Vijaynagar Ki Rajnartki
Author:
Balwant SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
प्राचीन दन्तकथाएँ अनेक देशों में प्रचलित हैं। अलिफ़-लैला की कथाओं में सिन्दबाद जहाज़ी अपनी एक यात्रा का विवरण देते हुए एक ऐसी बासी का वर्णन भी करता है, जो रत्नों से परिपूर्ण थी और जहाँ किसी भी मनुष्य का पहुँच पाना असम्भव था। विजयनगर में भी यह बात प्रसिद्ध थी कि राज्य के उत्तर में इसी प्रकार की एक घाटी है।</p>
<p>इस उपन्यास के पात्र ऐसे हैं, जिनमें सोचने-समझने का सामर्थ्य है और उन्हें इसका अवकाश भी है, परन्तु वे यह सब किसी विशेष दर्शन से प्रेरित होकर नहीं करते, वरन् एक आन्तरिक उत्कंठा के कारण करते हैं।
ISBN: 9789386863232
Pages: 456
Avg Reading Time: 15 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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कुछ समीक्षकों ने इसे मृत्यु का आख्यान कहा, लेकिन यह ठीक-ठीक वही नहीं है, नश्वरता का एक गहरा अहसास इस उपन्यास के केन्द्र में ज़रूर है। जीवन के एक विशिष्ट मोड़ पर आकर ठहरे हुए इसके चरित्र एक तरह से अपने भीतर की यात्रा पर निकले हैं और इस तरह जिजीविषा और मृत्यु की अपरिहार्यता का अन्वेषण करते हुए उस जीवन से साक्षात्कार करते हैं जो जिया जा चुका है, लेकिन अभी भी स्मृतियों के रूप में सजीव है।
पूरा उपन्यास नैरेटर की डायरी की शक्ल में सामने आता है जिसमें वह मेहरा साहब से बात करते हुए नोट्स लेता है। वह स्वयं भी अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाश रहा है। अतीत, वर्तमान और भविष्य में आवाजाही करते हुए इस तरह एक संश्लिष्ट कथा बनती है जो अन्त तक आते-आते एक आध्यात्मिक और निर्मल ऊँचाई तक पहुँच जाती है।
पहाड़ और पहाड़ का जीवन इस उपन्यास में एक सम्पूर्ण पात्र की तरह मौजूद जो इसके विमर्श को और गहराता है, कथा को एक विलक्षणता प्रदान करता है और बिम्बों, प्रतीकों, छवियों का एक भूगोल रचता है जिससे अस्तित्व से जुड़े गहन प्रश्नों को एक विराट पृष्ठभूमि मिलती है। अन्तिम अरण्य निर्मल वर्मा का आख़िरी उपन्यास है जिसका प्रकाशन दो सदियों के सन्धि-बिन्दु पर वर्ष 2000 में हुआ था। हिन्दी समाज में एक घटना की तरह प्रकट हुआ यह उपन्यास लम्बे समय तक चर्चाओं का विषय रहा।
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Description:
प्रत्येक समाज और राष्ट्र का अपना साहित्य है, परन्तु कुछ साहित्य अपनी गहरी और व्यापक अनुभूतियों के बल से राष्ट्रीय साहित्य की सीमाओं को लाँघकर अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में पहुँच जाता है।
उज़बेक लेखक अस्कद मुख़्तार का उपन्यास ‘बहिनें’ मुझे उसी श्रेणी की रचना जँची है।
मुख़्तार के उपन्यास में चित्रित उज़बेक समाज के जीवन और उनकी समस्याओं की छवि मुझे उत्तर भारत के जीवन से इतनी मिलती-जुलती लगी कि उसे अपनी भाषा के पाठकों को दे सकने के उत्साह को दबा नहीं सका।
उज़बेक उच्चारण की ध्वनि को बनाए रखने के लिए जुलैखाँ ही रहने दिया है।
—यशपाल
Shadows of Solitude
- Author Name:
Aryani Banerjee
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- Description: Twenty-nine-year-old aniya finds it extremely difficult to cope after her fiancé abhishar Sen’s untimely demise. Solitude takes her on a roller coaster ride, and she suddenly develops feelings for her Jovial reporting manager Vinod Gupta, which she believes is an infatuation created by the void abhishar’s death has left in her life. Amidst all this, she comes to know that Mohan – one of her colleagues she becomes friends, has been in love with her for a long time. Droplets of hope trickle down the moist glass of her broken heart; who will she choose?
Samay-Ashva Belagam
- Author Name:
Chandrakanta
- Book Type:

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Description:
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की पृष्ठभूमि में यह उपन्यास अपनी सांस्कृतिक जड़ों से विच्छिन्न मनों की पीड़ा तथा ग्लोबलाइजेशन से बौराए हमारे मौजूदा वक़्त की कथा है। एक तरफ़ लोग कहीं मजबूरन तो कहीं नए दौर के प्रवाह में अपनी जड़ों से उखड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ़ जीना एक वैश्विक स्पर्धा होता जा रहा है।
कश्मीर से जान बचाकर निकला एक पंडित परिवार अपने जैसे अनेक लोगों के साथ राजधानी दिल्ली में आकर नए सिरे से जीवन शुरू करता है। धीरे-धीरे उनके पैर नई ज़मीन पर अपनी जगह भी बनाने लगते हैं लेकिन यह अहसास कि अगर हम अपने ही देश में शरणार्थी हैं तो फिर दुनिया में कहीं भी रहें, क्या फ़र्क़ पड़ता है; भावी पीढ़ी के लिए निर्णायक बन जाता है।
कश्मीरी संस्कृति और मूल्यों में रसे-पगे माता-पिता का प्रशिक्षण परिवार को बिखरने तो नहीं देता लेकिन अपने घर-ज़मीन से दूर, महानगरों के परायेपन में सम्बन्धों को उस तरह जीना भी सम्भव नहीं जैसे अपनी भूमि पर अपनी संस्कृति, अपने माहौल के बीच हो सकता था।
वरिष्ठ कथाकार चन्द्रकान्ता अपने इस नए उपन्यास में कश्मीर से विस्थापित परिवार की कहानी के माध्यम से जैसे वर्तमान का पूरा चित्र ही खींच देती हैं। बुज़ुर्गों का अकेलापन, नई पीढ़ी के भटकाव, सतत एक होड़ में डूबे युवाओं का तनाव, बिखरता दाम्पत्य, पश्चिमी संस्कृति और तकनीक के दबाव, विश्व के अलग-अलग हिस्सों में हो रहा विस्थापन, सार्वजनिक स्पेस में स्त्रियों पर होनेवाले हमले और वह सब जो इस दौर को एक शान्त धारा नहीं, भीषण भँवर का रूप देता है; इन सबको लेकर एक गम्भीर चेतावनी यहाँ मौजूद है।
उपन्यास के मुख्य पात्र सुरेन्द्रनाथ का यह कथन कि 'यह समय बूढ़ों का नहीं है' जैसे इस पूरे परिदृश्य पर एक सम्पूर्ण टिप्पणी है। अर्थात धीरता, गम्भीरता, ठहराव, गहराई और प्रकृति के हमक़दम चलने का यह समय नहीं है। देश से लेकर विदेश तक बेलगाम बहती एक गति है जिसके बने रहने के लिए हर किसी की साँसें उखड़ी जा रही हैं। चन्द्रकान्ता की सधी हुई क़लम एक-एक पंक्ति में वैश्विक विडम्बना की एक-एक परत खोलती है।
Amrit Aur Vish
- Author Name:
Amritlal Nagar
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- Description: शिकरमों और ऊँट-गाड़ियों के एक सदी पुराने ज़माने से लेकर आज तक के तेज़ी से बदलते हुए रोचक मार्मिक और सहज जन-जीवन के अन्तरंग जीवन्त चित्रों का वर्णन पढ़ते-पढ़ते आप यह भूल जाएँगे कि उपन्यास पढ़ रहे हैं, बल्कि यह अनुभव करेंगे कि आप स्वयं भी इस वातावरण के ही एक अभिन्न अंग हैं। इसकी रचना-शैली का अनूठापन औसत और प्रबुद्ध दोनों प्रकार के पाठकों को अपने-अपने ढंग से किन्तु समान रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। लेखक ने सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और दार्शनिक दृष्टि से जिस तन्मयता और गहराई से व्यक्ति और समाज का मनोरूप दर्शन यहाँ प्रस्तुत किया है, वह पाठकों के लिए आमतौर से अन्यत्र दुर्लभ है। पुस्तक एक बार हाथ में उठा लेने पर पूरा पढ़े बिना आप रह नहीं सकते। यही नहीं, आप इसे बार-बार पढेंगे और हर बार एक नई दृष्टि और नए रस-बोध की ताज़गी पाएँगे।
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