Kamlesh
Rusi Sanskriti : Udbhav Aur Vinash-E-Book
- Author Name:
Kamlesh
-
Book Type:

- Description:
‘‘कवि कमलेश हमारे समय के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, हालाँकि उन्होंने कभी विद्वता का कोई दावा नहीं किया। उनकी रुचि साहित्य के अलावा संस्कृति और विचार के अनेक अनुशासनों जैसे—दर्शन, मनोविज्ञान, नृतत्त्व आदि में थी। महान् रूसी कवियों और उनके माध्यम से रूसी संस्कृति की उद्भव-गाथा और उसके विनाश की शोक-कथा प्रस्तुत करनेवाली यह अनूठी पुस्तक है। इसमें कवियों का सिर्फ़ वैचारिक विश्लेषण भर नहीं है—कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी है। किसी विदेशी भाषा के इतने सारे महान् कवियों और उनके माध्यम से किसी देश की संस्कृति के अध्ययन का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण हिन्दी में तो क्या शायद किसी अन्य भारतीय भाषा में भी न होगा। इस अद्वितीय पुस्तक को रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत हम सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
—अशोक वाजपेयी
Rusi Sanskriti : Udbhav Aur Vinash-E-Book
Kamlesh
VADYA-YANTRON KO JANEN
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Kamlesh
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- Description: Awating description for this book
VADYA-YANTRON KO JANEN
Kamlesh
Khule Mein Aawas
- Author Name:
Kamlesh
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- Description:
हिन्दी साहित्य की निरन्तर बढ़ती स्मृति-क्षीणता के चलते अगर कइयों को कमलेश नाम
से कुछ ख़ास याद नहीं आएगा तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए। स्वयं कमलेश को नहीं होगा, क्योंकि पिछले बीस-पच्चीस बरसों से वे कम लिखते, बहुत कम छपाते और साहित्य के दृश्य और आयोजनों से दूर रहे हैं। लेकिन इससे यह बात मिट नहीं जाती कि वे हमारी पीढ़ी और उसके तुरत बाद की पीढ़ी के गाथा-पुरुष रहे हैं। तब की युवा कविता पर एक आलोचक की तरह पहली क़लम मैंने कमलेश और धूमिल की कविता पर ही चलाई थी और उन्हें ‘तलाश के दो मुहावरे’ कहा था।
कमलेश ने कम लिखा और जितना लिखा उसे मुनासिब सख़्ती से ख़ुद जाँचा और उसका कम ही सार्वजनिक किया। उनके यहाँ ऐन्द्रियता और सामासिक स्मृति का जो संगुम्फन है, वह हममें से कई के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है।... अपने व्यक्तित्व और रचना के प्रति भयावह और बेहद दिखाऊ आत्मरति के इस युग में कमलेश हमेशा कुछ कहते कम, बुदबुदाते अधिक रहे हैं। उनके यहाँ कम ही अधिक है। उनकी कविता बासी नहीं हुई है, दशकों पहले की होने के बावजूद और बावजूद इधर कविता के व्यापक अख़बारीकरण के। उनके यहाँ जो अनुगूँजें हैं, उनकी कविता में जो अन्तर्ध्वनियाँ हैं, वे आज भी हम जैसे सुनकर अभिभूत होते हैं और वे अक्सर अन्यत्र सुनाई नहीं देतीं।
—अशोक वाजपेयी; ‘जनसत्ता’; 05 अगस्त, 2007
Khule Mein Aawas
Kamlesh
Samudra Mein Khoya Hua Aadmi
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Kamlesh
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- Description: “समुद्र में लापता हुए लोग भी बरसों बाद लौटकर आए हैं...” हरबंस उन्हें समझाने लगा—“बहुत बार समुद्रों में तूफ़ान आ जाते हैं। जहाज टूट जाते हैं। लोग समुद्र में खो जाते हैं...तैरते-तैरते वे अनजानी जगहों पर जा लगते हैं...” लेकिन बीरन न कहीं पहुँचा, न उसने किसी का दरवाज़ा खटखटाया, पहुँची सिर्फ़ उसके हमेशा के लिए विलीन हो जाने की ख़बर। अवाक् खड़ा रह गया, अपनी दैनंदिन चुनौतियों में उलझा-फँसा उसका परिवार। बीरन जिसे हमेशा अपने बाबूजी की बेबसी और मायूसी सताती रहती थी, जो कॉलेज के दिनों में शाम को ही अपनी ड्रेस धोकर सूखने के लिए डाल देता था, जूतों पर खड़िया फेर लेता था और जिसका भार, जिसकी मौजूदगी घर में किसी को महसूस नहीं होती थी, वही बीरन अपने बोझ से सबको मुक्त कर गया। मध्यवर्गीय जीवन के सफल चितेरे कमलेश्वर ने एक मार्मिक कथा के जरिए इस उपन्यास में दो समुद्रों की तरफ़ इशारा किए हैं—एक पानी का वह असीम सागर, जिसमें बीरन खो गया और दूसरा महानगर की ठंडी, उदासीन भीड़ का पराया समुद्र, जिसमें उसके पिता श्यामलाल और मासूम बहनें अपनी अलक्षित जिजीविषा के साथ तैरने की कोशिश करते रहे। आधुनिक सभ्यता के अथाह समुद्र में आज का मध्यवर्गीय व्यक्ति अपनी सीमाओं और विडम्बनाओं के साथ किस तरह लुप्त हो जाता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय है।
Samudra Mein Khoya Hua Aadmi
Kamlesh
Rusi Sanskriti : Udbhav Aur Vinash
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Kamlesh
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‘‘कवि कमलेश हमारे समय के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, हालाँकि उन्होंने कभी विद्वता का कोई दावा नहीं किया। उनकी रुचि साहित्य के अलावा संस्कृति और विचार के अनेक अनुशासनों जैसे—दर्शन, मनोविज्ञान, नृतत्त्व आदि में थी। महान् रूसी कवियों और उनके माध्यम से रूसी संस्कृति की उद्भव-गाथा और उसके विनाश की शोक-कथा प्रस्तुत करनेवाली यह अनूठी पुस्तक है। इसमें कवियों का सिर्फ़ वैचारिक विश्लेषण भर नहीं है—कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी है। किसी विदेशी भाषा के इतने सारे महान् कवियों और उनके माध्यम से किसी देश की संस्कृति के अध्ययन का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण हिन्दी में तो क्या शायद किसी अन्य भारतीय भाषा में भी न होगा। इस अद्वितीय पुस्तक को रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत हम सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
—अशोक वाजपेयी
Rusi Sanskriti : Udbhav Aur Vinash
Kamlesh
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