्रकार जो भाव भ्रमित हैं उन्हें क्यों ज्ञान प्राप्ति/निष्कळंक मल्लिकार्जुन?॥ भक्त भगवान का सम्बन्ध, जल कमल की रीति के समान/भक्त भगवान सम्बन्ध, क्षीर-नीर की रीति के समान/तुम्हारे और मेरे लिए अलग-अलग ठाँव है क्या/निष्कळंक मल्लिकार्जुन?॥

    —मोळिगे मारय्या

Molige Maarayya : Molige Mahadevi

Molige Maarayya : Molige Mahadevi

Kashinath Ambalge

300

₹ 240

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