Arvind jain

Arvind jain

6 Books

Lapata Ladaki

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: वह निस्संग है, आखेटित है, लापता है। वही यहाँ है। परम्पराएँ उसे लापता करती हैं। बाज़ार उसे निस्संग और उसका आखेट करता है। हर धर्म, हर जाति उसके संग ऐसा ही सलूक करती है।

    ये कहानियाँ इसी स्त्री या लिंग संवेदनशीलता से शुरू होती हैं और इस लापता कर दी गई स्त्री की खोज का आवेशमय विमर्श बन जाती हैं। ये औरत को किसी घटना या क़िस्से के ब्योरे में नहीं दिखातीं, उसे खोजती हैं, बनाती हैं और जितना बनाती हैं, पाठक को उतना ही सताती हैं।

    स्त्री-लेखन स्त्री ही कर सकती है, यह सच है लेकिन ‘स्त्रीवादी’ लेखन पुरुष भी कर सकता है—यह भी सच है। यह तभी सम्भव है, जब वह लिंग भेद के प्रति आवश्यक संवेदनशील हो, क्योंकि वह पितृसत्ता की नस-नस बेहतर जानता है। मर्दवादी चालें! मर्दों की दुनिया में औरत एक जिस्म, एक योनि, एक कोख भर है और मर्दों के बिछाए बाज़ार में वह बहुत सारे ब्रांडों में बन्द एक विखंडित इकाई है।

    अरविन्द, जो बहुत कम कहानी लिखते हैं, इस औरत को हर तरह से, हर जगह पूरी तदाकारिता से खोजते हैं। अरविन्द कहीं पजैसिव हैं, कहीं कारुणिक हैं, लेकिन प्रायः बहुत बेचैन हैं। यहाँ स्त्री के अभिशाप हैं जिनसे हम गुज़रते हैं। मर्दों की दुनिया द्वारा गढ़े गए अभिशाप, आज़ादी चाहकर भी औरत को कहीं आज़ाद होने दिया जाता है?

    अरविन्द की इन वस्तुतः छोटी कहानियों में मर्दों की दुनिया के भीतर, औरत के अनन्त आखेटों के इशारे हैं। यह ‘रसमय’ जगत नहीं, मर्दों की निर्मित स्त्री का ‘विषमय’ जगत है। अरविन्द की कहानी इशारों की नई भाषा है। उनकी संज्ञाएँ, सर्वनाम, विशेषण सब सांकेतिक बनते जाते हैं। वे विवरणों, घटनाओं में न जाकर संकेतों, व्यंजकों में जाते हैं और औरत की ओर से एक ज़बर्दस्त जिरह खड़ी करते हैं। स्त्री को हिन्दी कथा में किसी भी पुरुष लेखक ने इतनी तदाकारिता से नहीं पढ़ा जितना अरविन्द ने।

    इन कहानियों को पढ़ने के बाद पुरुष पाठकर्ता सन्तप्त होगा एवं तदाकारिता की ओर बढ़ेगा और स्त्री पाठकर्ता अपने पक्ष में नई क़लम को पाएगी—वहाँ भी, जहाँ स्त्री सीधा विषय नहीं है।

    अरविन्द जैन का यह कथा-संग्रह बताता है कि हिन्दी कहानी में निर्णायक ढंग से फिर बहुत कुछ बदल गया है।

    —सुधीश पचौरी

Lapata Ladaki

Lapata Ladaki

Arvind jain

195

₹ 156

Aurat : Astitva Aur Asmita

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: महिला लेखन पर साहित्य की यह ऐसी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है, जिसे लौन्घकर समकालीन साहित्य-जगत में स्त्री-विमर्श के सन्दर्भ में कुछ कहना असंभव नहीं तो कठिन जरूर साबित होगा । आपकी दृष्टि भविष्य की उस स्त्री पर है, जो संघर्ष करते हुए समग्र पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध एक चुनौती बनकर कड़ी हो सके । एक मनोवैज्ञानिक की भांति अप स्त्री के अतीत के लौटकर उसके मानस का विश्लेषण करते हुए, उसके सामाजिक परिवेश को तौलते हैं । शायद यही कारण है कि आपकी विश्लेषण पद्धति, भाषा और वर्णन शैली में मुझे न केवल एक नयापन लगा बल्कि एक गहरी अन्तदृष्टि का भी परिचय मिला । ऐसा लगा मनो इस विमर्श के द्वारा आप आलोचना के कुछ नए प्रतिमानों को भी निर्मित कर पाएँगे । आपके लेखन में इस नई स्त्री=चेतना को देखने-समझने का जितना आग्रह्हाई, उतना ही आपकी आलोच्य अभिव्यकिमे पाठकीय अनुभव का एक ताजा स्पंदन भी । वकील होने की वजह से आप स्थापित सिद्धान्तों के विश्लेषण के दौरान आप जो जिरह करते हैं, वह न केवल पाठक को आंदोलित करती है बल्कि उन्हें भी आलोचना का नया दृष्टिकोण देती है । प्रस्तुत पुस्तक में आपकी बहस का केन्द्रीय मुद्दा उपन्यासों में वर्णित घटनाओं की कानूनी एवं सामाजिक प्रमाणिकता को लेकर है तथा इसके माध्यम से आपने उस व्यापक सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन करना चाह है, जो स्त्री-लेखन का स्रोत रहा है । किसी भी अध्ययन के इस आंतरिक अनुशासन पक्ष पर आपने संतुलन बनाए रखा है । आपके लेखन की सबसे बड़ी विशिष्टता यही है कि आपने स्त्री-संस्कृति तथा उसके संघर्ष के इतिहास को समेटने व् समझने का और उस समझ को साहित्यिक अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है ।
Aurat : Astitva Aur Asmita

Aurat : Astitva Aur Asmita

Arvind jain

595

₹ 476

Bediyan Todati Stree

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: स्त्री-जीवन के क़ानूनी पहलू पर विस्तार और प्रामाणिक जानकारी से लिखते हुए अरविन्द जैन ने स्त्री-विमर्श की सामाजिक-साहित्यिक सैद्धान्तिकी में एक ज़रूरी पहलू जोड़ा। क़ानून की तकनीकी पेचीदगियों को खोलते हुए उन्होंने अक्सर उन छिद्रों पर रोशनी डाली जहाँ न्याय के आश्वासन के खोल में दरअसल अन्याय की चालाक भंगिमाएँ छिपी होती थीं। इसी के चलते उनकी किताब ‘औरत होने की सज़ा’ को आज एक क्लासिक का दर्जा मिल चुका है। स्त्री लगातार उनकी चिन्ता के केन्द्र में रही है। बतौर वकील भी, बतौर लेखक भी और बतौर मनुष्य भी। सम्पत्ति के उत्तराधिकार में औरत की हिस्सेदारी का मसला हो या यौन शोषण से सम्बन्धित क़ानूनों और अदालती मामलों का, हर मुद्दे पर वे अपनी किताबों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पाठक का मार्गदर्शन करते रहे हैं। ‘बेड़ियाँ तोड़ती स्त्री’ उनकी नई किताब है जो काफ़ी समय के बाद आ रही है। इस दौरान भारतीय स्त्री ने अपनी एक नई छवि गढ़ी है, और एक ऐसे भविष्य का नक़्शा पुरुष-समाज के सामने साफ़ किया है जिसे साकार होते देखने के लिए शायद अभी भी पुरुष मानसिकता तैयार नहीं है। लेकिन जिस गति, दृढ़ता और निष्ठा के साथ बीसवीं सदी के आख़िरी दशक और इक्कीसवीं के शुरुआती वर्षों में पैदा हुई और अब जवान हो चुकी स्त्री अपनी राह पर बढ़ रही है, वह बताता है कि यह सदी स्त्री की होने जा रही है और सभ्यता का आनेवाला समय स्त्री-समय होगा। इस किताब का आधार-बोध यही संकल्पना है। तार्किक, तथ्य-सम्मत और सद्भावना से बुना हुआ स्त्री के भविष्य का स्वप्न। उनका विश्वास है कि अब साल दर साल देश के तमाम सत्ता-संस्थानों में शिक्षित, आत्मनिर्भर, साधन-सम्पन्न, शहरी स्त्रियों की भूमिका और भागीदारी अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी। समान अधिकारों के लिए सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष तेज़ होंगे और भविष्य की स्त्री हर क्षेत्र में हाशिये के बजाय केन्द्र में दिखाई देने लगेगी। समानता और न्याय की तलाश में निकली स्त्री अपना सबकुछ दाँव पर लगा रही है। सो भविष्य की स्त्री इन्साफ माँगेगी। सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक इन्साफ़। देह और धरती पर ही नहीं सबकुछ पर बराबर अधिकार।
Bediyan Todati Stree

Bediyan Todati Stree

Arvind jain

199

₹ 159.2

Bachapan Se Balatkar

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: महिला क़ानूनों के जानकार और समाज तथा अदालत दोनों जगह स्त्री-सम्मान की सुरक्षा पर पैनी और सतर्क निगाह रखनेवाले लेखक व न्यायविद् अरविन्द जैन की यह पुस्तक बलात्कार के सामाजिक, वैधानिक और नैतिक पहलुओं को गहरी और मुखर न्याय-संवेदना के साथ देखती है। इस किताब की मुख्य चिन्ता यह है कि समाज के सांस्कृतिक चौखटे में जड़ी स्त्री-देह घरों और घरों से बाहर जितनी वध्य है, दुर्भाग्य से बलात्कार की शिकार हो जाने के बाद क़ानून की हिफ़ाज़त में भी उससे कुछ ज़्यादा सुरक्षित नहीं है। न सिर्फ़ यह कि समाज के पुरुष-वर्चस्व की छाया क़ानूनी प्रावधानों में भी न्यस्त है, बल्कि उनको कार्यान्वित करनेवाले न्यायालयों, जजों, वकीलों आदि की मनो-सांस्कृतिक संरचना में भी जस की तस काम करती दिखाई देती है। पुस्तक में पन्द्रह आलेख हैं। परिशिष्ट में कुछ ज़रूरी जानकारियाँ हैं। विशेषता यह है कि अरविन्द जैन ने पूरी सामग्री को व्यापक स्त्री-विमर्श से जोड़ा है। न्याय और अस्मिता रक्षा के लिए प्रतिबद्ध उनकी विचारधारा भाषा को नया तेवर देती है।
Bachapan Se Balatkar

Bachapan Se Balatkar

Arvind jain

150

₹ 120

Aurat Hone Ki Saza

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: पाठकों को यह पढ़कर बेहद आश्चर्य होगा कि भारतीय क़ानून के किसी भी अधिनियम में माँ, माता, जननी, यानी मदर को परिभाषित नहीं किया गया है। द जेनेरल क्लासेस एक्ट की धारा 3, अप-धारा 20 में बाप, पिता यानी ‘फादर’ को तो परिभाषित किया गया है, लेकिन माँ को नहीं। माँ को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं थी या क़ानून निर्माता पुरुषों ने जानबूझकर इसे भुला दिया? ऐसा क्यों और कैसे हुआ—कहना कठिन है। शायद इसलिए कि माँ एक निश्चित सत्य है और पिता मात्र अनुमान या अनिश्चित तथ्य, जिसे परिभाषित करना अनिवार्य है। कुछ समय पहले सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति डॉ. ए.एस. आनन्द और फसौद्दीन के सामने यह गम्भीर प्रश्न आ खड़ा हुआ कि माँ शब्द की परिभाषा में, सौतेली माँ भी शामिल है? क्या आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अन्तर्गत सौतेली माँ को भी अपने सौतेले बेटे से गुज़ारा भत्ता पाने का अधिकार है या नहीं?
Aurat Hone Ki Saza

Aurat Hone Ki Saza

Arvind jain

350

₹ 280

Uttradhikar Banam Putradhikar

  • Author Name:

    Arvind jain

  • Book Type:
  • Description: “यह पुस्तक पितृसत्ता की लगभग सभी वैधानिक और संवैधानिक अभिव्यक्तियों पर लिपटे आवरणों को तार-तार करती जाती है। विधि सम्बन्धी स्त्री-विमर्श दीर्घकालीन संघर्ष में महत्त्वपूर्ण औज़ार की तरह इस्तेमाल हो सकता है।” —(‘हंस’; जून, 2000) “‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’ पढ़कर स्वयं को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की आधुनिक नारी समझने का नशा हिरण हो जाता है। विश्वसुन्दरी, अधिकारी, प्रबन्धक, वर्किंग वूमेन या घर की लक्ष्मी, जो भी हो, तुम होश में आओ...इस किताब को पढ़ो; आधुनिक, आज़ादी और बराबरी के सारे दावों की हवा निकल जाएगी। यह किताब ख़ौफ़नाक तथ्यों की तह तक उजागर करती है।” -(‘नई दुनिया’, इन्दौर; 8 जुलाई, 2000) “इस पूरी पुस्तक को पढ़ने पर अरविन्द की यह बात सही मालूम होती है कि बीसवीं सदी के आरम्भ से लेकर अब तक अदालत, क़ानून और न्याय की भाषा-परिभाषा मूलत: स्त्री के प्रति अविश्वास, घृणा और अपमान से उपजी भाषा है।”—(‘साक्षात्कार’, अगस्त, 2000) “इस पुस्तक ने औरत की पक्षधर लोकतंत्र की चार सत्ताओं को बेनक़ाब कर दिया। इसने इस तथ्य को पुन: स्थापित किया कि पुरुष नि:स्वार्थ भाव से, पुरुष दमन से मुक़ाबले के लिए, औरत का रक्षाकवच और उसके दमन के विरुद्ध लावा बन सकता है। —(‘दैनिक नवज्योति’, जयपुर; 16 सितम्बर, 2000)
Uttradhikar Banam Putradhikar

Uttradhikar Banam Putradhikar

Arvind jain

150

₹ 120

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