Kamlanand Jha
Navmallika
- Author Name:
Kunal +3
-
Book Type:

- Description: आधुनिक मैथिलीक समग्र पत्रकारिताक इतिहास मे दिल्ली सँ प्रकाशित 'अंतिका'क भूमिका बहुत तरहें अन्यतम रहल छै। कोनो पूर्व वा समकालीन मैथिली पत्रकारिताक उपरौंझ मे वा प्रतिस्पर्धा मे नहि, अपितु पत्रिकाक अपन प्रयोगशील संरचना, दृष्टिकोण ओ बहुकोणीय साहित्य-प्रयोगक समानांतर अभ्यास रूप मे। हमरा बुझने मैथिलीक समकालीन आधुनिक बोधक रचनाशीलता केँ देशक समस्त भाषा-साहित्यक मुख्य प्रवाह मे आनि वैश्विक गतिविधि पर्यंत जोड़बा मे 'अंतिका'क भूमिका सदैव अहम आ उल्लेखनीय रहतैक। अपन एहि विशेष भूमिकाक अद्यतन शृंखला मे 'अंतिका'क आरंभिक 25 अंक सभ मे सँ आजुक समय मे हस्तक्षेप करैत महत्त्वपूर्ण चौंतीस कविक बीछल कविताक संकलन 'नवमल्लिका'क प्रकाशनक प्रयोग सेहो हमरा अभिनव आ प्रीतिकर लागलए तथा प्रासंगिक सेहो। हमरा जनैत एहि प्रक्रिया मे रचना ओ रचनाकारक सामाजिक प्रयोजनीयता एक टा नव संदर्भ मे भविष्योन्मुख होइत छै। निश्चये एहन उपक्रम कोनो सजग सचेष्ट सम्पादकीय बोध आ रचनात्मक ऊहिए सँ संभव होइत छै। -गंगेश गुंजन # मैथिली पत्रकारिताक परंपरा मे 'अंतिका' नवाचारक लेल जानल जाइत अछि जकर प्रमाण थिक ई कविता संचयन। 'नवमल्लिका' मे संकलित चारि पीढ़ीक कवि आ हुनक कविताक कैनवास बहुआयामी अछि आ प्रयोगधर्मी सेहो। मैथिलीक कोनो एक पत्रिकाक अंक सँ एहन उत्कृष्ट संकलन निकालब हमरा जनतबे असंभव। विषयक विविधता, काव्यगत-प्रयोगधर्मिता आ समग्र-प्रभावान्विति मे ई संकलन छात्र-प्राध्यापक आ कविताक विज्ञ पाठक लेल अनमोल उपहार थिक। — प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा
Navmallika
Kunal
Nagarjun : dabi doob ka roopak
- Author Name:
Kamlanand Jha
-
Book Type:

- Description: आधुनिक हिन्दी कविता में निराला की पीढ़ी के बाद के प्रगतिशील कवियों में नागार्जुन सर्वाधिक लोकप्रिय रहे। उनकी लोकप्रियता ने हिन्दी के प्रबुद्ध जन में उन्हें परिचित तो बनाया लेकिन उनका अतिपरिचय ही उनकी गम्भीर विवेचना में बाधा बन गया। बहुभाषाविद नागार्जुन बौद्ध दर्शन की सर्वोच्च उपाधि से अलंकृत थे। उनकी रचनात्मकता इतनी प्रबल है कि उनका चिंतक अलग से नजर ही नहीं आता। कवि के बतौर वे प्रबल विद्रोही थे इसलिए अपनी कविता के लायक हिन्दी पाठक का भावबोध निर्मित करने में उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ा। यात्री उनका उपनाम ही नहीं था। देश और समाज के प्रत्यक्ष अनुभव से उनका लेखन विपुल समृद्ध हुआ। कमलानंद झा नागार्जुन की देसी संस्कृति के जानकार हैं। उनके विश्लेषण में इस जानकारी ने अतिरिक्त रोचकता पैदा की है। भाषा के समान ही नागार्जुन के लेखन की विधागत विविधता भी इसमें मुखर हुई है। नागार्जुन के भावबोध को लोकानुरागी प्रतिहिंसा कहकर लेखक ने उनकी विस्फोटक रचनात्मकता का असली स्रोत समझने का प्रयास किया है। नागार्जुन की रचना में अंतर्निहित विचार के साथ उसके सौंदर्य को उद्घाटित करना इस किताब का मुख्य सरोकार है। यथास्थिति की निर्मम और प्रचंड आलोचना साहित्य का अपना धर्म है। इस धर्म का पालन करने में साहित्य कलात्मक मार्ग अपनाता है। नागार्जुन के साहित्य के इस मार्ग की परख का यह गम्भीर प्रयास अत्यंत समयानुकूल है। नागार्जुन की सहजता का अनुगमन भी इस किताब में दिखायी देता है। —गोपाल प्रधान
Nagarjun : dabi doob ka roopak
Kamlanand Jha
Vidyapati : Raj Kaj Samaj
- Author Name:
Kamlanand Jha
-
Book Type:

- Description: विद्यापति 'राज काज समाज' इस दृष्टि से अनोखी पुस्तक है कि इसमें विद्यापति की भक्ति-शृंगार वाली रूढ़ छवि के समानांतर सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार संपन्न कवि के रूप में उनकी पहचान की गई है। विद्यापति की पदावली का अध्ययन उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण वैचारिक रचनाओं के साथ मिलाकर की गई है जिसके परिणाम स्वरूप पदावली की नई अर्थ छटाओं से हमारा साक्षात्कार होता है। कीर्तिलता, पुरुष-परीक्षा और लखनावाली जैसी गंभीर विचार-प्रधान रचनाओं के कारण विद्यापति तमाम मध्यकालीन भक्त कवियों से अलहदा नजर आते हैं क्योंकि मध्यकाल के सभी भक्त केवल कवि हैं लेकिन विद्यापति कवि के साथ इतिहासकार, राजनीतिवेत्ता, संस्कृति-चिंतक तथा शिक्षाविद भी नजर आते हैं। ज्ञान के इस विस्तार ने उनकी कविता को अधिक गहरी और व्यापक जमीन प्रदान की है। हिंदी भक्ति आंदोलन के अग्रदूत विद्यापति की भक्ति कविता में वैष्णव (अलवार) और शैवभक्ति (नयनार) का समन्वित रूप देखने को मिलती है। विद्यापति ने मानव जीवन की श्रेष्ठता को प्रतिष्ठित करते हुए कहा है कि 'मानुस जीवन अनूप'। उनकी कविता में न तो कहीं स्त्री-निंदा है न ही वर्ण-विरोध। इस दृष्टि से विद्यापति समतापरक समाज की कल्पना करने वाले विलक्षण मध्यकालीन कवि के रूप में हमारे सामने उपस्थित होते हैं। विद्यापति की पदावली में शृंगार-भक्ति के अतिरिक्त स्त्री-प्रेम और प्रेम के क्षेत्र में स्त्री-साहस अद्ïभुत रूप से प्रकट हुआ है। सामंती समाज में प्रेम की पाबंदी के सख्त खिलाफ हैं—विद्यापति; वे कहते हैं 'परबस जनु हो हमार पियार'। यह पुस्तक पाठकों को एक 'नए विद्यापति' से परिचय कराने में सक्षम साबित होगी।
Vidyapati : Raj Kaj Samaj
Kamlanand Jha
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.