Gyan Chaturvedi
Roshani Ki Shinakht
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Gyan Chaturvedi
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Book Type:

- Description: नदी को आदमी की चिन्ता है और आदमी को विकास की। विज्ञान सोचने वाली मशीन बनाना चाहता कि मनुष्य को सहूलियत हो, लेकिन सत्ता सोच को नियंत्रित करनेवाला यंत्र चाहती है। अफ़सरी है जो अभी भी अपनी पुरातन पटरी पर चली जा रही है। पुलिस की तफ़्तीश है जो पीड़ित को अपराधी-सा अहसास करा रही है। ऐसी ही और अनेक उलटबाँसियाँ हैं जिन पर ज्ञान चतुर्वेदी के ये व्यंग्य बहुत साफ़, बहुत तीखे ढंग से उँगली रखते हैं। समाज, राजनीति, साहित्य-संस्कृति जहाँ भी कुछ उथला है, छूँछा है, बेईमान और इनसानियत के ख़िलाफ़ है उनकी नज़र से नहीं चूकता। ये व्यंग्य जो हैं उसकी अक्कासी-भर नहीं करते, बल्कि अपने आसपास के विद्रूप को देखने की दृष्टि भी देते हैं, कभी किसी रूपक में पिरोकर, कभी सीधी टिप्पणियों से। लेकिन यह व्यंग्य सब कुछ को स्याह नहीं दिखाता, जहाँ रोशनी है उसकी शिनाख़्त भी करता है। ‘रोशनी की शिनाख़्त’ व्यंग्य-संग्रह की भूमिका अपने आप में इस प्रस्तुति की उपलब्धि है जिसमें ज्ञान चतुर्वेदी वर्तमान हिन्दी व्यंग्य का अत्यन्त विचारोत्तेजक विश्लेषण करते हुए, देश के मौजूदा समय पर भी एक सार्थक टिप्पणी करते हैं।
Roshani Ki Shinakht
Gyan Chaturvedi
Pret Katha
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Gyan Chaturvedi
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Book Type:

- Description: ज्ञान चतुर्वेदी ने हिन्दी व्यंग्य को एक नए सिरे से स्थापित किया है। अपने उपन्यासों, निबन्धों और स्तम्भों में वे एक-सी निर्ममता से अपने समय और उसकी सामाजिक-राजनीतिक व नैतिक गाँठों की चीर-फाड़ करते रहे हैं। ‘प्रेत कथा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जो पहली बार 1985 में छपा था और लगभग तभी से अनुपलब्ध भी था। इस संकलन में उनकी कतिपय लम्बी व्यंग्य-रचनाएँ हैं जिन्हें वे खुद भी अपने व्यंग्यकार की आधार-भूमि मानते हैं। ‘धर्मयुग’ के लिए धर्मवीर भारती के आग्रह पर लिखे गए ‘आत्म-व्यंग्य’ से आरम्भ होकर इस संग्रह में लगभग पचास निबन्ध संकलित हैं जो भारतीय समाज में लम्बे समय से जड़ पकड़ते अमानवीयकरण को गहराई से अंकित करते हैं। इन्हें पढ़ते हुए आप देखेंगे कि अब भी बदला कुछ नहीं है, बल्कि पहले से बदतर ही हुआ है। ‘प्रेत कथा’ के पहले संस्करण पर प्रकाशित डॉ. धनंजय वर्मा की यह टीप ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य को और बेहतर ढंग से समझाती है कि वे इसलिए भी उल्लेखनीय हैं कि ‘उन्होंने सपाट विवरण और चालू नुस्खों के बजाय भारतीय कथा-परम्परा से अपने व्यंग्य की रचना-विधि को समृद्ध किया है। ...रूपक, दृष्टान्त और फैंटेसी के माध्यम से उन्होंने समकालीन यथार्थ को अधिक व्यापक, सांकेतिक और प्रभावशाली ढंग से प्रतिबिंबित किया है।
Pret Katha
Gyan Chaturvedi
Ek Tanashah Ki Premkatha
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Gyan Chaturvedi
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यह कथा है—प्रेम में तानाशाही की। प्रेम की तानाशाही की भी और तानाशाहों के प्रेम की भी। प्रेम जो समर्पण से शुरू होता है। फिर धीरे-धीरे इसका पलड़ा किसी एक तरफ झुकने लगता है और तब शुरू होती है भूमिका ताक़त के प्रति हमारे अनन्य प्रेम की, जिसके सामने कोई प्रेम अर्थ नहीं रखता।
यह उपन्यास ऐसे तीन प्रेमियों की कथाओं से शुरू होता है, जिन्हें अब भी लगता है कि वे प्रेम कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वे कर रहे हैं तानाशाही, कब्ज़ा और क्रूरता। सम्बन्ध उनके लिए एक दलदल बन चुका है, जिससे निकलने को उनकी वह रूह छटपटाती रहती है जिसने कभी सारी दुनिया को छोड़कर प्रेम का वरण किया था; लेकिन जब तक वे अपनी इस छटपटाहट को समझ पाते, एक चौथा प्रेमी कथा में प्रवेश करता है जिसे लगता है कि उससे बड़ा प्रेमी कोई है ही नहीं। यह देशप्रेमी है, देश का बादशाह, जिसे लगता है कि प्रेम बस एक ही होता है—देशप्रेम, बाकी हर प्रेम उसकी राह में बस रुकावट पैदा करता है। असली कथा यहीं से शुरू होती है...
व्यंग्य को उपन्यास के विराट विस्तार में सफलतापूर्वक साधे रखनेवाले ज्ञान चतुर्वेदी का यह सातवाँ उपन्यास है। अपने हर उपन्यास में उन्होंने अपनी कथा-भूमि और कहन-शैली को एक नया आयाम दिया है। वे हर बार आगे बढ़े हैं। बुंदेलखंड की खाँटी खुरदुरी ग्रामीण जमीन से लेकर क़स्बाई और शहरी पृष्ठभूमि तक उनका व्यंग्य लगातार अपनी धार को और-और तेज करता रहा है।
इस उपन्यास में उन्होंने प्रेम जैसे सार्वभौमिक तत्त्व को अपना विषय बनाया है और उसे वहाँ से देखना शुरू किया है जहाँ वह अपने पात्र के लिए ही घातक हो उठता है। वह आत्ममुग्ध प्रेम किसी को नहीं छोड़ता चाहे प्रेमी के लिए प्रेमिका हो, पति के लिए पत्नी हो या शासक के लिए देश।
Ek Tanashah Ki Premkatha
Gyan Chaturvedi
Gyan Hai To Jahan Hai
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Gyan Chaturvedi
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Book Type:

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एक ऐसी किताब जो स्वस्थ सेहत और अनुकूल दिनचर्या के साथ डॉक्टरी परामर्श देती है। जिसे ठीक ही मुहावरेनुमा भाषा में ‘ज्ञान है तो जहान है’ का शीर्षक दिया गया है। लेखक का दावा है कि इस किताब में शामिल लेख पाठकों को उस तिलिस्म की मास्टर-की सौंपेगी जिसे तकनीकी शब्दावली में ‘मेडिकल विज्ञान’ कहते हैं। इन्हीं आधारों पर यह किताब अपने आप में रोचक और पठनीय बन पड़ती है।
इन लेखों में, सरल भाषा तथा रोचक शैली में बीपी, ऑस्टियोपोरोसिस, हार्ट अटैक, स्त्री रोग से लेकर हिस्टीरिया तथा बहुत सारी अन्य कॉमन बीमारियों के बारे में बेहद महत्त्वपूर्ण बातें बतलाई गई हैं; जिसमें पाठकों की जिज्ञासाओं और उनके विषय में जानकारियों के साथ समाधान के कई नए द्वार खुलते हैं। इस तरह यह किताब सामान्य जन के लिए तो लाभदायक है ही, जनरल डॉक्टरों, विशेषज्ञों तथा सुपर स्पेशलिस्टों के लिए भी ये अवश्य ही बेहद रुचिकर सिद्ध होगी। किन्तु ज्ञात हो कि मेडिकल साइंस निरन्तर बढ़ती और बदलती विद्या है इसलिए लेखक का मानना है कि यदि इस किताब के लेखों को पढ़ते हुए पाठक कहीं असहमत हों तो डॉक्टर से मिलकर उस विषय में पड़ताल करके ही सहमत हों, ताकि चिकित्सा सम्बन्धी भ्रांतियों का सावधानीपूर्वक निदान मिल सके।
बीमारियों को लेकर फैले भ्रमों को दूर कर उपचार और स्वास्थ्य की सटीक जानकारी देने वाली यह किताब स्वास्थ्य के लिए जिज्ञासु व्यक्तियों के साथ घर-घर के लिए बहुत ही अनिवार्य बन पड़ी है।
Gyan Hai To Jahan Hai
Gyan Chaturvedi
Pagalkhana
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Gyan Chaturvedi
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Book Type:

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ज्ञान चतुर्वेदी का यह पाँचवाँ उपन्यास है। इसलिए उनके कथा-शिल्प या व्यंग्यकार के रूप में वह अपनी औपन्यासिक कृतियों को जो वाग्वैदग्ध्य, भाषिक, शाब्दिक तुर्शी, समाज और समय को देखने का एक आलोचनात्मक नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं है। हिन्दी के पाठक उनके 'नरक-यात्रा', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपन्यासों के आधार पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों में सिर्फ़ व्यंग्य का ठाठ खड़ा नहीं किया, न ही किसी भी क़ीमत पर पाठक को हँसाकर अपना बनाने का प्रयास किया, उन्होंने व्यंग्य की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नक़्श उकेरे।
इस उपन्यास में भी वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उन्होंने भूमिका में विस्तार से स्पष्ट किया है, यहाँ उन्होंने बाज़ार को लेकर एक विराट फैंटेसी रची है। यह वे भी मानते हैं कि बाज़ार के बिना जीवन सम्भव नहीं है। लेकिन बाज़ार कुछ भी हो, है तो सिर्फ़ एक व्यवस्था ही जिसे हम अपनी सुविधा के लिए खड़ा करते हैं। लेकिन वही बाज़ार अगर हमें अपनी सुविधा और सम्पन्नता के लिए इस्तेमाल करने लगे तो?
आज यही हो रहा है। बाज़ार अब समाज के किनारे बसा ग्राहक की राह देखता एक सुविधा-तंत्र-भर नहीं है। वह समाज के समानान्तर से भी आगे जाकर अब उसकी सम्प्रभुता को चुनौती देने लगा है। वह चाहने लगा है कि हमें क्या चाहिए, यह वही तय करे। इसके लिए उसने हमारी भाषा को हमसे बेहतर ढंग से समझ लिया है, हमारे इंस्टिंक्ट्स को पढ़ा है, समाज के रूप में हमारी मानवीय कमज़ोरियों, हमारे प्यार, घृणा, ग़ुस्से, घमंड की संरचना को जान लिया है, हमारी यौन-कुंठाओं को, परपीड़न के हमारे उछाह को, हत्या को अकुलाते हमारे मन को बारीकी से जान-समझ लिया है, और इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अब वह चाहता है कि हमारे ऊपर शासन करे।
इस उपन्यास में ज्ञान चतुर्वेदी बाज़ार के फूलते-फलते साहस की, उसके आगे बिछे जाते समाज की और अपनी ताक़त बटोरकर उसे चुनौती देनेवाले कुछ बिरले लोगों की कहानी कहते हैं।
Pagalkhana
Gyan Chaturvedi
Hum Na Marab
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Gyan Chaturvedi
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- Description: हर बड़ा लेखक, अपने ‘सृजनात्मक जीवन’ में, जिन तीन सच्चाइयों से अनिवार्यतः भिड़न्त लेता है, वे हैं—‘ईश्वर’, ‘काल’ तथा ‘मृत्यु’। अलबत्ता, कहा जाना चाहिए कि इनमें भिड़े बग़ैर कोई लेखक बड़ा भी हो सकता है, इस बात में सन्देह है। कहने की ज़रूरत नहीं कि ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने रचनात्मक जीवन के तीस से अधिक वर्षों में, ‘उत्कृष्टता की निरन्तरता’ को जिस तरह अपने लेखन में एकमात्र अभीष्ट बनाकर रखा, कदाचित् इसी प्रतिज्ञा ने उन्हें, हमारे समय के बड़े लेखकों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। ‘हम न मरब’ में उन्होंने ‘मृत्यु’ को रचना के ‘प्रतिपाद्य’ के रूप में रखकर, उससे भिड़ंत ली है। ‘नश्वर’ और ‘अनश्वर’ के द्वैत ने दर्शन और अध्यात्म में, अपने ढंग से चुनौतियों का सामना किया; लेकिन ‘रचनात्मक साहित्य’ में इससे जूझने की प्रविधि नितान्त भिन्न होती है और वही लेखक के सृजन-सामर्थ्य का प्रमाणीकरण भी बनती है। ज्ञान चतुर्वेदी के सन्दर्भ में, यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने गल्प-युक्ति से ‘मृत्युबोध’ के ‘केआस’ को जिस आत्म-सजग शिल्प-दक्षता के साथ ‘एस्थेटिक’ में बदलते हैं, यही विशिष्टता उन्हें हमारे समय के अन्यतम लेखकों के बीच ले जाकर खड़ा कर देती है।
Hum Na Marab
Gyan Chaturvedi
Narak-Yatra
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Gyan Chaturvedi
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- Description:
ज्ञान चतुर्वेदी का यह उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ महान रूसी उपन्यासों की परंपरा में है, जो कहानी और इसके चरित्रों के हर संभव पक्ष तथा तनावों को अपने में समेटकर बढ़ा है। यह उपन्यास भारत के किसी भी बड़े सरकारी अस्पताल के किसी एक दिन मात्र की कथा कहता है। अस्पताल, जो नरक से कम नहीं, विशेष तौर पर गरीब आम आदमी के लिए।
लेखक हमें अस्पताल के इसी नरक की सतत यात्रा पर ले जाता है, जो अस्पताल के हर कोने में तो व्याप्त है ही, साथ ही इसमें कार्यरत लोगों की आत्मा में भी फैल गया है। ऑपरेशन थिएटर से अस्पताल के रसोईघर तक, वार्ड बॉय से सर्जन तक–हर चरित्र और स्थिति के कर्म-कुकर्म को लेखक ने निर्ममता से उजागर किया है। उसकी मीठी छुरी-सी पैनी जुबान और उछालकर मजा लेने की प्रवृत्ति इस निर्मम लेखन-कर्म को और भी महत्त्वपूर्ण बनाती है। किसी सुधारक अथवा क्रांतिकारी लेखक का लबादा ओढ़े बगैर ज्ञान चतुर्वेदी ने निर्मम, गलीज यथार्थ पर सर्जनात्मक टिप्पणी की है और खूब की है।
यह उपन्यास अद्भुत जीवन तथा उतने ही अद्भुत जीवन-चरित्रों की कथा को ऐसी भाषा में बयान करता है जो आम आदमी के मुहावरों और बोली से संपन्न है, जिसमें मजे लेकर बोली जानेवाली अदा और बाँध लेने की शक्ति है।
–स्वदेश दीपक
Narak-Yatra
Gyan Chaturvedi
Baramasi
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Gyan Chaturvedi
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Book Type:

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ज्ञान चतुर्वेदी ने परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की व्यंग्य-परम्परा को न केवल आगे बढ़ाया है, वरन् कई अर्थों में उसे और समृद्ध किया है। विषय-वैभिन्नय तथा भाषा और शैलीगत प्रयोगों के लिए वे हिन्दी व्यंग्य में ‘हमेशा ही कुछ नया करने को आतुर’ लेखक के रूप में विख्यात हैं। लकीर पीटने के वे सख़्त खिलाफ हैं–चाहे वह स्वयं उनकी अपनी खींची हुई ही क्यों न हो !
‘बारामासी’ बुन्देलखंड के एक छोटे से कस्बे के, एक छोटे से आँगन में पल रहे छोटे-छोटे स्वप्नों की कथा है–वे स्वप्न, जो टूटने के लिए ही देखे जाते हैं और टूटने के बाद तथा बावजूद देखे जाते हैं। स्वप्न देखने की अजीब उत्कंठा तथा उन्हें साकार करने के प्रति धुँधली सोच और फिर-फिर उन्हीं स्वप्नों को देखते जाने का हठ–कथा न केवल इनके आसपास घूमती हुई मानवीय सम्बन्धों, पारम्परिक शादी-ब्याह की रस्मों, सडक़छाप कस्बाई प्यार, भारतीय कस्बों की शिक्षा-पद्धति, बेरोजगारी, माँ-बच्चों के बीच के स्नेहिल पल तथा भारतीय मध्यवर्गीय परिवार के जीवन-व्यापार को उसके सम्पूर्ण कलेवर में उसकी समस्त विडम्बनाओं-विसंगतियों के साथ पकड़ती है, साथ ही बुन्देलखंडी परिवेश के श्वास-श्वास में स्पन्दित होते सहज हास्य-व्यंग्य को भी समेटती चलती है।
Baramasi
Gyan Chaturvedi
Marichika
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
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Book Type:

- Description:
‘नरकयात्रा’ और ‘बारामासी’ के बाद ‘मरीचिका’ हमें नितांत नए ज्ञान चतुर्वेदी से परिचित कराता है।
इस पौराणिक फैंटेसी में वे भाषा, शैली, कथन तथा कहन के स्तर पर एकदम निराली तथा नई ज़मीन पर खड़े दीखते हैं। यहाँ वे व्यंग्य को एक सार्वभौमिक चिंता में तब्दील करते हुए ‘पादुकाराज’ के मेटाफर के माध्यम से समकालीन भारतीय आमजन और दरिद्र समाज की व्यथा-कथा को अपने बेजोड़ व्यंग्यात्मक लहजे में कुछ इस प्रकार कहते हैं कि पाठक के समक्ष निरंकुश सत्ता का भ्रष्ट तथा जनविरोधी तंत्र, राजकवि तथा राज्याश्रयी आश्रमों के रूप में सत्ता से जुड़े भोगवादी बुद्धिजीवी और पादुकामंत्री, सेनापति-पादुका राजसभा आदि के ज़रिए तथाकथित श्रेष्ठिजनों के बीच जारी सत्ता-संघर्ष का मायावी परंतु भयानक सत्य–सब कुछ अपनी संपूर्ण नग्नता में निरावृत हो जाता है। ‘पादुकाराज’, ‘अयोध्या’ तथा ‘रामराज’ के बहाने ज्ञान चतुर्वेदी मात्र सत्ता के खेल और उसके चालाक कारकों का ही व्यंग्यात्मक विश्लेषण नहीं करते हैं, वे मूलतः इस क्रूर खेल में फँसे भारतीय दरिद्र प्रजा के मन में रचे-बसे उस यूटोपिया की भी बेहद निर्मम पड़ताल करते हैं, जो उस ‘रामराज’ के स्थापित होने के भ्रम में ‘पादुका-राज’ को सहन करती रहती है, जो सदैव ही मरीचिका बनकर उसके सपनों को छलता रहा है।
स्वर्ग तथा देवता की एक समांतर कथा भी उपन्यास में चलती रहती है, जो भारत के आला अफ़सरों की समांतर परन्तु मानो धरती से अलग ही बसी दुनिया पर बेजोड़ टिप्पणी बन गई है। आधुनिक भारत के इन ‘देवताओं’ का यह स्वर्ग ज्ञान के चुस्त फिकरों, अद्भुत विट और निर्मल हास्य के प्रसंगों के जरिए पाठकों के समक्ष ऐसा अवतरित होता है कि वह एक साथ ही वितृष्णा भी उत्पन्न करता है और करुणा भी। और शायद क्रोध भी।
हिन्दी में फैंटेसी गिनी-चुनी ही है। विशेष तौर पर हिन्दी व्यंग्य में पौराणिक फैंटेसी जो लिखी भी गई है, वे प्रायः फूहड़ तथा सतही निर्वाह में भटक गई हैं। इस लिहाज से भी ‘मरीचिका’ एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है।
Marichika
Gyan Chaturvedi
Khamosh! Nange Hamam Mein Hain
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
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Book Type:

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परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की पीढ़ी के बाद यदि हिन्दी-विश्व को कोई एक व्यंग्यकार सर्वाधिक आश्वस्त करता है तो वह ज्ञान चतुर्वेदी हैं। वे क्या ‘नया लिख रहे हैं’—इसको लेकर जितनी उत्सुकता उनके पाठकों को रहती है, उतनी ही आलोचकों को भी। विशेष तौर पर, राजकमल द्वारा ही प्रकाशित अपने दो उपन्यासों—‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ के बाद तो ज्ञान चतुर्वेदी इस पीढ़ी के व्यंग्यकारों के बीच सर्वाधिक पठनीय, प्रतिभावान, लीक तोड़नेवाले और हिन्दी-व्यंग्य को वहाँ से नई ऊँचाइयों पर ले जानेवाले माने जा रहे हैं, जहाँ परसाई ने उसे पहुँचाया था।
ज्ञान चतुर्वेदी में परसाई जैसा प्रखर चिन्तन, शरद जोशी जैसा विट, त्यागी जैसी हास्य-क्षमता तथा श्रीलाल शुक्ल जैसी विलक्षण भाषा का अद्भुत मेल है, जो उन्हें हिन्दी-व्यंग्य के इतिहास में अलग ही खड़ा करता है। ज्ञान को आप जितना पढ़ते हैं, उतना ही उनके लेखन के विषय-वैविध्य, शैली की प्रयोगधर्मिता और भाषा की धूप-छाँव से चमत्कृत होते हैं। वे जितने सहज कौशल से छोटी-छोटी व्यंग्य-कथाएँ और व्यंग्य-टिप्पणियाँ रचते हैं, उतने ही जतन से लम्बी व्यंग्य रचनाएँ भी बुनते हैं। ‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ जैसे बड़े उपन्यासों में उनके व्यंग्य-तेवर देखते ही बनते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी विशुद्ध व्यंग्य लिखने में उतने ही सिद्धहस्त हैं, जितना ‘निर्मल हास्य’ रचने में।
वास्तव में ज्ञान की रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का ऐसा नपा-तुला तालमेल मिलता है, जहाँ ‘दोनों ही’ एक-दूसरे की ताक़त बन जाते हैं। और तब हिन्दी की यह ‘बहस’ ज्ञान को पढ़ते हुए बड़ी बेमानी मालूम होने लगती है कि हास्य के (तथाकथित) घालमेल से व्यंग्य का पैनापन कितना कम हो जाता है? सही मायनों में तो ज्ञान चतुर्वेदी के लेखन से गुज़रना एक ‘सम्पूर्ण व्यंग्य-रचना’ के तेवरों से परिचय पाने के अद्वितीय अनुभव से गुज़रना है।
Khamosh! Nange Hamam Mein Hain
Gyan Chaturvedi
Swang
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
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Book Type:

- Description:
स्वाँग कभी एक बेहद लोकप्रिय लोकनाट्य विधा रही है बुंदेलखंड की। नाटक, नौटंकी, रामलीला से थोड़ी इतर। न मंच, न परदा, न ही कोई विशेष वेशभूषा। बस अभिनय।
स्वाँग का मज़ा इसके असल जैसा लगने में है। एकदम असली, गोकि वहाँ सब नकली होता है : नकली राजा, नकली सिपाही, नकली कोड़े, नकली जेल, नकली साधु, काठ की तलवार, नकली दुश्मन और नकली लड़ाइयाँ। नकली नायक, नकली खलनायक। वही नायक, वही खलनायक। सब जानते हैं कि अभिनय है, नकली है सब, नाटक है यह; पर उस पल वह कितना जीवंत प्रतीत होता है। एकदम असल।
लोकनाट्य तो ख़ैर समय के साथ डूब गए। अब बुंदेलखंड के गाँवों में स्वाँग नहीं खेला जाता। परन्तु हुआ यह है कि अब मानो पूरा समाज ही स्वाँग खेलने में मुब्तिला हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वाँग में बदल गया है।
यह न केवल बुंदेलखंड के बल्कि हिंदुस्तान के समूचे तंत्र के एक विराट स्वाँग में तब्दील हो जाने की कहानी है।
Swang
Gyan Chaturvedi
Alag
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
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Book Type:

- Description: सामयिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों और विडम्बनाओं पर तीखा प्रहार करते हुए व्यंग्य परम्परा को एक नई भाषा और शिल्प प्रदान करनेवाला विशिष्ट संकलन। लेखक यहाँ हमारे दैनिक जीवन और रोज़मर्रा की विडम्बनापूर्ण घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण कर न सिर्फ़ हमें झकझोरता है, बल्कि उन कारणों को भी परत-दर-परत खोलता है जो इनके मूल में हैं। इस संकलन का हर आलेख हास-परिहास करते हुए संवेदना के स्तर पर पाठकों से रिश्ता बनाकर उनके दु:ख, बेचैनी के साथ जुड़ता है और उन्हें आश्वस्त कर सोच का एक नया स्तर भी प्रदान करता है। पुस्तक में राजनीति के विभिन्न रंगों, सत्तालोलुपता और भ्रष्टाचार को बेनक़ाब किया गया है और आन्तरिक स्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए चीज़ों को देखने की एक नई दृष्टि की ओर भी संकेत किया गया है। अपने व्यंग्य-उपन्यासों से हिन्दी व्यंग्य को एक नई ऊँचाई देनेवाले ज्ञान चतुर्वेदी की इन रचनाओं से हँसी उतनी नहीं आती, जितनी अपने आसापास की विडम्बनाएँ हमें कोंचती हैं। शायद यही व्यंग्यकार की सफलता भी है।
Alag
Gyan Chaturvedi
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