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Sarat Chandra Chattopadhyay

Len-Den

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: कहते हैं कि राजा वीरबाहु के किसी पूर्व पुरुष ने किसी युद्ध में विजयी होकर बरुई नदी के तट पर इस मंदिर की स्थापना की थी और बाद में केवल इसी के आश्रय से धीरे-धीरे चंडीगढ़ गाँव तैयार हो गया। शायद किसी दिन वास्तव में ही यह गाँव देवोत्तर संपत्ति में ही गिना जाता था, किंतु अब तो मंदिर से सटी हुई केवल कुछ ही बीघे जमीन को छोड़कर बाकी सारी मनुष्यों ने छीन ली है। इन दिनों यह गाँव बीजगाँव की जमींदारी में शामिल है। किस प्रकार और किस दुर्जेय रहस्यपूर्ण उपाय से अनाथ और अशक्त की संपत्ति अर्थात्‌ असहाय देवता का धन अंत में जमींदार के उदर में आकर सुस्थिर बन गया, उसकी कहानी साधारण पाठकों के लिए निष्प्रयोजन है।
Len-Den

Len-Den

Sarat Chandra Chattopadhyay

300

₹ 240

Path Ke Davedar

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: जिस समय इस उपन्यास का प्रथम संस्करण बँगला में प्रकाशित हुआ था, उस समय एक तहलका सा मच गया था और इसे खतरे की चीज समझकर ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक को जब्त कर लिया था। यह उपन्यास इतना महत्त्वपूर्ण समझा गया कि विश्व-कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी शरतबाबू की इस रचना की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की। अब तक इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास का हिंदी में कोई अच्छा अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ था। उसी अभाव की पूर्ति के लिए हमने सरल, सुंदर अनुवाद--' पथ के दावेदार ' के नाम से प्रकाशित किया है | इसमें पाठकों को पढ़ने से वही आनंद मिलेगा, जो शरतबाबू की मूल पुस्तक पढ़ने से मिलता है।
Path Ke Davedar

Path Ke Davedar

Sarat Chandra Chattopadhyay

350

₹ 280

Abhagi Ka Swarg

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: बांग्ला के उपन्यास-सम्राट्‌ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की संपूर्ण अमर कृतियाँ देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनूदित होकर प्रकाश में आ चुकी हैं; परंतु हिंदी में जहाँ एक ओर उनके उपन्यास तथा उपन्यास के रूप में बड़ी-बड़ी कहानियों के अनेक अनुवाद हुए हैं, वहाँ उनकी लघु-कथाओं के अनुवाद अपेक्षाकृत बहुत कम हो प्रकाश में आए हैं। प्रस्तुत पुस्तक में शरतबाबू की सात लघु-कथाएँ संकलित हैं। सभी कहानियाँ एक-से-एक सुंदर, प्रेरणाप्रद, मर्मस्पर्शी एवं शिल्प की दृष्टि से अत्युत्तम हैं। अनुवाद में केवल मूल भावों की ही रक्षा नहीं की गई है, अपितु वह अक्षरश: हो और प्रभाव में भी शिथिलता न पड़े, इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है। आशा है, रवींद्रकथा-माला की भाँति शरतकथा-माला को भी स्नेहपूर्वक अपनाकर हिंदी-पाठक हमारे श्रम को सार्थक करेंगे।
Abhagi Ka Swarg

Abhagi Ka Swarg

Sarat Chandra Chattopadhyay

250

₹ 200

Sati & Vilasi

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: शरतकथा' की यह तीसरी पुस्तक है। इस संग्रह में पाँच कहानियाँ हैं, जिनमें 'बालकों का चोर ' कहानी शरतबाबू की बचपन की कहानियों में से ली गई है। 'सती ', 'दर्पचूर्ण', ' अँधेरे में उजाला' तथा *अनुपमा का प्रेम' उनकी सुप्रसिद्ध कहानियाँ हैं। शरतबाबू की अन्य बड़ी कहानियाँ हिंदी में स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में अलग-अलग प्रकाशित हो चुकी हैं। इस कथा-माला का उद्देश्य उनकी छोटी-छोटी कहानियों को मूल बँगला से अक्षरश: अनूदित एवं संकलित कर हिंदी-पाठकों तक पहुँचाना मात्र था, अतः यह सीरीज इस पुस्तक 'सती' के साथ यहीं समाप्त हो रही है। आशा है, शरतकथा-माला की तीनों पुस्तकों--' अभागी का स्वर्ग ', 'विलासी ' एवं 'सती' को पाठक स्नेहपूर्वक अपनाएँगे।
Sati & Vilasi

Sati & Vilasi

Sarat Chandra Chattopadhyay

300

₹ 240

Charitraheen

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: पुस्तक के संबंध में एक बार शरत की अन्य पुस्तकों के साथ उनकी चरित्रहीन की पांडुलिपि, जो लगभग पाँच सौ पृष्ठों की थी, जल गई। इससे हताश वे अवश्य ही बहुत हुए, परंतु निराश नहीं। अपने असाथारण परिश्रम से उसे पुन: लिखने से समर्थ हुए। प्रस्तुत रचना उनकी बड़ी लगन और साधना से निर्मित वही कलाकृति है। शरतबाबू ने अपनी इस अमर कृति के संबंध में अपने काव्य-मर्मज्ञ मित्र प्रमथ बाबू को लिखा था, “केवल नाम और प्रारंभ को देखकर ही चरित्रहीन मत समझ बैठना। मैं नीतिशास्त्र का सच्चा विद्यार्थी हूँ। नीतिशास्त्र समझता हूँ। कुछ भी हो, राय देना, लेकिन राय देते समय मेरे गंभीर उद्देश्य को याद रखना। मैं जो उलटा-सीधा कलम की नोक पर आया, नहीं लिखता। आरंभ में ही उद्देश्य लेकर चलता हूँ। वह घटना-चक्र में बदला नहीं जाता।'!
Charitraheen

Charitraheen

Sarat Chandra Chattopadhyay

450

₹ 360

Shrikant (Vol.-1)

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: अपने इस खानाबदोश से जीवन की ढलती हुई बेला में खड़े होकर इसी का अध्याय जब कहने बैठा हूँ तो जाने कितनी ही बातें याद आती हैं। छुटपन से इसी तरह तो बूढ़ा हुआ। अपने-बिराने सबके मुँह से लगातार छिह-छिह सुनते-सुनते आप भी अपने जीवन को एक बहुत बड़ी छिह-छिह के सिवाय और कुछ नहीं सोच सका, लेकिन जिंदगी के प्रात:काल ही में छिह-छिह कौ यह लंबी भूमिका कैसे अंकित हो रही थी, काफी समय के बाद आज उन भूली-बिसरी कहानियों कौ माला पिरोते हुए अचानक ऐसा लगता है कि इस छिह-छिह को लोगों ने जितनी बड़ी करके दिखाया, वास्तव में उतनी बड़ी नहीं थी। जी में होता है, भगवान्‌ जिसे अपनी विचित्र सृष्टि के ठीक बीच में खींचते हैं, उसे अच्छा लड़का बनकर इम्तहान पास करने की सुविधा भी नहीं देते; गाड़ी-पालकी पर सवार हो बहुत लोग, लश्कर के साथ घूमने और उसे “कहानी ' के नाम से छपाने की अभिरुचि भी नहीं देते। शायद हो कि थोड़ी-बहुत अकल उसे देते हैं, लेकिन विषयी लोग उसे सुबुद्धि नहीं कहते। इसलिए प्रवृत्ति ऐसों की ऐसी असंगत और बेतुकी होती है और देखने की वस्तु तथा तृष्णा स्वाभाविकतया ऐसी आवारा हो उठती है कि उसका वर्णन कौजिए तो सुधीजन शायद हँसते-हँसते बेहाल हो उठें। उसके बाद वह बिगड़े दिल लड़का अनादर और उपेक्षा से किस तरह बुरों के खिंचाव से बुरा होकर, धक्के खाकर, ठोकरें खाकर अनजाने ही एक दिन बदनामी की झोली कंधे से झुलाए कहाँ खिसक पड़ता है, काफी अरसे तक उसकी कोई खोज-खबर ही नहीं मिलती।
Shrikant (Vol.-1)

Shrikant (Vol.-1)

Sarat Chandra Chattopadhyay

400

₹ 320

Shrikant (Vol.-2)

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: जिस भ्रमण-कथा के बीच ही में अचानक एक दिन यवनिका खींचकर विदा हुआ था, कभी फिर उसी को अपने हाथ से उद्घाटित करने की अपनी प्रवृत्ति न थी। मेरे गाँव के रिश्ते के दादाजी, वे जब मेरी उस नाटकीय उक्ति के जवाब में सिर्फ जरा मुसकराए तथा राजलक्ष्मी के झुककर प्रणाम करते जाने पर जिस ढंग से हड़बड़ाकर दो कदम हट गए और बोले, ' अच्छा! अहा, ठीक तो है! बहुत अच्छा ! जीते-जागते रहो!” कहते हुए कौतृहल के साथ डॉक्टर को साथ लेकर निकल गए, तो उस समय राजलक्ष्मी के चेहरे कौ जो दशा देखी, वह भूलने कौ नहीं, भूला भी नहीं; लेकिन यह सोचा था कि वह नितांत मेरी ही है, दुनिया पर वह कभी किसी भी रूप में जाहिर न हो, परंतु अब लगता है, अच्छा ही हुआ, बहुत दिनों के बंद दरवाजे को फिर मुझी को आकर खोलना पड़ा। जिस अनजान रहस्य के लिए बाहर का क्रोधित संशय अविचार का रूप धारण करके बार-बार धक्के मार रहा है, यह अच्छा ही हुआ कि बंद द्वार का अर्गल खोलने का मुझे ही मौका मिला।
Shrikant (Vol.-2)

Shrikant (Vol.-2)

Sarat Chandra Chattopadhyay

400

₹ 320

Chandranath & Vairagi

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: चंद्रनाथ था एक भावुक युवक। भावुकतावश उसने एक गरीब माँ की लड़को सरयू से शादी कर ली। कुछ दिनों बाद यह डर हुआ कि समाज सरयू को अपवित्र कर देगा। उसका अपराध यही था कि उसको माँ एक लंपट नवयुवक के प्रेम में फंसकर भाग आई थी। इसलिए वह वेश्या थी और सरयू हुई वेश्या की लड़की। चंद्रनाथ ने जब सुना, तो समाज के डर से सरयू का परित्याग कर देने को राजी हो गया। सरयू दया और प्रेम को मूर्ति थी। उसका संस्कार ऐसा था कि पति पर वह ईश्वर जैसी श्रद्धा-भक्ति रखतो थी। पति को आवरू पर वह आँच नहीं आने देना चाहती थी। इसलिए उसने स्वयं जहर खा लेने का प्रयास किया। किंतु समय पर वह ऐसा न करने के लिए मजबूर हुई, क्योंकि वह माँ बनने वाली थी। फिर सरयू को सहनशीलता के सामने सबको झुकना पड़ा। अंत में चंद्रनाथ की हिम्मत हुई और वह सरयू को घर ले गया--जो बहिष्कृत होने के कारण काशी चली आई थी। किसी पर कोई आँच नहीं आई। लेकिन पिस गए बेचारे कैलाश इस झगड़े में। कैलाश काका का कोई अपना नहीं था और न अपना कहने वाला। यदि कोई था भी, तो वह थी उसकी शतरंज को पोटली। सरयू वेश्या की लड़को थी, इसलिए किसी ने उसे जगह न दी थी। कैलाश काका उसे अपने घर ले गए, और उसके बेटे विशु के प्यार में इतना फँस गए कि उससे अलग होकर रह ही न सके, मर गए। इस पुस्तक में “बोझ” नामक बड़ी कहानी भी है, जो एक ऐसे युवक को कहानी है--जिसकी नवविवाहिता पत्नी हैजे से पीड़ित हो, उसके सुख-स्वप्न को भंग कर, अपने सास-ससुर को अश्रु-प्रवाह में बहने को छोड़ जाती है। प्रियजनों के कहने पर वह दूसरा विवाह नलिनी से करता है। नलिनी सुंदर तो है ही, बुद्धिमती......
Chandranath & Vairagi

Chandranath & Vairagi

Sarat Chandra Chattopadhyay

300

₹ 240

Savita

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: तारकनाथ और राखाल केवल तीन महीने के ही साथ-संग से घनिष्ठ मित्र हो गए। जब तीन बज गए और तारक अभी तक नहीं आया, तब राखाल के हृदय में घबराहट और बेचेनी पैदा होने लगी। भवानीपुर में आज स्त्रियों की एक सभा होनेवाली है। वहाँ पर बहुत से शिक्षित परिवारों को लड़कियाँ इकट्ठी होंगी और इस समय राखाल वहाँ के लिए चल देने को बेचैन होता जा रहा था। जाने के सब इंतजाम कर चुका था। सफेद कुरता, धोतो और सिल्क का साफा पलंग पर तैयार रखे थे और पास ही ताजा पॉलिश किया हुआ जूता चमचमा रहा था। मेज पर रखी हुई सोने को रिस्टवॉच भी सोने को चेन के साथ चमचमा रही थी।
Savita

Savita

Sarat Chandra Chattopadhyay

350

₹ 280

Brahman Ki Beti & Viraj Bahu

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: मुहल्ले भर घूमकर तीसरे पहर रासमणि घर लौट रही थीं। आगे-आगे उनकी पोती मु. रही थी, जिसकी उम्र कोई दस-बारह साल की थी। गाँव का सँकरा रास्ता, जिसकी बगल की खूँटी में बँधा हुआ बकरी का बच्चा एक किनारे पड़ा सो रहा था। उस पर नजर पड़ते ही पोती को लक्ष्यकर वे चिल्ला पड़ीं, '' अरी छोकरी, कहीं रस्सी मत लाँव जाना ! सामने रस्सी मत 'लाँघ गई क्या ? हरामजादी, आसमान में देखती हुई चलती है। आँख से दिखलाई नहीं पड़ा कि सामने बकरी बँथी है ?'' पोती ने सहज भाव से कहा, '“बकरी तो सो रही है दादी।'' “सो रही है तो क्या दोष नहीं लगा ? आज मंगलवार के दिन तू बेखटके रस्सी लाँघ गई ?!!
Brahman Ki Beti & Viraj Bahu

Brahman Ki Beti & Viraj Bahu

Sarat Chandra Chattopadhyay

250

₹ 200

Grihdah

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: महिम का परम मित्र था सुरेश। एक साथ एम.ए. पास करने के बाद सुरेश जाकर मेडिकल-कॉलेज में दाखिल हुआ; लेकिन महिम अपने पुराने सिटी-कॉलेज में ही रह गया। सुरेश ने रूठे हुए सा कहा, महिम, मैं बार-बार कह रहा हूँ--बी.ए., एम.ए. पास करने से कोई लाभ न होगा। अब भी समय है, तुम्हें भी मेडिकल-कॉलेज में भरती हो जाना चाहिए। महिम ने हँसते हुए कहा, 'हो तो जाना चाहिए; लेकिन खर्च के बारे में भी तो सोचना चाहिए! खर्च भी ऐसा क्या है कि तुम नहीं दे सकते ? फिर तुम्हारी छात्रवृत्ति भी तो है। महिम हँसकर चुप रह गया।
Grihdah

Grihdah

Sarat Chandra Chattopadhyay

350

₹ 280

Dehati Samaj

  • Author Name:

    Sarat Chandra Chattopadhyay

  • Book Type:
  • Description: बांग्ला के उपन्यास-सम्राट्‌ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की संपूर्ण अमर कृतियाँ देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनूदित होकर प्रकाश में आ चुकी हैं; परंतु हिंदी में जहाँ एक ओर उनके उपन्यास तथा उपन्यास के रूप में बड़ी-बड़ी कहानियों के अनेक अनुवाद हुए हैं, वहाँ उनकी लघु-कथाओं के अनुवाद अपेक्षाकृत बहुत कम हो प्रकाश में आए हैं। प्रस्तुत पुस्तक में शरतबाबू की सात लघु-कथाएँ संकलित हैं। सभी कहानियाँ एक-से-एक सुंदर, प्रेरणाप्रद, मर्मस्पर्शी एवं शिल्प की दृष्टि से अत्युत्तम हैं। अनुवाद में केवल मूल भावों की ही रक्षा नहीं की गई है, अपितु वह अक्षरश: हो और प्रभाव में भी शिथिलता न पड़े, इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है। आशा है, रवींद्रकथा-माला की भाँति शरतकथा-माला को भी स्नेहपूर्वक अपनाकर हिंदी-पाठक हमारे श्रम को सार्थक करेंगे।
Dehati Samaj

Dehati Samaj

Sarat Chandra Chattopadhyay

250

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