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Balwant Singh

Raat Chor Aur Chand

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: पालीसिंह बहुत सालों बाद अपने गाँव लौटा है। लारी से उतरकर पाँच कोस चलकर गाँव पहुँचता है। जहाँ बचपन की उसकी सारी यादें—रास्ते, पेड़ों, पगडंडियों, हर कोने-कोने में छाई हुई है। बचपन की यादें एक छोटे बच्चे की उत्सुकता-भरी निगाहों की तरह उसके अन्दर उन लोगों के बारे में जानने की इच्छा पैदा कर देती हैं जिन्हें वो सालों पहले छोड़कर महानगर कलकत्ता भाग गया था। जैसे-जैसे वह गाँव की तरफ़ बढ़ता, वैसे ही हवाओं की मस्ती उसे पुरानी यादों से मदमस्त करती जाती और फिर उसे याद आती है अपनी सरनो की जिसे बचपन में वह बहुत तंग किया करता था।

    बलवन्त सिंह का यह उपन्यास अतीत की ललक को बख़ूबी उभारता हुआ आहिस्ते से इस बात का भी अहसास कराता चलता है कि वर्तमान अक्सर वैसा नहीं होता, जैसा हम सोचते हैं। समय अक्सर अपने दाँवपेच बदलता रहता है और इसी दाँवपेच के बीच कैसा है पालीसिंह, जो अपने अतीत को पूरी तरह छोड़ नहीं पाता। पालीसिंह सरनो से प्यार करता है और उसे पाने के लिए वह अपने आप को हर पल बदलने की कोशिश भी करता है। पालीसिंह ने पहली बार अपने जीवन में प्रेम को महसूस किया है पर इनसानी फ़ितरत और नियत को कभी-कभी ख़ुद इनसान भी समझ नहीं पाता है। लेकिन बलवन्त सिंह ने अपने सरल और सीधे अन्दाज़ में इस जटिलता को पाठकों के सामने पेश किया है।

Raat Chor Aur Chand

Raat Chor Aur Chand

Balwant Singh

500

₹ 400

Chak Piran Ka Jassa

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: हिन्दी के जाने-माने कथाकार बलवन्त सिंह के इस वृहत् उपन्यास में विभाजन से कई वर्ष पूर्व के पंजाब की कहानी है। पात्रों के चयन में लेखक ने बहुत ही सजग दृष्टि का परिचय दिया है, और जीवन के केवल उसी क्षेत्र से उनका चुनाव किया है जो उसके प्रत्यक्ष अनुभव की परिधि में आते हैं। मुख्यत: जाट-पात्रों के माध्यम से पंजाब के तत्कालीन जनजीवन का बड़ा ही सजीव चित्र यहाँ प्रस्तुत किया है।

    उपन्यास का ताना-बाना मुख्य रूप से दो पात्रों के इर्द-गिर्द घूमता है। एक अनाथ लड़का जस्सासिंह है जिसके पालन-पोषण का दायित्व अनिच्छा से रिश्ते के चाचा बग्गासिंह को लेना पड़ता है। जब जस्सा जवान हो जाता है तब एक विचित्र समस्या उठ खडी होती है। वे दोनों शक्तिशाली हैं, उजड्ड हैं, और एक-दूसरे के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं। दोनों एक-दूसरे से घृणा करते हैं, लेकिन उनके हृदय की गहराइयों में कहीं कोई एक ऐसी सुषुप्त भावना है, जिसे प्रेम तो नहीं, लगाव ज़रूर कहा जा सकता है। उपन्यास की अपनी एक मौलिक भाषा है जो कथा-क्रम के अनुरूप डाली गई है। इन दो पात्रों के अतिरिक्त और भी कई पात्र हैं जो उपन्यास की गति को प्रवाहपूर्ण करते हैं। ज्यों-ज्यों उपन्यास का कथा-चक्र आगे बढ़ता है, चाचा-भतीजे की समस्याएँ जटिल होती जाती हैं। उन दोनों की स्थिति न तो घृणा से मुक्त हो जाने की है और न अलगाव को स्वीकारने की। परस्पर-विरोधी भावनाओं के द्वन्द्व का समाधान अन्तत: जस्सासिंह ढूँढ़ता है और कथानायक की गौरव-गरिमा प्राप्त करता है।

    विभिन्न परिस्थितियों के सूक्ष्म मनोविश्लेषण और उपन्यास के जीवन्त पात्रों को प्रयासवश भी विस्मृत कर पाना कठिन है। वस्तुतः ‘चक पीराँ का जस्सा’ सशक्त भाषा-शैली में लिखा गया एक प्रभावशाली उपन्यास है।

Chak Piran Ka Jassa

Chak Piran Ka Jassa

Balwant Singh

325

₹ 260

Raavi Paar

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: रावी नदी से करीब दो मील पूर्व की ओर एक गाँव है जिसे चब्बा कहते हैं। चब्बा अपने ऊँचे-लम्बे जवानों के लिए अपने इलाके में दूर-दूर तक मशहूर था। हर लड़का जब सोलह-सत्रह साल की उम्र तक पहुँचता तो बड़े लोग उसके हाथ-पाँव निकलने से अन्दाज़ा लगाने लगते कि वह कैसा करारा जवान होगा। जिस लड़के से कुछ भी आशा बँध जाती , उसे हर ओर से खूब प्रोत्साहन मिलता। 

    उन दिनों बागड़सिंह नया-नया जवान हुआ था। जवानी की मस्ती तो वैसे भी मशहूर है, लेकिन बागड़सिंह के दिमाग़ में यह मस्ती बिलकुल खरमस्ती का रूप धारण कर गयी थी। 

    काबलासिंह साढ़े छह फुट से भी ऊँचा था और उसे पौने छह फुट से कम बागड़सिंह बिलकुल मच्छर-सा दिखायी दिया। यह माना कि बागड़सिंह काबलासिंह के मुक़ाबले में कुछ नहीं था, लेकिन इसमें भी कोई सन्देह नहीं था कि उसके बदन में भी बिजली कूट-कूटकर भरी हुई थी। 

    सारे जवान काबलासिंह को देखकर एक ओर हट गये और काबलासिंह की नज़रें अब भी उस घुड़सवार पर जमी हुई थीं- सुजानसिंह ने घोड़ा दौड़ाया नहीं- वह पहले की तरह सहज से आगे बढ़ता चला गया... काबलासिंह ज्यों-का-त्यों दरवाजे पर हाथ रखे खड़ा था... और बागड़सिंह पीछे खड़ा मालिक की गुद्दी पर लहलहाते हुए लाल पीले और सफ़ेद नन्हें-नन्हें बालों को देख रहा था... 

    “बागेड़या!” 

    सुनकर बागड़सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा... अपने शरीर की पूरी शक्ति लगाकर उसके मुँह से बड़ी ही भरी हुई आवाज़ निकली “जी।" 

    इसी से सुरजीत का रिश्ता कर देने के लिए कह रहा था?

    मालिक की यह आवाज़ सुनकर बागड़सिंह सुन्न हो गया...उसे भागने का कोई रास्ता दिखायी नहीं दे रहा था...अबकी उसके मुँह से भरी हुई आवाज तक न निकल सकी। 

    अपनी बात का उत्तर न पाकर मालिक ने घूमकर उसकी ओर देखा... बागड़सिंह ने डरते-डरते अपनी पलकें ऊपर उठायीं

    उसने देखा कि काबलासिंह की घनी मूंछों तले उसके मोटे होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कान चन्द्रमा की पहली किरण की तरह जन्म ले रही थी।

Raavi Paar

Raavi Paar

Balwant Singh

250

₹ 200

Pratinidhi Kahaniyan : Balwant Singh

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: “...खेतों की मुँडेरों पर से दीखते बबूल, कीकर, कच्चे घरों से उठता धुआँ, रात के सुनसान में सरपट भागते घोड़े, छवियाँ लशकाते डाकू, घरों से पेटियाँ धकेलते चोर, कनखियों से एक-दूसरे को रिझाते जवान मर्द और औरतें, भोले-भाले बच्चे, लम्बे सफ़र समेटते डाची सवार—समय और स्थितियों से सीनाज़ोरी करते बलवन्त सिंह के पात्र पाठक को देसी दिलचस्पियों से घेरे रहते हैं। कुछ कर गुज़रने के लिए जिस साहस की ज़रूरत इन्हें है, उसे कलात्मक उर्जा से मंज़िल तक पहुँचाने का फ़न लेखक के पास मौजूद है। बलवन्त सिंह के यहाँ धुँधलके और ऊहापोह की झुरमुरी कहानियाँ नहीं, दिन के उजाले में, रात के एकान्त में स्थितियों को चुनौती देते साधारण जन और उनका असाधारण पुरुषार्थ है। बलवन्त सिंह सिर्फ़ आदमी को ही नहीं रचते, कहानी की शर्त पर उसके खेल और कर्म को भी तरतीब देते हैं। वे शोषण और संघर्ष का नाम नहीं लेते, इसे केन्द्र में लाते हैं। यही कारण है कि उनके यहाँ नुमाइशी-पात्र नहीं, जीते-जागते हाड़-मांस के साधारण खुरदरे लोग मिलते हैं। वह अपनी कोशिशों की कामयाबी और बड़ी नाकामयाबी को भी जिए जाते हैं किसी अगले मौक़े की उम्मीद में...” —कृष्णा सोबती (भूमिका से)
Pratinidhi Kahaniyan : Balwant Singh

Pratinidhi Kahaniyan : Balwant Singh

Balwant Singh

199

₹ 159.2

Do Akalgadh

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: पंजाब के जन-जीवन का जैसा जीवन्त चित्रण बलवन्त सिंह ने किया है, वैसा हिन्दी के अन्य किसी भी लेखक ने नहीं किया है—विशेष रूप से पंजाब के सिखों के जीवन का। उनका पौरुष, शौर्य, स्वाभिमान और सौन्दर्यप्रियता के साथ-साथ उनकी ‘रफनेस’ और ‘रगेडनेस’ को भी बलवन्त सिंह ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में बड़े ही कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया
    है।

    बलवन्त सिंह का यह उपन्यास ‘दो अकालगढ़’ तो सिख-जीवन का एक महाकाव्य ही कहा जा सकता है। जीवन की उत्तप्तता से ओत-प्रोत सिखों के लिए किसी-न-किसी चुनौती का होना एक अनिवार्यता की तरह है। जीवन के सद्-असद् पक्ष सदा उनके लिए चुनौतियाँ प्रस्तुत करते रहे हैं। ‘दो अकालगढ़’ की पृष्ठभूमि का निर्माण करनेवाले ‘उच्चा अकालगढ़’ और ‘नीवाँ अकालगढ़’ सिखों की ऐसी ही दो चुनौतियों के प्रतीक हैं।

    उपन्यास का नायक दीदार सिंह ऐसी ही चुनौती को सरे-मैदान उछालकर अपनी छवि की नोक पर रोक लेने को आकुल रहता है। अल्हड़ साँड़नी पर सवार होकर वह डाके डालने, मेले घूमने, अपने मित्र की ख़ातिर उसकी प्रेमिका का अपहरण करने तथा ख़ूनख़राबा करने में ही व्यस्त नहीं रहता, बल्कि उसके विशाल, पुष्ट और सोहनियों, हीरों आदि को लुभा लेनेवाले आकर्षक शरीर में एक प्रेमी का नाजुक दिल भी है। अपने ख़ानदान के परम शत्रु सरदार गुलजारा सिंह की अत्यन्त सुन्दर कन्या ‘रूपी’ को जिस कोमलता से वह उठाकर घोड़े पर सवार कर लेता है, उसे कोई देख पाता तो कहता कि हाय! यह हाथ तो बस फूल ही चुनने के लिए हैं, भला इन्हें छवियाँ चलाने से क्या काम। पंजाब के जीवन की ऐसी चटख और मद्धम रंगोरंग की गुलकारी केवल बलवन्त सिंह में ही पाई जाती है।

Do Akalgadh

Do Akalgadh

Balwant Singh

295

₹ 236

Anand Karaj

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: बलवन्‍त सिंह सरीखे अनुभवी कथाकार से ही मुमकिन था कि किसी बहुत पुरानी कहानी को भी नए–नवेले, अनूठे और समसामयिक अन्‍दाज़ में पाठकों के सामने ले आए। कहानी ‘दंड’ में बिना कहे प्रेमिका के दर्द को समझनेवाला प्रेमी हो या प्रेमिका के लिखे आखिरी ख़त को खोलकर न देखनेवाला प्रेमी, जिसने दृढ़निश्चय किया था कि वह अपनी प्रेम-कहानी को अन्‍त तक कभी नहीं पहुँचाने देगा—जीवनपर्यन्त। दोनों ही कहानियों में निहित प्रेम की भिन्न परिभाषाएँ नितान्‍त एकान्‍त पल में हद के भीतर इस प्रकार के प्रेमी को पाने की आकांक्षा जाग्रत करती हैं। इंसानी रिश्तों की जिन बारीकियों को बलवन्‍त जी ने भाषा की सरलता में उतार दिया है वह अद्भुत है। आज की इस भागती-दौड़ती ज़ि‍न्‍दगी में फ़ुर्सत के इतने निजी पल असम्‍भव से लगते हैं। लेकिन बलवन्‍त सिंह की कहानियाँ आशा के उस दीप की तरह हैं जो अपनी बेहद सीधी और सरल भाषा में हमें बताती हैं कि जीवन की असली ख़ुशियाँ उन छोटे-छोटे पलों में ही छिपी हैं जो रोज़ हमारे आस-पास से गुज़रती रहती हैं। बलवन्‍त जी की कहानियों के पात्र वही पुराने हैं, पर उन्हें देखने, आँकने टाँकने का अन्‍दाज़ बिलकुल नया है। हमारे आस-पास की घटनाओं का बयान करती ये कहानियाँ समकालीन जीवन-छवियों से जोड़ने का एक सफल प्रयास करती हैं।
Anand Karaj

Anand Karaj

Balwant Singh

100

₹ 80

Sahibe Alam

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत दास्तान ‘साहिबे-आलम’ हिन्‍दी-जगत के जाने-माने कथाकार बलवन्त सिंह का काल्पनिक चित्रण है। परन्तु प्रस्तुति इतनी सजीवता से की गई है कि पाठक सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि यह दास्तान है या सच्चा वाक़या।

    यह दास्तान लाहौर से शुरू होती है जहाँ शेख साहब द्वारा भेजे गए हिन्‍दुस्तानी जर्नलिस्ट को सफ़दर अली ‘साहिबे-आलम’ की दास्तान सुनाते हैं। पूरी दास्तान सुनकर पत्रकार कहने को विवश हो जाता है कि यह दास्तान है या सच्चा वाक़या।

    मुग़लकालीन ऐतिहासिक परिवेश में रची-बसी इस दास्तान के वातावरण में यथार्थ चित्रण के लिए उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग किया गया है।

    निश्चय ही, पाठक जब यह अनोखी, सशक्त और बेजोड़ दास्तान पढ़ना शुरू करेगा तो अन्त तक पढ़ने को विवश हो जाएगा।

Sahibe Alam

Sahibe Alam

Balwant Singh

150

₹ 120

Vijaynagar Ki Rajnartki

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: प्राचीन दन्तकथाएँ अनेक देशों में प्रचलित हैं। अलिफ़-लैला की कथाओं में सिन्‍दबाद जहाज़ी अपनी एक यात्रा का विवरण देते हुए एक ऐसी बासी का वर्णन भी करता है, जो रत्नों से परिपूर्ण थी और जहाँ किसी भी मनुष्य का पहुँच पाना असम्भव था। विजयनगर में भी यह बात प्रसिद्ध थी कि राज्य के उत्तर में इसी प्रकार की एक घाटी है।

    इस उपन्यास के पात्र ऐसे हैं, जिनमें सोचने-समझने का सामर्थ्य है और उन्हें इसका अवकाश भी है, परन्तु वे यह सब किसी विशेष दर्शन से प्रेरित होकर नहीं करते, वरन् एक आन्तरिक उत्कंठा के कारण करते हैं।

Vijaynagar Ki Rajnartki

Vijaynagar Ki Rajnartki

Balwant Singh

395

₹ 316

Phir Subah Hogi

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत उपन्यास ‘फिर सुबह होगी’ में पीड़ा का दबा-दबा स्वर गूँजता है जो एक पीढ़ी से शुरू होता है और इसका अन्‍त दूसरी पीढ़ी में जाकर होता है।

    इस उपन्यास में कुछ पात्रों को लेकर कथानक का ताना-बाना तैयार किया गया है, जो मध्यम वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं।

    सभी पात्र पाठकों के सुपरिचित व्यक्तियों में से लिए गए हैं, परन्तु कहानी की रोचकता व सजीवता में कोई कमी नहीं महसूस होती।

    विश्वास है, यह उपन्यास पाठकों को शुरू से अन्‍त तक बाँधे रखने में सक्षम सिद्ध होगा।

Phir Subah Hogi

Phir Subah Hogi

Balwant Singh

95

₹ 76

Kaale Kos

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: बलवन्‍त सिंह का रचनाकार न तो अतिरिक्त सामाजिकता से आक्रान्‍त रहता है और न ही कला और शिल्प के दबावों से आतंकित। अपनी सतत जागरूक और सचेत निगाह से वे अपने कथा-चरित्रों और कथा-भूमि के सबसे विश्वसनीय यथार्थ तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। शिल्प और संवेदना का द्वन्‍द्व उनकी रचनाओं में प्रशंसनीय सन्‍तुलन के साथ प्रकट होता है।

    उनकी औपन्यासिक कृतियाँ अपने कलेवर में महा-काव्यात्मक गरिमा से परिपूर्ण होती हैं। दूसरी तरफ़ उनके पात्र भी अपने जीवन के चौखटे में अपनी भरपूर ऊर्जा के साथ प्रकट होते हैं। वे नुमाइशी और कृत्रिम नहीं होते, बल्कि जिन्‍दगी की अनिश्चितता और अननुमेयता से जूझते हुए, हाड़-मांस के साधारण, खुरदुरे लोग होते हैं जिनका वैशिष्ट्य एक ख़ास संलग्नता के साथ देखने पर ही दिखाई देता है। बलवन्‍त सिंह की रचनाएँ इस संलग्नता से बख़ूबी पगी हुई होती हैं।

    ‘काले कोस’ की पृष्ठभूमि में भी ऐसे ही लोगों की छवियाँ दिखाई देती हैं। पंजाब की धरती की ख़ूशबू में रसे-बसे और अपनी कमज़ोरियों-ख़ूबियों से जूझते ये लोग देर तक पाठक की स्मृति में अपनी जगह बनाए रखते हैं। यह कहानी पंजाब के बँटवारे से शुरू होकर फ़सादों में ख़त्म हो जाती है। लेकिन इस ख़त्म हो जाने के साथ ही पाठक के मन में जो कुछ छोड़ जाती है, वह एक ऐसी टीस है जो आज तक ख़त्म नहीं हो पाई है।

Kaale Kos

Kaale Kos

Balwant Singh

250

₹ 200

Honi Anhoni

  • Author Name:

    Balwant Singh

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी जगत के मूर्धन्य उपन्यासकार बलवन्त सिंह ने मानवीय मनोविज्ञान से युक्त आधुनिक परिवेश में रची-बसी कहानी प्रस्तुत किया है, जो युवा हृदय में हलचल पैदा करने में सक्षम है।

    इस उपन्यास में आधुनिक मनोभूमि का विराट चित्र प्रस्तुत किया गया है। जनजीवन के सामाजिक यथार्थ की ऐसी विश्वसनीयता विरल है। इस रचना में संवेदना का सरल प्रवाह विद्यमान है, यह उपन्यास बेजोड़ ही नहीं क्लासिक है जिसे पाठक जब पढ़ना शुरू करेंगे तो अन्‍त तक पढ़ने को विवश हो जाएँगे।

Honi Anhoni

Honi Anhoni

Balwant Singh

125

₹ 100

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