Aaydakki Marayya-Aaydakki Lakkamma
Author:
Kashinath AmbalgePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
अहंकार की भक्ति से धन का नाश</p>
<p>क्रियाहीन बातों से ज्ञान का नाश</p>
<p>दान दिए बिना दानी कहलाना केश बिना शृंगार जैसा</p>
<p>दृढ़ताहीन भक्ति तलहीन कुंभ में पूजा जल भरने जैसी</p>
<p>मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को यह न छूनेवाली भक्ति है॥</p>
<p>कायक की कमाई समझ भक्त दान की कमाई से</p>
<p>दासोह कर सकते हैं कभी?</p>
<p>इक मन से लाकर इक मन से ही</p>
<p>मन बदलने से पहले ही</p>
<p>मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को</p>
<p>समर्पित करना चाहिए मारय्या॥</p>
<p>जो मन से शुद्ध नहीं, उसमें धन की ग़रीबी हो सकती है,</p>
<p>चित्त शुद्धि से कायक करनेवाले</p>
<p>सद्भक्तों को तो जहाँ देखो वहाँ लक्ष्मी अपने आप मिलेगी</p>
<p>मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग की सेवा में लगे रहने तक॥</p>
<p>—लक्कमा</p>
<p> </p>
<p>कायक में मग्न हो तो</p>
<p>गुरुदर्शन को भी भूलना चाहिए।</p>
<p>लिंग पूजा को भी भूलना चाहिए।</p>
<p>जंगम सामने होने पर भी उसके दाक्षिण्य में न पड़ना चाहिए।</p>
<p>कायक ही कैलास होने के कारण</p>
<p>अमरेश्वरलिंग को भी कायक करना है॥</p>
<p>—मारय्या</p>
<p> </p>
<p>दो नयनों की भक्ति एक दृष्टि में देखने की तरह सती-पति एक भक्ति में देखने से गुहेश्वर को भक्ति स्वीकार है।
ISBN: 9788194364894
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Hazariprasad Dwivedi
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- Description: ्यकालीन धर्म-साधना' यद्यपि भिन्न-भिन्न अवसर पर लिखे गये निबन्धों का संग्रह ही है, तथापि आचार्य द्विवेदी जी ने प्रयत्न किया है कि ये लेख परस्पर विच्छिन और असम्बद्ध न रहें और पाठकों को मध्यकालीन धर्म-साधनाओं का संक्षिप्त और धारावाहिक परिचय प्राप्त हो जाए। दो प्रकार के साहित्य से इन धर्म-सानाओं का परिचय संग्रह किया गया है— (1) विभिन्न सम्प्रदायों के साधना-विषयक और सिद्धान्त-विषयक ग्रन्थ; और (2) साधारण काव्य-साहित्य। इस प्रकार पुस्तक में आलोचित अधिकांश धर्म-साधनाएँ शास्त्रीय रूप में ही आई हैं। जिन सम्प्रदायों के कोई धर्म-ग्रन्थ प्राप्त नहीं हैं या जो धर्म-साधनाएँ साधारण काव्य-साहित्य में नहीं आ सकी हैं, वे छूट गई हैं। हमारे देश की धर्म-साधना का इतिहास बहुत विपुल है। विभिन्न युग की सामाजिक स्थितियों से भी इसका सम्बन्ध है। फलस्वरूप इस पुस्तक में प्रयत्न किया गया है कि उत्तर भारत की प्रधान धर्म-साधनाएँ यथासम्भव विवेचित हो जाएँ और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि का भी सामान्य परिचय पाठक को मिल जा
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