Gorakhbani
Author:
GorakhnathPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
मध्यकालीन भारत के जिस दौर में गुरु गोरखनाथ का व्यक्तित्व सामने आया, वह विभिन्न सामाजिक और नैतिक चुनौतियों के सामने एक असहाय और दिग्भ्रमित दौर था। ब्राह्मणवाद और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता अपने चरम पर थी, आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज को भटकानेवाली रहस्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। इस घटाटोप में गोरक्षनाथ जिन्हें हम गोरखनाथ के नाम से ज़्यादा जानते हैं, एक नई सामाजिक और धार्मिक समझ के साथ सामने आए।</p>
<p>वे हठयोगी थे। योग और कर्म दोनों में उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक अनाचार का स्पष्ट और दृढ़ प्रतिरोध किया। वज्रयानी बौद्ध साधकों की अभिचार-प्रणाली और कापालिकों की विकृत साधनाओं पर उन्होंने अपने आचार-व्यवहार से उन्होंने निर्णायक प्रहार किए और अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से समाज को चेताने का कार्य किया। मन्दिर और मस्जिद के भेद, उच्च व निम्न वर्णों के बीच स्वीकृत अन्याय, अनाचार तथा सच्चे गुरु की आवश्यकता और आत्म की खोज को विषय बनाकर उन्होंने लगातार काव्य-रचना की।</p>
<p>इस पुस्तक में उनके चयनित पदों को व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक गोरख की न्याय-प्रणाली को सम्यक् रूप में आत्मसात् कर सकें। मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है।
ISBN: 9788183619745
Pages: 87
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: रूमी ईरान के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ग़ज़लें ऊर्जस्वी काव्य के दुर्लभ उदाहरणों में से हैं। रूमी की ग़ज़लें सामान्य कविताओं की तुलना में अलग हैं। इनकी प्रत्येक ग़ज़ल का हर शे’र आत्म-अनुभूति की परिपूर्णता से उच्छलित है। इनकी कविता केवल काव्यात्मक चमत्कारों को प्रदर्शित कर पाठकों को लुब्ध करने में पर्यवसित नहीं होती, बल्कि दिल से निकलकर मस्तिष्क और हृदय को भिगोती हुई आत्मा तक का स्पर्श कर लेती है। प्रस्तुत पुस्तक उनकी चुनिन्दा 100 ग़ज़लों का अनुवाद है। इस पुस्तक के माध्यम से रूमी पहली बार सीधे फ़ारसी से हिन्दी में अनूदित हुए हैं। इसमें सबसे पहले फ़ारसी ग़ज़लों का देवनागरी में लिप्यन्तरण प्रस्तुत किया गया है, फिर साथ में ही उनका हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अन्त में मूल ग़ज़लें फ़ारसी लिपि में भी रखी गई हैं। पुस्तक के अन्त में दिए गए अनेक परिशिष्टों के माध्यम से फ़ारसी काव्य-भाषा को समझने के महत्त्वपूर्ण उपकरण जुटाए गए हैं। ग़ज़लों में प्रयुक्त सभी छन्दों को ईरानी तथा भारतीय काव्यशास्त्रीय रीति से समझाया गया है। क्लासिकल फ़ारसी कविता के सम्यक् परिचय के लिए आवश्यक संक्षिप्त फ़ारसी व्याकरण जोड़ा गया है। अन्त में प्रत्येक शब्द का अर्थ भी दिया गया है। इस प्रकार मूल से जुड़े रसपूर्ण अनुवाद की प्रस्तुति के साथ ही यह पुस्तक रूमी-रीडर के तौर पर भी उपयोग में आने योग्य है।
Praan Mere
- Author Name:
Anil Kumar Pathak
- Book Type:

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Description:
अनिल कुमार पाठक की नवीनतम काव्य-कृति ‘प्राण मेरे’ उनकी पूर्व काव्य-कृतियों ‘गीत, मीत के नाम’ तथा ‘अप्रतिम’ की परम्परा में मोहक प्रेम-गीतों का एक विलक्षण संग्रह है। पूर्ववर्ती गीत-संग्रहों की ही भाँति इस संग्रह के गीतों में भी प्रेम, संकुचित स्वरूप का परित्याग कर विस्तार के उद्दीप्त शाश्वत भाव के साथ विभिन्न अर्थ-संकेतों तथा अर्थ-सन्दर्भों के रूप में उपस्थित है। भावनाओं की व्यापकता एवं उसमें निहित चेतना-तत्त्व से युक्त प्रेम के स्निग्ध स्वरूप को कवि ने इस सुकृति की भूमिका में अनन्य भाव से परिभाषित किया है।
उन्होंने समाज में व्याप्त प्रेम विषयक विभिन्न भ्रान्तियों, जो प्रेम के शाश्वत स्वरूप को सीमित करती हैं, के सम्बन्ध में निराकरण प्रस्तुत करते हुए अपनी दृष्टि से इनकी गहन व्याख्या भी की है। कवि की यही दृष्टि इस संग्रह के गीतों में प्रतिध्वनित होती है।
Vivaksha
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

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Description:
अपनी सक्रियता, सृजनशीलता, विचारोत्तेजना और मुखरता से हिन्दी साहित्य के परिदृश्य में लगातार एक अलग उपस्थिति बने अशोक वाजपेयी ने लगभग पचास वर्ष पहले कविता-प्रवेश किया था। इस दौरान हिन्दी कविता में आए परिवर्तनों और आन्दोलनों से अपने को सुपरिचित रखते हुए भी, उनकी अपनी अलग राह रही है जिस पर वे लगभग ज़िद कर चलते रहे हैं। अपनी कविता-यात्रा को ‘शब्द के साथ प्रयोगों की प्रेमकथा’ बतानेवाले वे एक ऐसे कवि हैं जिनमें जीवनासक्ति और शब्दासक्ति के बीच कोई द्वैत नहीं है। अपने समय और समाज की जटिल सच्चाइयों के प्रति सजग और संवेदनशील रहते हुए यह एक ऐसी कविता है जिसमें निजी और सामाजिक को निरन्तर संगुम्फित किया गया है। कभी साक्षी, कभी सहचर, कभी हिस्सेदार यह कवि अपने समय में अन्तर्निहित दूसरे समयों को भी कविता में विन्यस्त करने की चेष्टा करता रहा है।
अब तक प्रकाशित अपने बारह कविता-संग्रहों में से लगभग दो सौ कविताएँ इस संचयन के लिए स्वयं अशोक वाजपेयी ने चुनी हैं। प्रेम, मृत्यु, दुनिया, शब्द, पूर्वज, कलाएँ, घर-पड़ोस आदि थीमों के इर्द-गिर्द बुना हुआ यह संकलन अशोक वाजपेयी के श्रेष्ठ काव्य के आस्वादन का एक नया अवसर भर नहीं जुटाता, वह इस दौरान लिखी गई हिन्दी कविता के कुछ परिष्कृत-जटिल पर सम्प्रेषणीय अंश को भी एकत्र करता है। कवि के पैंसठ वर्ष की आयु पूरी करने पर यह संचयन विशेष रूप से प्रकाशित है। भूमिका पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का ने लिखी है जो कई बरसों से अशोक वाजपेयी की कविता का अध्ययन करती रही हैं।
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