Gorakhnath
Bhojpuri Loksahitya
- Author Name:
Prakash Uday +1
-
Book Type:

- Description: लोक की व्याप्ति अत्यंत व्यापक है। इसमें मनुष्य ही नहीं सृष्टि के समस्त चर-अचर अर्थात पशु-पक्षी, वृक्ष-नदी, पर्वत-घाटियाँ, गाँव-शहर आदि सम्मिलित माने जाते हैं। इस लोक की धड़कनों एवं सुख-दुखात्मक अनुभवों की जितनी जीवंत और प्रामाणिक अभिव्यक्ति लोकसाहित्य में मिलती है उतनी अन्यत्र दुर्लभ है। इस लिहाज से भोजपुरी लोकसाहित्य के इस संकलन में भोजपुरी लोकसमाज के सुख-दुख, हास-रुदन, आशा-निराशा, राग-द्वेष के स्पंदनों को बड़ी सूक्ष्मता से सुना एवं अनुभव किया जा सकता है। इस संकलन की एक खासियत यह है कि इसमें भोजपुरी लोकसाहित्य की पाठ्य-सामग्री को मूल रूप में भोजपुरी में ही रखा गया है। सामान्यतः इस तरह के संकलनों में मूल लोकभाषा का रूप रख सकना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है। इसलिए अक्सर सुविधा की दृष्टि से पाठ्य-सामग्री को खड़ीबोली में रख दिया जाता है। इससे पाठक सम्बन्धित लोकभाषा के मूल आस्वाद से वंचित रह जाता है। इस बात को दृष्टिगत करते हुए भोजपुरी लोकसाहित्य के लोकगीतों, गाथाओं, कथाओं, लोकोक्तियों आदि की जो सामग्री इस संकलन में रखी गई है वह मूल भोजपुरी में ही है। इस पुस्तक में लोकसाहित्य के विभिन्न पक्षों की जानकारी देने के साथ खासतौर से भोजपुरी लोकसाहित्य पर पर्याप्त सामग्री दी गई है। इससे विद्यार्थियों एवं अध्येताओं को लोकसाहित्य के सामान्य परिचय के साथ भोजपुरी लोकसाहित्य की एक व्यापक पृष्ठभूमि की जानकारी हो जाती है। यह संकलन हिन्दी क्षेत्र की विभिन्न लोक भाषाओं में मौजूद प्रचुर लोकसाहित्य को मूल भाषा में सामने लाने की दिशा में एक मानक संकलन बन सकता है, क्योंकि अभी तक पाठ्यपुस्तक के रूप में इस तरह का प्रयास लगभग नहीं दिखाई देता।
Bhojpuri Loksahitya
Prakash Uday
Gorakhbani
- Author Name:
Gorakhnath
-
Book Type:

- Description:
मध्यकालीन भारत के जिस दौर में गुरु गोरखनाथ का व्यक्तित्व सामने आया, वह विभिन्न सामाजिक और नैतिक चुनौतियों के सामने एक असहाय और दिग्भ्रमित दौर था। ब्राह्मणवाद और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता अपने चरम पर थी, आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज को भटकानेवाली रहस्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। इस घटाटोप में गोरक्षनाथ जिन्हें हम गोरखनाथ के नाम से ज़्यादा जानते हैं, एक नई सामाजिक और धार्मिक समझ के साथ सामने आए।
वे हठयोगी थे। योग और कर्म दोनों में उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक अनाचार का स्पष्ट और दृढ़ प्रतिरोध किया। वज्रयानी बौद्ध साधकों की अभिचार-प्रणाली और कापालिकों की विकृत साधनाओं पर उन्होंने अपने आचार-व्यवहार से उन्होंने निर्णायक प्रहार किए और अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से समाज को चेताने का कार्य किया। मन्दिर और मस्जिद के भेद, उच्च व निम्न वर्णों के बीच स्वीकृत अन्याय, अनाचार तथा सच्चे गुरु की आवश्यकता और आत्म की खोज को विषय बनाकर उन्होंने लगातार काव्य-रचना की।
इस पुस्तक में उनके चयनित पदों को व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक गोरख की न्याय-प्रणाली को सम्यक् रूप में आत्मसात् कर सकें। मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है।