Bediyan Todati Stree
Author:
Arvind jainPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Other0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
स्त्री-जीवन के क़ानूनी पहलू पर विस्तार और प्रामाणिक जानकारी से लिखते हुए अरविन्द जैन ने स्त्री-विमर्श की सामाजिक-साहित्यिक सैद्धान्तिकी में एक ज़रूरी पहलू जोड़ा। क़ानून की तकनीकी पेचीदगियों को खोलते हुए उन्होंने अक्सर उन छिद्रों पर रोशनी डाली जहाँ न्याय के आश्वासन के खोल में दरअसल अन्याय की चालाक भंगिमाएँ छिपी होती थीं। इसी के चलते उनकी किताब ‘औरत होने की सज़ा’ को आज एक क्लासिक का दर्जा मिल चुका है। स्त्री लगातार उनकी चिन्ता के केन्द्र में रही है। बतौर वकील भी, बतौर लेखक भी और बतौर मनुष्य भी। सम्पत्ति के उत्तराधिकार में औरत की हिस्सेदारी का मसला हो या यौन शोषण से सम्बन्धित क़ानूनों और अदालती मामलों का, हर मुद्दे पर वे अपनी किताबों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पाठक का मार्गदर्शन करते रहे हैं। ‘बेड़ियाँ तोड़ती स्त्री’ उनकी नई किताब है जो काफ़ी समय के बाद आ रही है। इस दौरान भारतीय स्त्री ने अपनी एक नई छवि गढ़ी है, और एक ऐसे भविष्य का नक़्शा पुरुष-समाज के सामने साफ़ किया है जिसे साकार होते देखने के लिए शायद अभी भी पुरुष मानसिकता तैयार नहीं है। लेकिन जिस गति, दृढ़ता और निष्ठा के साथ बीसवीं सदी के आख़िरी दशक और इक्कीसवीं के शुरुआती वर्षों में पैदा हुई और अब जवान हो चुकी स्त्री अपनी राह पर बढ़ रही है, वह बताता है कि यह सदी स्त्री की होने जा रही है और सभ्यता का आनेवाला समय स्त्री-समय होगा। इस किताब का आधार-बोध यही संकल्पना है। तार्किक, तथ्य-सम्मत और सद्भावना से बुना हुआ स्त्री के भविष्य का स्वप्न। उनका विश्वास है कि अब साल दर साल देश के तमाम सत्ता-संस्थानों में शिक्षित, आत्मनिर्भर, साधन-सम्पन्न, शहरी स्त्रियों की भूमिका और भागीदारी अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी। समान अधिकारों के लिए सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष तेज़ होंगे और भविष्य की स्त्री हर क्षेत्र में हाशिये के बजाय केन्द्र में दिखाई देने लगेगी। समानता और न्याय की तलाश में निकली स्त्री अपना सबकुछ दाँव पर लगा रही है। सो भविष्य की स्त्री इन्साफ माँगेगी। सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक इन्साफ़। देह और धरती पर ही नहीं सबकुछ पर बराबर अधिकार।
ISBN: 9789395737616
Pages: 158
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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—प्रस्तावना से
''हमारे समय में ऐसे लोग विरले हैं जो किसी अन्य क्षेत्र में सक्रिय और निष्णात होते हुए साहित्य के बारे में कुछ विचारपूर्वक लिखें-कहें। महात्मा गाँधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और अपने समय में अनूठे सन्त विनोबा भावे ने साहित्य पर कई बार विचार किया है जो अकसर हमारे ध्यान में नहीं आया और आता है। वरिष्ठ कवि-आलोचक नन्दकिशोर आचार्य ने विनोबा के साहित्य-चिन्तन को संकलित कर साहित्य पर सोचने की नई और विस्मृत दृष्टि को पुनरुज्जीवित किया है। हमें प्रसन्नता है कि रज़ा साहब के अत्यन्त प्रिय विनोबा जी की यह सामग्री हम प्रस्तुत कर रहे हैं।"
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